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उत्तराखंड विधानसभा में पेश किया गया कठोर धर्मांतरण विरोधी विधेयक, जानें कितना हुआ बदलाव

उत्तराखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र आज शुरू हो गया है. ऐसे में आज सरकार ने सदन में अनुपूरक बजट पेश किया. वहीं, इस सत्र के पहले दिन प्रदेश में धर्मांतरण कानून को लेकर भी संशोधन किया गया है.

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Published : Nov 29, 2022, 6:33 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र 2022 के पहले दिन प्रदेश में धर्मांतरण कानून को लेकर संशोधन किया गया है. एक अधिक कठोर धर्मांतरण विरोधी विधेयक सदन में पेश किया गया. उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2022 में गैर-कानूनी धर्मांतरण को एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाया गया है. कानून को और भी सशक्त बनाने के लिए इसकी सजा को 2 से लेकर 7 साल तक निर्धारित कर दिया गया है. अपराधी पर 25 हजार रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जाएगा.

कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने जानकारी दी कि, चूंकि उत्तराखंड चीन और नेपाल से सटा हुआ राज्य है, इसके चलते प्रदेश में धर्मांतरण किए जाने के आसार बने रहते हैं. इसलिए इस कानून को और भी सशक्त बनाया गया है. महाराज ने बिल के उद्देश्यों और कारणों को बताते हुए कहा कि, भारत के संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 27 और 28 के तहत, धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत, प्रत्येक धर्म के महत्व को समान रूप से मजबूत करने के लिए उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2018 में कुछ कठिनाइयों को दूर करने के लिए संशोधन आवश्यक है.

उत्तराखंड विधानसभा में पेश किया गया कठोर धर्मांतरण विरोधी विधेयक.

पढ़ें- उत्तराखंड में धर्मांतरण कानून के तहत दर्ज हुए हैं 5 मामले, शिकायत करना होगा आसान

इस धर्मांतरण कानून में सख्त संशोधन किए गए हैं. जिसके तहत अब से जबरन धर्म परिवर्तन संज्ञेय अपराध (Cognizable offence) होगा. नए कानून में जबरन धर्मांतरण कराने पर 10 साल की सजा का प्रावधान है. विधेयक के ड्राफ्ट में कहा गया है, 'कोई भी व्यक्ति, सीधे या अन्यथा, किसी अन्य व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से परिवर्तित नहीं करेगा. कोई भी व्यक्ति इस तरह के धर्म परिवर्तन को बढ़ावा नहीं देगा, मना नहीं करेगा या साजिश नहीं करेगा'.

गौर हो कि उत्तराखंड में वर्ष 2018 में धर्मांतरण कानून (Anti Conversion Law) अस्तित्व में आया था लेकिन, उस वक्त इसे लचीला कहा जा रहा था. क्योंकि अब तक यह एक जमानती अपराध था. लेकिन, 16 नवंबर 2022 को उत्तराखंड की धामी सरकार की कैबिनेट बैठक में इसे यूपी में लागू धर्मांतरण कानून की तर्ज पर कठोर बनाने की मंजूरी दे दी गई. इसके बाद विधानसभा सत्र के पहले दिन धर्मांतरण कानून को लेकर संशोधन भी किया गया है.

Anti Conversion law in uttarakhand
उत्तराखंड में धर्मांतरण कानून.

कानून में संशोधन के बाद जबरन धर्मांतरण करने पर अब दो से सात साल की सजा हो सकती है. पहले एक से पांच साल की सजा का प्रावधान था. उत्तराखंड धर्मांतरण कानून में संशोधन कर सामूहिक धर्म परिवर्तन पर भी अब अधिकतम दस साल की सजा का प्रावधान कर दिया गया है.

पढ़ें- उत्तराखंड में यूपी जैसा सख्त होगा धर्मांतरण कानून, सामूहिक धर्म परिवर्तन की सजा 10 साल

उत्तराखंड में धर्मांतरण के मामले: यह कानून लागू होने के बाद से प्रदेश में अब तक धर्मांतरण के सिर्फ 5 मामले दर्ज हुए हैं और इन मामलों की जांच पुलिस कर रही है. दरअसल, उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से गैर-हिंदुओं की मौजूदगी बढ़ रही है. ज्यादातर यह संख्या हरिद्वार, उधम सिंह नगर, देहरादून जिलों में है. लेकिन सबसे बड़ी बात है कि उत्तराखंड में धर्मांतरण को लेकर अब तक सिर्फ 5 मामले पुलिस में दर्ज किए है. इसमें तीन हरिद्वार से और दो देहरादून से मामले दर्ज किए गए हैं. ये सारे मामले 2018 में बने धर्मांतरण कानून को लेकर दर्ज किए गए हैं. यानी इससे पहले हुए धर्मांतरण का कोई पुलिस के पास रिकॉर्ड नहीं है.

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र 2022 के पहले दिन प्रदेश में धर्मांतरण कानून को लेकर संशोधन किया गया है. एक अधिक कठोर धर्मांतरण विरोधी विधेयक सदन में पेश किया गया. उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2022 में गैर-कानूनी धर्मांतरण को एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाया गया है. कानून को और भी सशक्त बनाने के लिए इसकी सजा को 2 से लेकर 7 साल तक निर्धारित कर दिया गया है. अपराधी पर 25 हजार रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जाएगा.

कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने जानकारी दी कि, चूंकि उत्तराखंड चीन और नेपाल से सटा हुआ राज्य है, इसके चलते प्रदेश में धर्मांतरण किए जाने के आसार बने रहते हैं. इसलिए इस कानून को और भी सशक्त बनाया गया है. महाराज ने बिल के उद्देश्यों और कारणों को बताते हुए कहा कि, भारत के संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 27 और 28 के तहत, धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत, प्रत्येक धर्म के महत्व को समान रूप से मजबूत करने के लिए उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2018 में कुछ कठिनाइयों को दूर करने के लिए संशोधन आवश्यक है.

उत्तराखंड विधानसभा में पेश किया गया कठोर धर्मांतरण विरोधी विधेयक.

पढ़ें- उत्तराखंड में धर्मांतरण कानून के तहत दर्ज हुए हैं 5 मामले, शिकायत करना होगा आसान

इस धर्मांतरण कानून में सख्त संशोधन किए गए हैं. जिसके तहत अब से जबरन धर्म परिवर्तन संज्ञेय अपराध (Cognizable offence) होगा. नए कानून में जबरन धर्मांतरण कराने पर 10 साल की सजा का प्रावधान है. विधेयक के ड्राफ्ट में कहा गया है, 'कोई भी व्यक्ति, सीधे या अन्यथा, किसी अन्य व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से परिवर्तित नहीं करेगा. कोई भी व्यक्ति इस तरह के धर्म परिवर्तन को बढ़ावा नहीं देगा, मना नहीं करेगा या साजिश नहीं करेगा'.

गौर हो कि उत्तराखंड में वर्ष 2018 में धर्मांतरण कानून (Anti Conversion Law) अस्तित्व में आया था लेकिन, उस वक्त इसे लचीला कहा जा रहा था. क्योंकि अब तक यह एक जमानती अपराध था. लेकिन, 16 नवंबर 2022 को उत्तराखंड की धामी सरकार की कैबिनेट बैठक में इसे यूपी में लागू धर्मांतरण कानून की तर्ज पर कठोर बनाने की मंजूरी दे दी गई. इसके बाद विधानसभा सत्र के पहले दिन धर्मांतरण कानून को लेकर संशोधन भी किया गया है.

Anti Conversion law in uttarakhand
उत्तराखंड में धर्मांतरण कानून.

कानून में संशोधन के बाद जबरन धर्मांतरण करने पर अब दो से सात साल की सजा हो सकती है. पहले एक से पांच साल की सजा का प्रावधान था. उत्तराखंड धर्मांतरण कानून में संशोधन कर सामूहिक धर्म परिवर्तन पर भी अब अधिकतम दस साल की सजा का प्रावधान कर दिया गया है.

पढ़ें- उत्तराखंड में यूपी जैसा सख्त होगा धर्मांतरण कानून, सामूहिक धर्म परिवर्तन की सजा 10 साल

उत्तराखंड में धर्मांतरण के मामले: यह कानून लागू होने के बाद से प्रदेश में अब तक धर्मांतरण के सिर्फ 5 मामले दर्ज हुए हैं और इन मामलों की जांच पुलिस कर रही है. दरअसल, उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से गैर-हिंदुओं की मौजूदगी बढ़ रही है. ज्यादातर यह संख्या हरिद्वार, उधम सिंह नगर, देहरादून जिलों में है. लेकिन सबसे बड़ी बात है कि उत्तराखंड में धर्मांतरण को लेकर अब तक सिर्फ 5 मामले पुलिस में दर्ज किए है. इसमें तीन हरिद्वार से और दो देहरादून से मामले दर्ज किए गए हैं. ये सारे मामले 2018 में बने धर्मांतरण कानून को लेकर दर्ज किए गए हैं. यानी इससे पहले हुए धर्मांतरण का कोई पुलिस के पास रिकॉर्ड नहीं है.

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