देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस BJP के लिए मित्र विपक्ष के रूप में काम कर रही है. प्रदेश में केंद्रीय योजनाओं की अनदेखी का मुद्दा हो या उत्तराखंड सरकार की गलत नीतियों, किसी भी मामले को लेकर कांग्रेस मुखर नहीं दिखती. विपक्ष को सत्ता पक्ष के खिलाफ सड़कों पर बहुत ही कम मौकों पर देखा जाता है. कभी अगर कांग्रेस किसी मुद्दे को लेकर सड़कों पर उतरती भी है तो पार्टी कार्यकर्ता गुटों में बंटे नजर आते हैं. आइए आपको बताते हैं कांग्रेस किन-किन मुद्दों को उठाने में फीकी पड़ी.
उत्तराखंड कांग्रेस ने अब राजीव गांधी के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए गए बयान और दलित युवक की हत्या के मामले पर आंदोलन किया और इसे बड़ा रूप देने की कोशिश भी की. लेकिन, खुद कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा कहते हैं कि पार्टी को काफी देर बाद इस तरह के आंदोलन की याद आई है. वहीं, कांग्रेस के पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी कहते हैं कि पार्टी मुद्दों को भुनाने की कभी कोशिश नहीं करती, इसीलिए कांग्रेस पर मित्र विपक्ष के आरोप अक्सर लगते हैं. खुद कांग्रेस के नेता मानते हैं कि पार्टी के अंदर खटपट होती रहती है, हालांकि उनका मानना है कि पार्टी अब एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा संभाल रही है.
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केंद्रीय पोषित योजनाओं में 30% की कटौती का मुद्दा
केंद्रीय योजनाओं में उत्तराखंड को मिलती कम तवज्जो के चलते प्रदेश की कई योजनाएं आर्थिक रूप से संकट में रहीं. इस दौरान कुछ योजनाएं तो पूरी तरह से बंदी की कगार पर आ गई हैं, जिससे प्रदेश में विकास कार्य समेत रोजगार और तमाम दूसरी बातें प्रभावित हो रही हैं. इन सबके बावजूद कांग्रेस ने इस मुद्दे पर न तो कभी सड़क पर प्रदर्शन किया और न ही इन मुद्दे को प्रमुखता से उठाया.
श्रीनगर से NIT शिफ्टिंग का मामला
श्रीनगर से एनआईटी शिफ्टिंग को लेकर क्षेत्रीय स्तर पर आम लोगों ने खूब विरोध किया. मामला राज्य से लेकर केंद्र स्तर तक पहुंच गया. कोर्ट में फिलहाल मामला लंबित है. लेकिन, इस बड़े मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने किसी तरह का आंदोलन नहीं किया.
बेरोजगारी और गन्ना किसानों का मुद्दा
राज्य में बेरोजगारी और गन्ना किसानों के मामले पर विधानसभा के अंदर कांग्रेस ने जरूर आवाज उठाई, लेकिन ये आवाज विधान भवन तक ही सीमित रही. इस दौरान विधानसभा के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया गया. लेकिन, कांग्रेस इस मुद्दे को धार देती तो बीजेपी को आसानी से घेरा जा सकता था. कांग्रेस नेता हरीश रावत ने कई बार मुद्दा तो उठाया, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं का समर्थन न मिलने से वो मामले को धार नहीं दे पाये. वहीं, प्रीतम सिंह ने भी अलग-अलग मंचों पर इन मुद्दों को लेकर बयान देते हुए विरोध तो किया लेकिन इसे बड़े आंदोलन का रूप नहीं दे पाये. इसकी अहम वजह पार्टी में एकता न होना भी माना जाता है.
कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू की गई योजनाओं को खत्म करने का मामला
हरीश सरकार के दौरान पेंशन योजनाओं समेत पीडब्ल्यूडी से जुड़ी कुछ योजनाएं शुरू हुईं थी, लेकिन, कुछ समय बाद ही त्रिवेंद्र सरकार ने इसको ठंडे बस्ते में डाल दिया. इस मामले को भी कांग्रेस नहीं भुना पाई. मुद्दे को उठाना तो छोड़िए पार्टी ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया.
शराब की दुकानों के लिए नियम बदलने और ओवर रेटिंग का मुद्दा
उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेताओं ने कभी भी आबकारी जैसे मामलों को नहीं उठाया जबकि बीजेपी ने इस मुद्दे को खूब धार दी थी. यहां तक कि बीजेपी सरकार ने शराब की दुकानों को हाई-वे पर न खोले जाने के कोर्ट के फैसले के बावजूद नियमों को बदल दिया ताकि शराब की दुकान फिर मुख्य सड़कों पर खोली जा सकें. इतने बड़े मुद्दे पर कांग्रेस ने अपने हाथ से जाने दिया.
अपराध की बड़ी घटनाओं को भी किया अनदेखा
उत्तराखंड में अपराध की कई ऐसी घटनाएं हुई जिससे कानून व्यवस्था पर सवाल उठते हैं. लेकिन, कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर महज विधानसभा में हंगामा किया और कभी-कभी बयानबाजी में इसको शामिल किया. लेकिन, कांग्रेस सड़कों पर उतरकर सरकार को इस मुद्दे पर नहीं घेर पायी. प्रदेश की चरमराती कानून व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन लगता है मानो कांग्रेस को किसी मुद्दे से कोई फर्क नहीं पड़ता.
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अवैध खनन का मुद्दा भी रहा गायब
उत्तराखंड में सरकार किसी की भी हो अवैध खनन और खनन के गलत आवंटन का मामला हमेशा चर्चाओं में बना रहा. कई बार सरकारों की इस मामले को लेकर किरकिरी भी हुई. कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठाने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, जबकि समाजसेवियों ने अवैध खनन को लेकर कई बार सबूत भी दिए.
NRHM, सर्व शिक्षा अभियान, ODF और मनरेगा योजना
नीति आयोग बनने के बाद से ही कई स्तरों पर बजट को कम किया गया. इसमें एनआरएचएम (नेशनल रुरल हेल्थ मिशन), सर्व शिक्षा अभियान, ओडीएफ (open defecation free) और मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं शामिल थीं. लेकिन कांग्रेस ने इन जनहित से जुड़ी योजनाओं का बजट कम होने पर भी कोई सवाल नहीं उठाया. किसी तरह का जन आंदोलन या संगठन स्तर पर प्रदेशभर में कोई बड़ा मूवमेंट नहीं किया गया.
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उत्तराखंड कांग्रेस के अंदरखाने हो रही गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है. इसी गुटबाजी का नतीजा है कि बीजेपी के लिए जो मुद्दे परेशानी खड़ी कर सकते हैं उन्हें कांग्रेस ठीक से नहीं उठा पा रही है. विपक्ष की तरफ से किसी तरह के आंदोलन को धार नहीं दी गई, जिससे विपक्ष महज 'मित्र' बनकर रह गया है. कांग्रेस शायद भूल गई है कि मुद्दों को प्रमुख्ता से उठाने की वजह से ही बीजेपी विपक्ष से सरकार बनाने तक की दूरी तय कर पाई है. अगर कांग्रेस आगे भी इसी तरह किसी मुद्दे को उठाने और उसे धार देने में दिलचस्पी नहीं दिखाएगी तो कांग्रेस का खोया हुआ जनाधार वापस पाने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा.