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बड़ा धोखा: सैनिटाइजर टेस्टिंग अभियान में 56% नमूने फेल, पाया गया मेथेनॉल, चंपावत-चमोली सबसे आगे - सैनिटाइजर में अल्कोहल की मात्रा

उत्तराखंड की स्पेक्स संस्था ने सैनिटाइजर पर सवाल खड़ा किया है. स्पेक्स ने मई से जुलाई महीने के बीच उत्तराखंड के सभी जिलों में सैनिटाइजर टेस्टिंग अभियान चलाया. अभियान में 1050 नमूनों में से 578 नमूनों में अल्कोहल की मात्रा मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई है.

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देहरादून
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Published : Aug 4, 2021, 7:08 PM IST

Updated : Aug 4, 2021, 10:52 PM IST

देहरादूनः भारत में 2020 फरवरी में कोरोना की दस्तक के बाद से सैनिटाइजर की मांग लगातार मांग बढ़ी है. कोरोना गाइडलाइन के मुताबिक हर शख्स को दिन में करीब 5 बार सैनिटाइजर लगाना है या साबुन से हाथ धोना चाहिए. लेकिन स्पेक्स संस्था ने सैनिटाइजर पर सवाल खड़ा किया है. स्पेक्स ने मई से जुलाई महीने के बीच उत्तराखंड के सभी जिलों में सैनिटाइजर टेस्टिंग अभियान चलाया. अभियान में 1050 नमूने इकट्ठे किए गए. इस दौरान 578 नमूनों में अल्कोहल की प्रतिशत मात्रा मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई. संस्था के मुताबिक कुछ लोगों ने इसमें मानकों की अनदेखी करके सैनिटाइजर बाजार में बेचना शुरू कर दिया है.

सैनिटाइजर की गुणवत्ता जांचने के लिए उत्तराखंड की स्वयंसेवी संस्था सोसायटी ऑफ पॉल्यूशन एंड एनवायरनमेंट कंजर्वेशन साइंटिस्ट (स्पेक्स) ने उत्तराखंड के प्रत्येक जिले में एक अध्ययन किया. अध्ययन 3 मई से 5 जुलाई 2021 तक किया गया. नमूनों में अल्कोहल परसेंटेज के साथ हाइड्रोजन पेरोक्साइड, मेथेनॉल और रंगों की गुणवत्ता का परीक्षण अपनी प्रयोगशाला में किया.

सैनिटाइजर टेस्टिंग अभियान में स्पेक्स संस्था का दावा, 56% नमूने फेल

परीक्षण करने के बाद जानकारी मिली कि लगभग 56% सैनिटाइजर में अल्कोहल मानकों के अनुरूप नहीं पाया गया है. यानी 1050 नमूनों में से 578 नमूने फेल हुए. 8 नमूनों में मेथेनॉल पाया गया है. इसके अलावा लगभग 112 नमूनों में हाइड्रोजन पेरोक्साइड का प्रतिशत मानकों से अधिक पाया गया. साथ ही 278 नमूनों में टॉक्सिक रंग मिला है. बता दें कि सैनिटाइजर में अल्कोहल की मात्रा 60-80 प्रतिशत होनी चाहिए और हाइड्रोजन पेरोक्साइड की मात्रा 0.5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, साथ ही मेथेनॉल भी नहीं होना चाहिए.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में स्कूल खोलने के फैसले को चुनौती, HC ने सरकार से मांगा जवाब

जिलों के अनुसार आंकड़ेः चंपावत और चमोली में सबसे ज्यादा 64% नमूने फेल पाए गए हैं. अल्मोड़ा में 56% नमूने फेल हुए हैं. इसके अलावा बागेश्वर में 48%, पिथौरागढ़ में 49%, उधम सिंह नगर में 56%, हरिद्वार में 52%, देहरादून में 48%, पौड़ी में 54%, टिहरी में 58%, रुद्रप्रयाग में 60%, उत्तरकाशी में 52% और नैनीताल में 56% सैनिटाइजर के नमूनों में अल्कोहल मानकों के अनुरूप नहीं था. संस्था का अनुमान है कि सैनिटाइजर में अल्कोहल की पर्याप्त मात्रा नहीं होने के कारण भी उत्तराखंड में कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ी है.

स्पेक्स संस्था के सचिव बृज मोहन शर्मा ने बताया कि मेथेनॉल त्वचा को खराब भी कर सकता है. इससे डर्मेटाइटिस हो सकता है. साथ ही मेथेनॉल एक्स्पोजर के लक्षणों में सिर दर्द, कमजोरी, सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन, धुंधली दृष्टि, चेतना की हानि और संभावित मृत्यु शामिल है. वहीं हाइड्रोजन पेरोक्साइड भी लिपिड प्रति ऑक्सीजन के माध्यम से एक सीधा प्रभाव डाल सकता है. हाइड्रोजन पेरोक्साइड के कारण से उल्टी, मुंह से झाग निकलने के अलावा भी कई बीमारियां हो सकती हैं.

देहरादूनः भारत में 2020 फरवरी में कोरोना की दस्तक के बाद से सैनिटाइजर की मांग लगातार मांग बढ़ी है. कोरोना गाइडलाइन के मुताबिक हर शख्स को दिन में करीब 5 बार सैनिटाइजर लगाना है या साबुन से हाथ धोना चाहिए. लेकिन स्पेक्स संस्था ने सैनिटाइजर पर सवाल खड़ा किया है. स्पेक्स ने मई से जुलाई महीने के बीच उत्तराखंड के सभी जिलों में सैनिटाइजर टेस्टिंग अभियान चलाया. अभियान में 1050 नमूने इकट्ठे किए गए. इस दौरान 578 नमूनों में अल्कोहल की प्रतिशत मात्रा मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई. संस्था के मुताबिक कुछ लोगों ने इसमें मानकों की अनदेखी करके सैनिटाइजर बाजार में बेचना शुरू कर दिया है.

सैनिटाइजर की गुणवत्ता जांचने के लिए उत्तराखंड की स्वयंसेवी संस्था सोसायटी ऑफ पॉल्यूशन एंड एनवायरनमेंट कंजर्वेशन साइंटिस्ट (स्पेक्स) ने उत्तराखंड के प्रत्येक जिले में एक अध्ययन किया. अध्ययन 3 मई से 5 जुलाई 2021 तक किया गया. नमूनों में अल्कोहल परसेंटेज के साथ हाइड्रोजन पेरोक्साइड, मेथेनॉल और रंगों की गुणवत्ता का परीक्षण अपनी प्रयोगशाला में किया.

सैनिटाइजर टेस्टिंग अभियान में स्पेक्स संस्था का दावा, 56% नमूने फेल

परीक्षण करने के बाद जानकारी मिली कि लगभग 56% सैनिटाइजर में अल्कोहल मानकों के अनुरूप नहीं पाया गया है. यानी 1050 नमूनों में से 578 नमूने फेल हुए. 8 नमूनों में मेथेनॉल पाया गया है. इसके अलावा लगभग 112 नमूनों में हाइड्रोजन पेरोक्साइड का प्रतिशत मानकों से अधिक पाया गया. साथ ही 278 नमूनों में टॉक्सिक रंग मिला है. बता दें कि सैनिटाइजर में अल्कोहल की मात्रा 60-80 प्रतिशत होनी चाहिए और हाइड्रोजन पेरोक्साइड की मात्रा 0.5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, साथ ही मेथेनॉल भी नहीं होना चाहिए.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में स्कूल खोलने के फैसले को चुनौती, HC ने सरकार से मांगा जवाब

जिलों के अनुसार आंकड़ेः चंपावत और चमोली में सबसे ज्यादा 64% नमूने फेल पाए गए हैं. अल्मोड़ा में 56% नमूने फेल हुए हैं. इसके अलावा बागेश्वर में 48%, पिथौरागढ़ में 49%, उधम सिंह नगर में 56%, हरिद्वार में 52%, देहरादून में 48%, पौड़ी में 54%, टिहरी में 58%, रुद्रप्रयाग में 60%, उत्तरकाशी में 52% और नैनीताल में 56% सैनिटाइजर के नमूनों में अल्कोहल मानकों के अनुरूप नहीं था. संस्था का अनुमान है कि सैनिटाइजर में अल्कोहल की पर्याप्त मात्रा नहीं होने के कारण भी उत्तराखंड में कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ी है.

स्पेक्स संस्था के सचिव बृज मोहन शर्मा ने बताया कि मेथेनॉल त्वचा को खराब भी कर सकता है. इससे डर्मेटाइटिस हो सकता है. साथ ही मेथेनॉल एक्स्पोजर के लक्षणों में सिर दर्द, कमजोरी, सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन, धुंधली दृष्टि, चेतना की हानि और संभावित मृत्यु शामिल है. वहीं हाइड्रोजन पेरोक्साइड भी लिपिड प्रति ऑक्सीजन के माध्यम से एक सीधा प्रभाव डाल सकता है. हाइड्रोजन पेरोक्साइड के कारण से उल्टी, मुंह से झाग निकलने के अलावा भी कई बीमारियां हो सकती हैं.

Last Updated : Aug 4, 2021, 10:52 PM IST
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