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कॉर्बेट में अवैध कटाई व निर्माण का मामला, सीईसी ने जांच रिपोर्ट पर सरकार से मांगा फीडबैक

कॉर्बेट में अवैध कटाई और निर्माण मामले में सीईसी (Central Empowered Committee) के समक्ष जांच एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है. ऐसे में सीईसी ने सरकार से इस जांच रिपोर्ट पर फीडबैक मांगा है.

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Published : Sep 15, 2022, 7:55 PM IST

ऋषिकेश: सीईसी ने उत्तराखंड सरकार से कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (Corbett tiger reserve) और कालागढ़ वन प्रभाग में पेड़ों की अवैध कटाई और निर्माण गतिविधियों की जांच कर रही विभिन्न जांच समितियों की रिपोर्ट पर अपनी फीडबैक देने को कहा है. इस महीने की शुरुआत में कॉर्बेट में पेड़ों की अवैध कटाई और निर्माण पर सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी (Central Empowered Committee) द्वारा की गई बैठक जांच समितियों को रिपोर्ट पेश करने को कहा गया था. जिसमें राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए), सीईसी के एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय और वन और पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा गठित समितियां शामिल हैं.

वहीं, सीईसी ने इस विषय पर कपिल जोशी समिति की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट का दो सप्ताह के भीतर अंग्रेजी अनुवाद भी मांगा है. यह रिपोर्ट तीन खंडों में है. सीईसी ने राज्य सरकार से यह भी उल्लेख करने के लिए कहा है कि क्या उसे कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में की गई विशिष्ट गतिविधियों के लिए सक्षम अधिकारियों की मंजूरी थी और इस उद्देश्य के लिए बजट प्रावधान का भी किया गया था.

पढ़ें- चेकिंग के बाद ही पिरान कलियर दरगाह में जा पाएंगे जायरीन, बोर्ड बैठक में हुए कई फैसले

साथ ही पैनल ने राज्य सरकार से यह भी उल्लेख करने के लिए कहा है कि कॉर्बेट की पखरो रेंज में वन भूमि को 'टाइगर सफारी' के लिए क्यों डायवर्ट किया गया, जबकि यह साइट-विशिष्ट गतिविधि नहीं है. वहीं, पाखरो की वन भूमि बाघों के आवास का हिस्सा है और यहां बाघों की तादाद भी अच्छी खासी है.

सीईसी (Central Empowered Committee) ने अधिकारियों के हवाले से कहा कि पाखरो टाइगर रिजर्व एनटीसीए के दिशानिर्देशों के अनुरूप नहीं था. केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) ने जानकारी दी कि पाखरो में बाघ अभयारण्य की स्थापना के लिए डीपीआर को मंजूरी दी जानी बाकी है. अभी तक इसके लिए केवल सैद्धांतिक मंजूरी दी गई है. हालांकि, राज्य सरकार ने पहले ही परियोजना से संबंधित सिविल निर्माण गतिविधियों को शुरू कर दिया है.

सीईसी ने इस संबंध में सीजेडए द्वारा दिए गए कारण बताओ नोटिस के लिए राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत प्रतिक्रिया की एक प्रति मुहैया का भी अनुरोध किया है. सीईसी को बताया गया कि टाइगर सफारी के भीतर पड़ने वाले जंगल में कैमरा ट्रैप के जरिए बाघों की आवाजाही देखी गई है. सीईसी ने देखा कि टाइगर रिजर्व के भीतर टाइगर सफारी की स्थापना से बाघों का एरिया छोटा हो जाएगा.

पढ़ें- पूर्व CM त्रिवेंद्र का जंगली हाथी से हुआ सामना, हरीश रावत बोले- भगवान कंडोलिया की कृपा से बचे

वहीं, राज्य सरकार द्वारा अब तक प्रस्तुत किए गए रिकॉर्ड यह नहीं दिखाते हैं कि पाखरो में साइट को अंतिम रूप देने से पहले किसी वैकल्पिक साइट की जांच की गई थी या नहीं. उधर, भारतीय वन्यजीव संस्थान ने अपने नोट में कहा है कि बाघ अभयारण्यों में टाइगर सफारी स्थापित करने से जानवरों में जूनोटिक रोगों के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. यह किसी भी सेटिंग में होता है, जहां जंगली जानवरों को मनुष्यों के करीब सीमित कर दिया जाता है, जिसमें चिड़ियाघर और सफारी जैसी सुविधाएं शामिल हैं.

ऋषिकेश: सीईसी ने उत्तराखंड सरकार से कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (Corbett tiger reserve) और कालागढ़ वन प्रभाग में पेड़ों की अवैध कटाई और निर्माण गतिविधियों की जांच कर रही विभिन्न जांच समितियों की रिपोर्ट पर अपनी फीडबैक देने को कहा है. इस महीने की शुरुआत में कॉर्बेट में पेड़ों की अवैध कटाई और निर्माण पर सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी (Central Empowered Committee) द्वारा की गई बैठक जांच समितियों को रिपोर्ट पेश करने को कहा गया था. जिसमें राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए), सीईसी के एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय और वन और पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा गठित समितियां शामिल हैं.

वहीं, सीईसी ने इस विषय पर कपिल जोशी समिति की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट का दो सप्ताह के भीतर अंग्रेजी अनुवाद भी मांगा है. यह रिपोर्ट तीन खंडों में है. सीईसी ने राज्य सरकार से यह भी उल्लेख करने के लिए कहा है कि क्या उसे कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में की गई विशिष्ट गतिविधियों के लिए सक्षम अधिकारियों की मंजूरी थी और इस उद्देश्य के लिए बजट प्रावधान का भी किया गया था.

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सीईसी (Central Empowered Committee) ने अधिकारियों के हवाले से कहा कि पाखरो टाइगर रिजर्व एनटीसीए के दिशानिर्देशों के अनुरूप नहीं था. केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) ने जानकारी दी कि पाखरो में बाघ अभयारण्य की स्थापना के लिए डीपीआर को मंजूरी दी जानी बाकी है. अभी तक इसके लिए केवल सैद्धांतिक मंजूरी दी गई है. हालांकि, राज्य सरकार ने पहले ही परियोजना से संबंधित सिविल निर्माण गतिविधियों को शुरू कर दिया है.

सीईसी ने इस संबंध में सीजेडए द्वारा दिए गए कारण बताओ नोटिस के लिए राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत प्रतिक्रिया की एक प्रति मुहैया का भी अनुरोध किया है. सीईसी को बताया गया कि टाइगर सफारी के भीतर पड़ने वाले जंगल में कैमरा ट्रैप के जरिए बाघों की आवाजाही देखी गई है. सीईसी ने देखा कि टाइगर रिजर्व के भीतर टाइगर सफारी की स्थापना से बाघों का एरिया छोटा हो जाएगा.

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वहीं, राज्य सरकार द्वारा अब तक प्रस्तुत किए गए रिकॉर्ड यह नहीं दिखाते हैं कि पाखरो में साइट को अंतिम रूप देने से पहले किसी वैकल्पिक साइट की जांच की गई थी या नहीं. उधर, भारतीय वन्यजीव संस्थान ने अपने नोट में कहा है कि बाघ अभयारण्यों में टाइगर सफारी स्थापित करने से जानवरों में जूनोटिक रोगों के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. यह किसी भी सेटिंग में होता है, जहां जंगली जानवरों को मनुष्यों के करीब सीमित कर दिया जाता है, जिसमें चिड़ियाघर और सफारी जैसी सुविधाएं शामिल हैं.

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