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जौनसार बावर में बिस्सू पर्व पर फुलियात की रौनक, हाथों में बुरांश लेकर चालदा महासू से मांगी मन्नत

उत्तराखंड का जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर अपनी अलग पौराणिक संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां बिस्सू पर्व काफी धूमधाम से मनाया जाता है. चालदा महासू मंदिर समाल्टा में भी ग्रामीणों ने हाथों में खुशहाली के प्रतीक बुरांश के फूल की लालिमा बिखेर बिस्सू यानी फुलियात की रौनक बढ़ाई. लोग ढोल दमाऊं की थाप और लोकगीतों पर थिरकते नजर आए. जानिए क्या है बिस्सू पर्व की खासियत...

Bissu Fuliyat festival
जौनसार बावर में बिस्सू पर्व
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Published : Apr 13, 2022, 4:11 PM IST

Updated : Apr 16, 2022, 5:12 PM IST

विकासनगरः जौनसार बावर में खुशहाली व समृद्धि के प्रतीक माने जाने बिस्सू पर्व का आगाज हो गया है. इस पर्व का जौनसार में खास महत्व है. पर्व के पहले दिन फुलियात पर्व मनाया जाता है, जिसमें लोग अपने इष्ट देवता को बुरांश के फूल अर्पित करते हैं. चालदा महासू मंदिर समाल्टा में भी बिस्सू पर फूलियात पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. 11 गांवों के लोगों ने फूल महासू देवता को अर्पित किये. वहीं, लोकगीतों पर ग्रामीण जमकर थिरके.

बता दें कि जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर पूरे विश्व में अपनी अनूठी लोक संस्कृति के लिए विख्यात है. जौनसार बावर का प्रमुख बिस्सू पर्व आज से शुरू हो गया है. जौनसार बावर में चालदा महासू देवता को इष्ट देवता के रूप में पूजा जाता है. इसी कड़ी में समाल्टा के चालदा महासू मंदिर में ग्रामीणों ने जंगल से बुरांश के फूल लाकर देवता को अर्पित कर खुशहाली की मन्नतें मांगी. इस मौके पर देवता के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचे.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड के जाख मेले में अंगारों पर नृत्य करते हैं यक्ष के पश्वा, महाभारत से जुड़ी है मान्यता

ग्रामीण ढोल दमाऊं के साथ हाथों में बुरांश के फूलों को लेकर नाचते गाते मंदिर पहुंचे. पर्व को लेकर ग्रामीणों में काफी उत्साह नजर आया. महिलाओं और पुरुषों ने मंदिर परिसर में देवता की स्तुति की. साथ ही हारूल, तांदी नृत्य भी किया. वहीं, बिस्सू पर्व का खास धनुष बाण (ठोऊड़ा) नृत्य देखने के लिए भी लोग उत्साहित नजर आए. करीब 67 साल बाद खत पट्टी के 11 गांवों का फूलियात पर्व देखने को मिला. इस दौरान अधिकांश स्थानीय लोग पारंपरिक वेशभूषा पहने दिखाई दिए.

कहा जाता है कि संक्रांति के दिन फुलियात पर्व बसंत से जुड़ा होने के चलते लोग नई उमंग और नए उत्साह के साथ लाल सुर्ख बुरांश के फूलों को अपने घरों के छतों पर लगाते हैं. जिसे शुभ माना जाता है. चालदा महासू मंदिर चालदा समिति के अध्यक्ष सरदार सिंह ने बताया कि बिस्सू के फुलियात पर्व को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. यह पर्व मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. पहले दिन मंदिरों में मनाया जाता है.

सूचना विभाग के उपनिदेशक कलम सिंह चौहान ने कहा कि 67 साल बाद खत वासियों को चालदा मंदिर में फुलियात मनाने का मौका मिला है. यह ऐतिहासिक क्षण है. वहीं, इतिहास के जानकार श्री चंद शर्मा ने बताया कि इस आधुनिक युग में भी हमारी जौनसारी संस्कृति कायम है. हमें गर्व है कि जौनसार बावर के लोग इस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मना रहे हैं. सभी लोगों को अपने पौराणिक पारंपरिक त्यौहारों में शिरकत करनी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी अपनी संस्कृति से रूबरू हो सके.

ये भी पढ़ेंः शिव की बारात में ऐसे नाचे हनुमान कि सब कुछ भूले!, कीजिए बजरंग बली के दक्षिण मुखी दर्शन

वहीं, लोक पंचायत के सदस्य भारत चौहान ने बताया कि बिस्सू की फुलियात पर्व पर ग्रामीण विभिन्न प्रकार के फूलों को देवता को अर्पित करते हैं. यह हर्ष और उल्लास का पर्व है. स्थानीय लोगों की मानें तो बिस्सू पर्व बसंत से जुड़ा होने के कारण बिस्सू फूलियात पर्व मनाया जाता है. यह सदियों से चली आ रही जनजातीय परंपरा है. यह हमारी संस्कृति है.

विकासनगरः जौनसार बावर में खुशहाली व समृद्धि के प्रतीक माने जाने बिस्सू पर्व का आगाज हो गया है. इस पर्व का जौनसार में खास महत्व है. पर्व के पहले दिन फुलियात पर्व मनाया जाता है, जिसमें लोग अपने इष्ट देवता को बुरांश के फूल अर्पित करते हैं. चालदा महासू मंदिर समाल्टा में भी बिस्सू पर फूलियात पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. 11 गांवों के लोगों ने फूल महासू देवता को अर्पित किये. वहीं, लोकगीतों पर ग्रामीण जमकर थिरके.

बता दें कि जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर पूरे विश्व में अपनी अनूठी लोक संस्कृति के लिए विख्यात है. जौनसार बावर का प्रमुख बिस्सू पर्व आज से शुरू हो गया है. जौनसार बावर में चालदा महासू देवता को इष्ट देवता के रूप में पूजा जाता है. इसी कड़ी में समाल्टा के चालदा महासू मंदिर में ग्रामीणों ने जंगल से बुरांश के फूल लाकर देवता को अर्पित कर खुशहाली की मन्नतें मांगी. इस मौके पर देवता के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचे.

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ग्रामीण ढोल दमाऊं के साथ हाथों में बुरांश के फूलों को लेकर नाचते गाते मंदिर पहुंचे. पर्व को लेकर ग्रामीणों में काफी उत्साह नजर आया. महिलाओं और पुरुषों ने मंदिर परिसर में देवता की स्तुति की. साथ ही हारूल, तांदी नृत्य भी किया. वहीं, बिस्सू पर्व का खास धनुष बाण (ठोऊड़ा) नृत्य देखने के लिए भी लोग उत्साहित नजर आए. करीब 67 साल बाद खत पट्टी के 11 गांवों का फूलियात पर्व देखने को मिला. इस दौरान अधिकांश स्थानीय लोग पारंपरिक वेशभूषा पहने दिखाई दिए.

कहा जाता है कि संक्रांति के दिन फुलियात पर्व बसंत से जुड़ा होने के चलते लोग नई उमंग और नए उत्साह के साथ लाल सुर्ख बुरांश के फूलों को अपने घरों के छतों पर लगाते हैं. जिसे शुभ माना जाता है. चालदा महासू मंदिर चालदा समिति के अध्यक्ष सरदार सिंह ने बताया कि बिस्सू के फुलियात पर्व को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. यह पर्व मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. पहले दिन मंदिरों में मनाया जाता है.

सूचना विभाग के उपनिदेशक कलम सिंह चौहान ने कहा कि 67 साल बाद खत वासियों को चालदा मंदिर में फुलियात मनाने का मौका मिला है. यह ऐतिहासिक क्षण है. वहीं, इतिहास के जानकार श्री चंद शर्मा ने बताया कि इस आधुनिक युग में भी हमारी जौनसारी संस्कृति कायम है. हमें गर्व है कि जौनसार बावर के लोग इस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मना रहे हैं. सभी लोगों को अपने पौराणिक पारंपरिक त्यौहारों में शिरकत करनी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी अपनी संस्कृति से रूबरू हो सके.

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वहीं, लोक पंचायत के सदस्य भारत चौहान ने बताया कि बिस्सू की फुलियात पर्व पर ग्रामीण विभिन्न प्रकार के फूलों को देवता को अर्पित करते हैं. यह हर्ष और उल्लास का पर्व है. स्थानीय लोगों की मानें तो बिस्सू पर्व बसंत से जुड़ा होने के कारण बिस्सू फूलियात पर्व मनाया जाता है. यह सदियों से चली आ रही जनजातीय परंपरा है. यह हमारी संस्कृति है.

Last Updated : Apr 16, 2022, 5:12 PM IST
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