देहरादून: उत्तराखंड में नए वोटर्स की पिछले चुनाव की तरह इस बार भी खासी अहम भूमिका रहेगी. यही कारण है कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में सभी राजनीतिक पार्टियों की नजर नए वोटरों पर है. राज्य में युवा वोटर्स की अच्छी खासी संख्या है, इसमें भी कुछ ऐसे वोटर हैं, जो पहली बार मतदाता सूची से जुड़े हैं. ऐसे में युवाओं को रिझाने के साथ राजनीतिक दलों का नए वोटर्स को जोड़ना भी मुख्य एजेड़ा रहेगा.
पिछले विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रभावित होने के चलते नए वोटर्स को भाजपा खींच पाने में कामयाब रही थी, लेकिन इस बार कांग्रेस भी युवाओं के मुद्दों के साथ राजनीतिक जंग के लिए उतर रही है. लिहाज ये कह सकते हैं कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 भी काफी हद तक युवाओं पर ही केंद्रित रहेगा.
पढ़ें- धामी कैबिनेट ने दी देवस्थानम बोर्ड को रद्द करने की मंजूरी, नजूल नीति-2018 रहेगी जारी
2017 में बीजेपी को मिला था युवाओं का साथ: उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव 2017 भाजपा के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि वाला रहा, लेकिन अब वही उपलब्धि 2022 में पार्टी के लिए भारी दबाव पैदा कर रही है. दरअसल, दबाव पिछले परिणामों को दोहराकर सत्ता में वापसी का है. इसके लिए पार्टी यूं तो हर वर्ग और समुदाय को जोड़ने की कोशिशों में जुटी है, लेकिन फिलहाल एक वर्ग ऐसा भी है, जो पहली बार राजनीतिक दांवपेच का सामना करेगा और चुनावी जंग में इन मतदाताओं का बेहद अहम रोल होगा. यह मतदाता कोई और नहीं बल्कि पहली बार पोलिंग बूथ तक पहुंचने वाले युवा होंगे.
इसके अलावा वह युवा भी महत्वपूर्ण भूमिका में होंगी, जो पहले वोटिंग तो कर चुके हैं, लेकिन इस बार फिर सोच समझकर किसी दल को सत्ता तक पहुंचाने के लिए मताधिकार का प्रयोग करेंगे. इन मतदाताओं को इसलिए भी अहम माना जा रहा है, क्योंकि इनकी प्रदेश में अच्छी खासी संख्या है.
पढ़ें- CM धामी ने किया सैन्य धाम का निरीक्षण, बोले- शहीदों के सपनों का उत्तराखंड बना रहे
जानिए प्रदेश में कैसे और कितने बढ़े युवा वोटर्स-
- प्रदेश में फिलहाल 78,46,000 मतदाता हैं.
- इनमें से 18 साल की उम्र के 77,000 युवा वोटर हैं.
- इस बार नए मतदाताओं की संख्या 1,40,000 है.
- राज्य में 18 से 39 साल तक की युवाओं की संख्या करीब 44 लाख है, यानी कुल मतदाताओं का 57 प्रतिशत युवा मतदाता है.
- साल 2017 में भारतीय जनता पार्टी को 46.5 प्रतिशत वोट मिले और कुल 57 सीटें मिली, जबकि कांग्रेस को 33.5 प्रतिशत वोट मिले और 11 सीटों पर कांग्रेस सिमट गई. 2017 में 42 लाख 85 हजार 621 युवा मतदाता थे, यानी 57.18 % युवा मतदाता रहे.
- 2017 में कुल 75 लाख 99 हजार 688 मतदाता थे.
युवाओं को रिझाने की कोशिश: साल 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से युवाओं का अच्छा कनेक्ट रहा लिहाजा युवा वोटर्स पर भारतीय जनता पार्टी ने अच्छी पकड़ बनाई और इसका नतीजा रहा कि चुनाव में भाजपा ने बेहतर परिणाम पाया. भारतीय जनता पार्टी का युवा अनुषांगिक संगठन एबीवीपी के युवा छात्र युवाओं को बेहतर पार्टी चुनने और मतदान करने के लिए लगातार जागरूक कर रहे हैं.
यूं तो इस संगठन का भारतीय जनता पार्टी से सीधा कोई संबंध नहीं है, लेकिन भाजपा की विचारधारा वाले इस संगठन से जुड़े युवा अपने विचारों और मतदान को लेकर युवाओं को जागरूक करने के दौरान भाजपा के विचारों को आगे बढ़ाते दिखते हैं.
बीजेपी का दावा: युवाओं को भाजपा की सोच की तरह आगे बढ़ाने को लेकर सरकार के शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल कहते हैं कि सरकार ने युवाओं के रोजगार से लेकर उच्च शिक्षा तक ऐसे कई काम किए हैं, जिससे युवा खुद प्रभावित हो रहे हैं. युवाओं को लगातार सरकार के बेहतर कार्य के चलते लाभान्वित भी किया जा रहा है और यही कारण है कि आगामी चुनाव में भी युवा भाजपा को एक बार फिर सत्ता में लाने का काम करेंगे.
पढ़ें- CM ने सचिवालय संघ की मांगों पर नहीं की घोषणा, तो भड़के कर्मचारी, दी हड़ताल पर जाने की चेतावनी
कॉलेज से ही शुरू हो जाती है राजनीति: राजनीतिक पार्टियां युवाओं पर कॉलेज से ही पकड़ बनानी शुरू कर देती है. कॉलेज में एडमिशन लेने के साथ ही छात्र संघ चुनाव के जरिए बीजेपी-कांग्रेस के एबीवीपी और एनएसयूआई जैसे संगठन युवाओं को अपने साथ जोड़ने का काम कर करते हैं. इस बार चुनाव हैं, लिहाजा एबीवीपी के साथ एनएसयूआई संगठन भी युवाओं को जागरूकता के जरिए अपनी विचारधाराओं से जोड़ रही है.
एनएसयूआई नेता संग्राम सिंह पुंडीर कहते हैं कि मौजूदा सरकार ने जिस तरह छात्रों को रोजगार के मामले पर परेशान करने की कोशिश की है, उससे छात्र बेहद ज्यादा नाराज हैं और सरकार के खिलाफ लामबंद हैं.
सरकार के ठीक उलट कांग्रेस युवाओं की मौजूदा मनो स्थिति को सरकार विरोधी बताती है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल कहते हैं कि राज्य में नए वोटर और युवा पिछले 5 सालों के सरकारी कार्यकाल को देख रहे हैं और जिस तरह बेरोजगारी और शिक्षा के खराब हालात को युवाओं ने देखा है, उससे अब भाजपा की तरफ उनका जाना मुश्किल है. युवा जानता है कि भाजपा सरकार में युवाओं की मांगों और मुद्दों पर कोई पैरवी नहीं होती है. लिहाजा इस बार सत्ता विरोधी होकर युवा भाजपा को सबक सिखाने के मूड में हैं.