देहरादून: 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी अशोक कुमार उत्तराखंड के अगले पुलिस महानिदेशक बनेंगे. DGP अनिल कुमार रतूड़ी आगामी 30 नवंबर को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं. IPS अशोक कुमार को उत्तराखंड पुलिस के साथ-साथ केंद्रीय सुरक्षा बलों (बीएसएफ और सीआरपीएफ) के साथ काम करने का अनुभव है. आगामी 30 नवंबर 2020 को उत्तराखंड पुलिस की कमान ऐसे आईपीएस अधिकारी को मिलने जा रही है, जिन्होंने अपने पुलिस सेवाकाल के पहले दिन से जनता को राहत दिलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. हालांकि इसके लिए उनको कई बार अपने ही विभाग के कुछ लोगों से लोहा भी लेना पड़ा. उन्होंने कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी और मेहनत से अपने को साबित कर दिया.
इलाहाबाद में हुई पहली पोस्टिंग
1989 आईपीएस बैच से पास आउट करने के बाद अशोक कुमार की पहली पोस्टिंग 1989 में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुई. वह दौर राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद से गुजर रहा था. उस दौरान अयोध्या में कानून व शांति बहाली के लिए उन्होंने काफी कार्य किया. इस दरमियान वह पूरे 10 दिन तक 24 घंटे कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कार्य करते रहे.
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चुनौतियों को किया पार
बाबरी मस्जिद विवाद के बाद उनकी पोस्टिंग अलीगढ़, चमोली, मथुरा, शाहजहांपुर, मणिपुर, रामपुर, नैनीताल और हरिद्वार जैसे स्थानों में हुई, जो तत्कालीन समय में उत्तर प्रदेश का हिस्सा थे. इन सभी पोस्टिंग के दौरान उन्हें बेहद चुनौतीपूर्ण असाइनमेंट दिए गए. इसमें सबसे बड़ा और कठिन असाइनमेंट था उत्तराखंड में कुमाऊं के तराई क्षेत्र में तेजी से पनपता पंजाब का आतंकवाद. ऐसे में सबसे बड़े टास्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए उन्होंने तराई से आतंकवाद को समाप्त करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी और न सिर्फ उग्रवाद का सफाया किया, बल्कि सैकड़ों लोगों का जीवन बचाने के साथ ही कई आतंकवादियों को सरेंडर भी करवाया. आईपीएस अशोक कुमार उत्तराखंड में आईजी गढ़वाल, आईजी कुमाऊं जैसे अहम पदों पर रहकर पुलिसिंग की बेहतरीन जिम्मेदारी को भी सफलता से निभा चुके हैं.
बेदाग छवि के लिए जाने जाते हैं अशोक कुमार
आईपीएस अशोक कुमार ने केंद्रीय सेवाएं देते हुए सीआरपीएफ और बीएसएफ में आईजी के पद पर बेहतरीन कार्य किया. केंद्र की प्रतिनियुक्ति के दौरान उन्हें कई बार नक्सल चुनौती का भी सामना करना पड़ा. इसके बावजूद उन्होंने बीएसएफ में रहते हुए पंजाब फ्रंटियर पर भारत-पाकिस्तान सीमा में घुसपैठ को रोकने के साथ ही वृक्ष की तस्करी पर प्रतिबंध लगाने के लिए बेहतरीन कार्य किया.
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मिल चुके हैं ये सम्मान
वर्ष 2001 में संघर्षग्रस्त कोसोवो में सेवा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र पदक प्राप्त करने में सफलता हासिल की. इतना ही नहीं 2006 में आईपीएस अशोक कुमार को उनके बेहतरीन पुलिस सराहनीय सेवाओं के लिए भारतीय पुलिस पदक से सम्मानित किया गया. वर्ष 2013 में उन्हें गणतंत्र दिवस के अवसर पर विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक से भी सम्मानित किया गया. आईपीएस अशोक कुमार आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्रों द्वारा राष्ट्रीय विकास पुरस्कार के लिए 3 साल तक आईआईटी दिल्ली के सीनेट सदस्य रहे.
किताब भी लिख चुके हैं DG अशोक कुमार
आईपीएस अशोक कुमार ने 'खाकी में इंसान पुस्तक' नाम से एक किताब भी लिखी जो बेस्टसेलर होने के साथ ही कई अवार्ड भी जीत चुकी है. इस पुस्तक में अशोक कुमार ने जिला पुलिसिंग में होने वाले पुलिस के क्रियाकलापों और कई तरह के अनछुए पहलुओं को उजागर किया. पुस्तक का बंगाली और गुजराती में भी अनुवाद होने के साथ ही मराठी में भी पुस्तक को अनुवादित किया गया है. इतना ही नहीं बेस्ट सेलिंग होने के चलते 'खाकी में इंसान पुस्तक' को ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट MHA द्वारा गोविंद बल्लभ पंत पुरस्कार भी दिया गया.
आईपीएस अशोक कुमार ने भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौतियां शीर्षक वाली तीन अन्य पुस्तकें भी लिखी हैं. इनमें 'सिविल सेवाओं को तोड़ना गुप्त' और 'सिविल सेवाओं के लिए नैतिकता' प्रमुख तौर पर रही है.
आईपीएस अशोक कुमार की सराहनीय पहल के चलते उत्तराखंड में भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए मासूम गरीब बच्चों को समाज की मुख्यधारा में जोड़ने के लिए कई अभियान चलाए. वहीं वर्षों पहले अपनों से बिछड़ने बच्चे और नौनिहालों को परिवारों से मिलाने के लिए ऑपरेशन स्माइल के तहत बड़ी सफलता प्राप्त की.