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रघुवर मुरारी प्रवासियों के लिए बने मिसाल, उन्नत तकनीक से कर रहे खेती - Raghuvar Murari champawat

चंपावत के भेटी गांव के रघुवर मुरारी कोरोना लॉकडाउन के दौरान गांव आए सभी प्रवासियों के लिए एक मिसाल हैं. रघुवर आज उन्नत तकनीक से खेती कर लाखों रुपए कमा रहे हैं.

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Published : Jul 27, 2020, 8:28 PM IST

चंपावत: भेटी गांव के रघुवर मुरारी कोरोना लॉकडाउन के दौरान गांव आए सभी प्रवासियों के लिए एक मिसाल है. रघुवर आज उच्च तकनीक से सब्जी उत्पादन कर लाखों कमा रहे हैं. पॉलीहाउस और मल्चिंग विधि से खेती कर अच्छी उपज प्राप्त कर रहे हैं. उनके द्वारा जैविक खेती से तैयार सब्जियां स्थानीय बाजार में बिक रही है. बता दें कि, रघुवर ने वर्ष 2000 में लखनऊ यूनिवर्सिटी से एमए की शिक्षा प्राप्त की.

रघुवर अपनी पीएचडी की पढ़ाई अधूरी छोड़ कोरोना के कारण कर अपने गांव लोहाघाट वापस आ गए. गांव आकर उन्होंने खेत का काम शुरू कर दिया. उन्होंने कर्णकरायत लोहाघाट गांव में 40 से अधिक नाली में पहले आलू की खेती पर फोकस किया. बेहतर रिस्पॉन्स मिलने के बाद उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्र लोहाघाट के सहयोग से जैविक आलू, पत्ता गोभी, फूल गोभी, बैगन, टमाटर, शिमला मिर्च, ब्रोकली, चुकंदर, गाजर, खीरा, ककड़ी, लौकी, धान, मढुवा, गेहूं आदि का उत्पादन करना शुरू कर दिया.

रघुवर मुरारी प्रवासियों के लिए बने मिसाल.

पढ़ें: प्रवासियों को एकीकृत खेती से जोड़ने की कवायद, DM ने शुरू किया अभियान

रघुवर मुरारी इसके अलावा डेयरी, मछली पालन का कार्य कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि वह रोजाना पांच बजे उठकर परिवार दिनचर्या शुरू कर देते हैं. वह अपना ज्यादातर उत्पाद लोहाघाट में ही बेचते हैं. रघुवर ने प्रवासियों को भी संदेश देते हुए कहा कि अगर वह चाहें तो पहाड़ में रहकर खेती कर महानगरों से अच्छा कमा सकते हैं. वह उनकी सहायता करने के लिए हर पल तैयार हैं.

चंपावत: भेटी गांव के रघुवर मुरारी कोरोना लॉकडाउन के दौरान गांव आए सभी प्रवासियों के लिए एक मिसाल है. रघुवर आज उच्च तकनीक से सब्जी उत्पादन कर लाखों कमा रहे हैं. पॉलीहाउस और मल्चिंग विधि से खेती कर अच्छी उपज प्राप्त कर रहे हैं. उनके द्वारा जैविक खेती से तैयार सब्जियां स्थानीय बाजार में बिक रही है. बता दें कि, रघुवर ने वर्ष 2000 में लखनऊ यूनिवर्सिटी से एमए की शिक्षा प्राप्त की.

रघुवर अपनी पीएचडी की पढ़ाई अधूरी छोड़ कोरोना के कारण कर अपने गांव लोहाघाट वापस आ गए. गांव आकर उन्होंने खेत का काम शुरू कर दिया. उन्होंने कर्णकरायत लोहाघाट गांव में 40 से अधिक नाली में पहले आलू की खेती पर फोकस किया. बेहतर रिस्पॉन्स मिलने के बाद उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्र लोहाघाट के सहयोग से जैविक आलू, पत्ता गोभी, फूल गोभी, बैगन, टमाटर, शिमला मिर्च, ब्रोकली, चुकंदर, गाजर, खीरा, ककड़ी, लौकी, धान, मढुवा, गेहूं आदि का उत्पादन करना शुरू कर दिया.

रघुवर मुरारी प्रवासियों के लिए बने मिसाल.

पढ़ें: प्रवासियों को एकीकृत खेती से जोड़ने की कवायद, DM ने शुरू किया अभियान

रघुवर मुरारी इसके अलावा डेयरी, मछली पालन का कार्य कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि वह रोजाना पांच बजे उठकर परिवार दिनचर्या शुरू कर देते हैं. वह अपना ज्यादातर उत्पाद लोहाघाट में ही बेचते हैं. रघुवर ने प्रवासियों को भी संदेश देते हुए कहा कि अगर वह चाहें तो पहाड़ में रहकर खेती कर महानगरों से अच्छा कमा सकते हैं. वह उनकी सहायता करने के लिए हर पल तैयार हैं.

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