देहरादून: उत्तराखंड का जोशीमठ शहर इन दिन चर्चाओं में (joshimath sinking hill town) है. इस शहर पर खतरे के बादल मंडरा रहे (threat of land subsidence of joshimath) हैं. एक तरफ घरों में दरारें पड़ रही हैं तो दूसरी तरफ जमीन के नीचे से पानी की धारा फूट रही है. हालत इस कदर खराब हो चुके हैं कि लोग अपने घरों को छोड़कर जा रहे हैं. कई परिवार तो शहर भी छोड़ चुके हैं. ऐसे में एक बार फिर यही सवाल खड़ा होने लगा है कि आखिर इन हालत का जिम्मेदारी कौन है, किसकी वजह से आज ये स्थितियों पैदा हुई. इन परिस्थितियों से हमने भविष्य के लिए क्या सबक लिया?
आपदा के लिहाज से संवेदनशील राज्य उत्तराखंड: आपदा के लिहाज से उत्तराखंड पहले से ही संवेदनशील राज्य की श्रेणी में आता है. हर साल मॉनसून यहां सुखद मौसम के साथ तबाही भी लेकर आता है, जिसमें बड़ी संख्या में जान जाती हैं. साल 2022 में उत्तराखंड में दैवीय आपदाएं कहर बनकर टूटी थी. साल 2013 में केदारनाथ की आपदा के जख्म अभी भी हरे हैं. लेकिन न तो हमने 2013 की केदारनाथ आपदा और न ही हर साल आने वाली मॉनसूनी तबाही से कुछ सीखा है. यही कारण है कि आज उत्तराखंड के शहर खतरे के मुहाने पर खड़े हैं.
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अंधाधुंध विकास का परिणाम: उत्तराखंड में हर साल आने वाली तबाही की एक बड़ी वजह पहाड़ों पर हो रहा अंधाधुंध विकास भी है. पहाड़ों पर हो रहे बेलगाम निर्माण पर हर किसी ने चुप्पी साध रखी है. आज जो जोशीमठ शहर धंसने की कगार पर पहुंच गया है, कल तक वहां सात मंजिला होटल के निर्माण का रास्ता निकाला जा रहा था. उस वक्त किसी को तबाह होने की कगार पर खड़े जोशीमठ की याद नहीं आई. जितनी तेजी से नियमों को ताक पर रखकर जोशीमठ में कंक्रीट का जंगल खड़ा किया गया, आज उसी रफ्तार से जोशीमठ में इमारतें गिरने की कगार पर पहुंच चुकी हैं. ऐसे में जोशीमठ से लोगों के विस्थापन और पुनर्वास की मांग उठने लगी है. इसके लिए सरकार भी गंभीर दिख रही है. सरकार 15 जनवरी तक सर्वे और चिन्हीकरण का काम पूरा कर लेगी.
10 सालों में 3 हजार परिवारों को किया गया विस्थापित: विकास की सूली पर चढ़ने वाला जोशीमठ उत्तराखंड का पहला शहर या गांव नहीं है. राज्य गठन के बाद से लेकर अभीतक करीब तीन हजार परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है. इसमें करीब 125 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं. राज्य गठन के बाद साल 2011 में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन के तहत बनी पुनर्वास नीति के बाद से ही हर साल आपदा प्रभावित गांवों का पुनर्वास और विस्थापन की प्रक्रिया चलाई जा रही है.
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साल 2011 में बनी पुनर्वास नीति के बाद साल 2012 से लेकर अब तक अत्यंत संवेदनशील 88 गांवों में 1469 परिवारों के विस्थापन के लिए कुल 63 करोड़ 10 लाख 60 हजार की धनराशि खर्च की जा चुकी है. वहीं हर साल आने वाली आपदा के चलते भी हर साल होने वाले नुकसान के बाद उसकी भरपाई के लिए आपदा प्रबंधन विभाग पुनर्वास नीति के तहत राहत राशि जारी की जा रही है, जिसका वर्षवार विवरण कुछ इस तरह से है.
विस्थापन के लंबित मामले: बता दें कि जोशीमठ के अलावा चमोली जिले के थराली, घाट और जोशीमठ में ही 52 परिवारों के विस्थापन की प्रक्रिया शासन और जिला स्तर पर लंबित है. इसके अलावा रुद्रप्रयाग जिले में जखोली, मलनाऊं, छांतीखाल, झालीमठ, उखीमठ दिलमी दैड़ा, बसुकेदार और सिलवाड़ी में 49 परिवारों के विस्थापन की प्रक्रिया शासन और जिला स्तर पर लंबित है. इसके अलावा चंपावत में 7, टिहरी में 2, नैनिताल में 8 और देहरादून में भी 13 परिवारों के विस्थापन की प्रक्रिया शासन स्तर पर लंबित है.
78 परिवारों पर खतरा: ऐसे देखें तो कुल 78 परिवार ऐसे हैं, जिन्हें आपदा के खतरे के साये में जीने को मजबूर होना पड़ रहा है. लेकिन यहां पर ध्यान देने वाली बात ये है कि इनमें से एक भी विस्थापन का मामला इस वक्त के सबसे ज्वलंत विषय जोशीमठ शहर को लेकर नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि जोशीमठ शहर में आपदा से प्रभावित लोगों के चिन्हीकरण की प्रक्रिया चल रही है. आगामी 15 जनवरी को जिलाधिकारी की बैठक के बाद स्पष्ट हो पायेगा कि आखिरकार अब कुल कितने लोग विस्थापन और पुनर्वास की लाइन में खड़े होंगे.
शासन-प्रशासन की चिंता: सरकार, शासन और प्रशासन के सामने न सिर्फ जमीन में धंसते जोशीमठ शहर को बचाने की चिंता है, बल्कि यहां बरसों से बसे लोगों का विस्थापन और पुनर्वास भी करना बड़ी चुनौती होगा. क्योंकि डर के मारे लोग घरों में रहना नहीं चाहते हैं और ठंड में रात बाहर गुजरना भी कोई आसान काम नहीं है. ऐसी कड़ाके की ठंड में लोग अपना घर छोड़कर जाएं तो जाएं कहां.
उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सचिव रंजीत सिन्हा के मुताबिक अभी जोशीमठ में ऐसे लोगों पहले शिफ्ट किया जाएगा, जिनके घरों में दरारें ज्यादा हैं. शासन स्तर पर ऐसे लोगों की सुरक्षा के लिए उन्हें अलग स्थानों पर शिफ्ट किया जाएगा. ताकि किसी बड़े संकट के बचा जा सके. शासन प्रशासन हर तरह से स्थानीय लोगों की मदद में जुटा है.
इसके अलावा आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा ने बताया कि उन्होंने जिलाधिकारी को निर्देश दिए हैं कि मौसम की विषम परिस्थितियों में आपदा पीड़ितों के लिए तत्काल अस्थाई रूप से व्यवस्था की जाए और राहत शिविर की अगर जरूरत है तो लगाए जाएं. इसके साथ ही होटल में यात्रियों के रुकने पर रोक लगाई गई है. जोशीमठ शहर में हो रहे अनियंत्रित निर्माण को लेकर जल्द ही एक बैठक बुलाई गई है. उनका कहना है कि जरूरत पड़ी तो जोशीमठ शहर में निर्माण कार्यों पर रोक भी लगाई जा सकती है.