थरालीः चमोली जिले के देवाल विकासखंड के वाण गांव में स्थित सिद्ध पीठ लाटू देवता मंदिर के कपाट आज 6 महीने के लिए खोल दिए गए हैं. इस मौके पर कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की. पौराणिक लाटू देवता मंदिर अपनी कुछ खास मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है. यहां के कपाट पूजा-अर्चना के लिए सिर्फ 6 महीने के लिए खुलते हैं. इसके अलावा इस मंदिर से जुड़े अनेक रहस्य भी हैं. यहां पूजा करने वाले पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर पूजा-अर्चना करते हैं.
बता दें कि बीते साल कोरोना की वजह से लाटू देवता के कपाट सीमित लोगों की उपस्थिति में कोरोना गाइडलाइन के अंतर्गत खोले गए थे. इस बार भी कोरोना संकट के कारण जारी कोरोना दिशा-निर्देशों के अनुसार बेहद सीमित संख्या में लोग मौजूद रहे. कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज कपाटोद्घाटन में पहुंचे. उन्होंने मंदिर में पूजा-अर्चना भी की. लाटू मंदिर के पुजारियों की ओर से सिद्ध पीठ के कपाट खोलने से पूर्व यज्ञ हवन की प्रक्रिया की गई. वहीं, लोहाजंग स्थित हेलीपैड पर प्रदेश के पर्यटन पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का चौपर उतरा. जिसके बाद वो लोहाजंग से करीब 10 किलोमीटर सड़क से वाहन के जरिए लाटू धाम वाण पहुंचे.
ये भी पढ़ेंः आश्चर्यः देवभूमि के इस मंदिर में पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर करते हैं पूजा, अद्भुत है मान्यता
लाटू देवता के प्रति अटूट आस्था की बानगी है कि दूर-दूर से श्रद्धालुओं का हर साल इस मंदिर में तांता लगा रहता है. नंदा देवी राजजात यात्रा का ये आखिरी पड़ाव है, जहां आबादी है. इसके बाद निर्जन पड़ाव शुरू हो जाता है. वहीं, लाटू देवता के मंदिर के कपाट बैसाख के महीने में पूर्णिमा को खुलते हैं और 6 माह बाद मंगशीर्ष पूर्णिमा को बंद कर दिए जाते हैं.
आंखों पर पट्टी बांधकर मंदिर में प्रवेश करते हैं पुजारी
ग्रामीणों की मानें तो पुजारी को छोड़कर किसी को भी मंदिर की परिधि से 50 मीटर अंदर जाने की अनुमति नहीं होती है. पुजारी भी पौराणिक नियमों के तहत आंखों पर पट्टी बांधकर मंदिर के अंदर प्रवेश कर पूजा करते हैं. आज तक भी किसी को यह पता नहीं है कि मंदिर के अंदर लाटू देवता किस रूप में विराजमान हैं. कहा तो यह भी जाता है कि अगर कोई मंदिर के अंदर जाने का प्रयास करता है तो वह मानसिक रूप से विक्षिप्त हो जाता है और दूसरे लोगों को कुछ बताने लायक नहीं रह जाता.
ये भी पढ़ेंः 26 अप्रैल को खुलेंगे लाटू धाम मंदिर के कपाट, सतपाल महाराज होंगे मुख्य अतिथि
स्थानीय धर्मिक मान्यताओं के तहत लाटू देवता मां नंदा राजराजेश्वरी के धर्म भाई हैं, जो मां नंदा को अतिप्रिय हैं. मां नंदा की 12 सालों में आयोजित होने वाली राजजात में लाटू देवता वाण गांव से आगे निर्जन पड़ावों में मां नंदा की अगुवाई करते हैं. साथ ही प्रतिवर्ष आयोजित लोकजात के दौरान भी लाटू देवता का निशान वेदनी कुंड तक मां नंदा के आगे-आगे चलता है. लाटू देवता मां नंदा को अतिप्रिय होने के चलते ग्रामीण लाटू देवता की प्रतिवर्ष विशेष पूजा करते हैं.
नंदा का लाटू से होता है भावपूर्ण मिलन
बारह बरस बाद जब नंदा मायके (कांसुवा) से ससुराल (कैलाश) जाते हुए वाण पहुंचती हैं, तब इस दौरान नंदा का लाटू से भावपूर्ण मिलन होता है. इस दृश्य को देख श्रद्धालुओं की आंखें भर जाती हैं. यहां से लाटू की अगुवाई में चौसिंगा खाडू के साथ राजजात होमकुंड के लिए आगे बढ़ती है. लेकिन, वाद्य यंत्र राजजात के साथ नहीं जाते हैं. वहीं, मान्यता है कि वाण में ही लाटू सात बहनों (देवियों) को एक साथ मिलते हैं.
यहीं पर दशौली (दशमद्वार की नंदा), बंड भूमियाल की छंतोली, लाता पैनखंडा की नंदा, बदरीश रिंगाल छंतोली और बधाण क्षेत्र की तमाम भोजपत्र छंतोलियों का मिलन होता है. अल्मोड़ा की नंदा डोली व कोट (बागेश्वर) की नंदा देवी असुर संहारक कटार (खड्ग) वाण में राजजात से मिलने के बाद वापस लौटती हैं. दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामना लेकर लाटू के मंदिर पहुंचते हैं.