देहरादूनः चारधाम देवस्थानम बोर्ड को लेकर तीर्थ पुरोहितों का विरोध अब उग्र होने लगा है. स्थिति यह है कि केदारनाथ में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पुरोहित समाज ने विरोध करते हुए वापस लौटा दिया. उधर तेज होते विरोध को देखते हुए अब भाजपा से भी इस बोर्ड को स्थगित किए जाने की मांग उठने लगी है.
तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार के दौरान बनाए गए देवस्थानम बोर्ड पर अब तीर्थ पुरोहितों ने अपना विरोध तेज कर दिया है. पुरोहित और पंडा समाज की तरफ से भाजपा नेताओं का विरोध भी किया जा रहा है. इस कड़ी में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत समेत मदन कौशिक और धन सिंह रावत को भी उनका विरोध झेलना पड़ा है. खास बात यह है कि पुरोहितों के बढ़ते विरोध को देखते हुए भाजपा के अंदर से भी इस देवस्थानम बोर्ड को स्थगित किए जाने की मांग उठने लगी है.
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भाजपा विधायक खजान दास ने इस मामले पर बोलते हुए कहा कि सरकार को मौजूदा स्थितियों को देखते हुए बोर्ड को लेकर कोई अंतिम फैसला लेने तक फिलहाल बोर्ड को स्थगित कर देना चाहिए. बता दें कि प्रधानमंत्री 5 नवंबर को बाबा केदार के धाम पहुंचने वाले हैं. उधर चारों धामों में तीर्थ पुरोहितों का गुस्सा सातवें आसमान पर है. लिहाजा भाजपा के नेता भी अब देवस्थानम बोर्ड पर कुछ नरम पड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं और इस बोर्ड को स्थगित किए जाने की मांग करने लगे हैं.
BJP विधायक ने इसलिए की पैरवीः दरअसल सोमवार को केदारनाथ धाम पहुंचे पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को तीर्थ पुरोहितों के विरोध का सामना करना पड़ा. तीर्थ पुरोहितों ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को संगम पुल पर रोका और धक्का देकर लौटा दिया. तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि राज्य सरकार ने दो महीने का समय मांगा था लेकिन सरकार वादाखिलाफी कर रही है. देवस्थानम बोर्ड पर कोई फैसला ना आने से तीर्थ पुरोहितों में आक्रोश है.
5 नवंबर को पीएम मोदी का केदारनाथ दौरा: दीपावली के अगले दिन यानी 5 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ दौरे पर आ रहे हैं. ऐसे में पीएम के दौरे की तैयारियों को लेकर तमाम बीजेपी नेता केदारनाथ धाम पहुंच रहे हैं. इस बीच तीर्थ पुरोहितों और पंडा समाज ने बीजेपी सरकार के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है. उन्होंने केदारनाथ धाम में बीजेपी नेताओं की एंट्री पर बैन लगा दिया है.
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दरअसल, उत्तराखंड सरकार ने साल 2019 में विश्व विख्यात चारधाम समेत प्रदेश के अन्य 51 मंदिरों को एक बोर्ड के अधीन लाने को लेकर उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन किया था. बोर्ड के गठन के बाद से ही लगातार धामों से जुड़े तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे हैं. बावजूद इसके तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तीर्थ पुरोहितों के विरोध को दरकिनार करते हुए चारधाम देवस्थानम बोर्ड को लागू किया था.
भंग नहीं होगा देवस्थानम बोर्ड: पिछले दिनों सीएम पुष्कर सिंह धामी की बनायी गई उच्च स्तरीय जांच समिति के अध्यक्ष मनोहरकांत ध्यानी ने साफ कर दिया था कि किसी भी कीमत पर देवस्थानम बोर्ड को भंग नहीं किया जाएगा. बोर्ड के एक्ट में लिखा गया है कि अगर किसी धारा से पंडा समाज को आपत्ति है, तो उसका निस्तारण किया जाएगा.
अध्यक्ष मनोहरकांत ध्यानी ने कहा था कि देवस्थानम बोर्ड एक्ट को किसी ने भी सही तरीके से नहीं पढ़ा है, इसलिए कुछ राजनीतिज्ञों के इशारे पर पंडा समाज विरोध कर रहा है. एक्ट में किसी भी हक-हकूकधारी का हक छीनने का जिक्र नहीं है. देवस्थानम बोर्ड यात्रियों की सुविधा के लिए बनाया गया है. उन्होंने बताया कि विरोध करने वाली समितियों को आपत्तियां दर्ज करने के लिए बुलाया है. जल्द ही वह आपत्तियां लेकर उनका निस्तारण करेंगे और अपनी रिपोर्ट सरकार को देंगे.
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क्यों हो रहा देवस्थानम बोर्ड का विरोध: बोर्ड के गठन के बाद से ही लगातार धामों से जुड़े तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे हैं. शुरुआती दौर में तीर्थ पुरोहितों के विरोध करने की मुख्य वजह यह थी कि राज्य सरकार ने बोर्ड का नाम वैष्णो देवी के श्राइन बोर्ड के नाम पर रखा था. बोर्ड बनाने का जो प्रस्ताव तैयार किया गया था उसमें पहले इस बोर्ड का नाम उत्तराखंड चारधाम श्राइन बोर्ड रखा गया था. जिसके बाद राज्य सरकार ने साल 2020 में उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड रख दिया. बावजूद इसके तीर्थ पुरोहितों ने अपना विरोध जारी रखा है.
क्या अरबों का चढ़ावा है विरोध की वजह: एक मुख्य वजह यह भी बताई जा रही है कि हर साल धामों में अरबों रुपए का चढ़ावा चढ़ता है ऐसे में अब इस चढ़ावे का पूरा हिसाब-किताब रखा जाएगा. यानी जो चढ़ावा चढ़ता है उसकी बंदरबांट नहीं हो पाएगी. जिसके चलते भी तीर्थ पुरोहित और हक हकूकधारी बोर्ड का विरोध कर रहे हैं.
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ये है देवस्थानम बोर्ड: चारधाम और उनके आसपास के 51 मंदिरों में अवस्थापना सुविधाओं का विकास, समुचित यात्रा संचालन एवं प्रबंधन के लिए उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम को राजभवन की मंजूरी मिलने के बाद चारधाम देवस्थानम बोर्ड अस्तित्व में आ गया है. मंदिरों के रखरखाव, बुनियादी सुविधाओं और ढांचागत सुविधाओं के लिए देवस्थानम बोर्ड का गठन किया. मुख्यमंत्री को इसका अध्यक्ष, संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री को उपाध्यक्ष और गढ़वाल मंडल के मंडालायुक्त को CEO की जिम्मेदारी दी गई. इस बोर्ड का वास्तविक मकसद यात्रा की व्यवस्था को बेहतर किया जाना है.
बोर्ड करेगा धामों की संपत्तियों का रखरखाव: उत्तराखंड के कई जिलों सहित अन्य प्रांतों के कई स्थानों पर कुल 60 ऐसे स्थान हैं, जहां पर बाबा केदारनाथ और बदरीनाथ के नाम भू-सम्पत्तियां दस्तावेजों में दर्ज हैं. हालांकि इन संपत्तियों का रखरखाव अभी तक बदरी-केदार मंदिर समिति करती थी लेकिन अब बोर्ड बन जाने के बाद इन संपत्तियों का रखरखाव देवस्थानम बोर्ड कर रहा है. बोर्ड भी इस बात को मानता है कि जो भू संपत्तियां मंदिर के नाम हैं वह मंदिर के ही नाम रहेंगी, न कि इस बोर्ड के नाम होंगी.