देहरादूनः उत्तराखंड के विभिन्न जिलों की आर्थिक सामाजिक और मूलभूत सुविधाओं समेत पलायन को लेकर मौजूदा स्थितियों की रिपोर्ट तैयार करने वाले पलायन आयोग ने चमोली जिले की भी रिपोर्ट तैयार कर ली है. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चमोली जिले की इस रिपोर्ट का विमोचन किया है. साथ ही रिपोर्ट के आधार पर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने और जिले में विकास कार्यों को तेज करने के भी निर्देश दिए.
रिपोर्ट के अनुसार चमोली जिले की वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या 3,91,605 है. जिले में 9 विकासखंड, 12 तहसील और 1244 राजस्व ग्राम है. कुल जनसंख्या का 81.78 प्रतिशत आबादी गांवों में और 18.22 प्रतिशत आबादी नगर क्षेत्र में निवास करती हैं. जिले के गांवों में रहने वाले लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है. साथ ही मजदूरी और सरकारी सेवा है.
चमोली जिले में 10 सालों में 14,289 लोगों ने किया स्थायी पलायन
चमोली जिले में बीते 10 सालों में 556 ग्राम पंचायतों से कुल 32,020 व्यक्तियों ने अस्थायी रूप से पलायन किया है. हालांकि, वे समय-समय पर अपने घरों में आना-जाना करते हैं, क्योंकि उनके द्वारा स्थायी रूप से पलायन नहीं किया गया है. इन 10 सालों में 373 ग्राम पंचायतों से 14,289 व्यक्तियों ने पूरी तरीक से स्थायी पलायन किया है. सभी विकासखंडों में स्थायी पलायन की तुलना में अस्थायी पलायन ज्यादा हुआ है. आकड़ों से स्पष्ट हुआ है कि करीब 42 प्रतिशत पलायन 26 से 35 साल के आयु वर्ग ने किया है.
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ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की रिपोर्ट की मानें तो चमोली की 80 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. साल 2001 और 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि की प्रतिशत 5.74 फीसदी था, जो राज्य के औसत से कम है. ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि की दर और भी कम है और कुछ विकासखंडों दशोली, पोखरी, कर्णप्रयाग और थराली में यह घटी है.
आयोग की रिपोर्ट के अनुसार साल 2011 के बाद जिले में 41 और गांव/तोक गैर आबाद हो गए हैं. साल 2011-12 के अनुसार चमोली की आर्थिक विकास दर 6.23 प्रतिशत है. राज्य निवल घरेलू उत्पाद के आधार पर वर्ष 2016-17 (अनंतिम) अनुमानों में जिले की प्रति व्यक्ति आय 1,18,448 रुपये अनुमानित है.
वहीं, आयोग की ओर से सिफारिशें की गई है कि गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी क्षेत्र के तीव्र विकास के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया जाए. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत और सुदृ़ढ़ करना, योजनाओं को विकासखंड स्तर पर आर्थिक विकास का एक ढ़ांचा तैयार किया जाए. प्राथमिक एवं तृतीयक क्षेत्र पर बराबर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है.
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पानी के पारंपरिक स्रोतो के सूखने से जल उपलब्धता एक चुनौती के रूप में आई है. अतः भूजल पुनर्भरण की योजनाओं को प्राथमिकता देनी होगी. जलवायु परिवर्तन पर राज्य सरकार की ओर से तैयार की गई योजना और इसमें प्रस्तावित कार्यों का पालन किया जाए. सभी योजनाओं और उनके कार्यान्वयन को सामाजिक-आर्थिक उत्थान और ग्रामीण विकास के लिए एक महिला केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने, मनरेगा के तहत समान अवसर और भागीदारी सुनिश्चित करके सभी जिलों के लिए महिलाओं का प्रतिनिधित्व एवं कौशल विकास को प्राथमिकता दिया जाए.
वहीं, दीन दयाल अन्त्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत सामुदायिक जागरूकता और बैंक लिंकेज को सुदृढ़ बनाने, उत्पादों के विपणन और खुदरा के लिए गतिशील ऑनलाइन प्लेटफॉर्म विकसित करने के साथ रणनीति विकसित किए जाने की रिपोर्ट में जरूरत बताई है.
उधर, मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की गतिविधियों को बेहतर करने के लिए पहले ही एक प्रकोष्ठ का गठन भी किया जा चुका है. इस रिपोर्ट के आधार पर क्षेत्रीय विकास के साथ युवाओं को रोजगार देने के भी मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए हैं.