देहारादूनः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए जिन लोगों का नाम विधानसभा भर्ती घोटाले के दौरान आया, उनकी जिम्मेदारी को फौरन संघ की तरफ से बदल दिया गया. संघ के एक्शन को नैतिकता के रूप में लिया गया कदम माना गया है. लेकिन विपक्ष को बीजेपी पर अब तक ऐसी कोई नैतिकता या राजनीतिक शुचिता को बनाए रखने का प्रयास करती हुई नजर नहीं आई है. विपक्ष का आरोप है कि हैरानी की बात ये है कि इस मामले पर जांच में भाई भतीजावाद को अपनाने और पूरी तरह से चयन प्रक्रिया से दूरी बनाने की बात सामने आने के बाद भी बीजेपी नेता व भाजपा सरकार के जिम्मेदार लोग चुप हैं.
बता दें कि उत्तराखंड विधानसभा भर्ती में न केवल सरकार के मंत्रियों की करीबियों बल्कि संगठन के नेताओं का नाम भी जोर शोर से लिया गया. इतना ही नहीं प्रदेश महामंत्री संगठन अजय कुमार पर भी विपक्षी दलों ने आरोप (Nepotism in Uttarakhand Assembly) लगाए. राजनीति में नैतिकता को सबसे ऊपर रखने की बात कहने वाली बीजेपी फिलहाल इस मामले में तो इसी शब्द से दूरी बनाती हुई दिखाई दी है ऐसा विपक्ष का आरोप है.
चौंकाने वाली बात तो ये है कि जांच में नियुक्तियों के गलत पाए जाने के बाद भी ऐसे मंत्रियों और बाकी नेताओं पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है. उधर, हाईकोर्ट ने फिर से यथास्थिति के आदेश कर दिए हैं. जानकार मानते हैं कि इन हालतों में भविष्य में भी इसी तरह की नियुक्तियों को बढ़ावा मिलना तय है. जबकि, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष न्यायालय के बहाने नैतिकता शब्द से पल्ला झाड़ते हुए दिखाई देते हैं.
कांग्रेस का तीखा हमलाः कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने सरकार पर तीखा हमला बोला है. गरिमा का कहना है कि पारदर्शिता, जीरो टॉलरेंस, भ्रष्टाचार मुक्त की बात करने वाली बीजेपी सरकार को दोहरा चरित्र विधानसभा भर्ती घोटाले में सामने आया है. विधानसभा अध्यक्ष ने भी भाई भतीजावाद पर चुप्पी नहीं तोड़ी तोड़ी है. आरएसएस ने अपने प्रांत प्रचारक और सह प्रांत प्रचारक का दूसरे प्रदेश में तबादला कर दंड दे दिया है, लेकिन बीजेपी अपने नेताओं पर कब करेगी?
दरअसल, विधानसभा बैक डोर भर्ती घोटाले के सामने आने के बाद उस वक्त कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल (Cabinet Minister Prem Chand Aggarwal) पर सवाल खड़े हो रहे थे. सवाल इस बात पर खड़े हो रहे थे कि आखिरकार प्रेमचंद अग्रवाल के विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए कैसे अपने लोगों को नियमों को ताक पर रखकर विधानसभा में भर्ती करवाया. सवाल इस बात पर भी खड़े हो रहे थे कि कैसे बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने नियमों के विपरीत अपने परिजनों को विधानसभा में नियुक्ति दिलवाई थी.
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इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले में कार्रवाई करने का आग्रह किया था. एक महीने की जांच के बाद विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने भी तत्काल एक्शन ले लिया था. लेकिन हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त किए गए 102 से अधिक कर्मचारियों की बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई की. सुनवाई में उनकी बर्खास्तगी के आदेश पर अग्रिम सुनवाई तक रोक लगा दी. साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ये कर्मचारी अपने पदों पर कार्य करते रहेंगे.
कोर्ट के इस आदेश के बाद सरकार बैकफुट पर आ गई है. जितना हल्ला बर्खास्तगी को लेकर हुआ उसके बाद सरकार ने भी इसका खूब प्रचार-प्रसार किया, लेकिन हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की इस कार्रवाई को भी सिरे से खारिज कर दिया. आलम ये हुआ कि जिन लोगों की नियुक्तियां रद्द की गई थीं अब वो दोबारा से विधानसभा की उसी पोस्ट पर बैठकर काम कर रहे हैं.
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विधानसभा में इन पदों पर हुई भर्ती: उत्तराखंड विधानसभा में इन पदों पर हुई भर्तियां अपर निजी सचिव समीक्षा, अधिकारी समीक्षा अधिकारी, लेखा सहायक समीक्षा अधिकारी, शोध एवं संदर्भ, व्यवस्थापक, लेखाकार सहायक लेखाकार, सहायक फोरमैन, सूचीकार, कंप्यूटर ऑपरेटर, कंप्यूटर सहायक, वाहन चालक, स्वागती, रक्षक पुरुष और महिला विधानसभा में बैक डोर में हुई. नियुक्तियों को लेकर बड़ी बात यह है कि विधानसभा ने विभिन्न पदों के लिए बकायदा विज्ञप्ति भी जारी की गई थी.
विधानसभा ने जिन 35 लोगों की नियुक्ति के लिए विज्ञप्ति निकाली गई थी, उसकी दो बार परीक्षा रोकी गई. सबसे बड़ी बात यह है कि नियुक्तियों की विज्ञप्ति में अभ्यार्थियों को ₹1000 परीक्षा शुल्क देना पड़ा, 8000 अभ्यार्थियों ने इस परीक्षा के लिए आवेदन किया. परीक्षा कई विवादों के बाद हुई, लेकिन अभी तक इस परीक्षा का परिणाम नहीं आया. इसके पीछे हाईकोर्ट में रोस्टर को लेकर परीक्षा पर स्टे लगना बताया गया है. उधर, इस बीच बैकडोर से 72 लोगों की नियुक्तियां करवा दी गई.