देहरादून: बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तारीखों का एलान हो गया है. इस साल 30 अप्रैल को शुभ मुहूर्त में बदरीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे. वहीं कपाट खुलने के बाद मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुल जाएगा. वहीं आज हम इस धाम से जुड़ी एक रोचक परंपरा को बताने जा रहे हैं, जो अनूठी परंपरा सदियों से चली आ रही है. जिसका निर्वहन वर्तमान में भी पूरी शिद्दत के साथ होता है.
विश्वविख्यात बदरीनाथ धाम की धार्मिक और पौराणिक रुप में कई मान्यताएं हैं. लेकिन यहां हम एक ऐसी अनूठी परंपरा का जिक्र कर रहे हैं, जो सदियों से चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि ये परंपरा बदरीनाथ धाम की रखवाली करती है. हिमालय की विहंगम पहाड़ियों के बीच बसे बदरीनाथ धाम को बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है. इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. बदरीनाथ मंदिर की पूजा पद्धति अन्य मंदिरों से भिन्न है. पूजा-अर्चना करने के तरीके से अलावा यहां एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है, जो सदियों से चली आ रही है. ये परंपराएं अपने-आप में बेहद अनोखी हैं.
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मंदिर की रखवाली का राज
चार तालों का मंदिर की रखवाली का राजबदरीनाथ मंदिर के कपाट में चार ताले लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि ये चार ताले मंदिर की रखवाली करते हैं. शीतकाल में जब धाम के कपाट बंद किए दिए जाते हैं, उस दौरान मंदिर के कपाट पर अलग-अलग चार ताले लगाए जाते हैं. इन तालों की चाबियां एक दूसरे से भिन्न होती हैं. जब बदरीनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं, उस दौरान मंदिर के कपाटों पर लगे चार तालों की चाबियों को लेकर संबंधित प्रतिनिधि बदरीनाथ मंदिर में मौजूद होते हैं. प्रतिनिधियों के मौजूदगी में ही एक-एक करके इन चार तालों को खोला जाता है.
सुरक्षित रखी जाती हैं चाबियां
बदरीनाथ मंदिर के कपाट पर लगने वाला पहला ताला टिहरी के महाराजा का प्रतिनिधि लगाता है. दूसरा ताला डिमरी समाज का प्रतिनिधि लगाता है. ऐसे ही तीसरा ताला पांडुकेश्वर हक-हकूकधारियों के प्रतिनिधि द्वारा लगाया जाता है. जबकि चौथा ताला बदरी-केदार मंदिर समिति का होता है, इनकी चाबी बदरी-केदार मंदिर समिति के प्रतिनिधि के पास सुरक्षित रखी जाती है.