चमोली: पहाड़ों की ऐसी घाटी जहां रंग-बिरंगे फूल खिले हों, हर तरफ तरह-तरह के प्राकृतिक फूल अपनी खुशबू बिखेर रहे हों, ऐसी जगह का दीदार हर कोई करना चाहता है और वहां के आभामंडल में हर इंसान सांस लेना चाहता है. जीहां, हम बात कर रहे हैं विश्व विख्यात फूलों की घाटी की, जिसे देखने हर साल देश-विदेश से लाखों सैलानी आते हैं और लौटते वक्त यहां की पर्वत श्रृंखलाओं से दोबारा आने का वादा करते हैं.
हर साल देश-विदेश से कई सैलानी फूलों की घाटी का दीदार करने आते हैं. जहां उन्हें प्रकृति का नैसर्गिक सौंदर्य अपनी ओर आकर्षित करता है. फ्लावर वैली से लौटने के बाद सैलानी यहां की खूबसूरत यादों से लोगों को भी रूबरू कराते हैं, जिससे उनकी भी कुदरत की इस नेमत को देखने की इच्छा होती है.बेहद कम लोग ये जानते हैं कि फूलों की घाटी का उल्लेख हमारे धर्म ग्रन्थों में भी मिलता है.
मान्यता है कि राम-रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मण के मूर्छित होने के बाद हनुमान जी इसी स्थान से उनके लिये संजीवनी बूटी लेकर गए थे. दरअसल, इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में बहुमूल्य जड़ी-बूटियां पाई जाती है, जो कई बीमारियों में रामबाण मानी जाती हैं. अब सोचिये, जो पर्वत पूरे विश्व में सबसे ज्यादा फूलों और जड़ी-बूटियों की प्रजाति पैदा करता हो उसके अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगे तो यही हो भी रहा है.
इसके साथ ही वहां मौजूद करीब 500 से ज्यादा फूलों की प्रजातियों के बीच पॉलीवोराम, ओसमोन्डा जैसी प्रजातियां बढ़ रही हैं, ये कुछ ऐसे पौधे हैं जिन्होंने फूलों की घाटी को चारों तरफ से घेर लिया है और घाटी इतने लंबे एरिया में फैली है कि उसमें से इस खराब प्रजाति को निकालना बेहद जटिल कार्य है. एक बार जो पौधा कहीं पर उग जाता है उसके बार-बार पनपने के चांस ज्यादा बढ़ जाते हैं. लिहाजा वन विभाग अब ऐसी रणनीति बना रहा है ताकि वहां मौजूद फूलों को बचाया जा सके.
फूलों की घाटी में जलवायु परिवर्तन की ऐसी मार पड़ रही है कि यहां मौजूद 500 से ज्यादा प्रजातियां पर इसका साफ तौर पर असर दिख रहा है. इसके साथ ही उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौसम की ऐसी मार पड़ रही है कि कभी बर्फ से लकदक पहाड़ियां आज ग्लोबल वार्मिंग के कारण अपना अस्तित्व खोने की कगार पर हैं.