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यहां रिटायर नहीं होते सरकार के चहेते अधिकारी?, हर साल इनपर खर्च होते हैं 36 करोड़ रुपए - सचिव

प्रदेश में कई नौकरशाहों को रिटायमेंट से पहले ही नई जिम्मेदारी दे दी जाती है. बात चाहे बीजेपी सरकार की करें या कांग्रेस की, दोनों ही सरकारें नौकरशाहों पर खूब मेहरबान दिखी. हर किसी ने अधिकारियों को पुनर्नियुक्ति को तोहफे दिये.

देवभूमि में 'रिटायर' नहीं होते अधिकारी
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Published : Mar 8, 2019, 7:55 PM IST

Updated : Mar 8, 2019, 10:57 PM IST

देहरादून: अगर हम आपसे कहें की देश में एक राज्य ऐसा भी है जहां कोई नौकरशाह रिटायर नहीं होता तो शायद आप यकीन नहीं करेंगे. लेकिन ये सच है. देवभूमि उत्तराखंड में नौकरशाहों पर देवताओं का आशीर्वाद कहें या फिर सत्ता पक्ष की मेहरबानी, जो कि उन्हें रिटायरमेंट से पहले ही नई जिम्मदारी दे देती है. जिस पर वे लंबे समय तक आसीन रहते हैं.
सरकारी सेवा नियामावाली के अनुसार कोई भी कर्मचारी या अधिकारी 60 साल तक सेवाएं दे सकता है. लेकिन जो किसी प्रदेश में नहीं होता वो उत्तराखंड में देखने को मिल रहा है. यहां सरकारें धड़ल्ले से अधिकारियों को रिटायरमेंट से पहले ही अलग-अलग विभागों में मलाईदार पदों पर बैठा देती हैं. जिससे वो रिटायर होने के बाद भी खूब चांदी काटते हैं. ऐसे अधिकारियों पर सरकार हर साल लगभग 36 करोड़ रुपए खर्च करती है जो कि आम जनता की गाढ़ी कमाई का हिस्सा होता है.


सचिवालय में तैनात तमाम अधिकारियों के साथ-साथ अन्य कई विभागों में पुनर्नियुक्ति का सिलसिला बदस्तूर चला आ रहा है. वहीं सरकार से जब इस बारे में पूछा जाता है तो वो प्रदेश में अधिकारियों का रोना रो कर अपना पल्ला झाड़ लेती है. जिसके कारण इस तरह के मामलों में साल दर साल इजाफा हो रहा है.

देवभूमि में 'रिटायर' नहीं होते अधिकारी

नौकरशाह का नाम राज्य में तैनाती रिटायरमेंट की तारीख नई जिम्मेदारी
आरएस टोलिया 1 जनवरी 2003 4 दिसंबर 2005 मौजूदा सरकार में मुख्य सूचना आयुक्त
एस केदास 30 दिसंबर 2006 11 अगस्त 2008 लोक सेवा आयोग के चेयरमैन
शत्रुघ्न सिंह 16 नवम्बर 2015 18 नवम्बर 2015 राज्य सूचना आयोग,लोक सेवा आयोग
इंदु कुमार पांडेय 11 अगस्त 2008 2 दिसंबर 2009 मुख्यमंत्री के सलाहकार
एनएस नपल्च्याल 2 दिसंबर 2009 12 सितम्बर 2010 आदिवासी जनजाति समिति अध्यक्ष
सुभाष कुमार 13 सितम्बर 2013 21 अगस्त 2014 विद्युत नियामक आयोग चेयरमैन
राकेश शर्मा 31 जुलाई 2015 16 नवम्बर 2015 मुख्य प्रधान सचिव
आलोक कुमार जैन 1 मई 2012 3 मई 2013 मुख्य आयुक्त

इसी तरहआर सी लोहनी, हेमलता, सुवर्धन और मौजूदा चुनाव आयुक्त चन्द्र शेखर भट्टजैसे अधिकारी भी अलग-अलग विभागों में बड़े पदों पर तैनात हैं. ऐसे ही सरकार ने एक बार फिर से न्याय एवं विधायी सचिव के पद पर तैनात डीपी गेरौला को रिटायर्मेंट से एक महीना पहले ही नई तैनाती के लिए शाशनादेश जारी कर दिया है.


लगातार इस तरह के फैसलों के बाद प्रदेश सरकार पर सवाल उठना लाजमी है कि आखिर क्यों सरकारें नौकरशाहों पर इतनी मेहरबान हैं ? ये अपने आप में सोचने वाली बात है कि रिटायरमेंट की उम्र में अधिकारियों और कर्मचारियों को नई जिम्मेदारी देना कितना सही है?

देहरादून: अगर हम आपसे कहें की देश में एक राज्य ऐसा भी है जहां कोई नौकरशाह रिटायर नहीं होता तो शायद आप यकीन नहीं करेंगे. लेकिन ये सच है. देवभूमि उत्तराखंड में नौकरशाहों पर देवताओं का आशीर्वाद कहें या फिर सत्ता पक्ष की मेहरबानी, जो कि उन्हें रिटायरमेंट से पहले ही नई जिम्मदारी दे देती है. जिस पर वे लंबे समय तक आसीन रहते हैं.
सरकारी सेवा नियामावाली के अनुसार कोई भी कर्मचारी या अधिकारी 60 साल तक सेवाएं दे सकता है. लेकिन जो किसी प्रदेश में नहीं होता वो उत्तराखंड में देखने को मिल रहा है. यहां सरकारें धड़ल्ले से अधिकारियों को रिटायरमेंट से पहले ही अलग-अलग विभागों में मलाईदार पदों पर बैठा देती हैं. जिससे वो रिटायर होने के बाद भी खूब चांदी काटते हैं. ऐसे अधिकारियों पर सरकार हर साल लगभग 36 करोड़ रुपए खर्च करती है जो कि आम जनता की गाढ़ी कमाई का हिस्सा होता है.


सचिवालय में तैनात तमाम अधिकारियों के साथ-साथ अन्य कई विभागों में पुनर्नियुक्ति का सिलसिला बदस्तूर चला आ रहा है. वहीं सरकार से जब इस बारे में पूछा जाता है तो वो प्रदेश में अधिकारियों का रोना रो कर अपना पल्ला झाड़ लेती है. जिसके कारण इस तरह के मामलों में साल दर साल इजाफा हो रहा है.

देवभूमि में 'रिटायर' नहीं होते अधिकारी

नौकरशाह का नाम राज्य में तैनाती रिटायरमेंट की तारीख नई जिम्मेदारी
आरएस टोलिया 1 जनवरी 2003 4 दिसंबर 2005 मौजूदा सरकार में मुख्य सूचना आयुक्त
एस केदास 30 दिसंबर 2006 11 अगस्त 2008 लोक सेवा आयोग के चेयरमैन
शत्रुघ्न सिंह 16 नवम्बर 2015 18 नवम्बर 2015 राज्य सूचना आयोग,लोक सेवा आयोग
इंदु कुमार पांडेय 11 अगस्त 2008 2 दिसंबर 2009 मुख्यमंत्री के सलाहकार
एनएस नपल्च्याल 2 दिसंबर 2009 12 सितम्बर 2010 आदिवासी जनजाति समिति अध्यक्ष
सुभाष कुमार 13 सितम्बर 2013 21 अगस्त 2014 विद्युत नियामक आयोग चेयरमैन
राकेश शर्मा 31 जुलाई 2015 16 नवम्बर 2015 मुख्य प्रधान सचिव
आलोक कुमार जैन 1 मई 2012 3 मई 2013 मुख्य आयुक्त

इसी तरहआर सी लोहनी, हेमलता, सुवर्धन और मौजूदा चुनाव आयुक्त चन्द्र शेखर भट्टजैसे अधिकारी भी अलग-अलग विभागों में बड़े पदों पर तैनात हैं. ऐसे ही सरकार ने एक बार फिर से न्याय एवं विधायी सचिव के पद पर तैनात डीपी गेरौला को रिटायर्मेंट से एक महीना पहले ही नई तैनाती के लिए शाशनादेश जारी कर दिया है.


लगातार इस तरह के फैसलों के बाद प्रदेश सरकार पर सवाल उठना लाजमी है कि आखिर क्यों सरकारें नौकरशाहों पर इतनी मेहरबान हैं ? ये अपने आप में सोचने वाली बात है कि रिटायरमेंट की उम्र में अधिकारियों और कर्मचारियों को नई जिम्मेदारी देना कितना सही है?




अगर हम आपसे ये कहे की एक राज्य एसा है जन्हा कभी कोई नौकरशाह रिटायर नही होता है तो आप क्या कहेंगे जी हां ये बात सौ फीसदी सच है उत्तराखंड देश का एक मात्र एसा राज्य होगा जन्हा पर अधिकारी कभी रिटायर ही नहीं होते है बल्कि एक उम्र तक नौकरी करने के बाद भी उन्हें अच्छे पदों पर आसीन कर दिया जाता है

सरकारी सेवानियामावाली के अनुसार कर्मचारी और अधिकारी 60 साल तक अपनियो सेवाएं दे सकते है ये उम्र और समय सीमा हर विभाग में तय है | लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद से आज तक सरकारें धड़ल्ले ऐसे अधिकारियो को अलग अलग विभागों के मलाई दार पदों पर बैठा देते है जिसे वो रिटायर होने के बाद भी खूब चांदी काटते है | पुनर्नियुक्ति और सेवा विस्तार का ये सिलसिला मौजूदा त्रिवेंद्र सरकार में जारी है | जबकि ये इन अधिकारियो को पद पर बैठाने से सरकार को हर साल लगभग  36 करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

सचिवालय में तैनात तमाम अधिकारियो के साथ साथ इसे तमाम विभाग है जन्हा पर पुनर्नियुक्ति का सिलसिला चलता आ रहा है | एक आंकड़े के मुताबिक अधिकारियो की गाड़ी दफ्तर, स्टाफ, और अन्य अनुमन्य सुविधाएं के लिए सरकार हर महीने लगभग दो से तीन करोड़ रूपये खर्च कर रही है |सरकार ने इसे अधिकारी जो रिटायर हो चुके है उनको विभिन्न आयोगों, निगमों और समितियों में पुनर्नियुक्ति किया गया है | 

सरकार से जब जब ये सवाल पूछा जता है तब तब सरकार अधिकारियो की कमी का रोना रोती रही है और शायद यही कारण है की इस मामले में साल दर दर इजाफा हो रहा है ये सिलसिला इस लिए भी जारी है क्यूंकि प्रत्येक पांच साल में आईएएस के काडर का रिव्यू होता है लेकिन वर्ष-2010 के बाद से राज्य में रिव्यू हुआ ही नहीं ।उधर आईएएस एसोसिएशन के सेक्रेट्री आनंद बर्धन कहते है की काडर रिव्यू के संबंध में भारत सरकार की जो भी व्यवस्था है उसी के अनुसार काम किया जाता है इस मामले में किस तरह का कोई भी वेवस्था कम अपनी तरफ से लागु नहीं करते है 

उत्तराखंड बनने के बाद से लगातार सरकारों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े होते रहे है जैसे सरकार पचास साल में नौकरशाह का इम्तहान लेगी मगर ये इम्तहान रिटायर अफसरों के लिए क्यों नहीं होता है? सरकार हार साल बजट से पहले और बजट के बाद राज्य की खराब माली हालत का रोना रोती है लेकिन करोड़ों रुपये रिटायर अफसरों पर क्यों लुटाती है?सिर्फ नौकरशाहों और अफसरों को ही पुनर्नियुक्ति का तोहफा क्यों मिलता है? जबकि इसमें लेखक,पत्रकार,गीतकार,संगीतकार सहित ऐसे कई लोग पद पर आसीन हो सकते है तो ऐसे में क्यों इनको मौक़ा नहीं दिया जाता है | 

उत्तराखंड गठन के बाद से ही राज्य में एक नयी परिपाठी चली आ रही है जिसमे उत्तराखंड में तैनात सबसे बड़े अधिकारी को सरकार कहीं ना कहीं फीट कर ही देती है | मुख्यसचिव पर तैनात पूर्व के कई अधिकारी भी सरकार से सरकारी लाभ और नौकरी रिटायरमेट के बाद भी लेते रहे है इनमे 




इन मुख्य सचिव को मिली रिटयर होने के बाद भी तैनाती 

पूर्व मुख्य सचिव आरएस टोलिया,ने राज्य में मुख्य सचिव की कमान संभाली 1 जनवरी 2003 को जबकि ये रिटायर 4 दिसंबर 2005 को हो गए इसके बाद मौजूदा सरकार ने उन्हें मुख्य सूचना आयुक्त बना दिया।
पूर्व मुख्य सचिव रहे एस.के.दास, उत्तराखंड से 30 दिसंबर 2006 को पद भार संभाला जबकि 11 अगस्त 2008 को वो रिटायर हुए इसके बाद उन्हें लोक सेवा आयोग का चेयरमैन बना दिया गया 
पूर्व मुख्य शत्रुघ्न सिंह ने राज्य में 16 नवम्बर 2015 को कमान संभाली और वो 18 नवम्बर 2015 तक इस पद पर रहे उसके बाद उन्हें राज्य सरकार ने  राज्य सूचना आयोग, सेवा का अधिकार आयोग, राज्य विद्युत नियामक आयोग, वेतन समिति, राज्य लोक सेवा आयोग में तैनाती दे दी 
पूर्व मुख्य इंदु कुमार पांडेय,11 अगस्त 2008 को पद भार संभाला और वो 2 दिसंबर 2009 तक इस पद पर रही इसके बाद उन्हें सरकार ने मुख्यमंत्री का सलाहकार बना दिया 
पूर्व मुख्य एनएस नपल्च्याल, 2 दिसंबर 2009 को तैनाती मिली जबकि वो इस पद पर 12 सितम्बर 2010 को रिटायर हुए इसके बाद उन्हें सरकार ने मुख्य सूचना आयुक्त और उसके बाद आदिवासी जनजाति को सरकारी नौकरी में बढ़ावा देने संबंधी समिति का अध्यक्ष बनाया गया। 
पूर्व मुख्य सुभाष कुमार, को 13 सितम्बर 2013 को तैनाती मिली और वो 21 अगस्त 2014 तक इस पद पर रहे और सरकार ने इसके बाद भी उन्हें विद्युत नियामक आयोग का चेयरमैन बना कर कुर्सी पर बैठा दिया 
पूर्व मुख्य राकेश शर्मा  31 जुलाई 2015 को पदभार संभाला जबकि ये इस पद से 16 नवम्बर 2015 को रिटायर हुए इसके बाद सरकार ने एक नया पद निकाल कर उन्हें मुख्य प्रधान सचिव बना दिया 
पूर्व मुख्य आलोक कुमार जैन ,1 मई 2012 को मुख्य सचिव बने और 3 मई 2013 को रिटायर हो गए  उसके बाद उन्हें मुख्य आयुक्त बना दिया गया 
इसी तरह आर सी लोहनी ,हेम लता सचिव,सुवर्धन ,और मौजूदा चुनाव आयुक्त चन्द्र शेखर भट्ट  जैसे अधिकारी भी अलग अलग विभागों में अलग अलग बड़े पदों पर तैनात है |  
डी के कोठिहा सेकेट्री सचिव  के बाद चेयरमैन आयुष्मान योजना के हो गए एसएस रावत सेकेट्री 2 सीएम के बाद सुचना आयुक्त बना दिए गए 
इसी तरह अब एक बार फिर से सरकार ने प्रमुख सचिव न्या एवं विधायी पर तैनात आई ए एस डीपी गेरौला को सरकार रिटायर्मेंट से एक महीना पहले ही नयी तैनाती के लिए शाशनादेश जारी कर दिया है इस पद से रिटायर होने के बाद वो ऊर्जा विभाग में विधुत नियामक आयोग का सदस्य बनाया गया है 



--
Regard's 
Kiran Kant Sharma 
Dehradun 
Mob. 9121292990

Last Updated : Mar 8, 2019, 10:57 PM IST
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