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उत्तराखंड की दो फैक्ट्रियों में बनेगी ब्लैक फंगस की दवा, एम्स ऋषिकेश ने भी कसी कमर

उत्तराखंड में अभीतक ब्लैक फंगस के 48 मरीज सामने आ चुके हैं, जिसमें से तीन की मौत हो चुकी है. ब्लैक फंगस को मात देने में एंटीफंगल ड्रग्स अम्फोटेरिसिन-बी कारगर बताया जा रहा है, जिसका उत्पादन उत्तराखंड की दो फैक्ट्रियों में जल्द ही शुरू होने वाला है.

ब्लैक फंगस
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Published : May 20, 2021, 6:26 PM IST

देहरादून/ऋषिकेश: देश के कई राज्यों के साथ उत्तराखंड में भी ब्लैक फंगस के केस मिल रहे हैं, जिसने सरकार और स्वास्थ्य विभाग की चिंता बढ़ा दी है. मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने ब्लैक फंगस से लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है. हरिद्वार और उधमसिंह नगर जिले में स्थित दो दवा फैक्ट्रियों में जल्द ही ब्लैक फंगस दवा बनानी शुरू हो जाएगी. ये दोनों फैक्ट्रियां उत्तराखंड के साथ अन्य राज्यों को भी दवाइयों की आपूर्ति करेंगी.

उत्तराखंड में बनेगी ब्लैक फंगस की दवा

जानकारी के मुताबिक उत्तराखंड में अभीतक ब्लैक फंगस के 48 मरीज सामने आ चुके हैं, जिसमें से तीन की मौत हो चुकी है. ब्लैक फंगस को मात देने में एंटीफंगल ड्रग्स अम्फोटेरिसिन-बी कारगर बताया जा रहा है. इसका उत्पादन उत्तराखंड की दो फैक्ट्रियों में जल्द ही शुरू होने वाला है. ड्रग कंट्रोलर की टीम ने इन दोनों फैक्ट्रियों का निरीक्षण कर लिया है. स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने खुद इसकी जानकारी दी.

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स्वास्थ्य सचिव नेगी ने बताया कि केंद्रीय टीम ने उत्तराखंड में दो फैक्ट्रियों का निरीक्षण किया था. एक सप्ताह के भीतर केंद्र द्वारा इस ड्रग के उत्पादन की अनुमति मिल जाएगी और जल्द ही उत्तराखंड सहित आसपास के राज्यों में ब्लैक फंगस की दवाई की आपूर्ति की जाएगी.

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वहीं ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों को देखते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में अलग से एक वार्ड स्थापित किया गया है. इसमें ब्लैक फंगस से ग्रसित रोगियों का उपचार विभिन्न विभागों के 15 विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में किया जाएगा.

ब्लैक फंगस से डरें नहीं, सावधान रहें

निदेशक एम्स ऋषिकेश प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि म्यूकोर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) एक घातक एंजियोइनवेसिव फंगल संक्रमण है, जो मुख्य रूप से नाक के माध्यम से हमारी श्वास नली में प्रवेश करता है. इससे घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि समय पर इलाज शुरू करने की आवश्यकता है.

डॉक्टरों की 15 सदस्यीय टीम गठित

एम्स ऋषिकेश के कोविड नोडल ऑफिसर कोविड डॉ. पीके पंडा ने बताया कि ब्लैक फंगस के उपचार के लिए गठित 15 सदस्यीय चिकित्सक दल इस बीमारी का इलाज, रोकथाम और आम लोगों को जागरूक करने का कार्य करेगा.

टीम के हेड और ईएनटी के विशेषज्ञ सर्जन डा. अमित त्यागी ने बताया कि म्यूकोर माइकोसिस के रोगियों के इलाज के लिए अलग से एक म्यूकर वार्ड बनाया गया है. इसमें सीसीयू बेड, एचडीयू बेड और अन्य आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं.

ब्लैक फंगस के प्रमुख लक्षण

तेज बुखार, नाक बंद होना, सिर दर्द, आंखों में दर्द, दृष्टि क्षमता क्षीण होना, आंखों के पास लालिमा होना, नाक से खून आना, नाक के भीतर कालापन आना, दांतों का ढीला होना, जबड़े में दिक्कत होना और छाती में दर्द होना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं. यह बीमारी उन लोगों में ज्यादा देखी जा रही है, जिन्हें डायबिटीज की समस्या है.

उच्च जोखिम के प्रमुख कारण

  • कोविड-19 का वह मरीज जिसका पिछले 6 सप्ताह से उपचार चल रहा हो.
  • अनियंत्रित मधुमेह मेलिटस, क्रोनिक ग्रेनुलोमेटस रोग, एचआईवी, एडस या प्राथमिक इम्युनोडेफिशिएंसी स्टेटस.
  • स्टेरॉयड द्वारा इम्यूनोसप्रेशन का उपयोग (किसी भी खुराक का उपयोग 3 सप्ताह या उच्च खुराक 1 सप्ताह के लिए ) अन्य इम्युनोमोड्यूलेटर या प्रत्यारोपण के साथ इस्तेमाल की जाने वाली चिकित्सा.
  • लंबे समय तक न्यूट्रोपेनिया.
  • ट्रॉमा, बर्न और ड्रग एब्यूजर्स
  • लंबे समय तक आईसीयू में रहना.
  • घातक पोस्ट ट्रांसप्लांट.
  • वोरिकोनाजोल थेरेपी, डेफेरोक्सामाइन या अन्य आयरन ओवरलोडिंग थेरेपी.
  • दूषित चिपकने वाली धूल, लकड़ी का बुरादा, भवन निर्माण और अस्पताल के लिनेन.
  • कम वजन वाले शिशुओं, बच्चों व वयस्कों में गुर्दे का काम नहीं करना, दस्त और कुपोषण.

देहरादून/ऋषिकेश: देश के कई राज्यों के साथ उत्तराखंड में भी ब्लैक फंगस के केस मिल रहे हैं, जिसने सरकार और स्वास्थ्य विभाग की चिंता बढ़ा दी है. मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने ब्लैक फंगस से लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है. हरिद्वार और उधमसिंह नगर जिले में स्थित दो दवा फैक्ट्रियों में जल्द ही ब्लैक फंगस दवा बनानी शुरू हो जाएगी. ये दोनों फैक्ट्रियां उत्तराखंड के साथ अन्य राज्यों को भी दवाइयों की आपूर्ति करेंगी.

उत्तराखंड में बनेगी ब्लैक फंगस की दवा

जानकारी के मुताबिक उत्तराखंड में अभीतक ब्लैक फंगस के 48 मरीज सामने आ चुके हैं, जिसमें से तीन की मौत हो चुकी है. ब्लैक फंगस को मात देने में एंटीफंगल ड्रग्स अम्फोटेरिसिन-बी कारगर बताया जा रहा है. इसका उत्पादन उत्तराखंड की दो फैक्ट्रियों में जल्द ही शुरू होने वाला है. ड्रग कंट्रोलर की टीम ने इन दोनों फैक्ट्रियों का निरीक्षण कर लिया है. स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने खुद इसकी जानकारी दी.

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स्वास्थ्य सचिव नेगी ने बताया कि केंद्रीय टीम ने उत्तराखंड में दो फैक्ट्रियों का निरीक्षण किया था. एक सप्ताह के भीतर केंद्र द्वारा इस ड्रग के उत्पादन की अनुमति मिल जाएगी और जल्द ही उत्तराखंड सहित आसपास के राज्यों में ब्लैक फंगस की दवाई की आपूर्ति की जाएगी.

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वहीं ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों को देखते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में अलग से एक वार्ड स्थापित किया गया है. इसमें ब्लैक फंगस से ग्रसित रोगियों का उपचार विभिन्न विभागों के 15 विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में किया जाएगा.

ब्लैक फंगस से डरें नहीं, सावधान रहें

निदेशक एम्स ऋषिकेश प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि म्यूकोर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) एक घातक एंजियोइनवेसिव फंगल संक्रमण है, जो मुख्य रूप से नाक के माध्यम से हमारी श्वास नली में प्रवेश करता है. इससे घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि समय पर इलाज शुरू करने की आवश्यकता है.

डॉक्टरों की 15 सदस्यीय टीम गठित

एम्स ऋषिकेश के कोविड नोडल ऑफिसर कोविड डॉ. पीके पंडा ने बताया कि ब्लैक फंगस के उपचार के लिए गठित 15 सदस्यीय चिकित्सक दल इस बीमारी का इलाज, रोकथाम और आम लोगों को जागरूक करने का कार्य करेगा.

टीम के हेड और ईएनटी के विशेषज्ञ सर्जन डा. अमित त्यागी ने बताया कि म्यूकोर माइकोसिस के रोगियों के इलाज के लिए अलग से एक म्यूकर वार्ड बनाया गया है. इसमें सीसीयू बेड, एचडीयू बेड और अन्य आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं.

ब्लैक फंगस के प्रमुख लक्षण

तेज बुखार, नाक बंद होना, सिर दर्द, आंखों में दर्द, दृष्टि क्षमता क्षीण होना, आंखों के पास लालिमा होना, नाक से खून आना, नाक के भीतर कालापन आना, दांतों का ढीला होना, जबड़े में दिक्कत होना और छाती में दर्द होना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं. यह बीमारी उन लोगों में ज्यादा देखी जा रही है, जिन्हें डायबिटीज की समस्या है.

उच्च जोखिम के प्रमुख कारण

  • कोविड-19 का वह मरीज जिसका पिछले 6 सप्ताह से उपचार चल रहा हो.
  • अनियंत्रित मधुमेह मेलिटस, क्रोनिक ग्रेनुलोमेटस रोग, एचआईवी, एडस या प्राथमिक इम्युनोडेफिशिएंसी स्टेटस.
  • स्टेरॉयड द्वारा इम्यूनोसप्रेशन का उपयोग (किसी भी खुराक का उपयोग 3 सप्ताह या उच्च खुराक 1 सप्ताह के लिए ) अन्य इम्युनोमोड्यूलेटर या प्रत्यारोपण के साथ इस्तेमाल की जाने वाली चिकित्सा.
  • लंबे समय तक न्यूट्रोपेनिया.
  • ट्रॉमा, बर्न और ड्रग एब्यूजर्स
  • लंबे समय तक आईसीयू में रहना.
  • घातक पोस्ट ट्रांसप्लांट.
  • वोरिकोनाजोल थेरेपी, डेफेरोक्सामाइन या अन्य आयरन ओवरलोडिंग थेरेपी.
  • दूषित चिपकने वाली धूल, लकड़ी का बुरादा, भवन निर्माण और अस्पताल के लिनेन.
  • कम वजन वाले शिशुओं, बच्चों व वयस्कों में गुर्दे का काम नहीं करना, दस्त और कुपोषण.
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