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विलुप्ति की कगार पर पहुंची वनराजि जनजाति झेल रही पुलिस प्रताड़ना: मनोज ध्यानी - वनराजि जनजाति

धारचूला और डीडीहाट के नौ गांवों में रहने वाली आदिम जनजाति वनराजि जिसे स्थानीय भाषा में वन रावत कहा जाता है जो आज भी दुर्दिन के शिकार हैं. अशिक्षा, गरीबी और लाचारी के कारण अन्य समाज से हमेशा दूर रहने वाली इस जनजाति पर बीते कुछ सालों में पुलिस का उत्पीड़न बढ़ा है.

मनोज ध्यानी
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Published : Aug 13, 2019, 6:49 PM IST

Updated : Aug 13, 2019, 10:58 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अंतर्गत वनों में रहने वाली वनराजि जनजाति आज विलुप्त होने की कगार पर है. इसी जनजाति से जुड़े मामले को लेकर जसवंत सिंह जंपानगी पिछले 12 सालों से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन आज तक उन्हें न्याय नहीं मिला है. मंगवालर को पिथौरागढ़ में उन्होंने इसी को लेकर एक मामले में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और न्याय की गुहार लगाई.

जंपानगी ने बताया कि 12 साल पहले पुलिस ने इस जनजाति के दो बच्चे जिनकी उम्र 10 से 12 साल के बीच थी उन्हें हत्या के मामले में बाल सुधार गृह भेजा गया था. दोनों आज 22 साल हो गए है, लेकिन पुलिस ने झूठा केस बनाकर उनको सेंट्रल जेल में डाला दिया. उन्होंने दोनों बच्चों को छुड़ाने के लिए कई बार से सरकार के गुहार लगाई गई, लेकिन सरकार की तरफ से उनकी पैरवी के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए.

पढ़ें- जान जोखिम में डालकर नैनीझील में बोटिंग कर रहे पर्यटक, हादसे का इंतजार कर रहा प्रशासन

साथ ही उन्होंने बताया कि पुलिस ने बीती 7 जून को इसी जनजाति के और व्यक्ति को एक मामले में उठाया था. जिसे बाद में भगोड़ा घोषित कर दिया था. जिसका आजतक कोई पता नहीं चला है. जंपानगी ने कहा कि उन्हें शक है कि पुलिस ने उसको मारकर कहीं फेंक दिया है.

जंपानगी ने बताया कि इस जनजाति की ये स्थिति तब है जब सरकार इसके संरक्षण और बढ़ावा देने के लिए हर सार करोड़ों रुपए खर्च करती है. आज इस जनजाति में 500 लोग मुश्किल से बचे होंगे. ऐसे हालत में पुलिस इन लोगों को झूठे मामलों में फंसाकर जेल में डाल रही है. इस जनजाति को बचाने के लिए वो जंतर-मंतर से लेकर प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से लेकर सूबे मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक से गुहार लगा चुके हैं.

पढ़ें- दंपति ने जहर खाकर की खुदकुशी, 4 महीने का मासूम हुआ अनाथ

आरटीआई लोक सेवा के अध्यक्ष मनोज ध्यानी ने बताया कि पिथौरागढ़ में जो जनजाति रहती है ये काफी शांत प्रिय है. इस जनजाति बीच से न कोई पुलिस अधिकारी और न ही न्याय व्यवस्था में है. इस जनजाति में शिक्षा का भारी अभाव है.

देहरादून: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अंतर्गत वनों में रहने वाली वनराजि जनजाति आज विलुप्त होने की कगार पर है. इसी जनजाति से जुड़े मामले को लेकर जसवंत सिंह जंपानगी पिछले 12 सालों से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन आज तक उन्हें न्याय नहीं मिला है. मंगवालर को पिथौरागढ़ में उन्होंने इसी को लेकर एक मामले में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और न्याय की गुहार लगाई.

जंपानगी ने बताया कि 12 साल पहले पुलिस ने इस जनजाति के दो बच्चे जिनकी उम्र 10 से 12 साल के बीच थी उन्हें हत्या के मामले में बाल सुधार गृह भेजा गया था. दोनों आज 22 साल हो गए है, लेकिन पुलिस ने झूठा केस बनाकर उनको सेंट्रल जेल में डाला दिया. उन्होंने दोनों बच्चों को छुड़ाने के लिए कई बार से सरकार के गुहार लगाई गई, लेकिन सरकार की तरफ से उनकी पैरवी के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए.

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साथ ही उन्होंने बताया कि पुलिस ने बीती 7 जून को इसी जनजाति के और व्यक्ति को एक मामले में उठाया था. जिसे बाद में भगोड़ा घोषित कर दिया था. जिसका आजतक कोई पता नहीं चला है. जंपानगी ने कहा कि उन्हें शक है कि पुलिस ने उसको मारकर कहीं फेंक दिया है.

जंपानगी ने बताया कि इस जनजाति की ये स्थिति तब है जब सरकार इसके संरक्षण और बढ़ावा देने के लिए हर सार करोड़ों रुपए खर्च करती है. आज इस जनजाति में 500 लोग मुश्किल से बचे होंगे. ऐसे हालत में पुलिस इन लोगों को झूठे मामलों में फंसाकर जेल में डाल रही है. इस जनजाति को बचाने के लिए वो जंतर-मंतर से लेकर प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से लेकर सूबे मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक से गुहार लगा चुके हैं.

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आरटीआई लोक सेवा के अध्यक्ष मनोज ध्यानी ने बताया कि पिथौरागढ़ में जो जनजाति रहती है ये काफी शांत प्रिय है. इस जनजाति बीच से न कोई पुलिस अधिकारी और न ही न्याय व्यवस्था में है. इस जनजाति में शिक्षा का भारी अभाव है.

Intro:उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के अंतर्गत वनों में रहने वाले वन जनजाति जो आज विलुप्त होने की कगार पर है उसी के लगभग 12 वर्ष पहले एक मामले को लेकर जसवंत सिंह जंपानगी लगातार जद्दोजहद कर रहे हैं! आज एक प्रेस वार्ता में उन्होंने न्याय की गुहार लगाते हुए कहा कि लगभग 12 वर्ष पहले पुलिस द्वारा जनजाति के दो बच्चों को जिनकी उम्र उस वक्त 10 से 12 वर्ष थी!जो आज 22 साल के हो गए हैं उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा की जिस समय पुलिस ने उनको मर्डर के केस में बंद किया था उस समय उनकी उम्र 10 से 12 वर्ष थी जिनको बाल सुधार गृह में भेजा जाना चाहिए था लेकिन पुलिस में झूठा केस बनाकर उनको सेंट्रल जेल में डाला हुआ है!गुहार लगाते हुए कहा है कि सरकार उन बच्चों की पैरवी के लिए कोई कदम उठाए और उनको बाहर निकाले!Body:साथ ही उन्होंने बताया कि एक और 1 जनजाति के 7 जून को पुलिस ने भगोड़ा घोषित कर रखा है वह भी आज तक नहीं मिले उन्होंने आरोप लगाया कि हमें शक है कि उनको पुलिस द्वारा मारकर कहीं फेंक दिया गया!उन्होंने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार जनजातियों को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपया खर्च कर रही है वही जो आज 500 लोग जनजाति के मुश्किल में है!वही लोगो के ऊपर झूठे आरोप लगाकर जेलों में ठूंसा जा रहा है!जिसके चलते जंतर-मंतर से लेकर प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति सहित सूबे के मुख्यमंत्री और राज्यपाल से गुहार लगाई और लगातार धरने प्रदर्शन करने के 5 वर्षों से अपने घर पर भी नहीं जा पा रहे है!
Conclusion:आरटीआई लोक सेवा अध्यक्ष मनोज ध्यानी ने बताया की की उत्तराखंड पिथौरागढ़ की जनजाति रहती है जो कि काफी शांत प्रिय है और इन जनजाति के बीच के लोग कोई अधिकारी नही है।सन 1990 ओर 1992 में जन्मे नाबालिक उन बच्चो को मर्डर चार्ज पर पुलिस ने उठाया और तीसरा व्यक्ति भी था जिसको लापता बागोड़ा दिखाया गया और आज तक उसका पता नही चला और हमे आशंका है कि उसे मार दिया गया है।और नाबालिक सेंट्रल जेल में हैं,15 साल से सेंट्रल जेल में है सिर्फ पैरवी न होने के कारण ओर जिस समय इन नाबालिकों को ग्रिफ्तार किया था उनकी उम्र सिर्फ 12 साल ओर 14 साल थी।पुलिस द्वारा इन युवकों की डीएनए टेस्ट से उम्र का पता लगाया जा सकता था।लेकिन पुलिस ने ऐसा नही किया।और हम लगातार न्याय की गुहार लगा रहे है।हम लोगो को सिर्फ जांच के लिए कहते लेकिन आज तक जांच पूरी नही हुई है।पुलिस द्वारा नाबालिकों के परिवार वालो को धमकाया जाता हैं।और हम न्याय की मांग करते है की सरकार उन बच्चों की पैरवी के लिए कोई कदम उठाए और उनको बाहर निकाले!

बाइट-मनोज ध्यानी(आरटीआई लोक सेवा अध्यक्ष)
Last Updated : Aug 13, 2019, 10:58 PM IST
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