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पर्यावरण के 'गांधी' पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा की 95वीं जयंती, दिग्गजों ने दी श्रद्धांजलि

आज पर्यावरणविद, दार्शनिक और सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में विख्यात, पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा की 95वीं जयंती है. उन्होंने हिमालय के वृक्षों के कटान के खिलाफ आयोजित 'चिपको आंदोलन' में अपनी अहम भूमिका निभाई थी. वह अपने नारे 'पारिस्थितिकी स्थायी अर्थव्यवस्था है' के लिए याद किये जाते हैं. 21 मई 2021 को 94 वर्ष की आयु में कोरोना संक्रमण के कारण उनका निधन हो गया था.

sunderlal bahuguna
सुंदरलाल बहुगुणा जयंती
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Published : Jan 9, 2022, 11:10 AM IST

Updated : Jan 9, 2022, 7:21 PM IST

देहरादूनः देश के पर्यावरण को संरक्षित करने में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले विश्व विख्यात पर्यावरणविद्, पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा की आज 95वीं जयंती है. उत्तराखंड के मंत्री सतपाल महाराज, अरविंद पांडे, दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल, कर्नल अजय कोठियाल ने पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा की जयंती पर उन्हें याद करते हुए ट्वीट कर उन्हें नमन किया है. सुंदर लाल बहुगुणा ने अपने जीवनकाल में सदियों पुरानी प्रकृति के साथ रहने की रीति को जिंदा रखा. उनकी सादगी और दया भाव भुलाए नहीं जा सकते हैं. यही कारण है कि उन्हें पर्यावरण का 'गांधी' भी कहा जाता है.

सुंदरलाल बहुगुणा का राजनीतिक और सामाजिक जीवनः पद्म विभूषण सुंदर लाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को टिहरी गढ़वाल के मरोड़ा गांव में हुआ था. 13 साल की उम्र में उनके राजनीतिक करियर शुरुआत हुई. दरअसल, राजनीति में आने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया था. सुमन गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे. सुंदरलाल ने उनसे सीखा कि कैसे अहिंसा के मार्ग से समस्याओं का समाधान करना है. 18 साल की उम्र में वह पढ़ने के लिए लाहौर गए. 23 साल की उम्र में उनका विवाह विमला देवी के साथ हुआ.1956 में उनकी शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया. उसके बाद उन्होंने गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला. उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला. 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया.

ये भी पढ़ेंः Himalaya Diwas 2021: पर्वतराज को बचाने के लिए हवा, पानी, जंगल और मिट्टी पर फोकस जरूरी

चिपको आंदोलन में भूमिकाः पर्यावरण सुरक्षा के लिए 1970 में शुरू हुआ आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगा. चिपको आंदोलन उसी का एक हिस्सा था. गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ रहे थे. 26 मार्च, 1974 को चमोली जिला की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं, जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए. यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए. 1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5000 किलोमीटर की यात्रा की. उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया. उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया. इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई.

टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलनः बहुगुणा ने टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की. तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के शासनकाल के दौरान उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी. सालों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 2004 में बांध पर फिर से काम शुरू किया गया. उनका कहना है कि इससे सिर्फ धनी किसानों को फायदा होगा और टिहरी के जंगल में बर्बाद हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि भले ही बांध भूकंप का सामना कर लेगा, लेकिन यह पहाड़ियां नहीं कर पाएंगे. उन्होंने कहा कि पहले से ही पहाड़ियों में दरारें पड़ गई हैं. अगर बांध टूटा तो 12 घंटे के अंदर बुलंदशहर तक का इलाका उसमें डूब जाएगा.

श्रीनगर गढ़वाल में बहुगुणा को किया गया याद: हिमालय बचाओ आंदोलन एवं पर्वतीय विकास शोध केंद्र की ओर से श्रीनगर में विश्वविख्यात पर्यावरणविद स्व. सुंदरलाल बहुगुणा की जयंती कोरोना के चलते सादगीपूर्ण तरीके से मनाई गई. इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि राज्य सरकार को सुंदरलाल बहुगुणा के नाम पर एक राष्ट्रीय संस्थान खोले जाने की पहल करनी चाहिए. जिसमें जलवायु परिवर्तन एवं उसके दुष्प्रभावों को रोकने में कार्य करने वाले लोगों को सम्मान के साथ-साथ परंपरागत पर्यावरण का ज्ञान संरक्षित रह सके. हिमालय बचाओ आंदोलन के संयोजक समीर रतूड़ी ने कहा बहुगुणा के कार्यों से ही उत्तराखंड की पहचान पूरे विश्व में बनीं. उन्होंने बहुगुणा के नाम पर राज्य स्तरीय पुरस्कार शुरू किए जाने पर सरकार का धन्यवाद भी ज्ञापित किया. पर्वतीय विकास शोध केंद्र के नोडल अधिकारी डॉ. अरविंद दरमोड़ा ने विवि के कुलपति से अनुरोध किया कि पर्यावरण संरक्षण में सुंदरलाल बहुगुणा के द्वारा किए गए कार्यों को देखते हुए उनके पर विवि में एक संस्थान खोला जाए.

देहरादूनः देश के पर्यावरण को संरक्षित करने में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले विश्व विख्यात पर्यावरणविद्, पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा की आज 95वीं जयंती है. उत्तराखंड के मंत्री सतपाल महाराज, अरविंद पांडे, दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल, कर्नल अजय कोठियाल ने पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा की जयंती पर उन्हें याद करते हुए ट्वीट कर उन्हें नमन किया है. सुंदर लाल बहुगुणा ने अपने जीवनकाल में सदियों पुरानी प्रकृति के साथ रहने की रीति को जिंदा रखा. उनकी सादगी और दया भाव भुलाए नहीं जा सकते हैं. यही कारण है कि उन्हें पर्यावरण का 'गांधी' भी कहा जाता है.

सुंदरलाल बहुगुणा का राजनीतिक और सामाजिक जीवनः पद्म विभूषण सुंदर लाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को टिहरी गढ़वाल के मरोड़ा गांव में हुआ था. 13 साल की उम्र में उनके राजनीतिक करियर शुरुआत हुई. दरअसल, राजनीति में आने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया था. सुमन गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे. सुंदरलाल ने उनसे सीखा कि कैसे अहिंसा के मार्ग से समस्याओं का समाधान करना है. 18 साल की उम्र में वह पढ़ने के लिए लाहौर गए. 23 साल की उम्र में उनका विवाह विमला देवी के साथ हुआ.1956 में उनकी शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया. उसके बाद उन्होंने गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला. उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला. 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया.

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चिपको आंदोलन में भूमिकाः पर्यावरण सुरक्षा के लिए 1970 में शुरू हुआ आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगा. चिपको आंदोलन उसी का एक हिस्सा था. गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ रहे थे. 26 मार्च, 1974 को चमोली जिला की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं, जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए. यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए. 1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5000 किलोमीटर की यात्रा की. उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया. उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया. इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई.

टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलनः बहुगुणा ने टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की. तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के शासनकाल के दौरान उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी. सालों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 2004 में बांध पर फिर से काम शुरू किया गया. उनका कहना है कि इससे सिर्फ धनी किसानों को फायदा होगा और टिहरी के जंगल में बर्बाद हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि भले ही बांध भूकंप का सामना कर लेगा, लेकिन यह पहाड़ियां नहीं कर पाएंगे. उन्होंने कहा कि पहले से ही पहाड़ियों में दरारें पड़ गई हैं. अगर बांध टूटा तो 12 घंटे के अंदर बुलंदशहर तक का इलाका उसमें डूब जाएगा.

श्रीनगर गढ़वाल में बहुगुणा को किया गया याद: हिमालय बचाओ आंदोलन एवं पर्वतीय विकास शोध केंद्र की ओर से श्रीनगर में विश्वविख्यात पर्यावरणविद स्व. सुंदरलाल बहुगुणा की जयंती कोरोना के चलते सादगीपूर्ण तरीके से मनाई गई. इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि राज्य सरकार को सुंदरलाल बहुगुणा के नाम पर एक राष्ट्रीय संस्थान खोले जाने की पहल करनी चाहिए. जिसमें जलवायु परिवर्तन एवं उसके दुष्प्रभावों को रोकने में कार्य करने वाले लोगों को सम्मान के साथ-साथ परंपरागत पर्यावरण का ज्ञान संरक्षित रह सके. हिमालय बचाओ आंदोलन के संयोजक समीर रतूड़ी ने कहा बहुगुणा के कार्यों से ही उत्तराखंड की पहचान पूरे विश्व में बनीं. उन्होंने बहुगुणा के नाम पर राज्य स्तरीय पुरस्कार शुरू किए जाने पर सरकार का धन्यवाद भी ज्ञापित किया. पर्वतीय विकास शोध केंद्र के नोडल अधिकारी डॉ. अरविंद दरमोड़ा ने विवि के कुलपति से अनुरोध किया कि पर्यावरण संरक्षण में सुंदरलाल बहुगुणा के द्वारा किए गए कार्यों को देखते हुए उनके पर विवि में एक संस्थान खोला जाए.

Last Updated : Jan 9, 2022, 7:21 PM IST
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