देहरादून: 26 जुलाई 1999 में हुए कारगिल लड़ाई में भारतीय सेना ने पड़ोसी मुल्क की सेना को चारों खाने चित कर विजय हासिल की. अति दुर्गम घाटियों व पहाड़ियों में देश की आन-बान और शान के लिए भारतीय सेना के 526 जवान शहीद हुए थे. देवभूमि उत्तराखंड के 75 जांबाजों ने देश की रक्षा करते हुए बलिदान दिया था. इनमें से 37 जांबाजों के परिजनों को बहादुरी का पुरस्कार मिला था.
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उत्तराखंड के लिए यह कारगिल विजय दिवस मायने रखता है. राज्य का ऐसा कोई जिला नहीं है जिसने अपने वीर सपूतों को इस युद्ध में न खोया हो.
चलिए हम भी उन वीर सपूतों के बारे में जान लेते हैं... जिन्हे उनकी जांबाजी के लीए सम्मान से नवाजा गया....
एक छोटे राज्य के जांबाजों का ये जज्बा आज भी पहाड़ भुला नहीं पाया है. जब गढ़वाल रेजीमेंटल सेंटर के परेड ग्राउंड पर हेलीकॉप्टर से शहीदों के 9 शव एक साथ उतारे गए तो मानो पूरा पहाड़ अपने लाडलों की शहादत पर रो पड़ा था.
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साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने अपने 524 सैनिकों को खो दिया था, 1363 सैनिक गंभीर रूप से घायल हुए थे. इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना के लगभग चार हजार जवान मारे गए थे.
कारगिल ऑपरेशन में गढ़वाल राइफल्स के 47 जवान शहीद हुए थे, जिनमें 41 जांबाज उत्तराखंड मूल के ही थे. वहीं, कुमाऊं रेजीमेंट के भी 16 जांबाज शहीद हुए थे. जवानों ने कारगिल, द्रास, मशकोह, बटालिक जैसी दुर्गम घाटी में दुश्मन से जमकर लोहा लिया. युद्ध में वीरता प्रदर्शित करने पर मिलने वाले वीरता पदक इसी की बानगी है.