देहरादून: राजधानी देहरादून के आदर्श नगर में अपनी गर्भवती सौतेली बहन, उसकी 5 साल की बच्ची और माता-पिता सहित पांच लोगों को बेरहमी से मौत के घाट उतारने वाले हरमीत सिंह को देहरादून ADJ 5th कोर्ट ने आज फांसी की सजा सुनाई है. इसके साथ ही एक लाख का जुर्माना भी लगाया गया है. सोमवार को अपर जिला जज पंचम आशुतोष मिश्रा की अदालत ने हरमीत सिंह को दोषी करार दिया था.
मुकदमे में कुल 21 गवाह पेश हुए थे. इन्हीं के आधार पर हरमीत सिंह को आईपीसी की धारा 302 (हत्या), धारा 307 (हत्या का प्रयास) और 316 (गर्भस्थ शिशु की हत्या करना) में दोषी ठहराया गया. अभियोजन कोर्ट में इस बात को साबित करने में सफल रहा कि हरमीत ने इस जघन्य हत्याकांड को प्रॉपर्टी के लिए अंजाम दिया था.
इससे पहले मामले में आज सुबह 11 बजे से 12 बजे तक सजा के लिए दोनों ही पक्षों के अधिवक्ताओं द्वारा कोर्ट में अंतिम पैरवी की गई. जिरह पूरी होने के बाद दोपहर बाद हत्याकांड में फांसी की सजा का ऐलान किया गया. पीड़ित पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ब्रह्मदत्त झा द्वारा इसे 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' मानते हुए कोर्ट से फांसी की ही मांग की थी.
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परिवार के 5 लोगों की निर्मम हत्या मामले में फांसी की सजा की मांग करते हुए बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता ब्रह्मदत्त झा ने कोर्ट को इस बात से अवगत कराया कि इसी निर्मम हत्याकांड की तर्ज पर बिहार और पंजाब में भी प्रॉपर्टी विवाद के चलते निहत्थे असहाय परिवार के 5 लोगों को परिवार के बेटे द्वारा ही मौत के घाट उतारा गया था. दोनों ही केस में निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आरोपी को दोषी करार कर फांसी की सजा दी गई थी.
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परिवार चाहता है फांसी पर लटके हत्यारा: वहीं, प्रॉपर्टी के लालच में परिवार के 5 सदस्यों को मौत के घाट उतारने वाले हरमीत सिंह को फांसी की सजा दिए जाने का परिवार वर्षों से इंतजार कर रहा था. परिवार के बाकी सदस्य उसको फांसी पर लटका देखना चाहते हैं. सजा पर फैसला आने के बाद चाचा अजीत ने अपने 90 वर्षीय पिता जोगिंदर सिंह को फोन पर इसकी सूचना दी, जिसको सुनते ही उनकी आंखों में आंसू आ गए. जोगिंदर सिंह चलने-फिरने में असमर्थ हैं.
हरमीत सिंह को फांसी की सजा दिए जाने को लेकर पीड़ित पक्ष कोर्ट के फैसले से पूरी तरह से संतुष्ट हैं. परिवार ने कहा कि जिस तरह से मासूम बच्ची, गर्भवती बहन और माता-पिता की चाकू को गोदकर जघन्य हत्या हुई थी, वो मंजर आज भी रोंगटे खड़े कर देता है. ऐसे कृत्य के लिए ये सजा भी कम है.
रिटायर होने के बाद भी पहुंचे जांच अधिकारी: इस केस की खास बात ये रही कि 2014 में इस हत्याकांड की जांच कर रहे इंस्पेक्टर विनोद कुमार जेठा रिटायर होने के बाद भी सजा के ऐलान के वक्त कोर्टरूम में मौजूद थे. वो लगातार कोर्ट में पेशी पर आते रहे हैं. विनोद कुमार जेठा घटना के वक्त कैंट कोतवाली में तैनात थे. फैसला सुनने के लिए भी वो भी अदालत में मौजूद थे.
दीपावली की रात हुआ था खूनी खेल: बता दें कि 23 अक्टूबर 2014 में दीपावली की रात देहरादून के आदर्श नगर में स्थित आवास में हरमीत सिंह ने कारोबारी पिता जय सिंह, माता कुलवंत कौर, सौतेली गर्भवती बहन हरजीत कौर उर्फ हनी और अपनी 5 साल की भांजी सुखमणि को चाकू से गोदकर निर्मम हत्या प्रॉपर्टी विवाद को लेकर गई थी. इस वारदात में भांजा कंवलजीत चाकू से घायल होने के बावजूद बेड के नीचे छिप जाने की वजह से बच गया था. घटना के समय आरोपी की सौतेली बहन हरजीत सिंह उर्फ हनी के पेट में पल रहे 8 महीने के गर्भ की भी हत्या की गई थी.
पूरी प्रॉपर्टी पर थी हरमीत की नजर: मृतक जय सिंह का पहली पत्नी से तलाक हो गया था. पहली शादी से उन्हें दो बेटे थे, एक हरमीत और दूसरा पारस. पारस अपनी मां के साथ ही रहता था. वहीं, जय सिंह ने भाई अजीत सिंह की बेटी हरजीत को बचपन में ही गोद ले लिया था. हरमीत अपनी सौतेली मां और बाकी परिवार से नफरत करता था और प्रॉपर्टी को लेकर पहले भी उन्हें जान से मारने की धमकी दे चुका था. वो चाहता था कि पिता जय सिंह की सारी संपत्ति उसे ही मिले.
नौकरानी ने सबसे पहले देखा था विभत्स नजारा: वहीं, दीपावली से अगले दिन जब घर से कोई बाहर नहीं निकला तो नौकरानी घर के अंदर गई. वहां उसने देखा कि पूरे घर में खून फैला हुआ था और हरजीत, सुखमणि, जय सिंह और कुलवंत कौर के लहुलूहान शव पड़े थे. वहीं, दरवाजे की साइड पर हाथ में चाकू लिए हरमीत खड़ा था. ये विभत्स नजारा देख नौकरानी चिल्लाती हुई बाहर आई और लोगों को इकट्ठा किया. पास में रहने वाले जय सिंह के भाई अजीत सिंह भी मौके पर पहुंचे और पुलिस को सूचना दी. पुलिस ने तत्काल मौके से हरमीत को हत्या में इस्तेमाल चाकू के साथ गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने जांच पड़ताल के बाद करीब तीन महीने बाद हरजीत के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी. कुछ समय बाद मुकदमे का ट्रायल सेशन कोर्ट में शुरू हुआ.
हालांकि, सजा से बचने के लिए हरमीत सिंह ने कोर्ट में खुद को दिमागी रूप से बीमार बताया था लेकिन डॉक्टरी जांच में उसका ये दावा झूठा साबित हुआ. ये भी कोर्ट को बताया गया कि हरमीत का किसी मनोचिकित्सक से इलाज नहीं हुआ है.