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रम्माण मेले में दिखी देवभूमि की संस्कृति, ढोल की 18 तालों पर कलाकारों ने किया मुखौटा नृत्य

सबसे पहले भूमियाल देवता वाद्य यंत्रों की थाप पर अपने पश्वा पर अवतरित हुए. भूमियाल देवता ने मेले में पहुंचे श्रद्धालुओं पर प्रसाद के रूप में चावल फेंककर आशीर्वाद दिया.

रम्माण मेले में दिखी देवभूमि की संस्कृति
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Published : Apr 26, 2019, 11:35 PM IST

चमोली: जोशीमठ विकासखंड के सलूड डुंगरा गांव में शुक्रवार को विश्वप्रशिद्व रम्माण मेले का आयोजन किया गया. इस मौके पर पारम्परिक बाद्ययंत्र ढोल की 18 तालों पर काठ (लकड़ी) के बने मुखौटे पहने कलाकारों ने रामायण का मंचन किया. जिसको देखकर दर्शक प्रसन्न हो उठे. बता दें, यूनेस्को 2009 में रम्माण मेले को विश्व धरोहर भी घोषित कर चुका है.

रम्माण मेले में दिखी देवभूमि की संस्कृति

पढ़ें- लकड़ियों पर पकाया जा रहा मिड-डे मील, उज्ज्वला योजना का उड़ा मखौल

कार्यक्रम की शुरुआत में सबसे पहले भूमियाल देवता वाद्य यंत्रों की थाप पर अपने पश्वा पर अवतरित हुए. भूमियाल देवता ने मेले में पहुंचे श्रद्धालुओं पर प्रसाद के रूप में चावल फेंककर आशीर्वाद दिया. जिसके बाद ढोल की 18 तालों पर मुखौटा नृत्य किया गया. मुखौटा नृत्य को दूर-दूर से आये दर्शकों ने खूब सराहा. इस दौरान भगवान राम के जन्म से लेकर रावण के वध तक का वृत्तांत जागर और मुखौटा नृत्य के माध्यम से ही दिखाया गया.

बताया जाता है कि सर्वप्रथम आठवीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए रम्माण मेले का आयोजन किया था. तब से लेकर आज तक ग्रामीण विधि-विधान के साथ रम्माण का आयोजन करते आ रहे हैं. मेले की मान्यता और मुखौटा नृत्य को देखकर साल 2009 में यूनेस्को के द्वारा रम्माण को विश्व धरोहर घोषित किया गया था.

चमोली: जोशीमठ विकासखंड के सलूड डुंगरा गांव में शुक्रवार को विश्वप्रशिद्व रम्माण मेले का आयोजन किया गया. इस मौके पर पारम्परिक बाद्ययंत्र ढोल की 18 तालों पर काठ (लकड़ी) के बने मुखौटे पहने कलाकारों ने रामायण का मंचन किया. जिसको देखकर दर्शक प्रसन्न हो उठे. बता दें, यूनेस्को 2009 में रम्माण मेले को विश्व धरोहर भी घोषित कर चुका है.

रम्माण मेले में दिखी देवभूमि की संस्कृति

पढ़ें- लकड़ियों पर पकाया जा रहा मिड-डे मील, उज्ज्वला योजना का उड़ा मखौल

कार्यक्रम की शुरुआत में सबसे पहले भूमियाल देवता वाद्य यंत्रों की थाप पर अपने पश्वा पर अवतरित हुए. भूमियाल देवता ने मेले में पहुंचे श्रद्धालुओं पर प्रसाद के रूप में चावल फेंककर आशीर्वाद दिया. जिसके बाद ढोल की 18 तालों पर मुखौटा नृत्य किया गया. मुखौटा नृत्य को दूर-दूर से आये दर्शकों ने खूब सराहा. इस दौरान भगवान राम के जन्म से लेकर रावण के वध तक का वृत्तांत जागर और मुखौटा नृत्य के माध्यम से ही दिखाया गया.

बताया जाता है कि सर्वप्रथम आठवीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए रम्माण मेले का आयोजन किया था. तब से लेकर आज तक ग्रामीण विधि-विधान के साथ रम्माण का आयोजन करते आ रहे हैं. मेले की मान्यता और मुखौटा नृत्य को देखकर साल 2009 में यूनेस्को के द्वारा रम्माण को विश्व धरोहर घोषित किया गया था.

Intro:चमोली जनपद में स्थित जोशीमठ विकासखंड के सलूड डुंगरा गांव में आज शुक्रवार को विश्वप्रशिद्व रम्माण मेले का आयोजन हुआ ।पारम्परिक बाद्ययंत्र ढोल के 18 तालों की धाप पर काठ(लकड़ी) के बने मुखोटे पहने कलाकारों के द्वारा रामायण का मंचन देख दूर दूर से आये दर्शक प्रसन्न हो उठे। इस दौरान सलूड डुंगरा गांव में रम्माण देखने के लिए दर्शको की भारी भीड़ जुटी रही।


Body:आज से सलूड डुंगरा गांव में विश्वप्रशिद्ध रम्माण मेले का आयोजन शुरू हुआ।सबसे पहले भूमियाल देवता वाद्य यंत्रो की थाप पर अपने पश्वा पर अवतरित हुए ।भूमियाल देवता ने मेले पर में पहुंचे श्रदालूओ पर प्रसाद के रूप में चावल फेंककर आश्रीवाद भी दिया ,जिसके बाद ढोल की 18 तालो पर मुखोटा नृत्य किया गया ।मुखोटा नृत्य को दूर दूर से आये दर्शको ने खूब सराहा।इस दौरान भगवान राम के जन्म से लेकर रावण के वध तक का व्रतांत जागर और मुखुटा नृत्य के माध्यम से ही दिखाया गया।


Conclusion:बता दे कि प्रतिवर्ष जोशीमठ विकासखंड के सलूड़ गांव में आठवीं शताब्दी से चली आ रही रम्माण(रामायण)मेले का आयोजन ग्रामीणों के द्वारा बड़ी धूमधाम से किया जाता है।इस दौरान कलाकारो के द्वारा रामायण का मंचन कर मुखोटा नृत्य द्वारा मूक रहकर किया जाता है ।बताया जाता है कि सर्वप्रथम आठवीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के प्रचार प्रसार के लिए रम्माण का आयोजन किया था।तब से ग्रामीण आज तक विधि विधान के साथ रम्माण का आयोजन करते आ रहे है ।मेले की मान्यता और मुखोटा नृत्य को देखकर वर्ष 2009 में यूनेस्को के द्वारा रम्माण को विश्व धरोहर भी घोषित किया है।
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