चमोलीः देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे मंदिर है, जिनके बारे में श्रद्धालु कम ही जानते हैं. जोशीमठ विकासखंड की उर्गम घाटी में एक ऐसा मंदिर है, जहां साल में सिर्फ एक दिन भगवान की पूजा की जाती है. मान्यता है कि साल के बाकी 364 दिन यहां देवर्षि नारद की पूजा-अर्चना होती है. इस मंदिर में पुजारी ब्राह्मण जाति के नहीं बल्कि ठाकुर जाती (Thakur caste priests worship in Vanshinarayan temple) के होते हैं. यह मंदिर में वंशीनारायण मंदिर (The doors of the Vanshinarayan temple).
भगवान वंशीनारायण मंदिर के कपाट साल में एक दिन रक्षाबंधन पर ही खोले जाते हैं. लेकिन ग्रामीणों के द्वारा अब कपाट खुलने की परंपरा में बदलाव किया गया है. मान्यता है कि मंदिर के आसपास के गांव की महिलाए, युवतियां पहले भगवान वंशीनारायण को राखी (Rakhi to Lord Vanshinarayan) बांधती हैं. इसके बाद अपने भाइयों को राखी बांधती हैं.
पिछले 3 साल में बदली परंपराः समुद्रतल से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित वंशीनारायण मंदिर का निर्माण काल छठी से लेकर आठवीं सदी के बीच का माना जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवकाल में हुआ. वंशीनारायण मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा होती है, लेकिन साल में सिर्फ रक्षाबंधन के दिन. सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही मनुष्य यहां दर्शन और पूजा-अर्चना कर सकते हैं. बाकी पूरे वर्ष मंदिर के कपाट बंद रहते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से ग्रामीणों द्वारा बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही श्री वंशीनाराणय मंदिर के कपाट भी खोल दिए जाते हैं. जबकि रक्षाबंधन के दिन ही सूर्यास्त से पहले कपाट बंद भी कर दिए जाते हैं.
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मंदिर की रोचक कहानीः वंशीनारायण मंदिर में मनुष्य को सिर्फ एक दिन पूजा का अधिकार दिए जाने की भी रोचक कहानी है. कहते हैं कि एक बार भगवान नारायण को राजा बलि के आग्रह पर पाताल लोक में द्वारपाल की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी. तब माता लक्ष्मी उन्हें (भगवान नारायण) ढूंढते हुए देवर्षि नारद के पास वंशीनारायण मंदिर पहुंचीं और उनसे भगवान नारायण का पता पूछा. नारद ने माता लक्ष्मी को भगवान के पाताल लोक में द्वारपाल बनने का पूरा वृतांत सुनाया और उन्हें मुक्त कराने की युक्ति भी बताई.
देवर्षि ने कहा कि आप राजा बलि के हाथों में रक्षासूत्र बांधकर उनसे भगवान को मांग लें. लेकिन, पाताल लोक का मार्ग ज्ञात न होने पर माता लक्ष्मी ने नारद से भी साथ चलने को कहा. तब नारद माता लक्ष्मी के साथ पाताल लोक गए और भगवान को मुक्त कराकर ले आए, मान्यता है कि सिर्फ यही दिन था, जब देवर्षि वंशीनारायण मंदिर में पूजा नहीं कर पाए. इस दिन उर्गम घाटी के कलकोठ गांव के जाख पुजारी ने भगवान वंशीनारायण की पूजा की. तब से यह परंपरा अनवरत चली आ रही है.
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दुर्लभ प्रजाति के फूलों से होता है श्रृंगारः गांव के ही ग्रामीण लक्ष्मण सिंह रावत बताते हैं कि वंशीनारायण मंदिर के कपाट खुलने के अवसर पर कलकोठ गांव के प्रत्येक परिवार से भगवान नारायण के भोग के लिए मक्खन आता है. भगवान का भोग इसी मक्खन से तैयार होता है. साथ ही भगवान वंशीनारायण की फुलवारी में कई दुर्लभ प्रजाति के फूल खिलते हैं, जिन्हें सिर्फ श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन पर्व पर तोड़ा जाता है. इन फूलों से भगवान नारायण का श्रृंगार किया जाता है. इसके बाद श्रद्धालु व स्थानीय ग्रामीण व युवतियां भगवान वंशीनारायण को रक्षासूत्र बांधती हैं.
नापना पड़ता है पैदल रास्ताः उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित वंशीनारायण मंदिर तक पहुंचना कोई हंसी का खेल नहीं है. बदरीनाथ हाइवे पर हेलंग से उर्गम घाटी तक 8 किमी की दूरी वाहन से तय करने के बाद आगे 12 किमी का रास्ता पैदल नापना पड़ता है. दूर-दूर तक फैले मखमली घास के मैदानों को पार कर सामने नजर आता है प्रसिद्ध पहाड़ी शैली कत्यूरी में बना वंशीनारायण मंदिर. दस फीट ऊंचे इस मंदिर में भगवान विष्णु की चतुर्भुज पाषाण मूर्ति विराजमान है. खास बात यह कि इस मूर्ति में भगवान नारायण व भगवान शिव, दोनों के ही दर्शन होते हैं. आज वंशीनारायण मंदिर में ग्रामीणों द्वारा भंडारे की व्यवस्था की गई. लोगों ने भगवान की विशेष पूजा अर्चना कर मन्नते मांगी.