देहरादून: अगर हम आपसे कहें की देश में एक राज्य ऐसा भी है जहां कोई नौकरशाह रिटायर नहीं होता तो शायद आप यकीन नहीं करेंगे. लेकिन ये सच है. देवभूमि उत्तराखंड में नौकरशाहों पर देवताओं का आशीर्वाद कहें या फिर सत्ता पक्ष की मेहरबानी, जो कि उन्हें रिटायरमेंट से पहले ही नई जिम्मदारी दे देती है. जिस पर वे लंबे समय तक आसीन रहते हैं.
सरकारी सेवा नियामावाली के अनुसार कोई भी कर्मचारी या अधिकारी 60 साल तक सेवाएं दे सकता है. लेकिन जो किसी प्रदेश में नहीं होता वो उत्तराखंड में देखने को मिल रहा है. यहां सरकारें धड़ल्ले से अधिकारियों को रिटायरमेंट से पहले ही अलग-अलग विभागों में मलाईदार पदों पर बैठा देती हैं. जिससे वो रिटायर होने के बाद भी खूब चांदी काटते हैं. ऐसे अधिकारियों पर सरकार हर साल लगभग 36 करोड़ रुपए खर्च करती है जो कि आम जनता की गाढ़ी कमाई का हिस्सा होता है.
सचिवालय में तैनात तमाम अधिकारियों के साथ-साथ अन्य कई विभागों में पुनर्नियुक्ति का सिलसिला बदस्तूर चला आ रहा है. वहीं सरकार से जब इस बारे में पूछा जाता है तो वो प्रदेश में अधिकारियों का रोना रो कर अपना पल्ला झाड़ लेती है. जिसके कारण इस तरह के मामलों में साल दर साल इजाफा हो रहा है.
देवभूमि में 'रिटायर' नहीं होते अधिकारी
नौकरशाह का नाम | राज्य में तैनाती | रिटायरमेंट की तारीख | नई जिम्मेदारी |
आरएस टोलिया | 1 जनवरी 2003 | 4 दिसंबर 2005 | मौजूदा सरकार में मुख्य सूचना आयुक्त |
एस केदास | 30 दिसंबर 2006 | 11 अगस्त 2008 | लोक सेवा आयोग के चेयरमैन |
शत्रुघ्न सिंह | 16 नवम्बर 2015 | 18 नवम्बर 2015 | राज्य सूचना आयोग,लोक सेवा आयोग |
इंदु कुमार पांडेय | 11 अगस्त 2008 | 2 दिसंबर 2009 | मुख्यमंत्री के सलाहकार |
एनएस नपल्च्याल | 2 दिसंबर 2009 | 12 सितम्बर 2010 | आदिवासी जनजाति समिति अध्यक्ष |
सुभाष कुमार | 13 सितम्बर 2013 | 21 अगस्त 2014 | विद्युत नियामक आयोग चेयरमैन |
राकेश शर्मा | 31 जुलाई 2015 | 16 नवम्बर 2015 | मुख्य प्रधान सचिव |
आलोक कुमार जैन | 1 मई 2012 | 3 मई 2013 | मुख्य आयुक्त |
इसी तरहआर सी लोहनी, हेमलता, सुवर्धन और मौजूदा चुनाव आयुक्त चन्द्र शेखर भट्टजैसे अधिकारी भी अलग-अलग विभागों में बड़े पदों पर तैनात हैं. ऐसे ही सरकार ने एक बार फिर से न्याय एवं विधायी सचिव के पद पर तैनात डीपी गेरौला को रिटायर्मेंट से एक महीना पहले ही नई तैनाती के लिए शाशनादेश जारी कर दिया है.
लगातार इस तरह के फैसलों के बाद प्रदेश सरकार पर सवाल उठना लाजमी है कि आखिर क्यों सरकारें नौकरशाहों पर इतनी मेहरबान हैं ? ये अपने आप में सोचने वाली बात है कि रिटायरमेंट की उम्र में अधिकारियों और कर्मचारियों को नई जिम्मेदारी देना कितना सही है?