ऋषिकेशः बाल दिवस पर झकझोर देने वाली एक ऐसी दर्दनाक तस्वीर सामने आई है, जिसमें ऋषिकेश के चंद्रभागा नदी के किनारे बसी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले हजारों बच्चे मूलभूत सुविधाओं से वंचित, बेसहारों की जिंदगी जीने को मजबूर हैं.
इन बच्चों के पास न तो रहने के लिए छत है, न खाने के लिए भोजन और न ही ठंड के मौसम में पहनने के लिए गर्म कपड़े. ऐसे में सरकार का बाल संरक्षण को लेकर किए गए दावों की पोल खुलती नजर आ रही है.
ऋषिकेश की चंद्रभागा नदी के किनारे बसी झोपड़ियों में हजारों बच्चे रहा करते थे, लेकिन पूरी झोपड़ियों को अतिक्रमण बताकर प्रसाशन द्वारा तोड़ दिया, जिस कारण यहां रहने वाले हजारों बच्चे बिना छत के भूखे प्यासे रहने पर मजबूर हैं.
आलम यह है कि ठंड के मौसम में बच्चे खुले छत के नीचे बिना गर्म कपड़ों के रह रहे हैं. ठंड की वजह से बच्चे बीमार भी हो रहे हैं. वहीं स्कूल जाने वाले बच्चों का स्कूल जाना भी बंद हो गया.
ये तस्वीरें देखने के बाद सरकार का बाल संरक्षण के लिए किए जाने वाले बड़े-बड़े दावे खोखले नजर आते हैं. अब सवाल यह उठता है कि क्या गरीब घर में जन्म लेना इन बच्चों का कसूर है. यहां रहने वाले सभी बच्चे खुले छत के नीचे भूखे प्यासे और पढ़ाई से वंचित होकर जीवन जीने के लिए मजबूर हैं.
वहीं पीड़ित बच्चों का कहना है कि जब से उन के सिर से छत छीनी है, तब से ठंड में खुले छत के नीचे, भूखे प्यासे उनका बुरा हाल है. उनकी परीक्षा भी छूट गयी है. कई बच्चों ने स्कूल जाना ही छोड़ दिया है. वहीं बच्चों के परिजन का कहना है जिस दिन से नगर निगम ने झोपड़ियां तोड़ी हैं, तब से रहने, खाने व स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे बहुत दयनीय जीवन जी रहे हैं, सबसे ज्यादा बच्चों का जनजीवन भी प्रभावित हुआ है.
अब ऐसे में किससे मदद की गुहार लगाई जाए. झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोग अपने बच्चों की इस दुर्दशा को देखकर फूट-फूट कर रो रहे हैं. उनका कहना है कि वे पिछले 40 से 50 वर्षों से यहां रह रहे थे, लेकिन अब अचानक झोपड़ियां तोड़ दी गईं हैं तो वे अपने बच्चों को लेकर जाए तो कहां जाएं.
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साथ ही उनका कहना है कि वह खुद अनपढ़ हैं, लेकिन मेहनत मजदूरी कर अपना पेट काटकर अपने बच्चों को पढ़ाई लिखाई करना चाहते हैं, ताकि उनके बच्चे तरक्की कर सकें. आज पूरा देश बाल दिवस मना रहा है लेकिन ऋषिकेश चंद्रभागा नदी के किनारे रहने वाले हजारों बच्चों के साथ खुशी से इस दिन को मनाना बेमानी सा लगता है. इन बच्चों के लिए आज का दिन भी उसी तरह का है जैसे उनका हर दिन होता है.
इन बच्चों के लिए सरकार की योजनाएं किसी काम की नहीं है. शायद मानवाधिकार के नियम भी इन पर लागू नहीं होते. बाल संरक्षण की बात करने वालों को भी ये बच्चे नजर नहीं आते.