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उत्तराखंड की जनता से हुआ भद्दा सरकारी मजाक, जिस कंपनी से खत्म हो गया था करार उसे काम देने का हुआ प्रचार - plan to make gram panchayats online

9 नवंबर 2020 को तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने ग्राम पंचायतों को ऑनलाइन करने के लिए कॉमन सर्विस सेंटर के जरिए एक महत्वपूर्ण योजना का शुभारंभ किया था. बड़ी बात ये है कि जिस कंपनी के साथ अनुबंध के जरिए पंचायतों को ऑनलाइन करने की योजना का शुभारंभ किया गया, उसका अनुबंध 8 महीने पहले ही खत्म हो चुका था.

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हाईटेक कॉमन सर्विस सेंटर योजना के उद्घाटन के नाम पर बड़ा धोखा
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Published : Aug 15, 2021, 10:13 PM IST

Updated : Aug 16, 2021, 12:12 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में जनता के साथ एक बड़ा मजाक सामने आया है. मामला तत्कालीन त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय का है. ये मामला सामने आने के बाद लोग खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि त्रिवेंद्र सरकार में उद्घाटन के नाम पर ये मजाक गैरसैंण में ही हुआ था. ग्राम पंचायतों को हाईटेक करने के नाम पर सरकार ने वाहवाही तो लूट ली. लेकिन अब जो सच्चाई ईटीवी भारत सबके सामने रखने जा रहा है वो उत्तराखंड में राज्य सरकार और नौकरशाही की पोल खोल कर रख देगा.

इसे जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कहें, राजनीतिक घोटाला कहें या नौकरशाही की बेलगाम लापरवाही. जो भी हो लेकिन उत्तराखंड के लोगों के साथ जो छलावा हुआ है, वह चिंता पैदा करने वाला है. दरअसल, प्रदेश में गैरसैंण से जनता के साथ एक बड़ा छलावा किया गया है. हैरानी की बात यह है कि जनता के साथ हुए इस मजाक को गैरसैंण से ही राज्य स्थापना दिवस के मौके पर किया गया. मामला 9 नवंबर साल 2020 का है, जब त्रिवेंद्र सरकार में ग्राम पंचायतों को ऑनलाइन करने के लिए कॉमन सर्विस सेंटर के जरिए एक महत्वपूर्ण योजना का शुभारंभ किया.

पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्रतिक्रिया.

पढ़ें-सोमवार को कैबिनेट की बैठक, सत्र से पहले कई विधेयकों को मिल सकती है मंजूरी

इस योजना के तहत ग्राम प्रधानों को ₹2500 कॉमन सर्विस सेंटर को देने के लिए अधिकृत किया गया. जिसका पैसा 14वें वित्त आयोग से ग्राम पंचायतों को मिलना था. योजना की शुरुआत राज्य स्थापना पर 2020 में गैरसैंण से की गई. सरकार द्वारा पंचायतों को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाए जाने को लेकर खूब प्रचार-प्रसार भी किया गया. वाहवाही भी लूटी गई. सरकार ने अपनी पीठ भी थपथपाई, लेकिन इस योजना को लेकर अब ईटीवी भारत ऐसा खुलासा करने जा रहा है जिसे सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे.

पढ़ें- उत्तराखंड पुलिस के 'जेम्स बॉन्ड' का सम्मान', मेडल फॉर एक्सीलेंस इन इन्वेस्टिगेशन' अवॉर्ड

दरअसल, 9 नवंबर 2020 को जिस कंपनी के साथ अनुबंध के जरिए पंचायतों को ऑनलाइन करने की योजना का शुभारंभ किया गया था, वह अनुबंध 8 महीने पहले यानी 31 मार्च 2020 को ही खत्म हो चुका था. यानी गैरसैंण से तत्कालीन राज्य मंत्री धन सिंह रावत द्वारा जिस योजना का शुभारंभ किया गया, उसका धरातल पर कहीं अस्तित्व ही नहीं था. खास बात यह है कि इस योजना का शुभारंभ तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से करवाया जाना था, लेकिन समय की व्यस्तता के चलते उन्होंने यह जिम्मेदारी धन सिंह को सौंपी थी.

उद्घाटन के नाम पर इस बड़े गड़बड़झाले को लेकर जब ईटीवी भारत ने त्रिवेंद्र सिंह रावत से पूछा तो उन्होंने कहा कि जो सवाल ईटीवी भारत कर रहा है वह वाकई बेहद गंभीर हैं. यदि ऐसा हुआ है तो इस पर कार्रवाई होनी चाहिए. उन्होंने कहा इस संबंध में वे मुख्यमंत्री से भी बातचीत करेंगे.

पढ़ें- PM मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट कॉर्बेट रेस्क्यू सेंटर तैयार, अक्टूबर में उद्घाटन, ये है खासियत

क्या थी योजना: दरअसल, इस योजना को 662 ई-पंचायत सेवा केंद्र के रूप में शुरू किया गया था. विभिन्न प्रमाण पत्र बनाने को लेकर पहले तक यह सुविधाएं जिला मुख्यालय और तहसीलों में मिल रही थी. लेकिन पंचायतों तक भी इस सुविधा को देने के लिए कॉमन सर्विस सेंटर और भारत सरकार के उपक्रम एसपीवी के साथ अनुबंध किया गया. इस दिशा में उत्तराखंड पंचायती राज विभाग ने भी 662 न्याय पंचायतों में कॉमन सर्विस सेंटर खोलने के लिए अनुबंध किया, 31 मार्च 2020 में ही खत्म हो चुका था, लेकिन 8 महीने बाद जाकर इस योजना का शुभारंभ कर दिया गया.

पढ़ें- 'जामताड़ा' के साइबर अपराधी समेत पुणे से दो अरेस्ट, लोगों को लगा चुके करोड़ों की चपत

ग्राम पंचायतों में खोले गए कॉमन सर्विस सेंटर के जरिए ई ग्राम स्वराज पोर्टल, एम एक्शन सॉफ्ट मोबाइल एप्लीकेशन, स्वच्छ पंचायत डैशबोर्ड, सीएम डैशबोर्ड, जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र परिवार रजिस्टर की नकल जैसी सभी सेवाएं मुहैया कराई जानी थी, लेकिन यह सभी सुविधाएं पंचायतों की तरफ से ढाई हजार रुपए देकर कॉमन सर्विस सेंटर से ऑनलाइन कराई जानी थी, लेकिन 14वें वित्त आयोग के 8 महीने बाद शुरू हुई इस योजना में अनुबंध का रिन्यूअल नहीं कराया गया. जिससे इस योजना के शुभारंभ का महत्व ही खत्म हो गया.

पंचायती राज में पंचायतों को हाईटेक करने के नाम पर उद्घाटन करवाने से जुड़ा यह मामला विभाग की तरफ से दबाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई. अनुबंध खत्म होने के 8 महीने बाद योजना शुरू की गई, अब 9 महीने बाद विभाग के उप निदेशक मनोज कुमार तिवारी एक आदेश जारी करते हैं, जिसमें वह कहते हैं कि 31 मार्च 2020 को कॉमन सर्विस सेंटर के साथ अनुबंध खत्म कर दिया गया था, लिहाजा सभी अधिकारियों को इस को लेकर सूचित कर दिया जाए.

पढ़ें- World Elephant Day: कॉर्बेट में बढ़ा हाथियों का कुनबा, 'जंगल के भगवान' के लिए कम पड़ रही जगह

जब ईटीवी भारत ने इस आदेश को लेकर पंचायती राज विभाग के अधिकारी से बात की तो उन्होंने इस मामले पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया. पंचायती राज विभाग के ज्वॉइंट डायरेक्टर राजीव नाथ त्रिपाठी कहते हैं कि योजना का पैसा 14वें वित्त आयोग से आना था. 15वें वित्त आयोग में इसको नवीनीकरण नहीं किया गया, लिहाजा इस शुभारंभ का कोई भी औचित्य नहीं रहा.

चौंकाने वाली बात यह है कि अधिकारियों को अनुबंध का पता भी करीब 1 साल बाद चला. 1 साल तक अधिकारियों को यह पता ही नहीं चला कि इस योजना के लिए जरूरी अनुबंध तो 1 साल पहले ही खत्म हो चुका है.

पढ़ें- International Tiger Day: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हैं देश के सबसे ज्यादा बाघ

बता दें कि इस विभाग में निदेशक और सचिव की जिम्मेदारी आईएएस हरीश चंद्र सेमवाल निभा रहे थे. अधिकारी बताते हैं कि यह सब उन्हीं के द्वारा किया जा रहा था. साफ है कि इस मामले में या तो अधिकारियों ने सरकार को गुमराह किया या फिर इसमें कोई बड़ा गड़बड़झाला किया गया है. अधिकारी यह भी कहते हैं कि इस योजना का विरोध ग्राम प्रधान कर रहे थे लिहाजा इस सूचना के जरिए सभी प्रधानों को भी सूचित कर दिया गया है.

देहरादून: उत्तराखंड में जनता के साथ एक बड़ा मजाक सामने आया है. मामला तत्कालीन त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय का है. ये मामला सामने आने के बाद लोग खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि त्रिवेंद्र सरकार में उद्घाटन के नाम पर ये मजाक गैरसैंण में ही हुआ था. ग्राम पंचायतों को हाईटेक करने के नाम पर सरकार ने वाहवाही तो लूट ली. लेकिन अब जो सच्चाई ईटीवी भारत सबके सामने रखने जा रहा है वो उत्तराखंड में राज्य सरकार और नौकरशाही की पोल खोल कर रख देगा.

इसे जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कहें, राजनीतिक घोटाला कहें या नौकरशाही की बेलगाम लापरवाही. जो भी हो लेकिन उत्तराखंड के लोगों के साथ जो छलावा हुआ है, वह चिंता पैदा करने वाला है. दरअसल, प्रदेश में गैरसैंण से जनता के साथ एक बड़ा छलावा किया गया है. हैरानी की बात यह है कि जनता के साथ हुए इस मजाक को गैरसैंण से ही राज्य स्थापना दिवस के मौके पर किया गया. मामला 9 नवंबर साल 2020 का है, जब त्रिवेंद्र सरकार में ग्राम पंचायतों को ऑनलाइन करने के लिए कॉमन सर्विस सेंटर के जरिए एक महत्वपूर्ण योजना का शुभारंभ किया.

पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्रतिक्रिया.

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इस योजना के तहत ग्राम प्रधानों को ₹2500 कॉमन सर्विस सेंटर को देने के लिए अधिकृत किया गया. जिसका पैसा 14वें वित्त आयोग से ग्राम पंचायतों को मिलना था. योजना की शुरुआत राज्य स्थापना पर 2020 में गैरसैंण से की गई. सरकार द्वारा पंचायतों को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाए जाने को लेकर खूब प्रचार-प्रसार भी किया गया. वाहवाही भी लूटी गई. सरकार ने अपनी पीठ भी थपथपाई, लेकिन इस योजना को लेकर अब ईटीवी भारत ऐसा खुलासा करने जा रहा है जिसे सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे.

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दरअसल, 9 नवंबर 2020 को जिस कंपनी के साथ अनुबंध के जरिए पंचायतों को ऑनलाइन करने की योजना का शुभारंभ किया गया था, वह अनुबंध 8 महीने पहले यानी 31 मार्च 2020 को ही खत्म हो चुका था. यानी गैरसैंण से तत्कालीन राज्य मंत्री धन सिंह रावत द्वारा जिस योजना का शुभारंभ किया गया, उसका धरातल पर कहीं अस्तित्व ही नहीं था. खास बात यह है कि इस योजना का शुभारंभ तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से करवाया जाना था, लेकिन समय की व्यस्तता के चलते उन्होंने यह जिम्मेदारी धन सिंह को सौंपी थी.

उद्घाटन के नाम पर इस बड़े गड़बड़झाले को लेकर जब ईटीवी भारत ने त्रिवेंद्र सिंह रावत से पूछा तो उन्होंने कहा कि जो सवाल ईटीवी भारत कर रहा है वह वाकई बेहद गंभीर हैं. यदि ऐसा हुआ है तो इस पर कार्रवाई होनी चाहिए. उन्होंने कहा इस संबंध में वे मुख्यमंत्री से भी बातचीत करेंगे.

पढ़ें- PM मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट कॉर्बेट रेस्क्यू सेंटर तैयार, अक्टूबर में उद्घाटन, ये है खासियत

क्या थी योजना: दरअसल, इस योजना को 662 ई-पंचायत सेवा केंद्र के रूप में शुरू किया गया था. विभिन्न प्रमाण पत्र बनाने को लेकर पहले तक यह सुविधाएं जिला मुख्यालय और तहसीलों में मिल रही थी. लेकिन पंचायतों तक भी इस सुविधा को देने के लिए कॉमन सर्विस सेंटर और भारत सरकार के उपक्रम एसपीवी के साथ अनुबंध किया गया. इस दिशा में उत्तराखंड पंचायती राज विभाग ने भी 662 न्याय पंचायतों में कॉमन सर्विस सेंटर खोलने के लिए अनुबंध किया, 31 मार्च 2020 में ही खत्म हो चुका था, लेकिन 8 महीने बाद जाकर इस योजना का शुभारंभ कर दिया गया.

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ग्राम पंचायतों में खोले गए कॉमन सर्विस सेंटर के जरिए ई ग्राम स्वराज पोर्टल, एम एक्शन सॉफ्ट मोबाइल एप्लीकेशन, स्वच्छ पंचायत डैशबोर्ड, सीएम डैशबोर्ड, जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र परिवार रजिस्टर की नकल जैसी सभी सेवाएं मुहैया कराई जानी थी, लेकिन यह सभी सुविधाएं पंचायतों की तरफ से ढाई हजार रुपए देकर कॉमन सर्विस सेंटर से ऑनलाइन कराई जानी थी, लेकिन 14वें वित्त आयोग के 8 महीने बाद शुरू हुई इस योजना में अनुबंध का रिन्यूअल नहीं कराया गया. जिससे इस योजना के शुभारंभ का महत्व ही खत्म हो गया.

पंचायती राज में पंचायतों को हाईटेक करने के नाम पर उद्घाटन करवाने से जुड़ा यह मामला विभाग की तरफ से दबाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई. अनुबंध खत्म होने के 8 महीने बाद योजना शुरू की गई, अब 9 महीने बाद विभाग के उप निदेशक मनोज कुमार तिवारी एक आदेश जारी करते हैं, जिसमें वह कहते हैं कि 31 मार्च 2020 को कॉमन सर्विस सेंटर के साथ अनुबंध खत्म कर दिया गया था, लिहाजा सभी अधिकारियों को इस को लेकर सूचित कर दिया जाए.

पढ़ें- World Elephant Day: कॉर्बेट में बढ़ा हाथियों का कुनबा, 'जंगल के भगवान' के लिए कम पड़ रही जगह

जब ईटीवी भारत ने इस आदेश को लेकर पंचायती राज विभाग के अधिकारी से बात की तो उन्होंने इस मामले पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया. पंचायती राज विभाग के ज्वॉइंट डायरेक्टर राजीव नाथ त्रिपाठी कहते हैं कि योजना का पैसा 14वें वित्त आयोग से आना था. 15वें वित्त आयोग में इसको नवीनीकरण नहीं किया गया, लिहाजा इस शुभारंभ का कोई भी औचित्य नहीं रहा.

चौंकाने वाली बात यह है कि अधिकारियों को अनुबंध का पता भी करीब 1 साल बाद चला. 1 साल तक अधिकारियों को यह पता ही नहीं चला कि इस योजना के लिए जरूरी अनुबंध तो 1 साल पहले ही खत्म हो चुका है.

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बता दें कि इस विभाग में निदेशक और सचिव की जिम्मेदारी आईएएस हरीश चंद्र सेमवाल निभा रहे थे. अधिकारी बताते हैं कि यह सब उन्हीं के द्वारा किया जा रहा था. साफ है कि इस मामले में या तो अधिकारियों ने सरकार को गुमराह किया या फिर इसमें कोई बड़ा गड़बड़झाला किया गया है. अधिकारी यह भी कहते हैं कि इस योजना का विरोध ग्राम प्रधान कर रहे थे लिहाजा इस सूचना के जरिए सभी प्रधानों को भी सूचित कर दिया गया है.

Last Updated : Aug 16, 2021, 12:12 PM IST

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