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1994 का मुजफ्फनगर कांड: दोषियों को 27 साल बाद भी नहीं मिल पाई सजा, जानिए पूरा घटनाक्रम

आज मुजफ्फरनगर कांड की 27वीं बरसी है. मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर 2 अक्टूबर, 1994 के दिन हुई बर्बरता याद कर आज भी राज्य आंदोलनकारियों का दिल दहल उठता है. आज ईटीवी भारत आपको रामपुर तिराहा कांड की कहानी से रू-ब-रू करवाने जा रहा है.

rampur tiraha goli kand
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Published : Oct 2, 2021, 4:56 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड राज्य गठन को 21 साल पूरे होने जा रहे हैं लेकिन आज भी राज्य आंदोलनकारियों के जेहन में 02 अक्टूबर, 1994 को हुए रामपुर तिराहा कांड की तस्वीरें ताजा हैं. रामपुर तिराहा कांड को मुजफ्फरनगर कांड भी कहा जाता है. रामपुर तिराहा गोली कांड की 27वीं बरसी के अवसर पर आज हम आपको 1994 में हुए रामपुर तिराहा कांड की पूरी कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं.

मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर 2 अक्टूबर, 1994 के दिन हुई बर्बरता को याद कर राज्य आंदोलनकारियों की रूह कांप जाती है. उस रात न सिर्फ कई लोगों ने अपनी जान गंवाई बल्कि तमाम महिलाओं की जिंदगियां तबाह कर दी गईं. इस घटना को आज 27 साल बीत चुके हैं लेकिन लोगों के जख्म अभी भी हरे हैं. मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर हुई इस बर्बरता के मामले में 27 साल बाद भी दोषियों को सजा नहीं हुई है. इसके साथ ही इस कांड के गवाह भी नहीं रहे हैं. ऐसे में रामपुर तिराहा कांड के दोषियों को सजा कब मिलेगी ? ये अभी भी बड़ा सवाल बना हुआ है.

रामपुर तिराहा गोलीकांड की दर्द भरी कहानी.

मुजफ्फरनगर कांड की दर्दभरी दस्तान: यह पूरा घटना क्रम 1 अक्टूबर, 1994 की रात से जुड़ा है, जब आंदोलनकारी उत्तर प्रदेश से अलग कर पहाड़ी प्रदेश की मांग कर रहे थे. राज्य आंदोलनकारी दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए इस पर्वतीय क्षेत्र की अलग-अलग जगहों से 24 बसों में सवार हो कर 1 अक्टूबर को रवाना हो गये. देहरादून से आंदोलनकारियों के रवाना होते ही इनको रोकने की कोशिश की जाने लगी. इस दौरान पुलिस ने रुड़की के गुरुकुल नारसन बॉर्डर पर नाकाबंदी की, लेकिन आंदोलनकारियों की जिद के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा और फिर आंदोलनकारियों का हुजूम यहां से दिल्ली के लिए रवाना हो गया. लेकिन मुजफ्फरनगर पुलिस ने उन्हें रामपुर तिराहे पर रोकने की योजना बनाई और पूरे इलाके को सील कर आंदोलनकारियों को रोक दिया.

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रामपुर तिराहा गोली कांड की तस्वीर.

यूपी पुलिस ने पार की सारी हदें: आंदोलनकारियों को पुलिस ने मुजफ्फरनगर में रोक तो लिया लेकिन आंदोलनकारी दिल्ली जाने की जिद पर अड़ गए. इस दौरान पुलिस से आंदोलनकारियों की नोकझोंक शुरू हो गई. इस बीच जब राज्य आंदोलनकारियों ने सड़क पर नारेबाजी शुरू कर दी तो अचानक यहां पथराव शुरू हो गया, जिसमें मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह घायल हो गए, जिसके बाद यूपी पुलिस ने बर्बरता की सभी हदें पार करते हुए राज्य आंदोलनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर लाठियों से पीटना शुरू कर दिया और लगभग ढाई सौ से ज्यादा राज्य आंदोलनकारियों को हिरासत में भी ले लिया गया.

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राज्य आंदोलनकारियों को रोकती पुलिस.

यूपी पुलिस की बर्बरता: उस रात ऐसा कुछ भी हुआ जिसने तमाम महिलाओं की जिंदगियां बर्बाद कर दीं. आंदोलन करने गईं तमाम महिलाओं से बलात्कार जैसी घटनाएं भी हुईं. यह सब कुछ रात भर चलता रहा. यह बर्बरता जब आंदोलनकारियों पर हो रही थी, तो उस रात कुछ लोग महिलाओं को शरण देने के लिए आगे भी आए. उस दिन पुलिस की गोलियों से देहरादून नेहरू कालोनी निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू, भालावाला निवासी सतेंद्र चौहान, बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी, जबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश निवासी सूर्यप्रकाश थपलियाल, ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार और भानियावाला निवासी राजेश नेगी शहीद हुए थे.

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एक रैली की तस्वीर.

पढ़े- चारधाम में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ाने को सरकार ने पेश किया शपथ पत्र, रेगुलर बेंच करेगी सुनवाई

सात आंदोलनकारी शहीद, 17 घायल: यूपी पुलिस की बर्बरता यहीं नहीं थमी. देर रात लगभग पौने तीन बजे यह सूचना आई कि 42 बसों में सवार होकर राज्य आंदोलनकारी दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं. ऐसे में यह खबर मिलते ही रामपुर तिराहे पर एक बार फिर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया. जब 42 बसों में सवार होकर राज्य आंदोलनकारी रामपुर तिराहे पर पहुंचे तो पुलिस और राज्य आंदोलनकारियों के बीच झड़प शुरू हो गई. इस दौरान आंदोलकारियों को रोकने के लिए यूपी पुलिस ने 24 राउंड फायरिंग की, जिसमें सात आंदोलनकारियों की जान चली गई और 17 राज्य आंदोलनकारी बुरी तरह घायल हो गए.

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आंदोलन में महिलाओं ने भी लिया बढ़ चढ़कर हिस्सा.

मुजफ्फरनगर कांड के बाद अलग राज्य की मांग ने पकड़ा जोर: मुजफ्फरनगर कांड के बाद उत्तर प्रदेश से अलग राज्य की मांग ने और जोर पकड़ लिया क्योंकि मुजफ्फरनगर में हुई बर्बरता के बाद राज्य आंदोलनकारियों और प्रदेश के लोगों में गुस्सा भड़क गया था. राज्य की मांग को लेकर प्रदेश भर में धरना और विरोध प्रदर्शनों का दौर चलने लगा. आंदोलन की आग इस कदर भड़की कि युवाओं, बुजुर्गों के साथ-साथ स्कूली बच्चे भी आंदोलन की आग में कूद पड़े थे. रामपुर में हुए तिराहा कांड के बाद करीब 6 साल तक आंदोलनकारियों के संघर्ष का ही नतीजा रहा कि सरकारों को इस मामले में गंभीरता से विचार करना पड़ा और 9 नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग राज्य बनने के बाद ही आंदोलन पर विराम लगा गया.

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गोली लगने के घायल राज्य आंदोलनकारी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया पीड़ितों को मुआवजा फरमान: रामपुर तिराहा कांड की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या, दुष्कर्म समेत संगीन अपराधों को मानवाधिकार उल्लंघन मानते हुए मृतकों के परिजनों व दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं को 10-10 लाख रुपये मुआवजा और छेड़छाड़ की शिकार हुई महिलाओं के साथ ही पुलिस हिरासत में उत्पीड़न के शिकार आंदोलनकारियों को 50-50 हजार रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था. साथ ही इस मामले की जांच को सीबीआई को सौंपने के भी आदेश दिए थे.

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला: हाईकोर्ट के आदेश के बाद तमाम लोगों को मुआवजा भी दिया गया लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ अभियुक्तों और यूपी सरकार द्वारा चार विशेष अनुमति याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गईं. फिर 13 मई 1999 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि जिन लोगों को मुआवजा दिया जा चुका है, उनसे मुआवजा वापस नहीं लिया जाएगा, जिसके बाद से ही मामले की गुत्थी अभी तक सुलझ नहीं पाई है.

सीबीआई को मिली 660 शिकायतें: मुजफ्फरनगर कांड को 27 साल बीत चुके हैं लेकिन अभी तक उसके दोषियों को सजा नहीं मिल पाई है. 2 अक्टूबर को रामपुर तिराहा में हुए कांड के बाद इस मामले को लेकर 7 अक्टूबर 1994 को संघर्ष समिति ने आधा दर्जन याचिकाएं इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की थी. इसके बाद 6 दिसंबर, 1994 को कोर्ट ने सीबीआई से खटीमा, मसूरी और रामपुर तिराहा कांड पर रिपोर्ट मांगी, जिस पर सीबीआई ने कोर्ट में अपनी रिपोर्ट सौंपी. सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि रामपुर तिराहा कांड समेत अन्य जगहों पर 7 सामूहिक दुष्कर्म, 17 महिलाओं से छेड़छाड़ और 26 हत्याएं की गईं. सीबीआई के पास कुल 660 शिकायतें की गई. 12 मामलों में पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई.

पढ़ें- इस PCS अधिकारी के ट्रांसफर के लिए शासन ने बदले नियम-कानून, CS के आदेश को भी दिखाया ठेंगा

अलग राज्य के लिए लड़ाई बेकार: उत्तरप्रदेश से अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन के दौरान संघर्ष समिति की तत्कालीन केंद्रीय अध्यक्ष सुशीला बलूनी ने 2 अक्टूबर की दास्तान ईटीवी भारत के साथ साथ साझा की. उन्होंने बताया कि लोगों पर अलग राज्य बनाने का जुनून सवार हो गया था. यह जुनून उनपर भी सवार था क्योंकि 102 डिग्री बुखार होने के बावजूद वह दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए देहरादून से निकल गईं. हालांकि, उस दौरान वह महिला आंदोलनकारियों का नेतृत्व कर रही थीं. सुशीला बलूनी बताती हैं कि उस रात की घटना के बारे में सोच कर आज भी उनका दिल दहल उठता है. वो इस घटना का जिम्मेदार तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को ठहराती हैं.

सुशीला बलूनी आज 83 साल की हो गई हैं. वह अभी भी राज्य सरकार से यही मांग कर रही हैं कि जिस परिकल्पना को लेकर एक अलग राज्य की मांग की गई थी, उस परिकल्पना को पूरा होते देख सकें. सुशीला बलूनी ने बताया कि आज की वर्तमान परिस्थितियों को देखकर उन्हें लगता है कि बेकार ही एक अलग राज्य बनाने की लड़ाई लड़ी गई. आज 27 साल बाद भी रामपुर तिराहा कांड के दोषियों को सजा नहीं मिल पाई है.

नौकरी तलाश में दर-दर की ठोकरें खा रहे बच्चे: सुशीला बलूनी ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि जब राज्य अलग नहीं हुआ था उससे पहले वो एक स्कूल के मामले को लेकर लखनऊ गई थीं. उनका काम तुरंत हो गया था लेकिन आज राज्य गठन के बाद स्थिति यह है कि किसी का काम नहीं हो पा रहा है. अगर किसी को काम कराना है तो उसके लिए घूस देनी पड़ती है. सुशीला बलूनी ने कहा कि जिन बच्चों के भविष्य के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी आज वह बच्चे नौकरी की तलाश में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं.

2 अक्टूबर को निकाली जाएगी न्याय यात्रा: राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती कहते हैं कि रामपुर तिराहा कांड को लेकर 2 अक्टूबर को न्याय यात्रा निकाली जाएगी, ताकि राज्य सरकार को जगाया जा सके. प्रदीप कुकरेती ने बताया कि अलग राज्य बनाने का आंदोलन जब चल रहा था तो वह कॉलेज के छात्र थे. वह भी इस आंदोलन में कूद पड़े थे, ताकि एक पर्वतीय राज्य बनाया जा सके, जिससे प्रदेश का चौमुखी विकास हो. उत्तराखंड राज्य को बने 21 साल हो गए हैं लेकिन जिस परिकल्पना के अनुरूप राज्य की मांग की गई थी. वह परिकल्पना आज तक पूरी नहीं हो पाई है.

आराम की जिंदगी जी रहे दोषी: वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि रामपुर तिराहा कांड को 27 साल हो गए हैं और उत्तराखंड को बने 21 साल का वक्त बीत गया है लेकिन आज भी रामपुर तिराहा कांड के दोषी अपनी जिंदगी आराम से जी रहे हैं. उत्तराखंड को एक अलग राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले राज्य आंदोलनकारियों को उत्तराखंड के राजनेता भूल गए हैं. वो सत्ता की लड़ाई में जुटे हुए हैं. जय सिंह रावत ने कहा कि रामपुर तिराहा कांड से जुड़े तमाम ऐसे रहस्य हैं, जो अभी तक रहस्य ही बने हुए हैं. जिसमें एक सबसे बड़ा रहस्य यही है कि आखिर राज्य आंदोलनकारियों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए बंदूक का सहारा क्यों लेना पड़ा? महिलाओं के साथ बर्बरता क्यों की गई ?

दोषियों को भाजपा नेताओं ने दिया संरक्षण: कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री मथुरा दत्त जोशी कहते हैं कि रामपुर तिराहा कांड बेहद दर्दनाक कांड था. जिससे अभी तक पर्दा नहीं उठ पाया है. उस दौरान उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी, जिनके अधिकारियों ने आंदोलनकारियों के साथ बर्बरता की. रामपुर तिराहा कांड के दोषियों को अभी तक सजा नहीं मिल पाई है. उन्होंने कहा कि भाजपा के नेताओं ने इस कांड से जुड़े अधिकारियों को पुरस्कृत करने का काम किया है. रामपुर तिराहा कांड का सबसे बड़ा आरोपी तत्कालीन डीएम अनंत कुमार था, जो केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के पीएस रहे हैं. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि भाजपा सरकार इस मामले को लेकर कितनी संवेदनशील है.

देहरादून: उत्तराखंड राज्य गठन को 21 साल पूरे होने जा रहे हैं लेकिन आज भी राज्य आंदोलनकारियों के जेहन में 02 अक्टूबर, 1994 को हुए रामपुर तिराहा कांड की तस्वीरें ताजा हैं. रामपुर तिराहा कांड को मुजफ्फरनगर कांड भी कहा जाता है. रामपुर तिराहा गोली कांड की 27वीं बरसी के अवसर पर आज हम आपको 1994 में हुए रामपुर तिराहा कांड की पूरी कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं.

मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर 2 अक्टूबर, 1994 के दिन हुई बर्बरता को याद कर राज्य आंदोलनकारियों की रूह कांप जाती है. उस रात न सिर्फ कई लोगों ने अपनी जान गंवाई बल्कि तमाम महिलाओं की जिंदगियां तबाह कर दी गईं. इस घटना को आज 27 साल बीत चुके हैं लेकिन लोगों के जख्म अभी भी हरे हैं. मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर हुई इस बर्बरता के मामले में 27 साल बाद भी दोषियों को सजा नहीं हुई है. इसके साथ ही इस कांड के गवाह भी नहीं रहे हैं. ऐसे में रामपुर तिराहा कांड के दोषियों को सजा कब मिलेगी ? ये अभी भी बड़ा सवाल बना हुआ है.

रामपुर तिराहा गोलीकांड की दर्द भरी कहानी.

मुजफ्फरनगर कांड की दर्दभरी दस्तान: यह पूरा घटना क्रम 1 अक्टूबर, 1994 की रात से जुड़ा है, जब आंदोलनकारी उत्तर प्रदेश से अलग कर पहाड़ी प्रदेश की मांग कर रहे थे. राज्य आंदोलनकारी दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए इस पर्वतीय क्षेत्र की अलग-अलग जगहों से 24 बसों में सवार हो कर 1 अक्टूबर को रवाना हो गये. देहरादून से आंदोलनकारियों के रवाना होते ही इनको रोकने की कोशिश की जाने लगी. इस दौरान पुलिस ने रुड़की के गुरुकुल नारसन बॉर्डर पर नाकाबंदी की, लेकिन आंदोलनकारियों की जिद के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा और फिर आंदोलनकारियों का हुजूम यहां से दिल्ली के लिए रवाना हो गया. लेकिन मुजफ्फरनगर पुलिस ने उन्हें रामपुर तिराहे पर रोकने की योजना बनाई और पूरे इलाके को सील कर आंदोलनकारियों को रोक दिया.

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रामपुर तिराहा गोली कांड की तस्वीर.

यूपी पुलिस ने पार की सारी हदें: आंदोलनकारियों को पुलिस ने मुजफ्फरनगर में रोक तो लिया लेकिन आंदोलनकारी दिल्ली जाने की जिद पर अड़ गए. इस दौरान पुलिस से आंदोलनकारियों की नोकझोंक शुरू हो गई. इस बीच जब राज्य आंदोलनकारियों ने सड़क पर नारेबाजी शुरू कर दी तो अचानक यहां पथराव शुरू हो गया, जिसमें मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह घायल हो गए, जिसके बाद यूपी पुलिस ने बर्बरता की सभी हदें पार करते हुए राज्य आंदोलनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर लाठियों से पीटना शुरू कर दिया और लगभग ढाई सौ से ज्यादा राज्य आंदोलनकारियों को हिरासत में भी ले लिया गया.

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राज्य आंदोलनकारियों को रोकती पुलिस.

यूपी पुलिस की बर्बरता: उस रात ऐसा कुछ भी हुआ जिसने तमाम महिलाओं की जिंदगियां बर्बाद कर दीं. आंदोलन करने गईं तमाम महिलाओं से बलात्कार जैसी घटनाएं भी हुईं. यह सब कुछ रात भर चलता रहा. यह बर्बरता जब आंदोलनकारियों पर हो रही थी, तो उस रात कुछ लोग महिलाओं को शरण देने के लिए आगे भी आए. उस दिन पुलिस की गोलियों से देहरादून नेहरू कालोनी निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू, भालावाला निवासी सतेंद्र चौहान, बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी, जबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश निवासी सूर्यप्रकाश थपलियाल, ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार और भानियावाला निवासी राजेश नेगी शहीद हुए थे.

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एक रैली की तस्वीर.

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सात आंदोलनकारी शहीद, 17 घायल: यूपी पुलिस की बर्बरता यहीं नहीं थमी. देर रात लगभग पौने तीन बजे यह सूचना आई कि 42 बसों में सवार होकर राज्य आंदोलनकारी दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं. ऐसे में यह खबर मिलते ही रामपुर तिराहे पर एक बार फिर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया. जब 42 बसों में सवार होकर राज्य आंदोलनकारी रामपुर तिराहे पर पहुंचे तो पुलिस और राज्य आंदोलनकारियों के बीच झड़प शुरू हो गई. इस दौरान आंदोलकारियों को रोकने के लिए यूपी पुलिस ने 24 राउंड फायरिंग की, जिसमें सात आंदोलनकारियों की जान चली गई और 17 राज्य आंदोलनकारी बुरी तरह घायल हो गए.

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आंदोलन में महिलाओं ने भी लिया बढ़ चढ़कर हिस्सा.

मुजफ्फरनगर कांड के बाद अलग राज्य की मांग ने पकड़ा जोर: मुजफ्फरनगर कांड के बाद उत्तर प्रदेश से अलग राज्य की मांग ने और जोर पकड़ लिया क्योंकि मुजफ्फरनगर में हुई बर्बरता के बाद राज्य आंदोलनकारियों और प्रदेश के लोगों में गुस्सा भड़क गया था. राज्य की मांग को लेकर प्रदेश भर में धरना और विरोध प्रदर्शनों का दौर चलने लगा. आंदोलन की आग इस कदर भड़की कि युवाओं, बुजुर्गों के साथ-साथ स्कूली बच्चे भी आंदोलन की आग में कूद पड़े थे. रामपुर में हुए तिराहा कांड के बाद करीब 6 साल तक आंदोलनकारियों के संघर्ष का ही नतीजा रहा कि सरकारों को इस मामले में गंभीरता से विचार करना पड़ा और 9 नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग राज्य बनने के बाद ही आंदोलन पर विराम लगा गया.

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गोली लगने के घायल राज्य आंदोलनकारी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया पीड़ितों को मुआवजा फरमान: रामपुर तिराहा कांड की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या, दुष्कर्म समेत संगीन अपराधों को मानवाधिकार उल्लंघन मानते हुए मृतकों के परिजनों व दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं को 10-10 लाख रुपये मुआवजा और छेड़छाड़ की शिकार हुई महिलाओं के साथ ही पुलिस हिरासत में उत्पीड़न के शिकार आंदोलनकारियों को 50-50 हजार रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था. साथ ही इस मामले की जांच को सीबीआई को सौंपने के भी आदेश दिए थे.

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला: हाईकोर्ट के आदेश के बाद तमाम लोगों को मुआवजा भी दिया गया लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ अभियुक्तों और यूपी सरकार द्वारा चार विशेष अनुमति याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गईं. फिर 13 मई 1999 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि जिन लोगों को मुआवजा दिया जा चुका है, उनसे मुआवजा वापस नहीं लिया जाएगा, जिसके बाद से ही मामले की गुत्थी अभी तक सुलझ नहीं पाई है.

सीबीआई को मिली 660 शिकायतें: मुजफ्फरनगर कांड को 27 साल बीत चुके हैं लेकिन अभी तक उसके दोषियों को सजा नहीं मिल पाई है. 2 अक्टूबर को रामपुर तिराहा में हुए कांड के बाद इस मामले को लेकर 7 अक्टूबर 1994 को संघर्ष समिति ने आधा दर्जन याचिकाएं इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की थी. इसके बाद 6 दिसंबर, 1994 को कोर्ट ने सीबीआई से खटीमा, मसूरी और रामपुर तिराहा कांड पर रिपोर्ट मांगी, जिस पर सीबीआई ने कोर्ट में अपनी रिपोर्ट सौंपी. सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि रामपुर तिराहा कांड समेत अन्य जगहों पर 7 सामूहिक दुष्कर्म, 17 महिलाओं से छेड़छाड़ और 26 हत्याएं की गईं. सीबीआई के पास कुल 660 शिकायतें की गई. 12 मामलों में पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई.

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अलग राज्य के लिए लड़ाई बेकार: उत्तरप्रदेश से अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन के दौरान संघर्ष समिति की तत्कालीन केंद्रीय अध्यक्ष सुशीला बलूनी ने 2 अक्टूबर की दास्तान ईटीवी भारत के साथ साथ साझा की. उन्होंने बताया कि लोगों पर अलग राज्य बनाने का जुनून सवार हो गया था. यह जुनून उनपर भी सवार था क्योंकि 102 डिग्री बुखार होने के बावजूद वह दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए देहरादून से निकल गईं. हालांकि, उस दौरान वह महिला आंदोलनकारियों का नेतृत्व कर रही थीं. सुशीला बलूनी बताती हैं कि उस रात की घटना के बारे में सोच कर आज भी उनका दिल दहल उठता है. वो इस घटना का जिम्मेदार तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को ठहराती हैं.

सुशीला बलूनी आज 83 साल की हो गई हैं. वह अभी भी राज्य सरकार से यही मांग कर रही हैं कि जिस परिकल्पना को लेकर एक अलग राज्य की मांग की गई थी, उस परिकल्पना को पूरा होते देख सकें. सुशीला बलूनी ने बताया कि आज की वर्तमान परिस्थितियों को देखकर उन्हें लगता है कि बेकार ही एक अलग राज्य बनाने की लड़ाई लड़ी गई. आज 27 साल बाद भी रामपुर तिराहा कांड के दोषियों को सजा नहीं मिल पाई है.

नौकरी तलाश में दर-दर की ठोकरें खा रहे बच्चे: सुशीला बलूनी ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि जब राज्य अलग नहीं हुआ था उससे पहले वो एक स्कूल के मामले को लेकर लखनऊ गई थीं. उनका काम तुरंत हो गया था लेकिन आज राज्य गठन के बाद स्थिति यह है कि किसी का काम नहीं हो पा रहा है. अगर किसी को काम कराना है तो उसके लिए घूस देनी पड़ती है. सुशीला बलूनी ने कहा कि जिन बच्चों के भविष्य के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी आज वह बच्चे नौकरी की तलाश में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं.

2 अक्टूबर को निकाली जाएगी न्याय यात्रा: राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती कहते हैं कि रामपुर तिराहा कांड को लेकर 2 अक्टूबर को न्याय यात्रा निकाली जाएगी, ताकि राज्य सरकार को जगाया जा सके. प्रदीप कुकरेती ने बताया कि अलग राज्य बनाने का आंदोलन जब चल रहा था तो वह कॉलेज के छात्र थे. वह भी इस आंदोलन में कूद पड़े थे, ताकि एक पर्वतीय राज्य बनाया जा सके, जिससे प्रदेश का चौमुखी विकास हो. उत्तराखंड राज्य को बने 21 साल हो गए हैं लेकिन जिस परिकल्पना के अनुरूप राज्य की मांग की गई थी. वह परिकल्पना आज तक पूरी नहीं हो पाई है.

आराम की जिंदगी जी रहे दोषी: वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि रामपुर तिराहा कांड को 27 साल हो गए हैं और उत्तराखंड को बने 21 साल का वक्त बीत गया है लेकिन आज भी रामपुर तिराहा कांड के दोषी अपनी जिंदगी आराम से जी रहे हैं. उत्तराखंड को एक अलग राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले राज्य आंदोलनकारियों को उत्तराखंड के राजनेता भूल गए हैं. वो सत्ता की लड़ाई में जुटे हुए हैं. जय सिंह रावत ने कहा कि रामपुर तिराहा कांड से जुड़े तमाम ऐसे रहस्य हैं, जो अभी तक रहस्य ही बने हुए हैं. जिसमें एक सबसे बड़ा रहस्य यही है कि आखिर राज्य आंदोलनकारियों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए बंदूक का सहारा क्यों लेना पड़ा? महिलाओं के साथ बर्बरता क्यों की गई ?

दोषियों को भाजपा नेताओं ने दिया संरक्षण: कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री मथुरा दत्त जोशी कहते हैं कि रामपुर तिराहा कांड बेहद दर्दनाक कांड था. जिससे अभी तक पर्दा नहीं उठ पाया है. उस दौरान उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी, जिनके अधिकारियों ने आंदोलनकारियों के साथ बर्बरता की. रामपुर तिराहा कांड के दोषियों को अभी तक सजा नहीं मिल पाई है. उन्होंने कहा कि भाजपा के नेताओं ने इस कांड से जुड़े अधिकारियों को पुरस्कृत करने का काम किया है. रामपुर तिराहा कांड का सबसे बड़ा आरोपी तत्कालीन डीएम अनंत कुमार था, जो केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के पीएस रहे हैं. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि भाजपा सरकार इस मामले को लेकर कितनी संवेदनशील है.

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