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मजबूरी ने छीना मासूमों का बचपन, उत्तराखंड में आज भी 15 से 20 फीसदी बच्चे बाल मजदूरी का शिकार - child labour 2020

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपको उस सच्चाई से रू-ब-रू कराने जा रहा है, जो आज भी समाज के लिए किसी अभिषाप से कम नहीं है. उत्तराखंड में आज भी कई मासूम अपना और अपने परिवार के लिए श्रम करने को मजबूर हैं. राज्य सरकार के लाख दावों के बाद आज भी कई बच्चे मजदूरी करने को मजबूर हैं.

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मजबूरी ने छीना मासूमों का बचपन.
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Published : Jun 12, 2020, 6:02 AM IST

Updated : Jul 9, 2020, 3:31 PM IST

देहरादून: आज विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपका ध्यान उन मासूम बच्चों की ओर ले जाना चाहता है, जिनका बचपन 'मजबूरी और मजदूरी' के चलते कहीं खो सा गया है. देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

बाल मजदूरी के प्रति विरोध एवं जागरुकता फैलाने के मकसद से हर साल 12 जून को बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की ओर से बाल श्रम के विरोध में जागरुकता फैलाने के लिए साल 2002 में पहली बार 'अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस' मनाया गया था. तब से हर साल बाल श्रम के विरोध में 12 जून को यह दिवस मनाया जा रहा है.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल बाल श्रमिकों की संख्या 1 करोड़ 26 लाख से भी ज्यादा है. वहीं, पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड भी बाल श्रम के अभिशाप से अछूता नहीं है. उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी के मुताबिक, प्रदेश में आज भी 15 से 20 फीसदी बच्चे गरीबी के चलते बाल मजदूरी का शिकार है. स्थिति ये है कि प्रदेश में आज भी कई बच्चे गरीबी के चलते होटल, रेस्टोरेंट और फैक्ट्रियों में काम करते देखे जा सकते हैं. कई बच्चे गरीबी के चलते सड़क पर भीख मांगते या गुब्बारे, खिलौने इत्यादि भेजते देखे जा सकते हैं.

मजबूरी ने छीना मासूमों का बचपन

इन आंकड़ों पर एक नजर

  • देश में बाल श्रमिकों की संख्या 1.26 करोड़ से ज्यादा.
  • उत्तराखंड में भी 15 से 50 फीसदी बच्चे बाल श्रम के शिकार.
  • आज भी कई बच्चे होटल, रेस्टोरेंट और फैक्ट्रियों में कर रहे काम.

बाल मजदूरों की संख्या प्रदेश में बहुत कम

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर ईटीवी भारत के साथ जानकारी साझा करते हुए उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी बताती हैं कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में प्रदेश में अभी भी बाल श्रमिकों की संख्या काफी कम है. लेकिन इसके बावजूद यदि आयोग को बाल श्रम से जुड़े किसी भी तरह की शिकायत मिलती है तो उस पर त्वरित कार्रवाई अमल में लाई जाती है.

पढ़ें- हाय ये बेबसी! आर्थिक तंगी के कारण गांव में फंसी मनीषा, सिसकियों में छलका साल बर्बाद होने का 'डर'

बाल आयोग ने 250 से ज्यादा बच्चों को किया रेस्क्यू

ऊषा नेगी बताती हैं कि आयोग की ओर से प्रदेश में अब तक 250 से ज्यादा बच्चों को रेस्क्यू कर बाल श्रम के चंगुल से निकाला जा चुका है. रेस्क्यू के दौरान यदि कोई बच्चा अनाथ पाया जाता है तो उसे हरिद्वार स्थित बाल सुधार गृह भेजकर स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जाता है. साथ ही यहीं पर बच्चे को प्राथमिक शिक्षा भी दी जाती है. वहीं, दूसरी तरफ यदि कोई बच्चा अपने परिवार की गरीबी के चलते बाल मजदूरी करता हुआ पाया जाता है तो ऐसे बच्चे को उसके मां-बाप के सुपुर्द कर समाज कल्याण विभाग के माध्यम से भत्ता दिलाया जाता है.

पढे़ं- लॉकडाउन के कारण मदर गार्डन ऑफ 'लीची' में फंसी देहरादून की 'मिठास', देश-दुनिया को है इंतजार

राज्य सरकार गरीब परिवारों को दे रही 300 रुपये

बाल मजदूरी को लेकर सूबे की महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री रेखा आर्य ने भी चिंता जाहिर की है. उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि बाल श्रम पर अंकुश लगाने के लिए समाज कल्याण विभाग और बाल अधिकार संरक्षण आयोग के माध्यम से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि गरीबी के चलते माता-पिता अपने बच्चों को बाल मजदूरी में न डालें, इस बात को ध्यान में रखते हुए गरीब परिवारों को राज्य सरकार 300 रुपये भत्ते के तौर पर दे रही है.

बरहाल, 21वीं सदी में भी भारत बाल मजदूरी का एक बड़ा दंश झेल रहा है. ऐसे में केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकार को चाहिए कि सरकार बाल मजदूरी पर लगाम लगाने के लिए कुछ बेहतर योजनाएं लेकर आए, जिससे कि गरीबी की मजबूरी में लोग अपने बच्चों को बाल श्रम के अंधकार में न ढकेलें.

देहरादून: आज विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपका ध्यान उन मासूम बच्चों की ओर ले जाना चाहता है, जिनका बचपन 'मजबूरी और मजदूरी' के चलते कहीं खो सा गया है. देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

बाल मजदूरी के प्रति विरोध एवं जागरुकता फैलाने के मकसद से हर साल 12 जून को बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की ओर से बाल श्रम के विरोध में जागरुकता फैलाने के लिए साल 2002 में पहली बार 'अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस' मनाया गया था. तब से हर साल बाल श्रम के विरोध में 12 जून को यह दिवस मनाया जा रहा है.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल बाल श्रमिकों की संख्या 1 करोड़ 26 लाख से भी ज्यादा है. वहीं, पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड भी बाल श्रम के अभिशाप से अछूता नहीं है. उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी के मुताबिक, प्रदेश में आज भी 15 से 20 फीसदी बच्चे गरीबी के चलते बाल मजदूरी का शिकार है. स्थिति ये है कि प्रदेश में आज भी कई बच्चे गरीबी के चलते होटल, रेस्टोरेंट और फैक्ट्रियों में काम करते देखे जा सकते हैं. कई बच्चे गरीबी के चलते सड़क पर भीख मांगते या गुब्बारे, खिलौने इत्यादि भेजते देखे जा सकते हैं.

मजबूरी ने छीना मासूमों का बचपन

इन आंकड़ों पर एक नजर

  • देश में बाल श्रमिकों की संख्या 1.26 करोड़ से ज्यादा.
  • उत्तराखंड में भी 15 से 50 फीसदी बच्चे बाल श्रम के शिकार.
  • आज भी कई बच्चे होटल, रेस्टोरेंट और फैक्ट्रियों में कर रहे काम.

बाल मजदूरों की संख्या प्रदेश में बहुत कम

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर ईटीवी भारत के साथ जानकारी साझा करते हुए उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी बताती हैं कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में प्रदेश में अभी भी बाल श्रमिकों की संख्या काफी कम है. लेकिन इसके बावजूद यदि आयोग को बाल श्रम से जुड़े किसी भी तरह की शिकायत मिलती है तो उस पर त्वरित कार्रवाई अमल में लाई जाती है.

पढ़ें- हाय ये बेबसी! आर्थिक तंगी के कारण गांव में फंसी मनीषा, सिसकियों में छलका साल बर्बाद होने का 'डर'

बाल आयोग ने 250 से ज्यादा बच्चों को किया रेस्क्यू

ऊषा नेगी बताती हैं कि आयोग की ओर से प्रदेश में अब तक 250 से ज्यादा बच्चों को रेस्क्यू कर बाल श्रम के चंगुल से निकाला जा चुका है. रेस्क्यू के दौरान यदि कोई बच्चा अनाथ पाया जाता है तो उसे हरिद्वार स्थित बाल सुधार गृह भेजकर स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जाता है. साथ ही यहीं पर बच्चे को प्राथमिक शिक्षा भी दी जाती है. वहीं, दूसरी तरफ यदि कोई बच्चा अपने परिवार की गरीबी के चलते बाल मजदूरी करता हुआ पाया जाता है तो ऐसे बच्चे को उसके मां-बाप के सुपुर्द कर समाज कल्याण विभाग के माध्यम से भत्ता दिलाया जाता है.

पढे़ं- लॉकडाउन के कारण मदर गार्डन ऑफ 'लीची' में फंसी देहरादून की 'मिठास', देश-दुनिया को है इंतजार

राज्य सरकार गरीब परिवारों को दे रही 300 रुपये

बाल मजदूरी को लेकर सूबे की महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री रेखा आर्य ने भी चिंता जाहिर की है. उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि बाल श्रम पर अंकुश लगाने के लिए समाज कल्याण विभाग और बाल अधिकार संरक्षण आयोग के माध्यम से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि गरीबी के चलते माता-पिता अपने बच्चों को बाल मजदूरी में न डालें, इस बात को ध्यान में रखते हुए गरीब परिवारों को राज्य सरकार 300 रुपये भत्ते के तौर पर दे रही है.

बरहाल, 21वीं सदी में भी भारत बाल मजदूरी का एक बड़ा दंश झेल रहा है. ऐसे में केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकार को चाहिए कि सरकार बाल मजदूरी पर लगाम लगाने के लिए कुछ बेहतर योजनाएं लेकर आए, जिससे कि गरीबी की मजबूरी में लोग अपने बच्चों को बाल श्रम के अंधकार में न ढकेलें.

Last Updated : Jul 9, 2020, 3:31 PM IST
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