चमोली: जोशीमठ विकासखंड के सलूड डुंगरा गांव में शुक्रवार को विश्वप्रशिद्व रम्माण मेले का आयोजन किया गया. इस मौके पर पारम्परिक बाद्ययंत्र ढोल की 18 तालों पर काठ (लकड़ी) के बने मुखौटे पहने कलाकारों ने रामायण का मंचन किया. जिसको देखकर दर्शक प्रसन्न हो उठे. बता दें, यूनेस्को 2009 में रम्माण मेले को विश्व धरोहर भी घोषित कर चुका है.
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कार्यक्रम की शुरुआत में सबसे पहले भूमियाल देवता वाद्य यंत्रों की थाप पर अपने पश्वा पर अवतरित हुए. भूमियाल देवता ने मेले में पहुंचे श्रद्धालुओं पर प्रसाद के रूप में चावल फेंककर आशीर्वाद दिया. जिसके बाद ढोल की 18 तालों पर मुखौटा नृत्य किया गया. मुखौटा नृत्य को दूर-दूर से आये दर्शकों ने खूब सराहा. इस दौरान भगवान राम के जन्म से लेकर रावण के वध तक का वृत्तांत जागर और मुखौटा नृत्य के माध्यम से ही दिखाया गया.
बताया जाता है कि सर्वप्रथम आठवीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए रम्माण मेले का आयोजन किया था. तब से लेकर आज तक ग्रामीण विधि-विधान के साथ रम्माण का आयोजन करते आ रहे हैं. मेले की मान्यता और मुखौटा नृत्य को देखकर साल 2009 में यूनेस्को के द्वारा रम्माण को विश्व धरोहर घोषित किया गया था.