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जनता के हित जो होगा उस पर लाएंगे कानून, देवस्थानम बोर्ड और भू-कानून पर बोले CM धामी

उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड और भू-कानून पर सीएम धामी ने एक बार फिर बयान दिया है. उन्होंने कहा कि जो कानून भी उत्तराखंड के लोगों के हित में होगा, उस पर कानून लेकर आएंगे और काम भी करेंगे.

Dehradun
देहरादून
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Published : Aug 1, 2021, 10:33 PM IST

Updated : Aug 2, 2021, 3:05 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड में इन दिनों चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड और भू-कानून को लेकर विरोध जारी है. विपक्षी दल भी इन दोनों मुद्दों को लेकर राज्य सरकार को घेरने का मौका नहीं छोड़ रही है. हालांकि, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि जो जनता के हित में होगा, उस पर कानून लाएंगे और काम भी करेंगे.

उत्तराखंड राज्य में भू-कानून का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है. इसकी मुख्य वजह ये है कि भू-कानून को लेकर प्रदेश के युवा भी सड़कों पर उतर चुके हैं. उनका मानना है कि राज्य सरकार ने इंडस्ट्री लगाने के नाम पर लोगों को खुली छूट दे रखी है. ऐसे में जमीनों को खुर्दबुर्द किया जा रहा है. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस बात पर भी जोर दिया है कि हिमालय प्रदेश की तरह ही उत्तराखंड राज्य में भू-कानून लागू किया जाए. हरीश रावत ने यहां तक कहा था कि अगर 2022 में उनकी सरकार आती है तो वो नया भू-कानून लागू करेंगे.

जनता के हित जो होगा उस पर लाएंगे कानूनःसीएम धामी

ये भी पढ़ेंः टोक्यो ओलंपिक: पीवी सिंधु और भारतीय पुरुष हॉकी टीम को CM धामी ने दी शुभकामनाएं

वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बताया कि उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड से जिन तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूकधारियों को समस्याएं हैं. उन समस्याओं के निस्तारण के लिए उच्चस्तरीय टीम गठित की गई है. टीम बोर्ड का विरोध करने वालों से बातचीत कर हल निकालेगी. साथ ही कहा कि जो भू-कानून, जनसंख्या कानून और नजूल नीति को लेकर विवाद है. उस पर उनका साफ मत है कि जो उत्तराखंड के लोगों के हित में होगा उस पर कानून लेकर आएंगे और काम भी करेंगे.

क्या होता है भू-कानून और उत्तराखंड में क्या है इसका इतिहासः भू-कानून का सीधा-सीधा मतलब भूमि के अधिकार से है. यानी आपकी भूमि पर केवल आपका अधिकार है न की किसी और का. जब उत्तराखंड बना था तो उसके बाद साल 2002 तक बाहरी राज्यों के लोग उत्तराखंड में केवल 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे. वर्ष 2007 में बतौर मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने यह सीमा 250 वर्ग मीटर कर दी. इसके बाद 6 अक्टूबर 2018 को भाजपा के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत एक नया अध्यादेश लाए. जिसका नाम 'उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम,1950 में संसोधन का विधेयक' था. इसे विधानसभा में पारित किया गया.

इसमें धारा 143 (क) धारा 154(2) जोड़ी गई. यानी पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया गया. अब कोई भी राज्य में कहीं भी भूमि खरीद सकता था. साथ ही इसमें उत्तराखंड के मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, यूएसनगर में भूमि की हदबंदी (सीलिंग) खत्म कर दी गई. इन जिलों में तय सीमा से अधिक भूमि खरीदी या बेची जा सकेगी.

हिमाचल के मुकाबले उत्तराखंड का भू कानून बहुत ही लचीलाः साल 2000 के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड की कुल 8,31,227 हेक्टेयर कृषि भूमि 8,55,980 परिवारों के नाम दर्ज थी. इनमें 5 एकड़ से 10 एकड़, 10 एकड़ से 25 एकड़ और 25 एकड़ से ऊपर की तीनों श्रेणियों की जोतों की संख्या 1,08,863 थी. इन 1,08,863 परिवारों के नाम 4,02,422 हेक्टेयर कृषि भूमि दर्ज थी.

यानी राज्य की कुल कृषि भूमि का लगभग आधा भाग. बाकी 5 एकड़ से कम जोत वाले 7,47,117 परिवारों के नाम मात्र 4,28,803 हेक्टेयर भूमि दर्ज थी. उपरोक्त आंकड़े दर्शाते हैं कि, किस तरह राज्य के लगभग 12 फीसदी किसान परिवारों के कब्जे में राज्य की आधी कृषि भूमि है. बची 88 फीसदी कृषि आबादी भूमिहीन की श्रेणी में पहुंच चुकी है. हिमाचल के मुकाबले उत्तराखंड का भू कानून बहुत ही लचीला है. इसलिए सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय लोग, एक सशक्त, हिमाचल के जैसे भू-कानून की मांग कर रहे हैं.

देहरादूनः उत्तराखंड में इन दिनों चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड और भू-कानून को लेकर विरोध जारी है. विपक्षी दल भी इन दोनों मुद्दों को लेकर राज्य सरकार को घेरने का मौका नहीं छोड़ रही है. हालांकि, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि जो जनता के हित में होगा, उस पर कानून लाएंगे और काम भी करेंगे.

उत्तराखंड राज्य में भू-कानून का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है. इसकी मुख्य वजह ये है कि भू-कानून को लेकर प्रदेश के युवा भी सड़कों पर उतर चुके हैं. उनका मानना है कि राज्य सरकार ने इंडस्ट्री लगाने के नाम पर लोगों को खुली छूट दे रखी है. ऐसे में जमीनों को खुर्दबुर्द किया जा रहा है. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस बात पर भी जोर दिया है कि हिमालय प्रदेश की तरह ही उत्तराखंड राज्य में भू-कानून लागू किया जाए. हरीश रावत ने यहां तक कहा था कि अगर 2022 में उनकी सरकार आती है तो वो नया भू-कानून लागू करेंगे.

जनता के हित जो होगा उस पर लाएंगे कानूनःसीएम धामी

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वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बताया कि उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड से जिन तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूकधारियों को समस्याएं हैं. उन समस्याओं के निस्तारण के लिए उच्चस्तरीय टीम गठित की गई है. टीम बोर्ड का विरोध करने वालों से बातचीत कर हल निकालेगी. साथ ही कहा कि जो भू-कानून, जनसंख्या कानून और नजूल नीति को लेकर विवाद है. उस पर उनका साफ मत है कि जो उत्तराखंड के लोगों के हित में होगा उस पर कानून लेकर आएंगे और काम भी करेंगे.

क्या होता है भू-कानून और उत्तराखंड में क्या है इसका इतिहासः भू-कानून का सीधा-सीधा मतलब भूमि के अधिकार से है. यानी आपकी भूमि पर केवल आपका अधिकार है न की किसी और का. जब उत्तराखंड बना था तो उसके बाद साल 2002 तक बाहरी राज्यों के लोग उत्तराखंड में केवल 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे. वर्ष 2007 में बतौर मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने यह सीमा 250 वर्ग मीटर कर दी. इसके बाद 6 अक्टूबर 2018 को भाजपा के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत एक नया अध्यादेश लाए. जिसका नाम 'उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम,1950 में संसोधन का विधेयक' था. इसे विधानसभा में पारित किया गया.

इसमें धारा 143 (क) धारा 154(2) जोड़ी गई. यानी पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया गया. अब कोई भी राज्य में कहीं भी भूमि खरीद सकता था. साथ ही इसमें उत्तराखंड के मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, यूएसनगर में भूमि की हदबंदी (सीलिंग) खत्म कर दी गई. इन जिलों में तय सीमा से अधिक भूमि खरीदी या बेची जा सकेगी.

हिमाचल के मुकाबले उत्तराखंड का भू कानून बहुत ही लचीलाः साल 2000 के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड की कुल 8,31,227 हेक्टेयर कृषि भूमि 8,55,980 परिवारों के नाम दर्ज थी. इनमें 5 एकड़ से 10 एकड़, 10 एकड़ से 25 एकड़ और 25 एकड़ से ऊपर की तीनों श्रेणियों की जोतों की संख्या 1,08,863 थी. इन 1,08,863 परिवारों के नाम 4,02,422 हेक्टेयर कृषि भूमि दर्ज थी.

यानी राज्य की कुल कृषि भूमि का लगभग आधा भाग. बाकी 5 एकड़ से कम जोत वाले 7,47,117 परिवारों के नाम मात्र 4,28,803 हेक्टेयर भूमि दर्ज थी. उपरोक्त आंकड़े दर्शाते हैं कि, किस तरह राज्य के लगभग 12 फीसदी किसान परिवारों के कब्जे में राज्य की आधी कृषि भूमि है. बची 88 फीसदी कृषि आबादी भूमिहीन की श्रेणी में पहुंच चुकी है. हिमाचल के मुकाबले उत्तराखंड का भू कानून बहुत ही लचीला है. इसलिए सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय लोग, एक सशक्त, हिमाचल के जैसे भू-कानून की मांग कर रहे हैं.

Last Updated : Aug 2, 2021, 3:05 PM IST
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