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टीका है जरूरी, पुलिसकर्मियों के वैक्सीनेशन से तो ऐसा ही लग रहा, पढ़िए क्यों

कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप जारी है. प्रदेश में हर दिन हजारों कोरोना संक्रमित मरीज मिल रहे हैं. सैकड़ों मरीज कोरोना से जान भी गंवा रहे हैं. लेकिन इस बीच साबित हुआ है कि पहली लहर के दौरान वैक्सीन लगने से एक हद तक व्यवस्था सुधरी है.

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देहरादून
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Published : May 17, 2021, 12:37 PM IST

देहरादूनः देश में बढ़ते कोरोना संक्रमण के मद्देनजर वैक्सीन अभियान बेहद तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है. हालांकि सवा सौ करोड़ भारतवासियों को एक साथ वैक्सीन उपलब्ध कराना केंद्र सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है. इसी का नतीजा है कि मौजूदा वक्त में देश में वैक्सीन की कमी नजर आ रही है. हालांकि सबसे पहले कोवीशील्ड फिर कोवैक्सीन और अब स्पूतनिक वैक्सीन को भी देशवासियों के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है.

वैक्सीन ने पुलिस महकमे में संभाली व्यवस्था

वैक्सीनेशन के अभियान को तेज रफ्तार देने के लिए लगातार अलग-अलग चरणों में कार्यक्रमों को चलाया गया है. स्वास्थ्य कर्मी, फ्रंटलाइन वॉरियर्स, बुजुर्ग और बीमार लोगों के लिए वैक्सीनेशन की अलग-अलग चरणों में व्यवस्था की गई है. यही नहीं, 1 मई से 18 से 44 साल के युवाओं के लिए भी वैक्सीनेशन अभियान शुरू किया गया है. लेकिन इस सबके बावजूद कई बार वैक्सीन से लोगों की सुरक्षा पर सवाल खड़े किए गए हैं. इन सवालों का जवाब उत्तराखंड पुलिस विभाग के पास हाजिर है.

आइए एक नजर डालते हैं...

  • उत्तराखंड में करीब 25 हजार पुलिसकर्मी तैनात हैं.
  • 24 हजार पुलिसकर्मियों को अब तक वैक्सीन की डोज लगाई जा चुकी है.
  • 1 हजार पुलिसकर्मी मेडिकल कारणों के कारण वैक्सीन नहीं लगा पाए हैं.
  • कोरोना की पहली लहर के दौरान 1981 पुलिसकर्मी संक्रमित हुए थे.
  • इसमें 200 पुलिसकर्मी अस्पताल में भर्ती हुए थे तथा 8 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गई थी.
  • पहली लहर के दौरान 10% संक्रमित पुलिसकर्मी अस्पताल तक पहुंचे और 0.4% पुलिसकर्मी अपनी जान गंवा बैठे.
  • दूसरी लहर तक 24 हजार पुलिसकर्मी वैक्सीन लगवा चुके थे.
  • दूसरी लहर में कुल 2066 पुलिसकर्मी संक्रमित हुए.
  • इसमें 200 पुलिसकर्मी ऐसे थे जिनको वैक्सीन नहीं लगी थी.
  • करीब 1866 संक्रमित पुलिसकर्मियों ने वैक्सीन लगाई थी, जिसमें से कोई भी पुलिसकर्मी गंभीर अवस्था तक नहीं पहुंचा.
  • वैक्सीन लगाने वाले सभी पुलिसकर्मियों को अस्पताल जाने की नौबत नहीं आई. सभी 5 से 7 दिनों में ठीक हो गए.

वैक्सीन नहीं लगाने वाले 200 पुलिसकर्मियों में कई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से बीमार हुए. लिहाजा अस्पतालों में उन्हें इलाज करवाना पड़ा. यही नहीं, इनमें तीन पुलिसकर्मियों की मृत्यु भी हो चुकी है. जबकि दो पुलिसकर्मी अब भी अस्पताल में गंभीर अवस्था में हैं.

ये भी पढ़ेंः कोरोना महामारी में मानवता भूलता समाज, 474 शवों का पुलिस ने किया अंतिम संस्कार

इन आंकड़ों से यह जाहिर हो जाता है कि वैक्सीन किस कदर पुलिस कर्मियों को दूसरी लहर के दौरान सुरक्षित रख पाने में कामयाब रही है. खुद उत्तराखंड पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ये मानते हैं कि यदि वैक्सीन दूसरी लहर से पहले ही पुलिसकर्मियों को नहीं लगाई जाती, तो इस बार पुलिस विभाग में व्यवस्थाएं पटरी से उतर जाती. ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसी स्थिति में गंभीर बीमार होने वाले मरीजों की संख्या ज्यादा होती, और मौत का आंकड़ा भी बढ़ता. इन हालातों में एक तरफ पुलिस कर्मियों की कमी हो जाती और दूसरी तरफ इन हालातों के चलते पुलिस कर्मियों में डर का माहौल बन जाता.

देहरादूनः देश में बढ़ते कोरोना संक्रमण के मद्देनजर वैक्सीन अभियान बेहद तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है. हालांकि सवा सौ करोड़ भारतवासियों को एक साथ वैक्सीन उपलब्ध कराना केंद्र सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है. इसी का नतीजा है कि मौजूदा वक्त में देश में वैक्सीन की कमी नजर आ रही है. हालांकि सबसे पहले कोवीशील्ड फिर कोवैक्सीन और अब स्पूतनिक वैक्सीन को भी देशवासियों के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है.

वैक्सीन ने पुलिस महकमे में संभाली व्यवस्था

वैक्सीनेशन के अभियान को तेज रफ्तार देने के लिए लगातार अलग-अलग चरणों में कार्यक्रमों को चलाया गया है. स्वास्थ्य कर्मी, फ्रंटलाइन वॉरियर्स, बुजुर्ग और बीमार लोगों के लिए वैक्सीनेशन की अलग-अलग चरणों में व्यवस्था की गई है. यही नहीं, 1 मई से 18 से 44 साल के युवाओं के लिए भी वैक्सीनेशन अभियान शुरू किया गया है. लेकिन इस सबके बावजूद कई बार वैक्सीन से लोगों की सुरक्षा पर सवाल खड़े किए गए हैं. इन सवालों का जवाब उत्तराखंड पुलिस विभाग के पास हाजिर है.

आइए एक नजर डालते हैं...

  • उत्तराखंड में करीब 25 हजार पुलिसकर्मी तैनात हैं.
  • 24 हजार पुलिसकर्मियों को अब तक वैक्सीन की डोज लगाई जा चुकी है.
  • 1 हजार पुलिसकर्मी मेडिकल कारणों के कारण वैक्सीन नहीं लगा पाए हैं.
  • कोरोना की पहली लहर के दौरान 1981 पुलिसकर्मी संक्रमित हुए थे.
  • इसमें 200 पुलिसकर्मी अस्पताल में भर्ती हुए थे तथा 8 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गई थी.
  • पहली लहर के दौरान 10% संक्रमित पुलिसकर्मी अस्पताल तक पहुंचे और 0.4% पुलिसकर्मी अपनी जान गंवा बैठे.
  • दूसरी लहर तक 24 हजार पुलिसकर्मी वैक्सीन लगवा चुके थे.
  • दूसरी लहर में कुल 2066 पुलिसकर्मी संक्रमित हुए.
  • इसमें 200 पुलिसकर्मी ऐसे थे जिनको वैक्सीन नहीं लगी थी.
  • करीब 1866 संक्रमित पुलिसकर्मियों ने वैक्सीन लगाई थी, जिसमें से कोई भी पुलिसकर्मी गंभीर अवस्था तक नहीं पहुंचा.
  • वैक्सीन लगाने वाले सभी पुलिसकर्मियों को अस्पताल जाने की नौबत नहीं आई. सभी 5 से 7 दिनों में ठीक हो गए.

वैक्सीन नहीं लगाने वाले 200 पुलिसकर्मियों में कई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से बीमार हुए. लिहाजा अस्पतालों में उन्हें इलाज करवाना पड़ा. यही नहीं, इनमें तीन पुलिसकर्मियों की मृत्यु भी हो चुकी है. जबकि दो पुलिसकर्मी अब भी अस्पताल में गंभीर अवस्था में हैं.

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इन आंकड़ों से यह जाहिर हो जाता है कि वैक्सीन किस कदर पुलिस कर्मियों को दूसरी लहर के दौरान सुरक्षित रख पाने में कामयाब रही है. खुद उत्तराखंड पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ये मानते हैं कि यदि वैक्सीन दूसरी लहर से पहले ही पुलिसकर्मियों को नहीं लगाई जाती, तो इस बार पुलिस विभाग में व्यवस्थाएं पटरी से उतर जाती. ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसी स्थिति में गंभीर बीमार होने वाले मरीजों की संख्या ज्यादा होती, और मौत का आंकड़ा भी बढ़ता. इन हालातों में एक तरफ पुलिस कर्मियों की कमी हो जाती और दूसरी तरफ इन हालातों के चलते पुलिस कर्मियों में डर का माहौल बन जाता.

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