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जान पर भारी सियासतः उफनती नदी पर जिंदगी लट्ठे के सहारे, आखिर कब जागेगा महकमा?

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Published : Oct 10, 2020, 7:53 PM IST

ग्रामीण अपने संसाधनों से लकड़ी का अस्थायी पुल बनाकर जान जोखिम में डालकर आवाजाही करने को मजबूर हैं. कांग्रेसी नेता महावीर बिष्ट ने कहा कि थराली उपचुनाव में भी सरकार के मंत्री आपदा में बहे पुलों को बनाने का वादा करके ही चुनाव जीते हैं. लेकिन अब तक सरकार ऐसे पुलों का निर्माण नहीं कर सकी है.

मजबूर ग्रामीण
मजबूर ग्रामीण

थरालीः देवाल विकासखंड के ओडर गांव के लोग 2013 की आपदा में बहे पुल की मांग अब तक कर रहे हैं. पिछले सात सालों में इस पुल का निर्माण तो नहीं हो सका, लेकिन हर साल बरसात खत्म होते ही ग्रामीण अपने संसाधनों से लकड़ी का अस्थायी पुल बनाकर जान जोखिम में डालकर आवाजाही करने को मजबूर हैं. बरसात के समय थराली का लोक निर्माण विभाग इन ग्रामीणों की सहूलियत के लिए ट्रॉली का विकल्प जरूर देता है, लेकिन बरसात खत्म होते ही ट्रॉली बन्द हो जाती है और ग्रामीण फिर लकड़ी के पुल से उफनती पिंडर नदी को पार करने को मजबूर हो जाते हैं.

उफनती नदी पर जिंदगी लट्ठे के सहारे.

लोक निर्माण विभाग थराली के अधिशासी अभियंता मूलचंद गुप्ता कहते हैं कि जब तक ग्रामीण लकड़ी के पुल को तैयार नहीं कर लेते, विभाग ट्रॉली को बन्द नहीं करती. उनके द्वारा इस साल की शुरुआत में ही विभागीय सचिव को पुल बनाने के लिए मसौदा तैयार कर भेजा गया था. वित्तीय स्वीकृति मिलते ही टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी.

वहीं कांग्रेसी नेता महावीर बिष्ट ने कहा कि थराली उपचुनाव में भी सरकार के मंत्री आपदा में बहे पुलों को बनाने का वादा करके ही चुनाव जीते हैं. लेकिन अब तक सरकार ऐसे पुलों का निर्माण नहीं कर सकी है. ऐसे में जनहित के मुद्दों को लेकर कांग्रेस को अगर सड़क पर भी उतरना पड़े, तो वे पीछे नहीं हटेंगे.

पढ़ेंः हरिद्वार महाकुंभ से पहले पार्कों की बदलेगी सूरत

2013 की आपदा में पिंडर क्षेत्र में अधिकांश पुल आपदा की भेंट चढ़ गए थे. जिनमें से अधिकांश बन भी चुके हैं, लेकिन अब भी कई गांव ऐसे हैं, जिनके आवागमन का साधन अब तक नहीं बन सका है. ऐसे में ग्रामीण सरकारों से गुहार लगाकर थक चुकी है. ये तस्वीरें न तो हुक्मरानों को नींद से जगा पाती हैं और न ही आपदा के जख्म भर पाती हैं. यहां के ग्रामीण बताते हैं कि उनकी खेती, बाजार और सरकारी दफ्तर सब पिंडर नदी के उस पार हैं. ऐसे में उनको रोजाना अपनी जान जोखिम में डालकर आवाजाही करनी पड़ती है.

थरालीः देवाल विकासखंड के ओडर गांव के लोग 2013 की आपदा में बहे पुल की मांग अब तक कर रहे हैं. पिछले सात सालों में इस पुल का निर्माण तो नहीं हो सका, लेकिन हर साल बरसात खत्म होते ही ग्रामीण अपने संसाधनों से लकड़ी का अस्थायी पुल बनाकर जान जोखिम में डालकर आवाजाही करने को मजबूर हैं. बरसात के समय थराली का लोक निर्माण विभाग इन ग्रामीणों की सहूलियत के लिए ट्रॉली का विकल्प जरूर देता है, लेकिन बरसात खत्म होते ही ट्रॉली बन्द हो जाती है और ग्रामीण फिर लकड़ी के पुल से उफनती पिंडर नदी को पार करने को मजबूर हो जाते हैं.

उफनती नदी पर जिंदगी लट्ठे के सहारे.

लोक निर्माण विभाग थराली के अधिशासी अभियंता मूलचंद गुप्ता कहते हैं कि जब तक ग्रामीण लकड़ी के पुल को तैयार नहीं कर लेते, विभाग ट्रॉली को बन्द नहीं करती. उनके द्वारा इस साल की शुरुआत में ही विभागीय सचिव को पुल बनाने के लिए मसौदा तैयार कर भेजा गया था. वित्तीय स्वीकृति मिलते ही टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी.

वहीं कांग्रेसी नेता महावीर बिष्ट ने कहा कि थराली उपचुनाव में भी सरकार के मंत्री आपदा में बहे पुलों को बनाने का वादा करके ही चुनाव जीते हैं. लेकिन अब तक सरकार ऐसे पुलों का निर्माण नहीं कर सकी है. ऐसे में जनहित के मुद्दों को लेकर कांग्रेस को अगर सड़क पर भी उतरना पड़े, तो वे पीछे नहीं हटेंगे.

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2013 की आपदा में पिंडर क्षेत्र में अधिकांश पुल आपदा की भेंट चढ़ गए थे. जिनमें से अधिकांश बन भी चुके हैं, लेकिन अब भी कई गांव ऐसे हैं, जिनके आवागमन का साधन अब तक नहीं बन सका है. ऐसे में ग्रामीण सरकारों से गुहार लगाकर थक चुकी है. ये तस्वीरें न तो हुक्मरानों को नींद से जगा पाती हैं और न ही आपदा के जख्म भर पाती हैं. यहां के ग्रामीण बताते हैं कि उनकी खेती, बाजार और सरकारी दफ्तर सब पिंडर नदी के उस पार हैं. ऐसे में उनको रोजाना अपनी जान जोखिम में डालकर आवाजाही करनी पड़ती है.

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