देहरादून: उत्तराखंड में कोरोनकाल में प्रदेश के जनप्रतिनिधि, सांसद, विधायक जनता के प्रति कितने संवेदनशील हैं ये जानने के लिए ईटीवी भारत ने एक रियलिटी टेस्ट की शुरुआत की है. इसमें इस मुश्किल वक्त में जनप्रतिनिधियों का जनता से कितना जुड़ाव है ये जानने के लिए हमने कई सांसदों से बात की. इस कड़ी की शुरुआत हमने टिहरी सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह से की थी. उन्होंने इस मुश्किल दौर में संवेदनहीनता दिखाते हुए जनता को उसी के हाल पर छोड़ दिया था. इसके बाद अब हमने अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ सांसद अजय टम्टा को परखने की कोशिश की. हमने सांसद अजय टम्टा से अपनी परेशानी बताकर बात की. मदद की गुहार लगाई. इस पर सांसद जी ने क्या कहा और किस तरह से मदद करने हुए जनता से अपना जुड़ाव दिखाया आइये जानते हैं.
देर रात 11 बजे सांसद अजय टम्टा को मिलाया फोन
इस सिलसिले में ईटीवी भारत ने शुक्रवार रात लगभग 11 बजे अल्मोड़ा सांसद अजय टम्टा को फोन किया. फोन करने से पहले हमने इस बात का ध्यान रखा कि हम ऐसे किसी भी नंबर से फोन कॉल्स ना करें जो हमारा खुद का हो या किसी जनप्रतिनिधि या अधिकारी के पास हो, लिहाजा हमने दूसरे नंबरों से नेताओं से बातचीत का सिलसिला शुरू किया है.
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नेटवर्क की दिक्कत के बाद भी सांसद ने नहीं काटा फोन
रात के वक्त सांसद अजय टम्टा को हमारी टीम ने लगभग 11 बजे फोन मिलाया. कुमाऊं के दूरस्थ क्षेत्र में होने की वजह से नेटवर्क दी दिक्कत थी. इस कारण सांसद जी से सही से बात नहीं हो पा रही थी. फिर भी हमने अपनी तरफ से फोन नहीं काटा. न ही अजय टम्टा की तरफ से फोन कटा. जिसके बाद बातों का सिलसिला शुरू हुआ.
शुरुआत में ही गंभीरता से सुनी बातें
सबसे पहले हमने बताया हमारी तबीयत बहुत खराब है. हमने उन्हें अपना परिचय देते हुए बताया कि हम अल्मोड़ा के डोंग गांव से बात कर रहे हैं. गांव में संक्रमित होने के बाद हमें हॉस्पिटल में बेड की आवश्यकता है. जिस पर अजय टम्टा ने बेहद ही गंभीरता से रेस्पॉंस किया. उन्होंने एक-एक करके हमसे सिलसिलेवार पूरी जानकारी ली. इस दौरान वे चिंतित भी दिखे. हमारी टूटती आवाज और बेबसी शायद वो समझ रहे थे. शायद यही कारण रहा कि वे हर बार हमें हिम्मत बंधाते हुए सुनाई दिये.
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सांसद अजय टम्टा ने सबसे पहले हमसे हमारा पता, स्वास्थ्य की स्थिति, गांव के हालात, गांव के प्रधान और डॉक्टरों की सलाह के बारे में पूछा. हमने भी सांसद जी को एक तरफ से जानकारी दे दी. हमने बताया कि हमें सांस लेने में दिक्कत हो रही है. डॉक्टर कह रहे हैं कि बेड खाली नहीं है. जिसके बाद किसी ने सांसद जी से बात करने की सलाह दी. जिसके कारण हम उनसे बात कर रहे हैं.
अजय टम्टा को खुद बताना पड़ा मैं ही सांसद हूं
सांसद अजय टम्टा इतनी देर रात किसी मदद के लिए फोन करने वाले अजनबी के फोन कॉल को इतनी गंभीरता से सुन रहे थे कि हमें लगा ही नहीं कि वे सांसद हैं. इसलिए हम उनसे बार-बार सांसद से बात करवाने या बेड की व्यवस्था करवाने की गुहार लगाते रहे. वे भी लगातार हमारी परेशानी सुनते हुए एक संवेदनशील जनप्रतिनिधि की तरह हमसे जानकारी लेते हुए साथ में सलाह भी देते रहे. जब सासंद जी को वाकई में लगा कि स्थिति गंभीर है, तो उन्होंने हमें किसी तरह बेस हॉस्पिटल आने को कहा. उनके इतना कहने के बाद भी हम नहीं समझ पा रहे थे कि वे सांसद ही हैं. जिसके बाद एक बार हमने फिर से उन्हें कहा कि आप एक बार हमें आश्वस्त कर दें कि हमारी व्यवस्था हो जाएगी. जिसके बाद उन्होंने बताया कि मैं खुद सांसद अजय टम्टा बोल रहा हूं.
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बंधाया ढांढस, मिली मदद
हमारी हालत पर परेशान होते हुए अजय टम्टा ने हमें किसी भी तरह बेस हॉस्पिटल आने को कहा. उन्होंने कहा आप वहां पहुंच जाइये बाकी सब बात मैं कर लूंगा. आखिर में उन्होंने जो कहा उनके उन शब्दों की हर किसी को जरूरत होती है. सांसद अजय टम्टा ने फोन रखते हुए कहा आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए. सब ठीक हो जाएगा. इसके बाद उन्होंने एक बार फिर से हमें बेस हॉस्पिटल आने को कहा. सुबह होते ही सांसद जी के प्रतिनिधि का हमें फोन आया. जिसमें उनके प्रतिनिधि ने कहा कि वे हमें लेने गाड़ी लेकर आ रहे हैं. जिसके बाद हमने उन्हें सारी बात बताई.
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टम्टा ने पेश की नजीर
इस पूरे घटनाक्रम में सांसद अजय टम्टा ने जिस तरह से जनता का दर्द समझते हुए मदद का हाथ आगे बढ़ाया, वो वाकई में काबिले तारीफ है. ऐसे मुश्किल हालात में उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के मदद के लिए जो संवेदनशीलता दिखाई, वो प्रदेश के अन्य जनप्रतिनिधियों, सांसदों और विधायकों के लिए एक नजीर है. वे जिस तरह से एक अभिभावक बनकर मदद की आस लेकर आये मरीज को ढांढस बंधा रहे थे, उसे सबकुछ ठीक होने का आश्वासन दे रहे थे, इससे उनके जमीन से जुड़े होने की तस्दीक होती है.