देहरादून: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) आज दिल्ली दौरे पर हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री धामी ने आज यूनिफॉर्म सिविल कोड ड्राफ्ट कमेटी की चेयरमैन सुप्रीम की रिटायर्ड जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई से दिल्ली स्थित उत्तराखंड सदन में मुलाकात की. इस मौके पर मुख्यमंत्री धामी ने जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई से राज्य से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की.
बता दें कि उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए पांच सदस्यीय ड्रॉफ्ट कमेटी का गठन किया गया है, जिसमें सुप्रीम की रिटायर्ड जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई को चेयरमैन बनाया गया है. वहीं, ड्राफ्ट कमेटी के अन्य सदस्यों में दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस प्रमोद कोहली, उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव IAS शत्रुघ्न सिंह, दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल और सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौड़ शामिल हैं. इस यूनिफॉर्म सिविल कोड के तहत विवाह-तलाक, जमीन-जायदाद और उत्तराधिकार जैसे विषयों पर सभी नागरिकों के लिए समान कानून होगा, चाहे वो किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों.
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Retired SC judge Ranjana Desai chairperson of the committee constituted by the Uttarakhand government to implement the Uniform Civil Code (UCC) in the state, met CM Pushkar Singh Dhami and discussed various issues at Uttarakhand Sadan in Delhi: CMO pic.twitter.com/XphQSqL4Dg
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) June 23, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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पहली कैबिनेट में ही हुआ था कमेटी बनाने का फैसला: गौर हो कि सरकार बनने के बाद 24 मार्च 2022 को हुई धामी 2.0 की पहली कैबिनेट बैठक में तय किया गया कि प्रदेश सरकार इस कानून को लागू करने के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाएगी, जो प्रदेश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लेकर ड्राफ्ट तैयार करेगी. राज्य मंत्रिमंडल ने इस निर्णय पर सर्वसम्मति से अपनी सहमति दर्ज कराई थी. मंत्रिमंडल की इस पहली बैठक में सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि उनकी सरकार ने संकल्प लिया था कि उत्तराखंड में यूनिफार्म सिविल कोड लाएंगे.
धामी का कहना था कि, उत्तराखंड की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा और राष्ट्र रक्षा के लिए उत्तराखंड की सीमाओं की रक्षा पूरे भारत के लिए अहम है, इसलिए यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे कानून की जरूरत है. सीएम का कहना था कि, ये भारतीय संविधान के आर्टिकल 44 की दिशा में भी एक प्रभावी कदम होगा, जो देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता की संकल्पना प्रस्तुत करता है.
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क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड: यूनिफॉर्म सिविल कोड या समान नागरिक संहिता बिना किसी धर्म के दायरे में बंटकर हर समाज के लिए एक समान कानूनी अधिकार और कर्तव्य को लागू किए जाने का प्रावधान है. इसके तहत राज्य में निवास करने वाले लोगों के लिए एक समान कानून का प्रावधान किया गया है. धर्म के आधार पर किसी भी समुदाय को कोई विशेष लाभ नहीं मिल सकता है.
यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने की स्थिति में राज्य में निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर एक कानून लागू होगा. कानून का किसी धर्म विशेष से कोई ताल्लुक नहीं रह जाएगा. ऐसे में अलग-अलग धर्मों के पर्सनल लॉ खत्म हो जाएंगे. अभी देश में मुस्लिम पर्सनल लॉ, इसाई पर्सनल लॉ और पारसी पर्सनल लॉ को धर्म से जुड़े मामलों में आधार बनाया जाता है. यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने की स्थिति में यह खत्म हो जाएगा. इससे शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के मामले में एक कानून हो जाएंगे.
क्यों हो रहा है विरोध: राज्य में निवास करने वाले लोगों को एक समान कानूनी अधिकार मिलने की स्थिति में तो लोगों को खुश होना चाहिए, फिर विरोध क्यों हो रहा है? इस सवाल का जवाब विशेषज्ञ देते हैं कि धर्म का मामला बताकर कई मामलों में लोग कानूनी प्रावधानों से बच जाते हैं. मुस्लिम धर्म में पहले तीन तलाक की प्रथा चली आ रही थी. उसे देश की संसद ने खत्म कर दिया.
ऐसे में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के बाद चार शादियों वाली प्रथा पर भी रोक लग जाएगी. एक से अधिक शादियां करना गैरकानूनी हो जाएगा. वहीं, जमीन-जायदाद पर हक के मामलों में अन्य धर्मों में महिलाओं को अधिकार कम दिए गए हैं. यूनिफॉर्म सिविल कोड महिलाओं को पुरुषों के समान ही पिता की संपत्ति पर अधिकार दिला देगा. यह कुछ लोगों को खटक रहा है.
साथ ही, यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिए एक धर्म को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है. यह भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के एजेंडे में शामिल रहा है. वहीं, कुछ धर्मों के नियम खत्म करने का आरोप भी इस पर लगता रहा है. मुस्लिम समुदाय की ओर से टारगेट करके मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करने का आरोप लगाया जाता रहा है.
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बीजेपी के एजेंडे में हमेशा से रहा है UCC: समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) एक ऐसा मुद्दा है, जो हमेशा से बीजेपी के एजेंडे में रहा है. 1989 के लोकसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता का मुद्दा शामिल किया. 2019 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी बीजेपी ने समान नागरिक संहिता को शामिल किया था. बीजेपी का मानना है कि जब तक समान नागरिक संहिता को अपनाया नहीं जाता, तब तक लैंगिक समानता नहीं आ सकती.