चंपावत: उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चंपावत, बागेश्वर और अल्मोड़ा जिले में च्यूर का पेड़ पाया जाता है. इस पर लगने वाले फलों के बीजों से घी और साबुन तैयार किया जाता है. इतना गुणी होने के कारण इसे स्थानीय लोग कल्पवृक्ष की संज्ञा देते हैं. अब फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट देहरादून ने भी इसके महत्व को समझा है. पश्चिमी छीड़ा बीट में च्यूरे का पौधरोपण किया है.
FRI ने शुरू की रिसर्च
एफआरआई ने इस पर बाकायदा रिसर्च शुरू कर दी है. इसके लिए चंपावत वन प्रभाग के पश्चिमी छीड़ा बीट के आरक्षित कक्ष संख्या 25 में एक प्रयोगशाला बनाई गयी है. यहां चंपावत, अल्मोड़ा, बागेश्वर और पिथौरागढ़ से तैयार किये पौधों को लगाया गया है.
च्यूरे के बीज से बनता है घी
च्यूरा से घी और साबुन तैयार किया जाता है. च्यूरा से तैयार किए गए एक साबुन की कीमत 80 से 150 रुपये तक होती है. घी लगभग 200 रुपया प्रति किलो तक बेचा जाता है.
च्यूरा के जितने अधिक पेड़ होंगे भविष्य में उतना ही अधिक उत्पादन होगा. च्यूरा का वानस्पतिक नाम डिप्लोनेमा बुटीरैशिया है. तीन हजार फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्र तक इसके पेड़ 12 से 21 मीटर तक ऊंचे होते हैं.
च्यूरे के फूलों से शहद बनता है
पहाड़ के घाटी वाले क्षेत्रों में इसके जब फूल खिलते हैं तब शहद का काफी उत्पादन होता है. इसकी पत्तियां चारे व भोजन पत्तल के अलावा धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग में लाई जाती हैं. च्यूरे की खली मोमबत्ती, वैसलीन और कीटनाशक बनाने के काम आती है.
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जिन क्षेत्रों में च्यूरे के पेड़ पाये जाते हैं उन क्षेत्रों में मधुमक्खी पालन भी किया जाता है. च्यूरे के पुष्प मकरंद से भरे रहते हैं जिससे उच्च कोटि का शहद तैयार होता है. रेंजर हेम गहतोड़ी ने बताया कि एफआरआई द्वारा प्रायोगिक रूप पर कुमाऊं के चारों जिलों में होने वाली च्यूरे की प्रजातियों को लगाया जा रहा है. भविष्य में इसे बड़े पैमाने पर लगाया जाएगा.
सिंगदा क्षेत्र में वन विभाग के च्यूरा एक्सीलेंस सेंटर में भी एक नर्सरी के साथ 2011-12 में प्लांट भी लगाया गया था, जिसमें आसपास के क्षेत्र के लोग च्यूरे का तेल निकालते आते हैं.