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अनजाने में 'मित्र विपक्ष' की भूमिका निभा रही कांग्रेस, त्रिवेंद्र सरकार की राह हो रही आसान

उत्तराखंड कांग्रेस जाने-अनजाने त्रिवेंद्र सरकार की मदद कर रही है. विपक्ष ऐसे कई मुद्दों को नहीं भुना पाया, जिनमें BJP बैकफुट पर सकती है. 2 सालों में कांग्रेस कभी सड़क पर आयी भी तो नेता मुद्दे को ठीक से उठाने के बजाय बयानबाजी कर अपनी राजनीति चमकाने में लगे रहे.

उत्तराखंड कांग्रेस.
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Published : May 14, 2019, 10:43 AM IST

Updated : May 14, 2019, 10:49 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस BJP के लिए मित्र विपक्ष के रूप में काम कर रही है. प्रदेश में केंद्रीय योजनाओं की अनदेखी का मुद्दा हो या उत्तराखंड सरकार की गलत नीतियों, किसी भी मामले को लेकर कांग्रेस मुखर नहीं दिखती. विपक्ष को सत्ता पक्ष के खिलाफ सड़कों पर बहुत ही कम मौकों पर देखा जाता है. कभी अगर कांग्रेस किसी मुद्दे को लेकर सड़कों पर उतरती भी है तो पार्टी कार्यकर्ता गुटों में बंटे नजर आते हैं. आइए आपको बताते हैं कांग्रेस किन-किन मुद्दों को उठाने में फीकी पड़ी.

उत्तराखंड कांग्रेस ने अब राजीव गांधी के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए गए बयान और दलित युवक की हत्या के मामले पर आंदोलन किया और इसे बड़ा रूप देने की कोशिश भी की. लेकिन, खुद कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा कहते हैं कि पार्टी को काफी देर बाद इस तरह के आंदोलन की याद आई है. वहीं, कांग्रेस के पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी कहते हैं कि पार्टी मुद्दों को भुनाने की कभी कोशिश नहीं करती, इसीलिए कांग्रेस पर मित्र विपक्ष के आरोप अक्सर लगते हैं. खुद कांग्रेस के नेता मानते हैं कि पार्टी के अंदर खटपट होती रहती है, हालांकि उनका मानना है कि पार्टी अब एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा संभाल रही है.

उत्तराखंड में कांग्रेस बनी 'मित्र विपक्ष'

पढ़ें- देहरादून: किराए पर लेना हो दुकान या घर तो ये 'गूगल अंकल' करेंगे मदद

केंद्रीय पोषित योजनाओं में 30% की कटौती का मुद्दा
केंद्रीय योजनाओं में उत्तराखंड को मिलती कम तवज्जो के चलते प्रदेश की कई योजनाएं आर्थिक रूप से संकट में रहीं. इस दौरान कुछ योजनाएं तो पूरी तरह से बंदी की कगार पर आ गई हैं, जिससे प्रदेश में विकास कार्य समेत रोजगार और तमाम दूसरी बातें प्रभावित हो रही हैं. इन सबके बावजूद कांग्रेस ने इस मुद्दे पर न तो कभी सड़क पर प्रदर्शन किया और न ही इन मुद्दे को प्रमुखता से उठाया.

श्रीनगर से NIT शिफ्टिंग का मामला
श्रीनगर से एनआईटी शिफ्टिंग को लेकर क्षेत्रीय स्तर पर आम लोगों ने खूब विरोध किया. मामला राज्य से लेकर केंद्र स्तर तक पहुंच गया. कोर्ट में फिलहाल मामला लंबित है. लेकिन, इस बड़े मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने किसी तरह का आंदोलन नहीं किया.

बेरोजगारी और गन्ना किसानों का मुद्दा
राज्य में बेरोजगारी और गन्ना किसानों के मामले पर विधानसभा के अंदर कांग्रेस ने जरूर आवाज उठाई, लेकिन ये आवाज विधान भवन तक ही सीमित रही. इस दौरान विधानसभा के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया गया. लेकिन, कांग्रेस इस मुद्दे को धार देती तो बीजेपी को आसानी से घेरा जा सकता था. कांग्रेस नेता हरीश रावत ने कई बार मुद्दा तो उठाया, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं का समर्थन न मिलने से वो मामले को धार नहीं दे पाये. वहीं, प्रीतम सिंह ने भी अलग-अलग मंचों पर इन मुद्दों को लेकर बयान देते हुए विरोध तो किया लेकिन इसे बड़े आंदोलन का रूप नहीं दे पाये. इसकी अहम वजह पार्टी में एकता न होना भी माना जाता है.

पढ़ें- नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने बीजेपी को बताया दलित विरोधी पार्टी, कहा- पीएम मोदी कर रहे देश बांटने का काम

कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू की गई योजनाओं को खत्म करने का मामला
हरीश सरकार के दौरान पेंशन योजनाओं समेत पीडब्ल्यूडी से जुड़ी कुछ योजनाएं शुरू हुईं थी, लेकिन, कुछ समय बाद ही त्रिवेंद्र सरकार ने इसको ठंडे बस्ते में डाल दिया. इस मामले को भी कांग्रेस नहीं भुना पाई. मुद्दे को उठाना तो छोड़िए पार्टी ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया.

शराब की दुकानों के लिए नियम बदलने और ओवर रेटिंग का मुद्दा
उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेताओं ने कभी भी आबकारी जैसे मामलों को नहीं उठाया जबकि बीजेपी ने इस मुद्दे को खूब धार दी थी. यहां तक कि बीजेपी सरकार ने शराब की दुकानों को हाई-वे पर न खोले जाने के कोर्ट के फैसले के बावजूद नियमों को बदल दिया ताकि शराब की दुकान फिर मुख्य सड़कों पर खोली जा सकें. इतने बड़े मुद्दे पर कांग्रेस ने अपने हाथ से जाने दिया.

अपराध की बड़ी घटनाओं को भी किया अनदेखा
उत्तराखंड में अपराध की कई ऐसी घटनाएं हुई जिससे कानून व्यवस्था पर सवाल उठते हैं. लेकिन, कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर महज विधानसभा में हंगामा किया और कभी-कभी बयानबाजी में इसको शामिल किया. लेकिन, कांग्रेस सड़कों पर उतरकर सरकार को इस मुद्दे पर नहीं घेर पायी. प्रदेश की चरमराती कानून व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन लगता है मानो कांग्रेस को किसी मुद्दे से कोई फर्क नहीं पड़ता.

पढ़ें- पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर टिप्पणी से भड़के कांग्रेसी, कहा- माफ नहीं करेगा देश

अवैध खनन का मुद्दा भी रहा गायब
उत्तराखंड में सरकार किसी की भी हो अवैध खनन और खनन के गलत आवंटन का मामला हमेशा चर्चाओं में बना रहा. कई बार सरकारों की इस मामले को लेकर किरकिरी भी हुई. कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठाने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, जबकि समाजसेवियों ने अवैध खनन को लेकर कई बार सबूत भी दिए.

NRHM, सर्व शिक्षा अभियान, ODF और मनरेगा योजना

नीति आयोग बनने के बाद से ही कई स्तरों पर बजट को कम किया गया. इसमें एनआरएचएम (नेशनल रुरल हेल्थ मिशन), सर्व शिक्षा अभियान, ओडीएफ (open defecation free) और मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं शामिल थीं. लेकिन कांग्रेस ने इन जनहित से जुड़ी योजनाओं का बजट कम होने पर भी कोई सवाल नहीं उठाया. किसी तरह का जन आंदोलन या संगठन स्तर पर प्रदेशभर में कोई बड़ा मूवमेंट नहीं किया गया.

पढ़ें- इंदिरा हृदयेश की नसीहत, कहा- राजनीति जीवन के आखिरी दिनों में संभल जाएं

उत्तराखंड कांग्रेस के अंदरखाने हो रही गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है. इसी गुटबाजी का नतीजा है कि बीजेपी के लिए जो मुद्दे परेशानी खड़ी कर सकते हैं उन्हें कांग्रेस ठीक से नहीं उठा पा रही है. विपक्ष की तरफ से किसी तरह के आंदोलन को धार नहीं दी गई, जिससे विपक्ष महज 'मित्र' बनकर रह गया है. कांग्रेस शायद भूल गई है कि मुद्दों को प्रमुख्ता से उठाने की वजह से ही बीजेपी विपक्ष से सरकार बनाने तक की दूरी तय कर पाई है. अगर कांग्रेस आगे भी इसी तरह किसी मुद्दे को उठाने और उसे धार देने में दिलचस्पी नहीं दिखाएगी तो कांग्रेस का खोया हुआ जनाधार वापस पाने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा.

देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस BJP के लिए मित्र विपक्ष के रूप में काम कर रही है. प्रदेश में केंद्रीय योजनाओं की अनदेखी का मुद्दा हो या उत्तराखंड सरकार की गलत नीतियों, किसी भी मामले को लेकर कांग्रेस मुखर नहीं दिखती. विपक्ष को सत्ता पक्ष के खिलाफ सड़कों पर बहुत ही कम मौकों पर देखा जाता है. कभी अगर कांग्रेस किसी मुद्दे को लेकर सड़कों पर उतरती भी है तो पार्टी कार्यकर्ता गुटों में बंटे नजर आते हैं. आइए आपको बताते हैं कांग्रेस किन-किन मुद्दों को उठाने में फीकी पड़ी.

उत्तराखंड कांग्रेस ने अब राजीव गांधी के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए गए बयान और दलित युवक की हत्या के मामले पर आंदोलन किया और इसे बड़ा रूप देने की कोशिश भी की. लेकिन, खुद कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा कहते हैं कि पार्टी को काफी देर बाद इस तरह के आंदोलन की याद आई है. वहीं, कांग्रेस के पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी कहते हैं कि पार्टी मुद्दों को भुनाने की कभी कोशिश नहीं करती, इसीलिए कांग्रेस पर मित्र विपक्ष के आरोप अक्सर लगते हैं. खुद कांग्रेस के नेता मानते हैं कि पार्टी के अंदर खटपट होती रहती है, हालांकि उनका मानना है कि पार्टी अब एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा संभाल रही है.

उत्तराखंड में कांग्रेस बनी 'मित्र विपक्ष'

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केंद्रीय पोषित योजनाओं में 30% की कटौती का मुद्दा
केंद्रीय योजनाओं में उत्तराखंड को मिलती कम तवज्जो के चलते प्रदेश की कई योजनाएं आर्थिक रूप से संकट में रहीं. इस दौरान कुछ योजनाएं तो पूरी तरह से बंदी की कगार पर आ गई हैं, जिससे प्रदेश में विकास कार्य समेत रोजगार और तमाम दूसरी बातें प्रभावित हो रही हैं. इन सबके बावजूद कांग्रेस ने इस मुद्दे पर न तो कभी सड़क पर प्रदर्शन किया और न ही इन मुद्दे को प्रमुखता से उठाया.

श्रीनगर से NIT शिफ्टिंग का मामला
श्रीनगर से एनआईटी शिफ्टिंग को लेकर क्षेत्रीय स्तर पर आम लोगों ने खूब विरोध किया. मामला राज्य से लेकर केंद्र स्तर तक पहुंच गया. कोर्ट में फिलहाल मामला लंबित है. लेकिन, इस बड़े मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने किसी तरह का आंदोलन नहीं किया.

बेरोजगारी और गन्ना किसानों का मुद्दा
राज्य में बेरोजगारी और गन्ना किसानों के मामले पर विधानसभा के अंदर कांग्रेस ने जरूर आवाज उठाई, लेकिन ये आवाज विधान भवन तक ही सीमित रही. इस दौरान विधानसभा के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया गया. लेकिन, कांग्रेस इस मुद्दे को धार देती तो बीजेपी को आसानी से घेरा जा सकता था. कांग्रेस नेता हरीश रावत ने कई बार मुद्दा तो उठाया, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं का समर्थन न मिलने से वो मामले को धार नहीं दे पाये. वहीं, प्रीतम सिंह ने भी अलग-अलग मंचों पर इन मुद्दों को लेकर बयान देते हुए विरोध तो किया लेकिन इसे बड़े आंदोलन का रूप नहीं दे पाये. इसकी अहम वजह पार्टी में एकता न होना भी माना जाता है.

पढ़ें- नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने बीजेपी को बताया दलित विरोधी पार्टी, कहा- पीएम मोदी कर रहे देश बांटने का काम

कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू की गई योजनाओं को खत्म करने का मामला
हरीश सरकार के दौरान पेंशन योजनाओं समेत पीडब्ल्यूडी से जुड़ी कुछ योजनाएं शुरू हुईं थी, लेकिन, कुछ समय बाद ही त्रिवेंद्र सरकार ने इसको ठंडे बस्ते में डाल दिया. इस मामले को भी कांग्रेस नहीं भुना पाई. मुद्दे को उठाना तो छोड़िए पार्टी ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया.

शराब की दुकानों के लिए नियम बदलने और ओवर रेटिंग का मुद्दा
उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेताओं ने कभी भी आबकारी जैसे मामलों को नहीं उठाया जबकि बीजेपी ने इस मुद्दे को खूब धार दी थी. यहां तक कि बीजेपी सरकार ने शराब की दुकानों को हाई-वे पर न खोले जाने के कोर्ट के फैसले के बावजूद नियमों को बदल दिया ताकि शराब की दुकान फिर मुख्य सड़कों पर खोली जा सकें. इतने बड़े मुद्दे पर कांग्रेस ने अपने हाथ से जाने दिया.

अपराध की बड़ी घटनाओं को भी किया अनदेखा
उत्तराखंड में अपराध की कई ऐसी घटनाएं हुई जिससे कानून व्यवस्था पर सवाल उठते हैं. लेकिन, कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर महज विधानसभा में हंगामा किया और कभी-कभी बयानबाजी में इसको शामिल किया. लेकिन, कांग्रेस सड़कों पर उतरकर सरकार को इस मुद्दे पर नहीं घेर पायी. प्रदेश की चरमराती कानून व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन लगता है मानो कांग्रेस को किसी मुद्दे से कोई फर्क नहीं पड़ता.

पढ़ें- पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर टिप्पणी से भड़के कांग्रेसी, कहा- माफ नहीं करेगा देश

अवैध खनन का मुद्दा भी रहा गायब
उत्तराखंड में सरकार किसी की भी हो अवैध खनन और खनन के गलत आवंटन का मामला हमेशा चर्चाओं में बना रहा. कई बार सरकारों की इस मामले को लेकर किरकिरी भी हुई. कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठाने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, जबकि समाजसेवियों ने अवैध खनन को लेकर कई बार सबूत भी दिए.

NRHM, सर्व शिक्षा अभियान, ODF और मनरेगा योजना

नीति आयोग बनने के बाद से ही कई स्तरों पर बजट को कम किया गया. इसमें एनआरएचएम (नेशनल रुरल हेल्थ मिशन), सर्व शिक्षा अभियान, ओडीएफ (open defecation free) और मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं शामिल थीं. लेकिन कांग्रेस ने इन जनहित से जुड़ी योजनाओं का बजट कम होने पर भी कोई सवाल नहीं उठाया. किसी तरह का जन आंदोलन या संगठन स्तर पर प्रदेशभर में कोई बड़ा मूवमेंट नहीं किया गया.

पढ़ें- इंदिरा हृदयेश की नसीहत, कहा- राजनीति जीवन के आखिरी दिनों में संभल जाएं

उत्तराखंड कांग्रेस के अंदरखाने हो रही गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है. इसी गुटबाजी का नतीजा है कि बीजेपी के लिए जो मुद्दे परेशानी खड़ी कर सकते हैं उन्हें कांग्रेस ठीक से नहीं उठा पा रही है. विपक्ष की तरफ से किसी तरह के आंदोलन को धार नहीं दी गई, जिससे विपक्ष महज 'मित्र' बनकर रह गया है. कांग्रेस शायद भूल गई है कि मुद्दों को प्रमुख्ता से उठाने की वजह से ही बीजेपी विपक्ष से सरकार बनाने तक की दूरी तय कर पाई है. अगर कांग्रेस आगे भी इसी तरह किसी मुद्दे को उठाने और उसे धार देने में दिलचस्पी नहीं दिखाएगी तो कांग्रेस का खोया हुआ जनाधार वापस पाने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा.

Intro:उत्तराखंड में कांग्रेस भाजपा के लिए मित्र विपक्ष के रूप में काम कर रहा है... प्रदेश में केंद्रीय योजनाओं की अनदेखी का मुद्दा हो या उत्तराखंड सरकार में गलत नीतियों की बात...उत्तराखंड कांग्रेस मुखर होकर सड़क पर बहुत कम मौकों पर दिखाई दी है... देखिये उत्तराखंड कांग्रेस पर ईटीवी भारत की यह खास रिपोर्ट


Body:उत्तराखंड में जाने अनजाने कांग्रेस के नेता भाजपा की मदद कर रहे हैं यानी उत्तराखंड कांग्रेस भाजपा के लिए मित्र विपक्ष की भूमिका निभा रही है.. दर्शन उत्तराखंड में विपक्ष ऐसे कई मुद्दों को नहीं भुला पाया है जो भाजपा को बैकफुट पर ला सकते थे पिछले करीब 2 सालों में ऐसे बहुत कम मुद्दे हैं जिस में कांग्रेस ने सड़क पर आकर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी की हो... इस दौरान कांग्रेस के नेता महेश बयानबाजीयों के जरिए ही सक्रिय रहने की कोशिश करते हुए दिखाई दिए हैं। उत्तराखंड में वह मुद्दे जिन को कांग्रेस पुरजोर तरीके से नहीं उठा सकी।

इंद्र पोषित योजनाओं में 30% की कटौती का मुद्दा

केंद्रीय योजनाओं में उत्तराखंड को कब मिलती तवज्जो के चलते कई योजनाएं आर्थिक रूप से संकट में रही। इस दौरान कुछ योजनाएं तो पूरी तरह से बंदी की कगार पर आ गई जिससे प्रदेश में विकास कार्य समेत रोजगार और तमाम दूसरी बातें प्रभावित होती हुई दिखाई दी लेकिन सबके बावजूद कांग्रेस ने इस मुद्दे पर कभी सड़क पर आने की जहमत नहीं उठाई।

श्रीनगर से एनआईटी शिफ्टिंग का मामला

श्रीनगर से एनआईटी सेटिंग को लेकर क्षेत्रीय स्तर पर आम लोगों ने खूब विरोध किया और यह मामला राज्य स्तर पर भी चला लेकिन मामले को लेकर कांग्रेस ने बड़े आंदोलन की कोई कोशिश नहीं की और जिस मुद्दे को आसानी से भुलाया जा सकता था उस पर चुप्पी साधे रखी

बेरोजगारी और गन्ना किसानों का मुद्दा

राज्य में बेरोजगारी और गन्ना किसानों के मामले पर विधानसभा के अंदर कांग्रेस ने आवाज जरूर उठाई और इसी दौरान कुछ विरोध भी किया लेकिन पार्टी के बड़े नेता एक मंच पर आकर इसको लेकर विरोध करने से बचते दिखाई दिए। कवि हरीश रावत तो कभी प्रीतम सिंह ने अपनी बात अलग अलग मंचो पर रखी लेकिन एक बड़े आंदोलन का रूप इस मुद्दे को नहीं दिया जा सका।

कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू की गई योजनाओं को खत्म करने का मामला

हरीश सरकार के दौरान पेंशन योजनाओं समेत पीडब्ल्यूडी से जुड़ी कुछ योजनाओं को शुरू किया गया था जिसको त्रिवेंद्र सरकार ने करीब करीब ठंडे बस्ते में डाल दिया इस मामले को भी कांग्रेस नहीं भुना पाए और ना ही इस मामले पर कभी कोई आवाज सड़क पर कांग्रेस द्वारा उठाई गई।

प्रदेश भर में शराब की दुकानों के लिए नियम बदलने और ओवर रेटिंग का मुद्दा

उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेताओं ने कभी भी आबकारी जैसे मामलों को नहीं उठाया जबकि भाजपा सरकार में इसको खूब तवज्जो दी गई थी। यहां तक कि शराब की दुकानों को फिर से हाईवे पर लाने के लिए कोर्ट के फैसले के बावजूद नियमों को बदल दिया गया ताकि शराब की दुकाने फिर मुख्य सड़कों पर खोली जा सके। कांग्रेस संगठन ने इतने बड़े मुद्दे पर कभी भी सड़क पर एक बड़े आंदोलन की कोशिश नहीं की, जबकि इस मामले पर आम लोगों को इस आंदोलन में जोड़कर इस को बड़ा रूप दिया जा सकता था।

अपराध की बड़ी घटनाओं के बावजूद सड़कों पर नहीं आई कांग्रेस

उत्तराखंड में अपराध की ऐसी कई घटनाएं जिन्होंने सबको जला कर रख दिया लेकिन कांग्रेस महज विधानसभा के अंदर हंगामा करने के अलावा कभी भी सड़क पर आकर इसका विरोध करती भी नहीं दिखाई दी और ना ही कानून व्यवस्था पर कभी सड़क पर कोई बड़ा आंदोलन खड़ा किया।

राज्य में अवैध खनन का मुद्दा भी रहा गायब

उत्तराखंड में सरकार किसी की भी हो अवैध खनन और खनन के गलत आवंटन चर्चा में रहे और कई बार सरकारों के बदनाम होने की वजह भी बने लेकिन इस बार अवैध खनन के तमाम मामले आने के बावजूद कांग्रेस ने अवैध खनन पर कोई बड़ा कदम नहीं उठाया जबकि कई बार समाजसेवियों द्वारा अवैध खनन को लेकर सुबूत भी दिए गए लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस कभी इस मामले पर सामने नहीं आई।

एनआरएचएम, सर्व शिक्षा अभियान, ओडीएफ और मनरेगा योजना की खराब हालत

नीति आयोग बनने के बाद से ही कई स्तरों पर बजट को कम किया गया और यह बजट एनआरएचएम सर्व शिक्षा अभियान ओडीएफ और मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं पर भी कम हुए लेकिन इन मामलों पर भी कांग्रेस ने कोई जन आंदोलन या संगठन स्तर पर प्रदेश भर में कोई बड़ा मूवमेंट नहीं किया।


उत्तराखंड कांग्रेस ने हालांकि अब राजीव गांधी के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए गए बयान और दलित युवक की हत्या मामले पर आंदोलन किया गया है और इसे बड़ा रूप देने की कोशिश भी की गई है लेकिन खुद राजस्व सांसद और कांग्रेस के बड़े नेता प्रदीप तमता कहते हैं कि कांग्रेस को काफी देरी से इस तरह के आंदोलन की याद आई है।

बाइट प्रदीप टम्टा राज्यसभा सांसद कांग्रेस

उत्तराखंड कांग्रेस ने ऐसे बहुत सारे मुद्दे हैं जिनको भुनाने की कोई कोशिश नहीं की गई। और इसीलिए कांग्रेस पर मित्र विपक्ष के आरोप अक्सर लगते भी रहे हैं। खुद कांग्रेस के नेता मानते हैं कि पार्टी के अंदर खटपट होती रहती है हालांकि वो यह भी कहते हैं कि पार्टी अब एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा संभाल चुकी है।

बाइट राजेंद्र भंडारी पूर्व मंत्री कांग्रेस



Conclusion:उत्तराखंड कांग्रेस के अंदर की गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है और इसी गुटबाजी का नतीजा है कि भाजपा के लिए जिन मुद्दों पर परेशानी खड़ी की जा सकती है वह मुद्दे भी भाजपा के सामने कोई मुश्किलें खड़ी नहीं कर पाते। बरहाल मित्र विपक्ष का तमगा पाए कांग्रेस को अब फिर से उत्तराखंड में अपनी वापसी के लिए बड़े कदम उठाना होगा ताकि प्रचंड बहुमत वाली भाजपा को धराशाई किया जा सके।
Last Updated : May 14, 2019, 10:49 AM IST

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