देहरादून: उत्तराखंड में मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाएं वन विभाग और सरकार के लिए चुनौती बनती जा रही है. इस संघर्ष से पार पाने के लिए वन विभाग की तरफ से कुछ कदम भी उठाए गए हैं, लेकिन धरातल पर उनका कोई खास असर नहीं दिख रहा है, बल्कि हालात हर साल बदतर होते जा रहे हैं. इस साल के आंकड़े और चौंकाने वाले हैं. प्रदेश में इस साल अभीतक मानव-वन्यजीव संघर्ष में 22 लोगों की मौत हो चुकी है.
उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए राज्य सरकार कई योजनाएं संचालित कर रही है, ताकि मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोका जा सके. हालांकि, वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते इस साल जुलाई महीने तक वन्यजीव मानव संघर्ष के मामले बेहद कम देखे गए हैं. ऐसे में अब वन विभाग मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए तमाम कार्य कर रहा है, ताकि इसमें और कमी लाई जा सके.
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उत्तराखंड राज्य न सिर्फ एक पर्वतीय क्षेत्र है बल्कि चारों ओर वन क्षेत्र से भी घिरा हुआ है. मौजूदा समय में उत्तराखंड का 70 फीसदी हिस्सा वन क्षेत्र का है. यही कारण है कि आमतौर पर प्रदेश के तमाम पहाड़ी क्षेत्रों में वन्य जीव अमूमन तौर पर देखने को मिलते हैं. कई बार से वन्यजीव रिहायशी इलाकों में घुस जाते हैं. तभी मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटना देखने को मिलती है.
इस बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने बताया कि यहां मानव और वन्यजीव दोनों को रहना है, ऐसे में हमें इस बात को सीखने की जरूरत है कि दोनों मिलकर कैसे रहे? मानव-वन्यजीव संघर्ष नहीं है बल्कि मैन एनिमल को-एक्जिस्टेंस की है, जो सभी को समझने की जरूरत है. अगर कहीं पर मानव वन्यजीव के संघर्ष का मामला सामने आता है तो डीएफओ मौके पर पहुंचकर कमान संभालते हैं.
वन्यजीवों के प्रति किया जा रहा है लोगों को जागरूक
प्रमुख वन संरक्षक जयराम ने बताया कि उत्तराखंड में जंगलों के किनारे रह रहे लोगों को वन्यजीव के साथ कैसे रहा जा सकता है, इसके लिए जागरूक किया जा रहा है. ग्रामीणों को बताया जाता है कि गांव के आसपास झाड़ियां न उगने दें. खुले में शौच न करें. शाम के समय आंगन या घर के बाहर लाइट जलाकर रखें और बच्चों को ग्रुप में स्कूल भेजें.
नौ सालों के आंकड़ों पर एक नजर
साल | लोगों की मौत | लोग घायल | मवेशियों की मौत |
2012-13 | 49 | 218 | 5,144 |
2013-14 | 34 | 220 | 3,157 |
2014-15 | 32 | 193 | 2,583 |
2015-16 | 43 | 170 | 3,244 |
2016-17 | 69 | 463 | 8,187 |
2017-18 | 39 | 285 | 4,773 |
2018-19 | 60 | 234 | 3,315 |
2019-20 | 68 | 304 | 4,364 |
2020-21 | 22 | 99 | 1,931 |