देहरादून: ऐसी पहाड़ों की घाटी जहां रंग-बिरंगे फूल खिले हों, जहां हर तरफ तरह-तरह के प्राकृतिक फूल अपनी खुशबू बिखेर रहे हों, ऐसी जगह का दीदार हर कोई करना चाहता है और वहां के आभामंडल में हर इंसान सांस लेना चाहता है. जी हां, हम बात कर रहे हैं विश्व विख्यात फूलों की घाटी की, जिसे देखने हर साल देश-विदेश से लाखों सैलानी आते हैं और लौटते वक्त यहां की पर्वत श्रृंखलाओं से दोबारा आने का वादा करते हैं.
बहुत देर हो जाएगी जबतक जागेंगे हम, फूलों की घाटी को तबतक बर्बाद कर देगा ये 'दानव' - पर्यटक
इनदिनों एक दानव इस हसीन घाटी को बर्बाद करने में लगा हुआ है. जीहां, ठीक सुना आपने और वो दानव है ग्लोबल वार्मिंग. इसी के असर से फूलों की घाटी का वातावरण लगातार गर्म होता जा रहा है.
देहरादून: ऐसी पहाड़ों की घाटी जहां रंग-बिरंगे फूल खिले हों, जहां हर तरफ तरह-तरह के प्राकृतिक फूल अपनी खुशबू बिखेर रहे हों, ऐसी जगह का दीदार हर कोई करना चाहता है और वहां के आभामंडल में हर इंसान सांस लेना चाहता है. जी हां, हम बात कर रहे हैं विश्व विख्यात फूलों की घाटी की, जिसे देखने हर साल देश-विदेश से लाखों सैलानी आते हैं और लौटते वक्त यहां की पर्वत श्रृंखलाओं से दोबारा आने का वादा करते हैं.
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देहरादून: ऐसी पहाड़ों की घाटी जहां रंग-बिरंगे फूल खिले हों, जहां हर तरफ तरह-तरह के प्राकृतिक फूल अपनी खुशबू बिखेर रहे हों, ऐसी जगह का दीदार हर कोई करना चाहता है और वहां के आभामंडल में हर इंसान सांस लेना चाहता है. जी हां, हम बात कर रहे हैं विश्व विख्यात फूलों की घाटी की, जिसे देखने हर साल देश-विदेश से लाखों सैलानी आते हैं और लौटते वक्त यहां की पर्वत श्रृंखलाओं से दोबारा आने का वादा करते हैं.
लेकिन इनदिनों एक दानव इस हसीन घाटी को बर्बाद करने में लगा हुआ है. जीहां, ठीक सुना आपने और वो दानव है ग्लोबल वार्मिंग. इसी के असर से फूलों की घाटी का वातावरण लगातार गर्म होता जा रहा है. इस बात की तस्दीक हम नहीं बल्कि वन महकमा खुद कर रहा है. इसके अलावा यहां रंग बिरंगे फूलों के बीच ऐसे पौधे उग रहे हैं जो घाटी को अपनी जकड़ में ले रहे हैं. जिससे चमोली जनपद स्थित फूलों की घाटी के वजूद पर खतरा मंडरा रहा है.
पर्यावरणविद प्रोफेसर बीडी जोशी कहते हैं कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि ऊपरी इलाकों में मौसम बदल रहा है और बदलते मौसम में ऐसी वनस्पतियां वहां पैदा हो रही हैं, जिनकी ना तो पहले कभी कल्पना की जा सकती थी और ना ही उन्हें इतनी ऊपर इलाकों में देखा गया है. लगभग तीन से चार ऐसी प्रजातियां उत्तराखंड की फूलों की घाटी में पैदा हो गई है. जो वहां मौजूद फूलों को खत्म कर रही हैं.
आलम यह है कि सरकार और वन विभाग अब इस जद्दोजहद में जुटे हैं कि कैसे इस विश्व विख्यात घाटी को बचाया जाए. मुख्य वन संरक्षक जयराज का कहना है कि वो अपनी टीम के साथ बीते दिनों फूलों की घाटी का दौरा करने गए थे. वो ये देखकर हैरान थे कि जो फूलों की घाटी कभी बर्फ से लकदक हुआ करती थी और वहां ठंड ठिठुरा देती थी, वहां अब वहीं मौसम गर्म हो चुका है. ये परिवर्तन देखकर वन विभाग की टीम बेहद हैरान थी.
इसके साथ ही वहां मौजूद करीब 500 से ज्यादा फूलों की प्रजातियों के बीच पॉलीवोराम, ओसमोन्डा जैसी प्रजातियां बढ़ रही हैं, ये कुछ ऐसे पौधे हैं जिन्होंने फूलों की घाटी को चारों तरफ से घेर लिया है और घाटी इतने लंबे एरिया में फैली है कि उसमें से इस खराब प्रजाति को निकालना बेहद जटिल कार्य है. एक बार जो पौधा कहीं पर उग जाता है उसके बार-बार पनपने के चांस ज्यादा बढ़ जाते हैं. लिहाजा वन विभाग अब ऐसी रणनीति बना रहा है ताकि वहां मौजूद फूलों को बचाया जा सके.
बेहद कम लोग ये जानते हैं कि फूलों की घाटी का उल्लेख हमारे धर्म ग्रन्थों में भी मिलता है. मान्यता है कि राम-रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मण के मूर्छित होने के बाद हनुमान जी इसी स्थान से उनके लिये संजीवनी लेकर गए थे. दरअसल, इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में बहुमूल्य जड़ी-बूटियां पाई जाती है. जो कई बीमारियों में रामबाण मानी जाती हैं.
अब सोचिये, जो पर्वत पूरे विश्व में सबसे ज्यादा फूलों और जड़ी-बूटियों की प्रजाति पैदा करता हो उसके अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगे तो यही हो भी रहा है, फूलों की घाटी में जलवायु परिवर्तन की ऐसी मार पड़ रही है कि यहां मौजूद 500 से ज्यादा प्रजातियां पर इसका साफ तौर पर असर दिख रहा है. इसके साथ ही उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौसम की ऐसी मार पड़ रही है कि कभी बर्फ से लकदक पहाड़ियां आज ग्लोबल वार्मिंग के कारण अपना अस्तित्व खोने की कगार पर हैं.
Conclusion: