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अंकिता की मौत के बाद नींद से जागी सरकार, 160 साल पुराने 'सिस्टम' को खत्म करने की तैयारी

उत्तराखंड की 19 साल की बेटी अंकिता भंडारी (ankit bhandari murder) जिस 160 साल पुराने राजस्व पुलिस सिस्टम (पटवारी) की भेंट चढ़ी अब उस व्यवस्था को सरकार बदलने का मन बना रही है. अंकिता भंडारी हत्याकांड (ankit bhandari murder) के बाद सरकार नींद से जागने को तैयार हुई और राजस्व पुलिस सिस्टम (abolished revenue police system) को कैसे बदला जाए इस पर मंथन करना शुरू किया है.

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Published : Oct 7, 2022, 8:00 PM IST

Updated : Oct 7, 2022, 8:10 PM IST

देहरादून/पौड़ी: अंकिता भंडारी हत्याकांड (ankit bhandari murder) के बाद पूरे प्रदेश में राजस्व पुलिस सिस्टम (पटवारी) को खत्म करने की मांग उठने लगी है. उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पौड़ी गढ़वाल सीट से बीजेपी सांसद तीरथ सिंह रावत ने भी राजस्व पुलिस सिस्टम (revenue police system) को खत्म करने की पैरवी की है. वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) भी मान रहे हैं कि जिन इलाकों में पर्यटकों की आवाजाही ज्यादा बढ़ी है और निर्माण कार्य तेजी से हुआ है, वहां पटवारी सिस्टम को खत्म कर रेगुलर पुलिस को (abolished revenue police system) जिम्मेदारी दी जाएगी. राजस्व पुलिस सिस्टम को खत्म करने पर सरकार विचार कर रही हैं.

अंकिता भंडारी हत्याकांड में राजस्व पुलिस (पटवारी) की बड़ी लापरवाही सामने आई है. यदि राजस्व पुलिस समय से जाग जाती तो शायद इतनी बड़ी घटना नहीं होती और घटना के बाद हत्यारों को पकड़ने में इतना समय नहीं लगता. यही कारण है कि अब एक बार फिर से प्रदेश में राजस्व पुलिस सिस्टम को खत्म करने की मांग उठने लगी है.

अंकिता की मौत के बाद नींद से जागी सरकार.
पढ़ें- अंकिता हत्याकांड के बाद सरकार सख्त, उत्तराखंड में महिला सुरक्षा को लेकर CM ने दिए ये निर्देश

अपराधी उठा लेते है फायदा: लोगों का मानना है कि पहाड़ में तेजी से अपराध बढ़ रहा है, जिस पर लगाम लगाने में और गंभीर आपराधिक वारदातों की विवेचना करने में राजस्व पुलिस (पटवारी) काबिल नहीं है. उनके पास रेगुलर पुलिस की तरह न तो मैन पॉवर और न ही संसाधन, इसीलिए राजस्व पुलिस गंभीर अपराधों की गुत्थी सुलझाने में नाकामयाब साबित होती है. आखिर में केस रेगुलर पुलिस के पास ही जाता है. जिसका फायदा अपराधी को मिलता है. कई बार देरी की वजह से अपराधी सबूत नष्ट करने में कामयाब भी हो जाता है. यही कारण है कि सरकार के विधायक और सांसद भी अब प्रदेश में राजस्व पुलिस सिस्टम की खत्म करने की मांग उठाने लगे हैं. गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत ने कहा कि अब बदलाव जरूरी है. तभी राजस्व क्षेत्रों के अपराधों में कमी आयेगी.

वहीं, लोगों की इस मांग पर जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि उत्तराखंड का बड़ा भूभाग राजस्व पुलिस के पास आता है, लेकिन अब जिस तरह के उत्तराखंड का विकास हो रहा है, नई-नई सड़कें बन रही और निर्माण कार्य हो रहे हैं, ऐसे में काफी बड़ा बदलाव हो रहा है. इसीलिए राजस्व पुलिस सिस्टम को लेकर काफी दिनों से सरकार का मथन चल रहा था. प्रदेश में जहां भी राजस्व पुलिस है, उसको चरणबद्ध तरीके से रेगुलर पुलिस में बदला जाएगा. इसके लिए सरकार ने सारी तैयारी कर ली है.

क्या राजस्व पुलिस सिस्टम: उत्तराखंड में कुल नौ पर्वतीय व चार मैदानी जिले हैं. ब्रिटिश राज में यहां पटवारी पुलिस यानी राजस्व पुलिस की व्यवस्था शुरू हुई थी, जिसके मुताबिक राजस्व क्षेत्रों में होने वाले हर किस्म के अपराध की जांच राजस्व पुलिस ही करती है. उत्तराखंड के सिर्फ 40 प्रतिशत हिस्से में सिविल पुलिस है और राजस्व पुलिस के क्षेत्र में बीते कुछ सालों में अपराध का ग्राफ बढ़ता रहा है. चूंकि ब्रिटिश राज में यहां अपराध बहुत कम थे, इसलिए रेवेन्यू पुलिस सिस्टम बनाया गया था, जो अब प्रासंगिक नहीं रहा.

160 साल पुराने सिस्टम: क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इस सिस्टम के करीब 160 साल और ब्रिटिशों से देश को आज़ादी मिलने के 73 साल बाद भी उत्तराखंड में यह व्यवस्था बनी हुई है? यह व्यवस्था तब भी बनी हुई है, जब उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड को एक राज्य बने हुए 20 साल हो चुके हैं. यह ज़रूरत कई बार महसूस की जा चुकी है कि रेवेन्यू पुलिस सिस्टम को खत्म किया जाए, लेकिन यह जी का जंजाल बना हुआ है.

देहरादून/पौड़ी: अंकिता भंडारी हत्याकांड (ankit bhandari murder) के बाद पूरे प्रदेश में राजस्व पुलिस सिस्टम (पटवारी) को खत्म करने की मांग उठने लगी है. उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पौड़ी गढ़वाल सीट से बीजेपी सांसद तीरथ सिंह रावत ने भी राजस्व पुलिस सिस्टम (revenue police system) को खत्म करने की पैरवी की है. वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) भी मान रहे हैं कि जिन इलाकों में पर्यटकों की आवाजाही ज्यादा बढ़ी है और निर्माण कार्य तेजी से हुआ है, वहां पटवारी सिस्टम को खत्म कर रेगुलर पुलिस को (abolished revenue police system) जिम्मेदारी दी जाएगी. राजस्व पुलिस सिस्टम को खत्म करने पर सरकार विचार कर रही हैं.

अंकिता भंडारी हत्याकांड में राजस्व पुलिस (पटवारी) की बड़ी लापरवाही सामने आई है. यदि राजस्व पुलिस समय से जाग जाती तो शायद इतनी बड़ी घटना नहीं होती और घटना के बाद हत्यारों को पकड़ने में इतना समय नहीं लगता. यही कारण है कि अब एक बार फिर से प्रदेश में राजस्व पुलिस सिस्टम को खत्म करने की मांग उठने लगी है.

अंकिता की मौत के बाद नींद से जागी सरकार.
पढ़ें- अंकिता हत्याकांड के बाद सरकार सख्त, उत्तराखंड में महिला सुरक्षा को लेकर CM ने दिए ये निर्देश

अपराधी उठा लेते है फायदा: लोगों का मानना है कि पहाड़ में तेजी से अपराध बढ़ रहा है, जिस पर लगाम लगाने में और गंभीर आपराधिक वारदातों की विवेचना करने में राजस्व पुलिस (पटवारी) काबिल नहीं है. उनके पास रेगुलर पुलिस की तरह न तो मैन पॉवर और न ही संसाधन, इसीलिए राजस्व पुलिस गंभीर अपराधों की गुत्थी सुलझाने में नाकामयाब साबित होती है. आखिर में केस रेगुलर पुलिस के पास ही जाता है. जिसका फायदा अपराधी को मिलता है. कई बार देरी की वजह से अपराधी सबूत नष्ट करने में कामयाब भी हो जाता है. यही कारण है कि सरकार के विधायक और सांसद भी अब प्रदेश में राजस्व पुलिस सिस्टम की खत्म करने की मांग उठाने लगे हैं. गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत ने कहा कि अब बदलाव जरूरी है. तभी राजस्व क्षेत्रों के अपराधों में कमी आयेगी.

वहीं, लोगों की इस मांग पर जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि उत्तराखंड का बड़ा भूभाग राजस्व पुलिस के पास आता है, लेकिन अब जिस तरह के उत्तराखंड का विकास हो रहा है, नई-नई सड़कें बन रही और निर्माण कार्य हो रहे हैं, ऐसे में काफी बड़ा बदलाव हो रहा है. इसीलिए राजस्व पुलिस सिस्टम को लेकर काफी दिनों से सरकार का मथन चल रहा था. प्रदेश में जहां भी राजस्व पुलिस है, उसको चरणबद्ध तरीके से रेगुलर पुलिस में बदला जाएगा. इसके लिए सरकार ने सारी तैयारी कर ली है.

क्या राजस्व पुलिस सिस्टम: उत्तराखंड में कुल नौ पर्वतीय व चार मैदानी जिले हैं. ब्रिटिश राज में यहां पटवारी पुलिस यानी राजस्व पुलिस की व्यवस्था शुरू हुई थी, जिसके मुताबिक राजस्व क्षेत्रों में होने वाले हर किस्म के अपराध की जांच राजस्व पुलिस ही करती है. उत्तराखंड के सिर्फ 40 प्रतिशत हिस्से में सिविल पुलिस है और राजस्व पुलिस के क्षेत्र में बीते कुछ सालों में अपराध का ग्राफ बढ़ता रहा है. चूंकि ब्रिटिश राज में यहां अपराध बहुत कम थे, इसलिए रेवेन्यू पुलिस सिस्टम बनाया गया था, जो अब प्रासंगिक नहीं रहा.

160 साल पुराने सिस्टम: क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इस सिस्टम के करीब 160 साल और ब्रिटिशों से देश को आज़ादी मिलने के 73 साल बाद भी उत्तराखंड में यह व्यवस्था बनी हुई है? यह व्यवस्था तब भी बनी हुई है, जब उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड को एक राज्य बने हुए 20 साल हो चुके हैं. यह ज़रूरत कई बार महसूस की जा चुकी है कि रेवेन्यू पुलिस सिस्टम को खत्म किया जाए, लेकिन यह जी का जंजाल बना हुआ है.

Last Updated : Oct 7, 2022, 8:10 PM IST
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