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केजरीवाल का मैदानी सीटों पर बड़ा दांव, कांग्रेस की कमजोरी, बीजेपी की एंटी-इनकंबेंसी से उम्मीदें - Aam Aadmi Partys focus on plain districts

उत्तराखंड के चार मैदानी जिलों में 36 विधानसभा सीटें हैं. जबकि 9 पहाड़ी जिलों में मात्र 34 सीटें ही हैं. इसी समीकरण को देखते हुए आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में मैदानी सीटों पर बड़ा सियासी दांव खेल सकती है. अरविंद केजरीवाल के दौरों को अगर देखें तो समझा जा सकता है कि आप का ध्यान अभी मैदानी जिलों की विधानसभा सीटों पर है, जिसे वे प्रदेश में निर्णायक भूमिका में आ सकते हैं.

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केजरीवाल का मैदानी सीटों पर बड़ा दांव
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Published : Sep 22, 2021, 10:02 PM IST

Updated : Sep 23, 2021, 12:08 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी अपने खास एजेंडे के तहत चुनावी यात्रा को शुरू कर चुकी है. यूं तो पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं. लेकिन मौजूदा पार्टी की गतिविधियों से यह जाहिर है कि अरविंद केजरीवाल का फोकस केवल मैदानी विधानसभा क्षेत्रों पर ही है. जाहिर है कि पार्टी भाजपा की एंटी इनकंबेंसी और प्रदेश में कांग्रेस की कमजोरी का फायदा लेकर बसपा के वोट बैंक पर भी सेंधमारी करना चाहती है.

उत्तराखंड में मतदान के लिहाज से देखें तो राज्य स्थापना के बाद से ही प्रदेश में मतदान का प्रतिशत हमेशा करीब 55% से 68% तक रहा है. राज्य के 13 जिलों में 4 जिले मैदानी माने जाते हैं. मजे की बात यह है कि इन 4 जनपदों में ही विधानसभा सीटों की संख्या पूर्ण बहुमत के आंकड़ों को पूरा कर लेती है. जबकि बाकी 9 जिले मिलकर भी बहुमत का आंकड़ा विधानसभा सीटों के लिहाज से पूरा नहीं कर पाते. राज्य में अब तक 4 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. कांग्रेस और भाजपा प्रदेश में बारी-बारी से सत्ता संभाल चुके हैं.

केजरीवाल का दांव

पढ़ें- उत्तराखंड में AAP का दूसरा चुनावी वादा, केजरीवाल ने प्रदेशवासियों को दी 6 गारंटी

आंकड़े जाहिर करते हैं कि 2017 के चुनाव को छोड़ दिया जाए तो बाकी तीन चुनाव में भाजपा और कांग्रेस का मत प्रतिशत काफी करीब रहा. आम आदमी पार्टी अब अपने समीकरणों के लिहाज से इस पुराने आंकड़े को बदल देना चाहती है. मौजूदा परिस्थितियों के लिहाज से साफ है कि आम आदमी पार्टी का पूरा फोकस मैदान की विधानसभा सीटों पर है. इसकी बड़ी वजह मौजूदा राजनीतिक समीकरण और उत्तराखंड के चुनाव को लेकर पुराने समीकरणों को माना जा सकता है.

पढ़ें-हल्द्वानी में केजरीवाल के रोड शो में 'तिरंगे' के अपमान का आरोप, जांच के आदेश

दरअसल, प्रदेश में मैदान की सीटों पर एक समय बसपा का भी दबदबा था. जिसे 2017 में भाजपा ने खत्म कर दिया. आम आदमी पार्टी अब प्रदेश में तीसरे मोर्चे के रूप में कांग्रेस को पिछड़ाना चाहती है. अब ये कैसे होगा पहले इसके लिए पिछले चुनाव के राजनीतिक समीकरणों को समझिए...

  • साल 2002 में राज्य में बीएसपी ने 7 सीटें मैदानी विधानसभाओं से जीती. तब उसका मत प्रतिशत 10.23 प्रतिशत रहा था. बीएसपी ने 5 सीटें हरिद्वार और 2 सीटें उधम सिंह नगर जिले से जीती थी. मैदानी सीटों पर भाजपा और कांग्रेस को छोड़ दें तो समाजवादी पार्टी और निर्दलीयों ने 32% से ज्यादा वोट हासिल किए. ये आंकड़ा बहुमत पाने वाली कांग्रेस से भी ज्यादा रहा.
  • साल 2007 में बहुजन समाज पार्टी ने मैदान की 8 सीटें जीत कर 11.76% वोट पाए. कांग्रेस और भाजपा को छोड़ दिया जाए तो बाकी दलों ने मैदानी विधानसभाओं से करीब 25% वोट पाए. इन्होंने एक निर्णायक भूमिका अदा की.
  • 2012 में बीएसपी ने 3 सीटें लेकर 12.12% वोट हासिल किए. इस तरह मैदानी जिलों में कांग्रेस और भाजपा को छोड़कर करीब 18 से 20% वोट बाकी दलों ने हासिल किए.
  • 2017 में भाजपा ने मोदी लहर के चलते 57 सीटों के साथ 46. 5% मत हासिल किये. इस तरह बाकी दलों का सूपड़ा साफ हो गया.

आंकड़े जाहिर करते हैं कि मौजूदा परिस्थितियों के हिसाब से आम आदमी पार्टी प्रदेश में कांग्रेस की कमजोरी और मैदानी जिलों में भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का फायदा लेना चाहती है. उधम सिंह नगर और हरिद्वार के किसानों को साथ लेने की कोशिश के साथ मुस्लिम और दलित समाज को साधने का केजरीवाल लगातार प्रयास कर रहे हैं.

पहाड़ पर ब्राह्मणों और ठाकुरों का वर्चस्व होने के कारण आम आदमी पार्टी की वहां पहुंच बनाना मुश्किल है. उत्तराखंड के चार मैदानी जिलों में 36 विधानसभा सीटें हैं जबकि 9 पहाड़ी जिलों में मात्र 34 सीटें ही हैं.

पढ़ें- CM केजरीवाल ने बेरोजगारी भत्ता देने का किया ऐलान, बोले- 6 महीने में दूंगा एक लाख नौकरी

प्रदेश में माना जा रहा है कि केजरीवाल बहुजन समाजवादी पार्टी की तरह पहाड़ पर चढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे. इसके पीछे भाजपा और कांग्रेस की पहाड़ों पर मजबूत पकड़ को भी वजह माना जा रहा है. आकलन किया जा रहा है कि मैदानी जिलों पर पकड़ बनाकर उधम सिंह नगर, नैनीताल और हरिद्वार में आम आदमी पार्टी जातीय समीकरण को साधकर मुस्लिम, दलित और किसानों को अपनी तरफ लाना चाहती है.

यदि ऐसा हुआ तो आम आदमी पार्टी जानती है कि प्रदेश में सरकार बनाने के लिए उनकी पार्टी ही निर्णायक भूमिका में होगी. हालांकि कांग्रेस इससे इत्तेफाक नहीं रखती. कांग्रेस का मानना है कि आम आदमी पार्टी पहाड़ पर ही नहीं बल्कि मैदान में भी कुछ खास नहीं कर पाएगी.

पढ़ें- विवादों में घिरी दून SSP जन्मेजय की ट्रांसफर लिस्ट, पारदर्शी नीति के उल्लंघन का आरोप

वैसे आम आदमी पार्टी की उत्तराखंड में एंट्री को कांग्रेस के लिए भी खतरा बताया जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि आम आदमी पार्टी का पहला टारगेट भाजपा के मुकाबले खुद को लाना है. उधर वोट बैंक के लिहाज से देखें तो बस्तियों और मुस्लिमों के साथ ही दलितों को भी कांग्रेस से छीन कर आम आदमी पार्टी खुद में मिलाना चाहती है, जो जाहिर तौर पर कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण होगा.

हरिद्वार जिले की 11 सीटें और उधम सिंह नगर की 9 सीटों के साथ ही देहरादून की 4 सीट और नैनीताल की 2 सीटों पर दलित और मुस्लिमों की संख्या निर्णायक स्थिति में दिखाई देती है. इन सभी समीकरणों को आम आदमी पार्टी की तरफ से समझा और साधा जा रहा है.

पढ़ें- 10 साल में उत्तराखंड को बनाएंगे नंबर 1, CM धामी ने खिलाड़ियों को किया सम्मानित

आम आदमी पार्टी इस बात को फिलहाल नहीं मान रही कि वह पहाड़ की जगह मैदानों की तरफ रुख करना ज्यादा पसंद कर रही है. आम आदमी पार्टी के नेता कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल ने 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. लिहाजा सभी सीटों पर पार्टी के नेता बराबर फोकस कर रहे हैं.

पढ़ें- प्रदेश में घोषणाओं पर छिड़ी राजनीतिक बहस, विपक्ष को CM के स्लोगन पर आपत्ति

उत्तराखंड में दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल चुनावी रूप से तीन दौरे कर चुके हैं. जिसमें से दो बार केजरीवाल देहरादून आए हैं तो एक बार उन्होंने हल्द्वानी में चुनावी यात्रा का नेतृत्व किया है. उनकी उत्तराखंड में एंट्री की यही रणनीति उनके मैदान को लेकर प्राथमिकता को जाहिर भी करता है.

हालांकि प्रदेश में मैदानी जिलों में पहाड़ के वोटर्स की अच्छी खासी संख्या है, लिहाजा उन्होंने मुख्यमंत्री के तौर पर पार्टी के लिए चेहरा कर्नल अजय कोठियाल के रूप में पहाड़ से ही लिया है. बहरहाल आम आदमी पार्टी की इस रणनीति को आगामी 2022 के चुनाव में कितनी कामयाबी मिलेगी यह देखना दिलचस्प होगा.

देहरादून: उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी अपने खास एजेंडे के तहत चुनावी यात्रा को शुरू कर चुकी है. यूं तो पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं. लेकिन मौजूदा पार्टी की गतिविधियों से यह जाहिर है कि अरविंद केजरीवाल का फोकस केवल मैदानी विधानसभा क्षेत्रों पर ही है. जाहिर है कि पार्टी भाजपा की एंटी इनकंबेंसी और प्रदेश में कांग्रेस की कमजोरी का फायदा लेकर बसपा के वोट बैंक पर भी सेंधमारी करना चाहती है.

उत्तराखंड में मतदान के लिहाज से देखें तो राज्य स्थापना के बाद से ही प्रदेश में मतदान का प्रतिशत हमेशा करीब 55% से 68% तक रहा है. राज्य के 13 जिलों में 4 जिले मैदानी माने जाते हैं. मजे की बात यह है कि इन 4 जनपदों में ही विधानसभा सीटों की संख्या पूर्ण बहुमत के आंकड़ों को पूरा कर लेती है. जबकि बाकी 9 जिले मिलकर भी बहुमत का आंकड़ा विधानसभा सीटों के लिहाज से पूरा नहीं कर पाते. राज्य में अब तक 4 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. कांग्रेस और भाजपा प्रदेश में बारी-बारी से सत्ता संभाल चुके हैं.

केजरीवाल का दांव

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आंकड़े जाहिर करते हैं कि 2017 के चुनाव को छोड़ दिया जाए तो बाकी तीन चुनाव में भाजपा और कांग्रेस का मत प्रतिशत काफी करीब रहा. आम आदमी पार्टी अब अपने समीकरणों के लिहाज से इस पुराने आंकड़े को बदल देना चाहती है. मौजूदा परिस्थितियों के लिहाज से साफ है कि आम आदमी पार्टी का पूरा फोकस मैदान की विधानसभा सीटों पर है. इसकी बड़ी वजह मौजूदा राजनीतिक समीकरण और उत्तराखंड के चुनाव को लेकर पुराने समीकरणों को माना जा सकता है.

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दरअसल, प्रदेश में मैदान की सीटों पर एक समय बसपा का भी दबदबा था. जिसे 2017 में भाजपा ने खत्म कर दिया. आम आदमी पार्टी अब प्रदेश में तीसरे मोर्चे के रूप में कांग्रेस को पिछड़ाना चाहती है. अब ये कैसे होगा पहले इसके लिए पिछले चुनाव के राजनीतिक समीकरणों को समझिए...

  • साल 2002 में राज्य में बीएसपी ने 7 सीटें मैदानी विधानसभाओं से जीती. तब उसका मत प्रतिशत 10.23 प्रतिशत रहा था. बीएसपी ने 5 सीटें हरिद्वार और 2 सीटें उधम सिंह नगर जिले से जीती थी. मैदानी सीटों पर भाजपा और कांग्रेस को छोड़ दें तो समाजवादी पार्टी और निर्दलीयों ने 32% से ज्यादा वोट हासिल किए. ये आंकड़ा बहुमत पाने वाली कांग्रेस से भी ज्यादा रहा.
  • साल 2007 में बहुजन समाज पार्टी ने मैदान की 8 सीटें जीत कर 11.76% वोट पाए. कांग्रेस और भाजपा को छोड़ दिया जाए तो बाकी दलों ने मैदानी विधानसभाओं से करीब 25% वोट पाए. इन्होंने एक निर्णायक भूमिका अदा की.
  • 2012 में बीएसपी ने 3 सीटें लेकर 12.12% वोट हासिल किए. इस तरह मैदानी जिलों में कांग्रेस और भाजपा को छोड़कर करीब 18 से 20% वोट बाकी दलों ने हासिल किए.
  • 2017 में भाजपा ने मोदी लहर के चलते 57 सीटों के साथ 46. 5% मत हासिल किये. इस तरह बाकी दलों का सूपड़ा साफ हो गया.

आंकड़े जाहिर करते हैं कि मौजूदा परिस्थितियों के हिसाब से आम आदमी पार्टी प्रदेश में कांग्रेस की कमजोरी और मैदानी जिलों में भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का फायदा लेना चाहती है. उधम सिंह नगर और हरिद्वार के किसानों को साथ लेने की कोशिश के साथ मुस्लिम और दलित समाज को साधने का केजरीवाल लगातार प्रयास कर रहे हैं.

पहाड़ पर ब्राह्मणों और ठाकुरों का वर्चस्व होने के कारण आम आदमी पार्टी की वहां पहुंच बनाना मुश्किल है. उत्तराखंड के चार मैदानी जिलों में 36 विधानसभा सीटें हैं जबकि 9 पहाड़ी जिलों में मात्र 34 सीटें ही हैं.

पढ़ें- CM केजरीवाल ने बेरोजगारी भत्ता देने का किया ऐलान, बोले- 6 महीने में दूंगा एक लाख नौकरी

प्रदेश में माना जा रहा है कि केजरीवाल बहुजन समाजवादी पार्टी की तरह पहाड़ पर चढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे. इसके पीछे भाजपा और कांग्रेस की पहाड़ों पर मजबूत पकड़ को भी वजह माना जा रहा है. आकलन किया जा रहा है कि मैदानी जिलों पर पकड़ बनाकर उधम सिंह नगर, नैनीताल और हरिद्वार में आम आदमी पार्टी जातीय समीकरण को साधकर मुस्लिम, दलित और किसानों को अपनी तरफ लाना चाहती है.

यदि ऐसा हुआ तो आम आदमी पार्टी जानती है कि प्रदेश में सरकार बनाने के लिए उनकी पार्टी ही निर्णायक भूमिका में होगी. हालांकि कांग्रेस इससे इत्तेफाक नहीं रखती. कांग्रेस का मानना है कि आम आदमी पार्टी पहाड़ पर ही नहीं बल्कि मैदान में भी कुछ खास नहीं कर पाएगी.

पढ़ें- विवादों में घिरी दून SSP जन्मेजय की ट्रांसफर लिस्ट, पारदर्शी नीति के उल्लंघन का आरोप

वैसे आम आदमी पार्टी की उत्तराखंड में एंट्री को कांग्रेस के लिए भी खतरा बताया जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि आम आदमी पार्टी का पहला टारगेट भाजपा के मुकाबले खुद को लाना है. उधर वोट बैंक के लिहाज से देखें तो बस्तियों और मुस्लिमों के साथ ही दलितों को भी कांग्रेस से छीन कर आम आदमी पार्टी खुद में मिलाना चाहती है, जो जाहिर तौर पर कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण होगा.

हरिद्वार जिले की 11 सीटें और उधम सिंह नगर की 9 सीटों के साथ ही देहरादून की 4 सीट और नैनीताल की 2 सीटों पर दलित और मुस्लिमों की संख्या निर्णायक स्थिति में दिखाई देती है. इन सभी समीकरणों को आम आदमी पार्टी की तरफ से समझा और साधा जा रहा है.

पढ़ें- 10 साल में उत्तराखंड को बनाएंगे नंबर 1, CM धामी ने खिलाड़ियों को किया सम्मानित

आम आदमी पार्टी इस बात को फिलहाल नहीं मान रही कि वह पहाड़ की जगह मैदानों की तरफ रुख करना ज्यादा पसंद कर रही है. आम आदमी पार्टी के नेता कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल ने 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. लिहाजा सभी सीटों पर पार्टी के नेता बराबर फोकस कर रहे हैं.

पढ़ें- प्रदेश में घोषणाओं पर छिड़ी राजनीतिक बहस, विपक्ष को CM के स्लोगन पर आपत्ति

उत्तराखंड में दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल चुनावी रूप से तीन दौरे कर चुके हैं. जिसमें से दो बार केजरीवाल देहरादून आए हैं तो एक बार उन्होंने हल्द्वानी में चुनावी यात्रा का नेतृत्व किया है. उनकी उत्तराखंड में एंट्री की यही रणनीति उनके मैदान को लेकर प्राथमिकता को जाहिर भी करता है.

हालांकि प्रदेश में मैदानी जिलों में पहाड़ के वोटर्स की अच्छी खासी संख्या है, लिहाजा उन्होंने मुख्यमंत्री के तौर पर पार्टी के लिए चेहरा कर्नल अजय कोठियाल के रूप में पहाड़ से ही लिया है. बहरहाल आम आदमी पार्टी की इस रणनीति को आगामी 2022 के चुनाव में कितनी कामयाबी मिलेगी यह देखना दिलचस्प होगा.

Last Updated : Sep 23, 2021, 12:08 PM IST
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