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इगास पर्व को लेकर महेंद्र भट्ट ने अनिल बलूनी की मुहिम को सराहा, पारंपरिक छुट्टी की मांग - उत्तराखंड के लोक पर्व

उत्तराखंड में इगास पर्व पर राजकीय अवकाश रहेगा. अब बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने सरकार से अपेक्षा है कि पारंपरिक रूप से हर साल के लिए इगास पर्व की छुट्टी का ऐलान कर दिया जाए. वहीं, उन्होंने इगास पर्व को लेकर अनिल बलूनी की मुहिम को सराहा है.

Igas Festival Uttarakhand
इगास पर्व
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Published : Oct 27, 2022, 10:17 AM IST

देहरादूनः उत्तराखंड में इगास पर्व (Igas Festival in Uttarakhand) को लेकर अनिल बलूनी की मुहिम को बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने सराहा है. उनका कहना है कि सरकार ने एक कदम आगे बढ़कर इगास पर्व के मौके पर छुट्टी का ऐलान किया है, जो काफी काबिले तारीफ है. बीजेपी इगास पर्व को भव्य और दिव्य बनाने का प्रयास कर रही है. युवा पीढ़ी भी अपने पारंपरिक पर्वों को लेकर उत्साह और रुचि देखा रही है. ऐसे में वो इगास पर्व पर पारंपरिक छुट्टी की मांग करेंगे.

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट (BJP State President Mahendra Bhatt) का कहना है कि इगास गढ़वाल का पारंपरिक त्यौहार है. उत्तराखंड के लोक पर्वों, त्यौहारों से प्रवासियों को जोड़ने के उद्देश्य से अनिल बलूनी (Mahendra Bhatt Praises Anil Baluni for Igas) लगातार प्रयास कर रहे हैं. अनिल बलूनी ने इगास से प्रवासियों को जोड़ने की मुहिम शुरू की थी. उनकी यह मुहिम रंग लाई है. उनकी सरकार से अपेक्षा है कि हर साल इगास पर्व पर राजकीय अवकाश घोषित किया जाए. उन्होंने कहा कि वो इस बात की मांग सरकार से भी करेंगे कि अब पारंपरिक रूप से हर साल के लिए इगास पर्व की छुट्टी का ऐलान कर दिया जाए.

इगास पर पारंपरिक छुट्टी की मांग

क्या है इगास पर्वः उत्तराखंड में बग्वाल या इगास मनाने की परंपरा है. दीपावली को यहां बग्वाल कहा जाता है, जबकि बग्वाल के 11 दिन बाद एक और दीपावली मनाई जाती है, जिसे इगास कहते हैं. पहाड़ की लोक संस्कृति से जुड़े इगास पर्व के दिन घरों की साफ-सफाई के बाद मीठे पकवान बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है. साथ ही गाय व बैलों की पूजा की जाती है. शाम के वक्त गांव के किसी खाली खेत या खलिहान में भैलो खेला जाता है. भैलो एक प्रकार की मशाल होती है, जिसे नृत्य के दौरान घुमाया जाता है. इगास पर पटाखों का प्रयोग नहीं किया जाता है.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में इगास पर्व पर रहेगा राजकीय अवकाश, CM पुष्कर सिंह धामी ने किया ऐलान

दिवाली के 11वें दिन इसलिए मनाई जाती है इगासः एक मान्यता ये भी है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे तो लोगों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था, लेकिन गढ़वाल क्षेत्र में भगवान राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली थी, इसलिए ग्रामीणों ने खुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपावली का उत्सव मनाया था.

ये है दूसरी मान्यता: दूसरी मान्यता है कि दिवाली के वक्त गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट और तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी और दिवाली के ठीक 11वें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी. युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई गई थी.

एक और कथा भी है: एक और ऐसी ही कथा है कि चंबा का रहने वाला एक व्यक्ति भैलो बनाने के लिए लकड़ी लेने जंगल गया था और ग्यारह दिन तक वापस नहीं आया. उसके दुख में वहां के लोगों ने दीपावली नहीं मनाई. जब वो व्यक्ति वापस लौटा तभी ये पर्व मनाया गया और लोक खेल भैलो खेला. तब से इगास बग्वाल के दिन दिवाली मनाने और भैलो खेलने की परंपरा शुरू हुई.

गढ़वाल में मनाई जाती है चार बग्वालः गढ़वाल में 4 बग्वाल होती हैं. पहली बग्वाल कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होती है. दूसरी अमावस्या को पूरे देश की तरह गढ़वाल में भी अपनी लोक परंपराओं के साथ मनाई जाती है. तीसरी बग्वाल बड़ी बग्वाल (दिवाली) के ठीक 11 दिन बाद आने वाली कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है.

गढ़वाली में एकादशी को इगास कहते हैं. इसलिए इसे इगास बग्वाल के नाम से जाना जाता है. चौथी बग्वाल आती है दूसरी बग्वाल या बड़ी बग्वाल के ठीक एक महीने बाद मार्गशीष माह की अमावस्या तिथि को. इसे रिख बग्वाल कहते हैं. यह गढ़वाल के जौनपुर, थौलधार, प्रतापनगर, रंवाई, चमियाला आदि क्षेत्रों में मनाई जाती है.

देहरादूनः उत्तराखंड में इगास पर्व (Igas Festival in Uttarakhand) को लेकर अनिल बलूनी की मुहिम को बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने सराहा है. उनका कहना है कि सरकार ने एक कदम आगे बढ़कर इगास पर्व के मौके पर छुट्टी का ऐलान किया है, जो काफी काबिले तारीफ है. बीजेपी इगास पर्व को भव्य और दिव्य बनाने का प्रयास कर रही है. युवा पीढ़ी भी अपने पारंपरिक पर्वों को लेकर उत्साह और रुचि देखा रही है. ऐसे में वो इगास पर्व पर पारंपरिक छुट्टी की मांग करेंगे.

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट (BJP State President Mahendra Bhatt) का कहना है कि इगास गढ़वाल का पारंपरिक त्यौहार है. उत्तराखंड के लोक पर्वों, त्यौहारों से प्रवासियों को जोड़ने के उद्देश्य से अनिल बलूनी (Mahendra Bhatt Praises Anil Baluni for Igas) लगातार प्रयास कर रहे हैं. अनिल बलूनी ने इगास से प्रवासियों को जोड़ने की मुहिम शुरू की थी. उनकी यह मुहिम रंग लाई है. उनकी सरकार से अपेक्षा है कि हर साल इगास पर्व पर राजकीय अवकाश घोषित किया जाए. उन्होंने कहा कि वो इस बात की मांग सरकार से भी करेंगे कि अब पारंपरिक रूप से हर साल के लिए इगास पर्व की छुट्टी का ऐलान कर दिया जाए.

इगास पर पारंपरिक छुट्टी की मांग

क्या है इगास पर्वः उत्तराखंड में बग्वाल या इगास मनाने की परंपरा है. दीपावली को यहां बग्वाल कहा जाता है, जबकि बग्वाल के 11 दिन बाद एक और दीपावली मनाई जाती है, जिसे इगास कहते हैं. पहाड़ की लोक संस्कृति से जुड़े इगास पर्व के दिन घरों की साफ-सफाई के बाद मीठे पकवान बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है. साथ ही गाय व बैलों की पूजा की जाती है. शाम के वक्त गांव के किसी खाली खेत या खलिहान में भैलो खेला जाता है. भैलो एक प्रकार की मशाल होती है, जिसे नृत्य के दौरान घुमाया जाता है. इगास पर पटाखों का प्रयोग नहीं किया जाता है.
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दिवाली के 11वें दिन इसलिए मनाई जाती है इगासः एक मान्यता ये भी है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे तो लोगों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था, लेकिन गढ़वाल क्षेत्र में भगवान राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली थी, इसलिए ग्रामीणों ने खुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपावली का उत्सव मनाया था.

ये है दूसरी मान्यता: दूसरी मान्यता है कि दिवाली के वक्त गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट और तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी और दिवाली के ठीक 11वें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी. युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई गई थी.

एक और कथा भी है: एक और ऐसी ही कथा है कि चंबा का रहने वाला एक व्यक्ति भैलो बनाने के लिए लकड़ी लेने जंगल गया था और ग्यारह दिन तक वापस नहीं आया. उसके दुख में वहां के लोगों ने दीपावली नहीं मनाई. जब वो व्यक्ति वापस लौटा तभी ये पर्व मनाया गया और लोक खेल भैलो खेला. तब से इगास बग्वाल के दिन दिवाली मनाने और भैलो खेलने की परंपरा शुरू हुई.

गढ़वाल में मनाई जाती है चार बग्वालः गढ़वाल में 4 बग्वाल होती हैं. पहली बग्वाल कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होती है. दूसरी अमावस्या को पूरे देश की तरह गढ़वाल में भी अपनी लोक परंपराओं के साथ मनाई जाती है. तीसरी बग्वाल बड़ी बग्वाल (दिवाली) के ठीक 11 दिन बाद आने वाली कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है.

गढ़वाली में एकादशी को इगास कहते हैं. इसलिए इसे इगास बग्वाल के नाम से जाना जाता है. चौथी बग्वाल आती है दूसरी बग्वाल या बड़ी बग्वाल के ठीक एक महीने बाद मार्गशीष माह की अमावस्या तिथि को. इसे रिख बग्वाल कहते हैं. यह गढ़वाल के जौनपुर, थौलधार, प्रतापनगर, रंवाई, चमियाला आदि क्षेत्रों में मनाई जाती है.

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