देहरादून: कांग्रेस ने चंपावत विधानसभा सीट के उपचुनाव के लिए निर्मला गहतोड़ी को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस ने इस उपचुनाव में पहली बार किसी महिला को चंपावत से टिकट दिया है. फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की ओर से हेमेश खर्कवाल उम्मीदवार थे. उपचुनाव में प्रत्याशी बनाई गईं निर्मला गहतोड़ी मुख्य चुनाव में भी दावेदार थीं. निर्मला गहतोड़ी कांग्रेस की पूर्व जिलाध्यक्ष हैं. वो इस उपचुनाव में सीधे सीएम पुष्कर सिंह धामी को टक्कर देंगी.
इससे पहले अबतक हुए चार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने हमेशा एक ही चेहरे पर भरोसा जताया था और वो हैं हेमेश खर्कवाल. हालांकि, बीजेपी ने चंपावत सीट से हर बार नया चेहरा उतारा. 2002 में हुए पहले चुनाव से 2022 तक के सभी चुनाव में कांग्रेस ने हेमेश खर्कवाल को प्रत्याशी बनाया था. पार्टी ने 2002 और 2012 में यहां जीत हासिल की, जबकि तीन बार हार झेली. हालांकि, उपचुनाव में चेहरा और मोहरा बदला हुआ नजर आ रहा है.
बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चंपावत से चुनाव लड़ रहे हैं. धामी के लिए कैलाश गहतोड़ी ने अपनी चंपावत सीट छोड़ी है, जिसके बाद यहां आगामी 31 मई को उपचुनाव होने हैं. बता दें कि मार्च में आए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव नतीजों में धामी को अपनी खटीमा सीट गंवानी पड़ी थी. हालांकि, बीजेपी आलाकमान ने उन्हीं पर अपना भरोसा जताया और सीएम की कमान धामी को ही सौंपी. ऐसे में सीएम बनने के 6 महीने के भीतर धामी को चुनाव जीतना जरूरी है.
गौर हो कि इससे पहले चंपावत विधानसभा क्षेत्र से अब तक केवल दो बार ही महिलाओं को टिकट मिला है और दोनों बार ये महिला प्रत्याशी बीजेपी की ओर से थीं. साल 2007 में बीजेपी ने बीना महराना को टिकट दिया और उनकी जीत भी हुई थी. चुनाव जीतने के बाद उन्हें भुवन चंद्र खंडूरी मंत्रिमंडल में महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास मंत्री बनाया गया था. वहीं, साल 2012 में बीजेपी ने तत्कालीन पार्टी जिलाध्यक्ष हेमा जोशी को टिकट दिया, लेकिन वो जीत नहीं दिला पाईं थीं और तीसरे स्थान पर रही थीं.
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कौन हैं निर्मला गहतोड़ी: शिक्षक पिता की संतान निर्मला गहतोड़ी का जन्म चंपावत के लोहाघाट नामक एक छोटे से कस्बे में हुआ था. वो 6 बच्चों में चौथी संतान हैं. इंटर तक पढ़ाई के बाद उनकी शादी भी एक शिक्षक के साथ हुई. इसके बाद वो उत्तराखंडी आम ग्रामीण महिला की तरह रहने लगीं. शादी के दस वर्ष तक यही दिनचर्या चली, फिर पति का ट्रांसफर चंपावत कस्बे में हुआ.
निर्मला गहतोड़ी अपने तीन बच्चों को लेकर पति के साथ नयी जगह आ गईं. उन्होंने हैंडलूम में कालीन बनाने की ट्रेनिंग ली थी, उसका उपयोग कर के कुछ समय के लिए आईटीआई में इंस्ट्रक्टर का काम भी किया. कुछ सालों के बाद गांव की प्रधानी की सीट महिला आरक्षित हुई तो पढ़ी लिखी निर्मला को गांव वालों ने निर्विरोध ग्राम प्रधान निर्वाचित कर दिया. यहां से निर्मला गहतोड़ी को अपनी नेतृत्व क्षमता दिखाने का अवसर मिला. ग्राम पंचायत की मीटिंग से लेकर ब्लॉक व जिला लेवल की मीटिंग तक सभी फैसले निर्मला खुद ही लेती थीं. इस दौरान उनके पति ने बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाई.
इस बीच प्रधानी का काम करते हुए निर्मला राजनीति के रास्ते में बढ़ गईं. उन्होंने जनता के कई मुद्दे उठाए, उत्तराखंड आंदोलन और शराब विरोधी आंदोलन में भी हिस्सा लिया. हालांकि, जिला पंचायत चुनाव में उन्हें हार मिली. इस बीच कांग्रेस पार्टी की सदस्य भी बनीं और फिर कांग्रेस की जिला अध्यक्ष बनाई गईं, 10 साल तक उन्होंने ये जिम्मेदारी संभाली. पहली बार कोई महिला कांग्रेस की जिला अध्यक्ष बनी थी. फिर एआईसीसी की सदस्य रहीं.
27 साल से कांग्रेस के साथः पिछले काफी लंबे समय से कांग्रेस से टिकट की मांग कर रही निर्मला को इस बार भाजपा के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने मैदान में उतरा है. निर्मला गहतोड़ी चंपावत के खेतीखान पाटी ब्लॉक की निवासी है और लगभग 27 सालों से कांग्रेस से जुड़ी है. 1996 से शुरू हुए आपने राजनीतिक सफर में ग्राम प्रधान से लेकर जनपद के कई पदों पर रही है. वर्तमान में निर्मला पीसीसी (प्रदेश कांग्रेस कमेटी) की सदस्य भी हैं.