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बूढ़ी दीपावली पर छुट्टी देने से सीएम ने किया इनकार, प्रदेशवासियों को दी शुभकामनाएं

सीएम त्रिवेंद्र ने बूढ़ी दीपावली यानी की ईगास पर्व पर छुट्टी की मांग कर रहे संगठनों को अवकाश देने से इनकार कर दिया है. वहीं, दूसरी ओर आम आदमी पार्टी ने पारंपरिक त्योहार ईगास को पूरे पहाड़ी जिलों में मनाने का निर्णय लिया है.

देहरादून
बूढ़ी दीपावली पर छुट्टी देने से सीएम ने किया इनकार
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Published : Nov 24, 2020, 8:27 PM IST

देहरादून/उत्तरकाशी: त्रिवेंद्र सरकार उत्तराखंड की संस्कृति और तीज त्योहारों के प्रति खुद को बड़ा हितेषी बताती है, लेकिन सरकार की नीति कुछ और ही बयां कर रही है. एक ओर जहां सरकार ने छठ पर्व को लेकर दरियादिली दिखाते हुए अवकाश दिया था तो वहीं, सीएम त्रिवेंद्र ने बूढ़ी दीपावली यानी की ईगास पर्व पर छुट्टी की मांग कर रहे संगठनों को अवकाश देने से इनकार कर दिया है. वहीं, दूसरी ओर आम आदमी पार्टी ने पारंपरिक त्योहार ईगास को पूरे पहाड़ी जिलों में मनाने का निर्णय लिया है. जबकि, उत्तरकाशी में इस समृद्ध संस्कृति को दोबारा से पुनर्जीवित करने के लिए अनघा माउंटेन एसोसिएशन पिछले 13 वर्षों से जनपद मुख्यालय में हर वर्ष बग्वाल मनाती आ रही है. वहीं, सीएम ने इस मौके पर प्रदेशवासियों को बूढ़ी दीपावली की शुभकामनाएं दी है.

आपको बता दें कि बूढ़ी दीपावली गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में कई जगहों पर मुख्य दीपावली पर्व के 11 दिनों बाद और कई जगहों पर एक महीने बाद मनाई जाती है. इस पर्व का पूरे पहाड़ पर अपना एक अलग महत्व है. पूरे गढ़वाल और कुमाऊं में मनाया जाने वाला यह पर्व पहाड़ का सबसे बड़ा पर्व है. तब भी ईगास को लेकर राज्य सरकार की उदासीनता देखी जा रही है. सूत्रों की माने तो सचिवालय संघ ने मुख्यमंत्री से बूढ़ी दीपावली पर छुट्टी की मांग की. इस पर मुख्य सचिव द्वारा सकारात्मक रुख रखा गया, लेकिन जब फाइल प्रभारी सचिव सचिवालय प्रशासन पंकज पांडे द्वारा मुख्यमंत्री के पास ले जाई गयी तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया.

वहीं, आम आदमी पार्टी ने राज्य के पारंपरिक त्योहार ईगास को पूरे प्रदेश के पहाड़ी जिलों में मनाने का निर्णय लिया है. इसके तहत आम आदमी पार्टी कार्यकर्ता अपने घरों के अलावा उन घरों में भी दिए जलाएंगे, जहां पलायन के चलते सब खंडहर में तब्दील हो चुका है. आप पार्टी के उपाध्यक्ष शिशुपाल रावत का कहना है कि इस पहल के माध्यम से पार्टी ये एहसास दिलाने की कोशिश करेगी कि हर घर दिया जले, ताकि हमारे त्योहार और परंपरा विलुप्त होने से बच जाए. उन्होंने कहा कि पूरे प्रदेश में जब से पलायन हुआ है, तब से त्योहार और यहां की परंपरा खत्म होती जा रही है. पहाड़ों में दिवाली के 11 दिन बाद मनाई जाने वाली बूढ़ी दिवाली या ईगास एक समय पर बड़े स्तर पर मनाया जाता था, लेकिन अब बीते 20 सालों में नीति निर्माता और राज्य सरकार के उदासीन रवैए के चलते पारंपरिक त्योहारों को विलुप्ति पर लाकर खड़ा कर दिया है.

उत्तरकाशी
अनघा माउंटेन एसोसिएशन मनाएगी बग्याल

ये भी पढ़ें: स्कूल की तरफ नहीं बढ़ रहे छात्रों के कदम, घर रहने की आदत से हाजिरी हुई कम

दीपावली के ठीक एक माह बाद मनाई जाने वाली मंगसीर की बग्वाल गढ़वाल की एक ऐसी समृद्ध परंपरा है, जो अब उत्तरकाशी जैसे जनपदों में विलुप्ति की कगार पर है. इस समृद्ध संस्कृति को दोबारा से पुनर्जीवित करने के लिए अनघा माउंटेन एसोसिएशन गत 12 से 13 वर्षों से जनपद मुख्यालय में हर वर्ष बग्वाल मना कर प्रयास कर रही हैं. वहीं, इस वर्ष इस बग्वाल को गांव में मनाने की योजना तैयार की गई है. जिसके तहत यह जनपद के 21 गांव में एक ही दिन मनाई जाएगी.

13 साल उत्तरकाशी में संस्था कर रही आयोजन

अनघा माउंटेन एसोसिएशन के संयोजक अजय पूरी का कहना है कि इस वर्ष जनपद मुख्यालय में मंगसीर की बग्वाल का भेलो और वीर माधो सिंह भंडारी की शोभा यात्रा के साथ सूक्ष्म रूप में आयोजन किया जाएगा. इस वर्ष एक नया प्रयास मंगसीर की बग्वाल मनाने के लिए 21 गांव का चयन किया गया है. जनपद के टकनौर, बाड़ागड्डी, बाड़ाहाट के गांव में इस बग्वाल का आयोजन ग्रामीणों की और से किया जाएगा. जिसमें भेलो सहित स्थानीय पकवान और लोकनृत्य का आयोजन किया जाएगा. अनघा माउंटेन एसोसिएशन इसे सोशल मीडिया के माध्यम से विभिन्न प्लेटफॉर्म पर प्रचार प्रसार करेगा. साथ ही ग्रामीणों को प्रशस्ति पत्र दिया जाएगा.

मंगसीर की बग्वाल को लेकर पहाड़ में अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि भगवान राम के अयोध्या लौटने की खबर 1 माह बाद पहाडों में पहुंची थी. इसलिए पहाड़ में एक माह बाद बग्वाल मनाई जाती है. अन्य कहानी के अनुसार वीर माधो सिंह भंडारी जब युद्ध जीतकर गांव लौटे थे तो उनके युद्ध जितने और सकुशल पहुंचने पर ग्रामीणों ने बग्वाल का आयोजन किया था.

देहरादून/उत्तरकाशी: त्रिवेंद्र सरकार उत्तराखंड की संस्कृति और तीज त्योहारों के प्रति खुद को बड़ा हितेषी बताती है, लेकिन सरकार की नीति कुछ और ही बयां कर रही है. एक ओर जहां सरकार ने छठ पर्व को लेकर दरियादिली दिखाते हुए अवकाश दिया था तो वहीं, सीएम त्रिवेंद्र ने बूढ़ी दीपावली यानी की ईगास पर्व पर छुट्टी की मांग कर रहे संगठनों को अवकाश देने से इनकार कर दिया है. वहीं, दूसरी ओर आम आदमी पार्टी ने पारंपरिक त्योहार ईगास को पूरे पहाड़ी जिलों में मनाने का निर्णय लिया है. जबकि, उत्तरकाशी में इस समृद्ध संस्कृति को दोबारा से पुनर्जीवित करने के लिए अनघा माउंटेन एसोसिएशन पिछले 13 वर्षों से जनपद मुख्यालय में हर वर्ष बग्वाल मनाती आ रही है. वहीं, सीएम ने इस मौके पर प्रदेशवासियों को बूढ़ी दीपावली की शुभकामनाएं दी है.

आपको बता दें कि बूढ़ी दीपावली गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में कई जगहों पर मुख्य दीपावली पर्व के 11 दिनों बाद और कई जगहों पर एक महीने बाद मनाई जाती है. इस पर्व का पूरे पहाड़ पर अपना एक अलग महत्व है. पूरे गढ़वाल और कुमाऊं में मनाया जाने वाला यह पर्व पहाड़ का सबसे बड़ा पर्व है. तब भी ईगास को लेकर राज्य सरकार की उदासीनता देखी जा रही है. सूत्रों की माने तो सचिवालय संघ ने मुख्यमंत्री से बूढ़ी दीपावली पर छुट्टी की मांग की. इस पर मुख्य सचिव द्वारा सकारात्मक रुख रखा गया, लेकिन जब फाइल प्रभारी सचिव सचिवालय प्रशासन पंकज पांडे द्वारा मुख्यमंत्री के पास ले जाई गयी तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया.

वहीं, आम आदमी पार्टी ने राज्य के पारंपरिक त्योहार ईगास को पूरे प्रदेश के पहाड़ी जिलों में मनाने का निर्णय लिया है. इसके तहत आम आदमी पार्टी कार्यकर्ता अपने घरों के अलावा उन घरों में भी दिए जलाएंगे, जहां पलायन के चलते सब खंडहर में तब्दील हो चुका है. आप पार्टी के उपाध्यक्ष शिशुपाल रावत का कहना है कि इस पहल के माध्यम से पार्टी ये एहसास दिलाने की कोशिश करेगी कि हर घर दिया जले, ताकि हमारे त्योहार और परंपरा विलुप्त होने से बच जाए. उन्होंने कहा कि पूरे प्रदेश में जब से पलायन हुआ है, तब से त्योहार और यहां की परंपरा खत्म होती जा रही है. पहाड़ों में दिवाली के 11 दिन बाद मनाई जाने वाली बूढ़ी दिवाली या ईगास एक समय पर बड़े स्तर पर मनाया जाता था, लेकिन अब बीते 20 सालों में नीति निर्माता और राज्य सरकार के उदासीन रवैए के चलते पारंपरिक त्योहारों को विलुप्ति पर लाकर खड़ा कर दिया है.

उत्तरकाशी
अनघा माउंटेन एसोसिएशन मनाएगी बग्याल

ये भी पढ़ें: स्कूल की तरफ नहीं बढ़ रहे छात्रों के कदम, घर रहने की आदत से हाजिरी हुई कम

दीपावली के ठीक एक माह बाद मनाई जाने वाली मंगसीर की बग्वाल गढ़वाल की एक ऐसी समृद्ध परंपरा है, जो अब उत्तरकाशी जैसे जनपदों में विलुप्ति की कगार पर है. इस समृद्ध संस्कृति को दोबारा से पुनर्जीवित करने के लिए अनघा माउंटेन एसोसिएशन गत 12 से 13 वर्षों से जनपद मुख्यालय में हर वर्ष बग्वाल मना कर प्रयास कर रही हैं. वहीं, इस वर्ष इस बग्वाल को गांव में मनाने की योजना तैयार की गई है. जिसके तहत यह जनपद के 21 गांव में एक ही दिन मनाई जाएगी.

13 साल उत्तरकाशी में संस्था कर रही आयोजन

अनघा माउंटेन एसोसिएशन के संयोजक अजय पूरी का कहना है कि इस वर्ष जनपद मुख्यालय में मंगसीर की बग्वाल का भेलो और वीर माधो सिंह भंडारी की शोभा यात्रा के साथ सूक्ष्म रूप में आयोजन किया जाएगा. इस वर्ष एक नया प्रयास मंगसीर की बग्वाल मनाने के लिए 21 गांव का चयन किया गया है. जनपद के टकनौर, बाड़ागड्डी, बाड़ाहाट के गांव में इस बग्वाल का आयोजन ग्रामीणों की और से किया जाएगा. जिसमें भेलो सहित स्थानीय पकवान और लोकनृत्य का आयोजन किया जाएगा. अनघा माउंटेन एसोसिएशन इसे सोशल मीडिया के माध्यम से विभिन्न प्लेटफॉर्म पर प्रचार प्रसार करेगा. साथ ही ग्रामीणों को प्रशस्ति पत्र दिया जाएगा.

मंगसीर की बग्वाल को लेकर पहाड़ में अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि भगवान राम के अयोध्या लौटने की खबर 1 माह बाद पहाडों में पहुंची थी. इसलिए पहाड़ में एक माह बाद बग्वाल मनाई जाती है. अन्य कहानी के अनुसार वीर माधो सिंह भंडारी जब युद्ध जीतकर गांव लौटे थे तो उनके युद्ध जितने और सकुशल पहुंचने पर ग्रामीणों ने बग्वाल का आयोजन किया था.

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