देहरादून: हिमालय में लगातार आ रहे एवलॉन्च एक बड़ी चेतावनी दे रहा है. नेपाल से लेकर उत्तराखंड तक एक सप्ताह के भीतर आये लगातार 5 एवलॉन्च में कई लोगों की जान चली गई. ग्लेशियर वैज्ञानिकों के अनुसार ये सारी घटनाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं. इन घटनाओं को बिल्कुल भी हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए.
हिमालय में बार-बार एवलॉन्च: उत्तरकाशी द्रौपदी के डांडा में आए एवलॉन्च की हिमालय क्षेत्र की पहली घटना नहीं है. पिछले एक सप्ताह में हिमालय में कई ऐसे एवलॉन्च आ चुके हैं. ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल के अनुसार हिमालय में इस तरह के एवलॉन्च का आना सामान्य बात है. अक्सर इस तरह के एवलॉन्च हिमालय में आते रहते हैं, लेकिन यह इंसानी पहुंच से दूर होते हैं. इसलिए इनके बारे में ज्यादा पढ़ा सुना नहीं जाता है. हिमालय में लगातार आ रहे हैं एवलॉन्च नेपाल से लेकर उत्तराखंड तक रिपोर्ट किए गए हैं. यह एवलॉन्च हिमालय में अक्सर आते रहते हैं.
नेपाल में आए एवलॉन्च में 2 की मौत: उच्च हिमालय क्षेत्र में लगातार बर्फीले तूफान और हिमस्खलन हो रहे हैं. पिछले 1 सप्ताह में हिमालय क्षेत्र में कई एवलॉन्च आये है. पिछले सप्ताह नेपाल स्थित एवरेस्ट के बेस कैंप मानसलू में आये एवलॉन्च में दो लोगों की मौत हो गई. वहीं, इसके बाद केदारनाथ में लगातार तीन एवलॉन्च देखने को मिला. उसके बाद अब द्रौपदी के डांडा में एवलॉन्च आने के बाद इतनी बड़ी घटना हो गई. ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल का कहना है कि यह घटनायें बेहद अलार्मिंग है. इन घटनाओं से हमें सीखने और सबक लेने की जरूरत है.
हिमालय में इतने एवलॉन्च क्यों: शोधकर्ताओं का कहना है कि हिमालय क्षेत्रों में एवलॉन्च आना एक सामान्य घटना है. वैज्ञानिकों ने इसकी वजह इस बार सामान्य से ज्यादा हुई बरसात बताई है. उन्होंने कहा इस बार उत्तराखंड में मानसून सीजन में सामान्य से 22 फीसदी ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गयी है. जिसकी वजह से निचले इलाकों में बरसात होने पर उच्च हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी उतनी ही मात्रा में ज्यादा होती है. जिसके बाद हिमालय के ग्लेशियरों पर ताजी बर्फ की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. ग्लेशियर पर बर्फ केयरिंग कैपेसिटी से ज्यादा होने पर यह बर्फ नीचे गिरने लगती है, जो एवलॉन्च का रूप ले लेती है.
डॉ डीपी डोभाल ने कहा हिमालय पर लगातार आ रहे इन एवलॉन्च की वजह इस सीजन में सामान्य से हुई ज्यादा बारिश है. यही वजह है कि लगातार उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इस तरह के एवलॉन्च देखने को मिल रहे हैं. जो एवलॉन्च इंसानी बसावट के आसपास आते हैं, वह रिपोर्ट किए जाते हैं. इंसानी बसावट से दूर भी उच्च हिमालय क्षेत्रों में इस तरह के कई एवलॉन्च आते रहते हैं.
हाई पोस्ट पर तैनात सैनिकों को अलर्ट रहने की जरुरत: डीपी डोभाल बताते हैं कि हिमालय में लगातार आ रहे इन बदलावों से हमें सीखने की जरूरत है. हिमालय संकेत दे रहा है, जिसे समझने की जरूरत है. हिमालय में लगातार आ रहे ये एवलॉन्च चेतावनी दे रहे हैं. अगर आप पर्वतारोहण कर रहे हैं तो इस वक्त पर्वतारोहण मत कीजिए. साथ ही शोधकर्ताओं का कहना है कि हाई पोस्ट या फिर बर्फीले इलाकों में तैनात सेना के जवानों को भी इस अलार्मिंग परिस्थिति को समझना होगा.
वैज्ञानिकों की सरकार से अपील: हिमालय शोधकर्ता वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल ने कहा हिमालय में लगातार हो रहे बदलावों पर सरकार को भी ध्यान देने की जरूरत है. जिस तरह से लगातार हिमस्खलन हो रहे हैं, उस पर सरकार को गाइडलाइन, उचित एडवाइजरी, सेफ्टी मेजरमेंट के साथ ही उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय गतिविधि पर ध्यान देने की जरूरत है. द्रौपदी के डांडा में हुई एवलॉन्च की घटना पर डोभाल ने कहा वहां पर नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग के ट्रेनी दल को भेजने से पहले मौसम का पूर्वानुमान लेना चाहिए था. लगातार मौसम खराब था, उसके बावजूद भी वहां पर शिक्षकों को भेजा गया, जो अपने आप में एक सबसे बड़ी लापरवाही है.
जुलाई से सितंबर के बीच पर्वतारोहण जोखिम भरा: जानकारों का कहना है कि मानसून सीजन के बाद बर्फीले इलाकों में जाना जोखिम भरा है. इस समय यहां पर बर्फ काफी ताजी रहती है. यह बर्फ मानसून सीजन की होती है, लिहाजा यह बर्फ बेहद हल्की और बहने वाली भी होती है. जिसकी वजह से लगातार एवलॉन्च ट्रिगर होते हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि सर्दियों में पड़ने वाली बर्फ ज्यादा सुरक्षित होती है. क्योंकि वह भारी और मजबूत पकड़ बनाती है. मानसून सीजन में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हुई बर्फबारी बेहद हल्की और पिघलने वाली होती है. इसलिए जुलाई से लेकर सितंबर तक बर्फीले इलाकों में पर्वतारोहण बेहद जोखिम भरा होता है. इस संबंध में आपदा प्रबंधन विभाग के अलावा सरकार को भी एडवाइजरी जारी करनी चाहिए.