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अद्भुत शिवालय: यहां भोलेनाथ पर बिजली गिराते हैं इंद्र, भक्तों को कष्टों से बचाते हैं महादेव - बिजली महादेव का इतिहास

पूरे भारत में भगवान शिव के प्रसिद्ध 12 ज्योतिरलिंग हैं, लेकिन ईटीवी भारत की खास सीरीज अद्भुत हिमाचल में हम आपको महादेव के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जहां हर 12 साल बाद शिवलिंग आसमानी बिजली गिरने से खंडित होकर टुकड़ों में बंट जाता है.

बिजली महादेव
बिजली महादेव
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Published : Jan 27, 2020, 8:06 AM IST

कुल्लू (हिमाचल प्रदेश): जिला कुल्लू के पहाड़ों पर आज भी एक ऐसी पहाड़ी है जहां भगवान शिव की आज्ञा का देवराज इंद्र पालन कर रहे हैं. पहाड़ी पर बने मंदिर में आज भी आसमानी बिजली गिरती है, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं होता. कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग 7 किलोमीटर दूर है

अद्भुत शिवालय
अद्भुत शिवालय

खराहल घाटी के शीर्ष पर बसा बिजली महादेव का मंदिर आज भी देश-विदेश से आने वाले लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. मान्यता है कि पहाड़ी रूप का दैत्य दोबारा जनमानस को कष्ट न पहुंचा सके, इसके लिए पहाड़ी के ऊपर शिवलिंग को स्थापित किया गया है और देवराज इंद्र को आदेश दिया गया कि वह हर 12 साल बाद शिवलिंग पर बिजली गिराएं.

bijli mahadev12 साल में गिरती है आसमानी बिजली.
12 साल में गिरती है आसमानी बिजली.

माना जाता है कि आज भी उस आदेश का पालन हो रहा है और शिवलिंग पर बिजली का गिरना जारी है. दैत्य के वध के बाद बनी उस पहाड़ी को आज बिजली महादेव के नाम से जाना जाता है, जो आज देश-विदेश में शिवभक्तों के लिए आस्था का केंद बन गई है.

पहाड़ी पर बना है शिवालय.
पहाड़ी पर बना है शिवालय.

विशालकाय सांप का रूप है कुल्लू घाटी
कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है. कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है. सांप का वध भगवान शिव ने किया था.

उमड़ते हैं भक्त
उमड़ते हैं भक्त

मन्दिर के भीतर स्थापित शिवलिंग पर हर 12 साल बाद भयंकर आसमानी बिजली गिरती है. बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है. यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं, कुछ ही माह बाद शिवलिंग एक ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है.

कुलांत नामक दैत्य रोकना चाहता था ब्यास नदी का प्रवाह
कुल्लू घाटी के जानकारों के अनुसार बहुत पहले यहां कुलांत नामक दैत्य रहता था. दैत्य कुल्लू के पास की नागणधार से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घरधार से होता हुआ लाहौल-स्पीति से मथाण गांव आ गया.

शिवलिंग
शिवलिंग

यह भी पढ़ेंः आपदा प्रभावित कोठीगाड़ को संवारेगा पर्यटन विभाग, स्नो स्कीइंग की बढ़ेंगी संभावनाएं

दैत्य रूपी अजगर कुंडली मार कर ब्यास नदी के प्रवाह को रोक कर इस जगह को पानी में डुबोना चाहता था. इसके पीछे उसका उद्देश्य यह था कि यहां रहने वाले सभी जीव-जंतु पानी में डूब कर मर जाएंगे. भगवान शिव कुलांत के इस विचार से चिंतित हो गए.

बिजली महादेव
बिजली महादेव

ऐेसे पड़ा कुल्लू का नाम
पौराणिक कथाओं के अनुसार बड़े जतन के बाद भगवान शिव ने उस राक्षस रूपी अजगर का वध किया था. कुलांत के मरते ही उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया. उसका शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला हुआ था वह पूरा का पूरा क्षेत्र पर्वत में बदल गया.

भक्तों को कष्टों से बचाते हैं बिजली महादेव

कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलांत के शरीर से निर्मित मानी जाती है. कुलांत से ही कुलूत और इसके बाद कुल्लू नाम के पीछे यही किवदंती कही जाती है.

12 साल में एक बार गिरती है शिवलिंग पर बिजली
मान्यता के अनुसार कुलांत दैत्य को मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वह 12 साल में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें. हर बारहवें साल में यहां आसमानी बिजली गिरती है. इस बिजली से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है. इसके बाद पुजारी शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके मक्खन से जोड़कर स्थापित कर लेता है. कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है.

इसलिए कहा जाता है बिजली महादेव
आकाशीय बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन-धन को इससे नुक्सान पहुंचे. भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं. इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है.

समुद्रतल से 2450 मीटर की ऊंचाई पर है स्थित
यह जगह समुद्रतल से 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. शीत काल में यहां भारी बर्फबारी होती है. बिजली महादेव का अपना ही महात्म्य व इतिहास है, ऐसा लगता है कि बिजली महादेव के इर्द-गिर्द समूचा कुल्लू का इतिहास घूमता है और हर मौसम में दूर-दूर से लोग बिजली महादेव के दर्शन करने आते हैं.

कुल्लू (हिमाचल प्रदेश): जिला कुल्लू के पहाड़ों पर आज भी एक ऐसी पहाड़ी है जहां भगवान शिव की आज्ञा का देवराज इंद्र पालन कर रहे हैं. पहाड़ी पर बने मंदिर में आज भी आसमानी बिजली गिरती है, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं होता. कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग 7 किलोमीटर दूर है

अद्भुत शिवालय
अद्भुत शिवालय

खराहल घाटी के शीर्ष पर बसा बिजली महादेव का मंदिर आज भी देश-विदेश से आने वाले लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. मान्यता है कि पहाड़ी रूप का दैत्य दोबारा जनमानस को कष्ट न पहुंचा सके, इसके लिए पहाड़ी के ऊपर शिवलिंग को स्थापित किया गया है और देवराज इंद्र को आदेश दिया गया कि वह हर 12 साल बाद शिवलिंग पर बिजली गिराएं.

bijli mahadev12 साल में गिरती है आसमानी बिजली.
12 साल में गिरती है आसमानी बिजली.

माना जाता है कि आज भी उस आदेश का पालन हो रहा है और शिवलिंग पर बिजली का गिरना जारी है. दैत्य के वध के बाद बनी उस पहाड़ी को आज बिजली महादेव के नाम से जाना जाता है, जो आज देश-विदेश में शिवभक्तों के लिए आस्था का केंद बन गई है.

पहाड़ी पर बना है शिवालय.
पहाड़ी पर बना है शिवालय.

विशालकाय सांप का रूप है कुल्लू घाटी
कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है. कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है. सांप का वध भगवान शिव ने किया था.

उमड़ते हैं भक्त
उमड़ते हैं भक्त

मन्दिर के भीतर स्थापित शिवलिंग पर हर 12 साल बाद भयंकर आसमानी बिजली गिरती है. बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है. यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं, कुछ ही माह बाद शिवलिंग एक ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है.

कुलांत नामक दैत्य रोकना चाहता था ब्यास नदी का प्रवाह
कुल्लू घाटी के जानकारों के अनुसार बहुत पहले यहां कुलांत नामक दैत्य रहता था. दैत्य कुल्लू के पास की नागणधार से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घरधार से होता हुआ लाहौल-स्पीति से मथाण गांव आ गया.

शिवलिंग
शिवलिंग

यह भी पढ़ेंः आपदा प्रभावित कोठीगाड़ को संवारेगा पर्यटन विभाग, स्नो स्कीइंग की बढ़ेंगी संभावनाएं

दैत्य रूपी अजगर कुंडली मार कर ब्यास नदी के प्रवाह को रोक कर इस जगह को पानी में डुबोना चाहता था. इसके पीछे उसका उद्देश्य यह था कि यहां रहने वाले सभी जीव-जंतु पानी में डूब कर मर जाएंगे. भगवान शिव कुलांत के इस विचार से चिंतित हो गए.

बिजली महादेव
बिजली महादेव

ऐेसे पड़ा कुल्लू का नाम
पौराणिक कथाओं के अनुसार बड़े जतन के बाद भगवान शिव ने उस राक्षस रूपी अजगर का वध किया था. कुलांत के मरते ही उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया. उसका शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला हुआ था वह पूरा का पूरा क्षेत्र पर्वत में बदल गया.

भक्तों को कष्टों से बचाते हैं बिजली महादेव

कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलांत के शरीर से निर्मित मानी जाती है. कुलांत से ही कुलूत और इसके बाद कुल्लू नाम के पीछे यही किवदंती कही जाती है.

12 साल में एक बार गिरती है शिवलिंग पर बिजली
मान्यता के अनुसार कुलांत दैत्य को मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वह 12 साल में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें. हर बारहवें साल में यहां आसमानी बिजली गिरती है. इस बिजली से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है. इसके बाद पुजारी शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके मक्खन से जोड़कर स्थापित कर लेता है. कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है.

इसलिए कहा जाता है बिजली महादेव
आकाशीय बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन-धन को इससे नुक्सान पहुंचे. भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं. इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है.

समुद्रतल से 2450 मीटर की ऊंचाई पर है स्थित
यह जगह समुद्रतल से 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. शीत काल में यहां भारी बर्फबारी होती है. बिजली महादेव का अपना ही महात्म्य व इतिहास है, ऐसा लगता है कि बिजली महादेव के इर्द-गिर्द समूचा कुल्लू का इतिहास घूमता है और हर मौसम में दूर-दूर से लोग बिजली महादेव के दर्शन करने आते हैं.

Intro:यहां आज भी भगवान शिव के आदेशों का पालन कर रहे देवराज इंद्र
आसमानी बिजली से खंडित होता है शिवलिंगBody:




जिला कुल्लू के पहाड़ों पर आज भी एक ऐसी पहाड़ी है जहां भगवान शिव की आज्ञा का देवराज इंद्र पालन कर रहे हैं। पहाड़ी पर बने मंदिर में आज भी आसमानी बिजली गिरती है लेकिन मन्दिर को कोई नुक्सान नहीं होता। खराहल घाटी के शीर्ष पर बसा बिजली महादेव का मंदिर आज भी देश-विदेश से आने वाले लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। मान्यता ये भी है कि पहाड़ी रूप का दैत्य दोबारा जनमानस को कष्ट न पहुंचा सके। इसके लिए पहाड़ी के ऊपर शिवलिंग को स्थापित किया गया और देवराज इंद्र को आदेश दिया गया कि वह हर 12 साल बाद शिवलिंग पर बिजली गिराएं। वहीं माना जाता है कि आज भी उस आदेश का पालन हो रहा है और शिवलिंग पर बिजली का गिरना जारी है। दैत्य के वध के बाद बनी उस पहाड़ी को आज बिजली महादेव के नाम से जाना जाता है। जो आज देश-विदेश में शिवभक्तों के लिए आस्था का केंद बन गई है।


विशालकाय सांप का रूप है कुल्लू घाटी
कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है। कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है। इस सांप का वध भगवान शिव ने किया था। जिस स्थान पर मंदिर स्थापित किया गया है। मन्दिर के भीतर स्थापित शिवलिंग पर हर 12 साल बाद भयंकर आसमानी बिजली गिरती है। बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है। यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं। कुछ ही माह बाद शिवलिंग एक ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है।


कुलांत नामक दैत्य रोकना चाहता था ब्यास नदी का प्रवाह
कुल्लू घाटी के जानकारों के अनुसार बहुत पहले यहां कुलांत नामक दैत्य रहता था। दैत्य कुल्लू के पास की नागणधार से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घरधार से होता हुआ लाहौल-स्पीति से मथाण गांव आ गया। दैत्य रूपी अजगर कुंडली मार कर ब्यास नदी के प्रवाह को रोक कर इस जगह को पानी में डुबोना चाहता था। इसके पीछे उसका उद्देश्य यह था कि यहां रहने वाले सभी जीव-जंतु पानी में डूब कर मर जाएंगे। भगवान शिव कुलांत के इस विचार से चिंतित हो गए।


ऐेसे पड़ा कुल्लू का नाम
पौराणिक कथाओं के अनुसार बड़े जतन के बाद भगवान शिव ने उस राक्षस रूपी अजगर का वध किया था। कुलांत के मरते ही उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया। उसका शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला हुआ था वह पूरा का पूरा क्षेत्र पर्वत में बदल गया। कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलांत के शरीर से निर्मित मानी जाती है। कुलांत से ही कुलूत और इसके बाद कुल्लू नाम के पीछे यही किवदंती कही जाती है।


12 साल में एक बार गिरती है शिवलिंग पर बिजली
मान्यता के अनुसार कुलांत दैत्य को मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वह 12 साल में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें। हर बारहवें साल में यहां आसमानी बिजली गिरती है। इस बिजली से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है। इसके बाद पुजारी शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके मक्खन से जोड़कर स्थापित कर लेता है। कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है।


इसलिए कहा जाता है बिजली महादेव
आकाशीय बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन-धन को इससे नुक्सान पहुंचे। भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं। इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है। सावन के महीने में यहां मेला लगा रहता है। कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग 7 किलोमीटर दूर है। शिवरात्रि पर भी यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है।


Conclusion:

समुद्रतल से 2450 मीटर की ऊंचाई पर है स्थित
यह जगह समुद्रतल से 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। शीत काल में यहां भारी बर्फबारी होती है। कुल्लू में भी महादेव प्रिय देवता हैं। कहीं वे सयाली महादेव हैं तो कहीं ब्राणी महादेव। कहीं वे जुवाणी महादेव हैं तो कहीं बिजली महादेव। बिजली महादेव का अपना ही महात्म्य व इतिहास है। ऐसा लगता है कि बिजली महादेव के इर्द-गिर्द समूचा कुल्लू का इतिहास घूमता है और हर मौसम में दूर-दूर से लोग बिजली महादेव के दर्शन करने आते हैं।
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