मसूरीः सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस एंड लेबोरेटरी या पार्क हाउस ऐसे स्थान पर है, जहां से दूनघाटी, अगलाड़ नदी और बर्फ से ढकी चोटियों का मनोहारी नजारा दिखाई देता है. जॉर्ज एवरेस्ट का यह घर अब ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की देख-रेख में है. यहां आवासीय परिसर में बने पानी के भूमिगत रिजर्व वायर आज भी कौतुहल बने हुए हैं. इस ऐतिहासिक धरोहर को निहारने हर साल बड़ी तादाद में पर्यटक यहां पहुंचते हैं.
उत्तराखंड पर्यटन द्वारा जॉर्ज एवरेस्ट हाउस को हैरिटेज पर्यटन डेस्टिनेशन के रूप विकसित किया जा रहा है. उत्तराखंड पर्यटन संरचना विकास निवेश कार्यक्रम के तहत एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) पार्क का जीर्णोद्धार अरुण कंस्ट्रक्शन कंपनी कर रही है. इसकी अनुमानित लागत 23 करोड़ 70 लाख रुपए है.
इसकी शुरुआत पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने 18 जनवरी 2019 को की थी. यह कार्य 17 जून 2020 को खत्म होना था. लेकिन, लॉकडाउन की वजह से पूरा नहीं हो पाया. पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने 16 करोड़ की लागत से हुए जीर्णोद्धार के बाद काफी हद तक अपने पुराने स्वरूप में आए जॉर्ज एवरेस्ट हाउस का लोकार्पण किया. जॉर्ज एवरेस्ट हाउस सहित आसपास के क्षेत्र के विकास के लिए 23 करोड़ 29 लाख 47 हजार रुपए स्वीकृत हैं. यह कार्य दो चरणों में किया जा रहा है.
पहला चरणः पहले चरण में सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस और इसके आसपास के क्षेत्र का करीब 16 करोड़ की लागत से जीर्णोद्धार किया जा चुका है. इसमें 3 करोड़ 68 लाख 74 हजार 500 रुपए में जॉर्ज एवरेस्ट हाउस का नवीनीकरण, 18 लाख 93 हजार 150 रुपए में वेधशाला का नवीनीकरण और 86 लाख 33 हजार 654 रुपए में आउट हाउस और बैचलर रूम का नवीनीकरण कराया जा रहा है.
इसके अलावा एप्रोच रोड का निर्माण कार्य 4 करोड़ 16 लाख 74 हजार, ट्रेक रूट का निर्माण 33 लाख 21 हजार और ओपन एयर थियेटर व प्रदर्शन ग्राउंड का निर्माण 36 लाख 65 हजार रुपए में कराया गया. साथ ही तीन मोबाइल शौचालय 83 लाख रुपए में लगाए गए.
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म्यूजियम में एवरेस्ट नापन के डिवाइसः अरुण कंस्ट्रक्शन कंपनी के साइट इंजीनियर कुलदीप शर्मा बताते हैं कि सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस में म्यूजियम भी बनाया जा रहा है. इसमें उन उपकरणों को भी लोगों के दर्शनार्थ के लिए रखा जाएगा, जिसका उपयोग एवरेस्ट की ऊंचाई को नापने के लिए किया गया. म्यूजियम बनने के बाद सर जॉर्ज के परिवार के सदस्यों को भी मसूरी बुलाया जाएगा. जॉर्ज एवरेस्ट हाउस क्षेत्र को इंटरनेशनल डेस्टिनेशन बनाया जा रहा है.
हाउस के जीर्णोद्धार में सीमेंट का नहीं किया गया इस्तेमालः सेंट जॉर्ज एवरेस्ट हाउस के मूल स्वरूप को बरकरार रखते हुए अंग्रेजों के जमाने में सीमेंट की जगह चक्की में पीस कर बनाए गए मिश्रण से जार्ज एवरेस्ट हाउस का पुनर्निनिर्माण किया जा रहा है. एवरेस्ट हाउस को बनाने के लिए चक्की में चूना, सुर्खी, मेथी और उड़द की दाल को पीस कर उससे ईंटों को चिपकाया गया. भवन के जीर्णाोद्वार के लिए लाहौरी ईंट का प्रयोग किया गया.
उन्होंने बताया कि जॉर्ज एवरेस्ट हाउस के साथ कार्टोग्राफिक म्यूजियम, आउट हाउस, बैचलर हाउस, ऑब्जरवेटरी, स्टार गेजिंग हट्स, स्टार गेजिंग डॉम्स, ओपन एयर थिएटर, पोर्टेबल टॉयलेट, पोर्टेबल फूड वैन, जार्ज एवरेस्ट पीक के लिए ट्रेक रूट का निर्माण किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इस साल के अगस्त तक जॉर्ज एवरेस्ट हाउस में होने वाले सभी कार्यों को पूरा कर लिया जाएगा.
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जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर माउंट एवरेस्ट का नामः सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी का नाम माउंट एवरेस्ट रखा गया. उन्होंने जीवन का एक लंबा अर्सा मसूरी में गुजारा था. मसूरी स्थित सर जॉर्ज एवरेस्ट के घर और प्रयोगशाला में ही वर्ष 1832 से 1843 के बीच भारत की कई ऊंची चोटियों की खोज हुई और उन्हें मानचित्र पर उकेरा. सर जॉर्ज 1830 से 1843 तक भारत के सर्वेयर जनरल रहे. सर्वेयर एवं जियोग्राफर ने ही पहली बार एवरेस्ट की सही ऊंचाई और लोकेशन बताई थी. इसलिए ब्रिटिश सर्वेक्षक एंड्रयू वॉ की सिफारिश पर वर्ष 1865 में इस शिखर का नामकरण उनके नाम पर हुआ. इससे पहले इस चोटी को पीक-15 नाम से जाना जाता था. जबकि, तिब्बती लोग इसे चोमोलुंग्मा और नेपाली सागरमाथा कहते थे.
सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस एंड लेबोरेटरीः सर जॉर्ज एवरेस्ट का घर और प्रयोगशाला मसूरी में पार्क रोड में स्थित है, जो गांधी चौक लाइब्रेरी बाजार से लगभग 6 किमी की दूरी पर पार्क एस्टेट में स्थित है. इस घर और प्रयोगशाला का निर्माण वर्ष 1832 में हुआ था. इसे अब सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस एंड लेबोरेटरी या पार्क हाउस नाम से जाना जाता है. यह ऐसे स्थान पर है, जहां से दूनघाटी, अगलाड़ नदी और बर्फ से ढकी चोटियों का मनोहारी नजारा दिखाई देता है.
क्रिकवेल (यूके) में हुआ सर जॉर्ज का जन्मः जॉर्ज एवरेस्ट का यह घर अब आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की देख-रेख में है. यहां आवासीय परिसर में बने पानी के भूमिगत रिजर्व वायर आज भी कौतुहल बने हुए हैं. इस एतिहासिक धरोहर को निहारने हर साल बड़ी तादाद में पर्यटक यहां पहुंचते हैं. सर जॉर्ज एवरेस्ट का जन्म 4 जुलाई 1790 को क्रिकवेल (यूनाइटेड किंगडम) में पीटर एवरेस्ट व एलिजाबेथ एवरेस्ट के घर हुआ था.
इस प्रतिभावान युवक ने रॉयल आर्टिलरी में कैडेट के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त किया. इनकी कार्यशैली और प्रतिभा को देखते हुए वर्ष 1806 में इन्हें भारत भेज दिया गया. यहां इन्हें कोलकाता और बनारस के मध्य संचार व्यवस्था कायम करने के लिए टेलीग्राफ को स्थापित और संचालित करने का दायित्व सौंपा गया.
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1830 में भारत के महासर्वेक्षक नियुक्तः कार्य के प्रति लगन एवं कुछ नया कर दिखाने की प्रवृत्ति ने इनके लिए प्रगति के द्वार खोल दिए. वर्ष 1816 में जॉर्ज जावा के गवर्नर सर स्टैमफोर्ड रैफल्स के कहने पर इस द्वीप का सर्वेक्षण करने के लिए चले गए. यहां से वे वर्ष 1818 में भारत लौटे और यहां सर्वेयर जनरल लैंबटन के मुख्य सहायक के रूप में कार्य करने लगे. कुछ साल काम करने के बाद जॉर्ज थोड़े दिनों के लिए इंग्लैंड लौटे, ताकि वहां अपने सामने सर्वेक्षण के नए उपकरण तैयार करवाकर उन्हें भारत ला सकें. भारत लौटकर वे कोलकाता में रहे और सर्वेक्षण दलों के उपकरणों के कारखाने की व्यवस्था देखते रहे. वर्ष 1830 में जॉर्ज भारत के महासर्वेक्षक नियुक्त हुए.
थियोडोलाइट यंत्र का निर्माणः वर्ष 1820 में दक्षिण अफ्रीका की समुद्री यात्रा के दौरान गंभीर ज्वर के प्रकोप से इनके पैरों ने कार्य करना बंद कर दिया. ऐसे में उन्हें व्हील चेयर के माध्यम से ही कार्य संपादित करने के लिए ले जाया जाने लगा. लंबे इलाज के बाद वह चलने-फिरने की स्थिति में आ पाए. सर्वेक्षण की दिशा में नित्य अन्वेषण करके उन्होंने 20 इंच के थियोडोलाइट यंत्र का निर्माण किया. इस यंत्र के माध्यम से उन्होंने अनेक चोटियों की ऊंचाई मापी. वर्ष 1862 में वे रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी के वाइस प्रेसिडेंट बने.
अपने कार्यकाल में उन्होंने ऐसे उपकरण तैयार कराए, जिनसे सर्वे का सटीक आकलन किया जा सकता है. उस दौर में चोटियों की ऊंचाई की गणना के लिए कंप्यूटर नहीं होते थे. इसलिए तब गणना करने वाले व्यक्ति को ही कंप्यूटर कहा जाता था. पीक-15 की ऊंचाई की गणना में चीफ कंप्यूटर की भूमिका गणितज्ञ राधानाथ सिकदर ने ही निभाई थी. उनका काम सर्वेक्षण के दौरान जुटाए गए आंकड़ों का आकलन करना था. वे अपने काम में इतने माहिर थे कि उन्हें चीफ कंप्यूटर का पद दे दिया गया था. अन्य चोटियों की ऊंचाई की गणना में भी उनकी अहम भूमिका रही.
1866 में ली अंतिम सांसः वर्ष 1847 में जॉर्ज ने भारत के मेरिडियल आर्क के दो वर्गों के मापन का लेखा-जोखा प्रकाशित किया. इसके लिए उन्हें रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ने पदक से नवाजा. बाद में उन्हें रॉयल एशियाटिक सोसायटी और रॉयल ज्योग्राफिकल सोसायटी की फैलोशिप के लिए चुना गया. वर्ष 1854 में उन्हें कर्नल के रूप में पदोन्नति मिली. फरवरी 1861 में वे द ऑर्डर ऑफ द बाथ के कमांडर नियुक्त हुए. एक दिसंबर 1866 को लंदन के हाइड पार्क गार्डन स्थित घर में उन्होंने अंतिम सांस ली. उन्हें चर्च होव ब्राइटो के पास सेंट एंड्रयूज में दफनाया गया है.
मसूरी बना त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण का केंद्रः भारत सर्वेक्षण विभाग (सर्वे ऑफ इंडिया) एक केंद्रीय एजेंसी है, जिसका काम नक्शे बनाना और सर्वेक्षण करना है. इस एजेंसी की स्थापना जनवरी 1767 में ब्रिटिश इंडिया कंपनी के क्षेत्र को संघटित करने के लिए की गई थी. यह भारत सरकार के सबसे पुराने इंजीनियरिंग विभागों में से एक है. सर जॉर्ज के महासर्वेक्षक नियुक्त होने के बाद वर्ष 1832 में मसूरी भारत के महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण का केंद्र बन गया था. जॉर्ज एवरेस्ट मसूरी में ही भारत के सर्वेक्षण का नया कार्यालय चाहते थे. लेकिन, उनकी इच्छा अस्वीकार कर दी गई और इसे देहरादून में स्थापित किया गया.
पर्यटकों की रुकने की व्यवस्था नहींः जॉर्ज एवरेस्ट पर काफी समय से व्यवसाय करने वाले गोविंद सिंह केरवान ने बताया कि पर्यटन विभाग द्वारा जॉर्ज एवरेस्ट हाउस और आसपास के क्षेत्र को विकसित किया गया है. वहां पर 5 दुकानदारों को भी विस्थापित किया गया है, जिसके लिए वह पर्यटन विभाग और सरकार का आभार व्यक्त करते हैं. उन्होंने कहा कि पर्यटन विभाग और सरकार द्वारा जॉर्ज एवरेस्ट हाउस और क्षेत्र को विकसित करने के लिए कई बड़े कदम उठाए गए हैं. परंतु पर्यटकों के रुकने के लिए कोई व्यवस्था यहां पर नहीं की गई है. मौसम खराब और बारिश होने पर पर्यटकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में पर्यटकों के लिए इंतजाम किया जाना अति आवश्यक है.
बारिश में शेड की व्यवस्था नहींः जार्ज एवरेस्ट हाउस से डेढ़ किलोमीटर पहले ही वाहनों को रोक दिया जा रहा है. जिससे पर्यटक पैदल डेढ़ किलोमीटर खड़ी चढ़ाई चढ़कर जॉर्ज एवरेस्ट पहुंच रहे हैं. परंतु डेढ़ किलोमीटर की सड़क पर खराब मौसम और बरसात होने पर किसी प्रकार के शेड की व्यवस्था नहीं है. वहीं, आराम करने के लिए किसी प्रकार के बेंच की व्यवस्था नहीं की गई है. इससे पर्यटकों को भारी परेशानी होती है. उनका कहना है कि पर्यटन विभाग को पर्यटकों की सुविधाओं का भी विशेष ध्यान रखना होगा.
कायाकल्प से खुश जॉर्ज एवरेस्ट के पर्यटकः घूमने पहुंचे पर्यटक जॉर्ज एवरेस्ट हाउस का कायाकल्प होने के बाद वहां के खूबसूरत वातावरण से काफी खुश हैं. उनका कहना है कि पूर्व में जॉर्ज एवरेस्ट में गंदगी का अंबार और एवरेस्ट हाउस का हाल बेहाल था. परंतु वर्तमान में सरकार और पर्यटन विभाग द्वारा इसका जीर्णोद्धार कर काफी खूबसूरत बना दिया गया है. इससे वह काफी खुश हैं. सरकार से मांग की है कि जॉर्ज एवरेस्ट हाउस के वर्तमान स्वरूप को संरक्षित करने के लिए विशेष इंतजाम किए जाने चाहिए.
माउंटेन गाइड अंकित कैंतूरा ने बताया कि जॉर्ज एवरेस्ट हाउस के जीर्णोद्धार के बाद यहां पर पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ रही है. लोग जॉर्ज एवरेस्ट हाउस और आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले रहे हैं. वहीं, आसपास के क्षेत्र क्लाउड एंड हाथीपांव, ज्वाला मंदिर आदि के बारे में उत्सुकता से जानकारी लेते हैं.
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वहीं, जार्ज एवरेस्ट हाउस के नये स्वरूप को देखकर हर कोई काफी खुश है. लोगों को उम्मीद है कि जॉर्ज एवरेस्ट में चल रहे काम पूरे होने के बाद यह स्थल पर्यटकों के ऐतिहासिक पर्यटन स्थल के साथ-साथ खूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा.