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CM साहब! कैसे हो इलाज, गले में फंसी रिंग तक नहीं निकाल पा रहे डॉक्टर

लोहाघाट निवासी 8 साल की कामिनी ने 3 दिन पहले कान की रिंग निगल ली थी. जिसके चलते इलाज के लिए परिजन उसे चंपावत से हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल लेकर गए. जहां डॉक्टरों ने सुविधाएं न होने के चलते उसका इलाज करने से मना कर दिया. साथ ही बच्ची के परिजनों ने अस्पताल पर लापरवाही का आरोप लगाया है.

गले में फंसी रिंग तक नहीं निकाल पा रहे डॉक्टर
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Published : May 6, 2019, 7:57 PM IST

चंपावत: कुमाऊं में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं के कारण एक 8 साल की बच्ची की जान खतरे में पड़ गई. लोहाघाट निवासी 8 साल की कामिनी ने 3 दिन पहले कान की रिंग निगल ली थी. रिंग उसकी सांस की नली में फंस गई. लेकिन कुमाऊं के सबसे बड़े सुशीला तिवारी अस्पताल में संसाधनों की कमी के चलते बच्ची को रात एक बजे इलाज के लिए दिल्ली ले जाना पड़ा.

गले में फंसी रिंग तक नहीं निकाल पा रहे डॉक्टर


कुमाऊं के सबसे बडे़ अस्पताल सुशीला तिवारी में सुविधाओं की कमी के चलते मरीजों को हमेशा से ही परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ताजा मामला एक बच्ची के गले में रिंग फंसने का है. इस मामले से ये तो साफ हो गया है कि इतने बड़े अस्पताल में संसाधनों की कमी के कारण बड़ी बीमारियों का इलाज अब तक संभव नहीं हो पाया है.


कामिनी के परिजनों ने बताया कि सुशीला तिवारी अस्पताल में तैनात डॉक्टरों का व्यवहार भी ठीक नहीं है. 108 से मरीज को लाने के बाद भी रात के 12 बजे तक बच्ची को भर्ती नहीं किया. एक्स-रे करने के बाद डॉक्टरों ने पुराने औजारों का हवाला देकर इलाज करने से मना कर दिया. साथ ही परिजनों ने जब रेफर कागज बनाने की बात कही तो बताया कि बच्ची को अस्पताल में भर्ती ही नहीं किया गया.


जैसे-तैसे परिजन बच्ची को लेकर दिल्ली पहुंचे और एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया, जहां कामिनी का इलाज चल रहा है.

चंपावत: कुमाऊं में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं के कारण एक 8 साल की बच्ची की जान खतरे में पड़ गई. लोहाघाट निवासी 8 साल की कामिनी ने 3 दिन पहले कान की रिंग निगल ली थी. रिंग उसकी सांस की नली में फंस गई. लेकिन कुमाऊं के सबसे बड़े सुशीला तिवारी अस्पताल में संसाधनों की कमी के चलते बच्ची को रात एक बजे इलाज के लिए दिल्ली ले जाना पड़ा.

गले में फंसी रिंग तक नहीं निकाल पा रहे डॉक्टर


कुमाऊं के सबसे बडे़ अस्पताल सुशीला तिवारी में सुविधाओं की कमी के चलते मरीजों को हमेशा से ही परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ताजा मामला एक बच्ची के गले में रिंग फंसने का है. इस मामले से ये तो साफ हो गया है कि इतने बड़े अस्पताल में संसाधनों की कमी के कारण बड़ी बीमारियों का इलाज अब तक संभव नहीं हो पाया है.


कामिनी के परिजनों ने बताया कि सुशीला तिवारी अस्पताल में तैनात डॉक्टरों का व्यवहार भी ठीक नहीं है. 108 से मरीज को लाने के बाद भी रात के 12 बजे तक बच्ची को भर्ती नहीं किया. एक्स-रे करने के बाद डॉक्टरों ने पुराने औजारों का हवाला देकर इलाज करने से मना कर दिया. साथ ही परिजनों ने जब रेफर कागज बनाने की बात कही तो बताया कि बच्ची को अस्पताल में भर्ती ही नहीं किया गया.


जैसे-तैसे परिजन बच्ची को लेकर दिल्ली पहुंचे और एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया, जहां कामिनी का इलाज चल रहा है.

Intro:चम्पावत। उत्तराखण्ड के कुमाऊँ में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं के कारण एक 8 साल की बच्ची की जान सांसत में पड़ गयी। चम्पावत जिला अस्पताल से 108 द्वारा कुमाऊं के सबसे बड़े अस्पताल सुशीला तिवारी में उपचार न मिलने के कारण बच्ची को दिल्ली ले जाना पड़ा । लोहाघाट निवासी 8 साल की कामिनी ने भूल वश 3 दिन पहले कान की रिंग निगल दी थी जो उसकी सांस की नली में फंस गयी ।


Body:कुमाऊं के सबसे बडे अस्पताल में इतने संसाधन भी नही कि किसी की सांस नली में कुछ फंस जाए तो उसे निकाला जा सके। कामिनी के परिजनों ने बताया कि सुशीला तिवारी में तैनात डॉ का व्यवहार भी ठीक नहीं था 108 से मरीज को लाने के बाद भी रात के 12 बज़े तक कामिनी को अस्पताल में भर्ती नहीं किया मात्र दो एक्सरे कर के बताया कि यहां हमारे पास पुराने औजार हैं अगर यहाँ इलाज कराया तो रिस्क बहुत होगा। 1 बज़े कहा कि इसे दिल्ली या बरेली ले के जाओ। इस दौरान परिजनों ने उनसे रेफर का कागज बनाने को कहा तो डॉक्टर ने रेफर बनाने से भी मना कर दिया बाद में पता चला कि कामिनी को भर्ती नहीं किया गया था। रात के 1 बज़े परिजनों ने उसे दिल्ली अस्पताल ले जाने का निर्णय लिया। 6 घंटे बस अड्डे में इंतजार करने के बाद उसे सुबह दिल्ली कलावती सरन अस्पताल में भर्ती कराया ।


Conclusion:कलावती सरन अस्पताल में अभी कामिनी का इलाज चल रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं में करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी उत्तराखंड में लोगो को उपचार नहीं मिल पा रहा है यह इस प्रदेश के लोगों के लिए बड़ा दुर्भाग्य है। बाइट 1- कामिनी के मामा।
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