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फूलदेई पर्वः देवभूमि में बाल त्योहार की धूम, बर्फबारी के बीच से सामने आई खूबसूरत तस्वीरें - सोमेश्वर न्यूज

उत्तराखंड में लोक पर्व फूलदेई धूमधाम से मनाया जा रहा है. मौसम खराब होने के बावजूद भी त्योहार को लेकर लोगों में उत्साह की कोई कमी नजर नहीं आई. चमोली और उत्तरकाशी में बर्फबारी के बीच बच्चे फूलदेई मनाते नजर आए. जहां वे कड़ाके की ठंड में भी घरों की दहलीजों पर फूल बिखरते हुए दिखे.

phooldei
फूलदेई
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Published : Mar 14, 2020, 8:03 PM IST

Updated : Mar 14, 2020, 10:18 PM IST

चमोली/उत्तरकाशी/श्रीनगर/अल्मोड़ा/सोमेश्वर/बेरीनाग/थरालीः उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है, यहां पर विराजमान आस्था के केंद्र, संस्कृति, लोक पर्व, तीज-त्योहार और परंपराएं इस पावन धरा को अलग पहचान दिलाते हैं. इन्हीं में एक लोक पर्व है, फूलदेई. जिसे बसंत आगमन की खुशी में मनाया जाता है. बसंत के मौसम में फ्योंली, बुरांश, सरसों, आडू समेत बासिंग के पीले, लाल, सफेद फूलों को देखकर अनायास ही फूलदेई का पर्व जेहन में आ जाता है. नए साल, नए ऋतु और नए फूलों के खिलने का संदेश देने वाला ये त्योहार उत्तराखंड के गांवों, कस्बों में धूमधाम से मनाया जाता है.

उत्तराखंड में फूलदई का पर्व.

चमोली

चमोली में मौसम खराब है. ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी हो रही है, जबकि निचले क्षेत्रों में बारिश जारी है. ऐसे में यहां कड़ाके की ठंड पड़ रही है, लेकिन इसके बावजूद भी फूलदेई के मौके पर बच्चों का उत्साह कम नहीं हुआ. जोशीमठ में छोटे-छोटे बच्चे कड़ाके की ठंड की परवाह किए बिना ही बर्फबारी में फूलदेई का त्योहार मनाते हुए नजर आए. साथ ही दूसरों के घरों पर जाकर उनकी दहलिजों पर फूल डालकर उनकी सुख सम्रद्धि की कामना करते दिखे.

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चमोली में फूलदेई मनाते बच्चे.

उत्तरकाशी

मां यमुना जी के शीतकालीन प्रवास खरसाली गांव में भारी बर्फबारी के बीच फूलदेई त्योहार को लेकर अलग ही उत्साह देखने को मिला. जहां करीब 1 से 2 फीट बर्फ के बीच ग्रामीण महिलाएं ढोल दमाऊं की थाप पर लोकनृत्य रासो, तांदी पर जमकर थिरके. साथ ही ग्रामीण महिलाओं और बच्चों ने सोमेश्वर देवता को बसंत ऋतु के फूल चढ़ाकर मनोकामनाएं मांगी.

उधर, जिला मुख्यालय में बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर में भक्त मंडली समेत बच्चों ने फूलदेई त्योहार मनाया. बच्चों ने फूल एकत्रित कर बाबा काशी विश्वनाथ को चढ़ाए तो वहीं, भक्त मंडली ने महंत अजय पुरी के नेतृत्व में फूलदेई त्योहार के गीत गाकर एक दूसरे को बसंत ऋतु की शुभकामनाएं दी.

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खरसाली गांव में बर्फबारी के बीच रासो तांदी का नृत्य.

ये भी पढ़ेंः देवभूमि में फूलदेई पर्व की धूम, त्योहार मनाने के पीछे की ये है रोचक कहानी

लोकपर्व फूलदेई

चैत महीने की संक्रांति में जब पहाड़ियों से बर्फ पिघलती है और पहाड़ पर बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़ने लगते हैं, तब पूरे इलाके की खुशहाली के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है. ये त्योहार आमतौर पर किशोरी लड़कियों और छोटे बच्चों का पर्व है. फूलदेई के दिन छोटे-छोटे बच्चे अपनी बड़ी उम्मीदों के साथ सुबह उठकर फ्यूंली, बुरांश, बासिंग और कचनार के जंगली फूलों इकट्ठा करते हैं. इन फूलों को रिंगाल (बांस जैसी दिखने वाली लकड़ी) की टोकरी में सजाया जाता है.

टोकरी में फूलों-पत्तों के साथ गुड़, चावल और नारियल रखकर बच्चे अपने गांव और मुहल्ले की ओर निकल जाते हैं. इन फूलों और चावलों को बच्चे सबसे पहले अपने देवी देवताओं को अर्पित करते हैं. फिर घरों की देहरी यानी मुख्यद्वार पर डालते हैं और उस घर की खुशहाली की दुआ मांगते हैं. इस दौरान एक लोक गीत भी गाया जाता है. 'फूल देई…छम्मा देई, देणी द्वार..भर भकार, फूल देई.. छम्मा देई...'

इस दौरान बच्चे गांव के हर दरवाजे का पूजन करते हैं और उपहार पाते हैं. यह पर्व प्रकृति और इंसानों के बीच मधुर संबंध को दर्शाता है. जहां प्रकृति बिना कुछ कहे इंसान को अनेक उपहारों से नवाज देती है और बदले में प्रकृति का धन्यवाद करते हुए रंग बिरंगी फूलों को देहरी में सजाकर किया जाता है.

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फूलदई के मौके पर बच्चों को दक्षिणा देती महिला.

श्रीनगर

फूलदेई के मौके पर श्रीनगर में छोटे-छोटे बच्चो ने घोंगा माता की शोभा यात्रा निकाली. साथ ही घरों की देहरी में फूल डाले. सस्कृति प्रेमियों की मानें तो जब बच्चे छोटे होते हैं तो उन्हें भगवान का रूप माना जाता है. जब बच्चे अबोध होते है तो उनके हंसने को घोंगा माता का आशिर्वाद माना जाता है. साथ ही कहा कि जब छोटे बच्चों को छोटी माता या बड़ी माता का रोग भी होता है तो उससे ठीक करने को लेकर मा घोंगा की पूजा करते हैं.

अल्मोड़ा

अल्मोड़ा में भी फूलदेई पर्व की धूम रही. नन्हें-नन्हें हाथों में कई तरहों के फूल, चावल और गुड़ से सजी थाली व टोकरियां को थामे बच्चों की टोलियां एक-एक कर सभी के घरों में पहुंची. जहां पर बच्चों ने घरों में फूल और चावल डाल कर देहरी का पूजन किया. जिसके बदले घर के मुखिया ने आशीष के तौर पर चावल, आटा, अनाज और देकर विदा किया.

ये भी पढ़ेंः CM त्रिवेंद्र ने प्रदेशवासियों को दी फूलदेई पर्व की बधाई, बच्चों को बांटे उपहार

सोमेश्वर

सोमेश्वर क्षेत्र के सैकड़ों गांवों में बच्चों ने बरसात के बावजूद फूलदेई का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया. फूलदेई के दिन लड़कियां और बच्चे सुबह-सुबह उठकर बुरांश, फ्यूंली, बासिंग और कचनार जैसे जंगली फूलों को इकट्ठा किया और घरों में फूल चढ़ाए.

पहाड़ के परंपरागत पर्वों के स्वरूप में बदलाव के चलते अब प्राचीन पहचान की वस्तुएं भी लुप्त होती जा रही है. पहले बाल पर्व कहे जाने वाले फूलदेई में बच्चों के हाथों में रिंगाल की शानदार टोकरियां होती थी, जिन्हें लाल मिट्टी से लीपकर शानदार ऐपण देकर सजाया जाता था, लेकिन आज प्लास्टिक की थैलियों और झोलों ने टोकरी की पहचान लगभग खत्म कर दी है.

बेरीनाग

लोकपर्व फूलदेई को लेकर प्रदेशभर में उत्साह का माहौल है. मौसम खराब होने के बावजूद बच्चे फूलदेई को काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं. फूलदेई के मौके पर छोटे बच्चे घर-घर जाकर बुरांश, सरसों समेत कई फूलों को डालते हुए नजर आए. जहां पर उन्हें उपहार में चावल, गुड़, रुपये दिए गए.

वक्त के साथ तरीके बदले, लेकिन अब भी जिंदा है परंपरा

पहाडों की संस्कृति धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर है, लेकिन फूलदेई का त्योहार का आज भी हर घर-घर में मनाया जा रहा है. कई जगहों पर इसे एक महोत्सव के रूप में भी मनाया जा रहा है. वहीं, इस त्योहार को लेकर सोशल मीडिया में भी धूम मची हुई है.

थराली

फूलदेई त्योहार को फूल संक्रांति भी कहा जाता है. फूलदेई को चैत्र मास का पहला दिन भी माना जाता है. हिंदू परंपरा के अनुसार इस दिन से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है. यह त्योहार नववर्ष के स्वागत के लिए ही मनाया जाता है. थराली में भी छोटे–छोटे बच्चे जंगलों और खेतों से फूल तोड़कर लाते हुए नजर आए. जिसके बाद बच्चों ने गांव में घूम-घूम कर गांव की दरवाजों (देहलीज) का पूजन किया.

चमोली/उत्तरकाशी/श्रीनगर/अल्मोड़ा/सोमेश्वर/बेरीनाग/थरालीः उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है, यहां पर विराजमान आस्था के केंद्र, संस्कृति, लोक पर्व, तीज-त्योहार और परंपराएं इस पावन धरा को अलग पहचान दिलाते हैं. इन्हीं में एक लोक पर्व है, फूलदेई. जिसे बसंत आगमन की खुशी में मनाया जाता है. बसंत के मौसम में फ्योंली, बुरांश, सरसों, आडू समेत बासिंग के पीले, लाल, सफेद फूलों को देखकर अनायास ही फूलदेई का पर्व जेहन में आ जाता है. नए साल, नए ऋतु और नए फूलों के खिलने का संदेश देने वाला ये त्योहार उत्तराखंड के गांवों, कस्बों में धूमधाम से मनाया जाता है.

उत्तराखंड में फूलदई का पर्व.

चमोली

चमोली में मौसम खराब है. ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी हो रही है, जबकि निचले क्षेत्रों में बारिश जारी है. ऐसे में यहां कड़ाके की ठंड पड़ रही है, लेकिन इसके बावजूद भी फूलदेई के मौके पर बच्चों का उत्साह कम नहीं हुआ. जोशीमठ में छोटे-छोटे बच्चे कड़ाके की ठंड की परवाह किए बिना ही बर्फबारी में फूलदेई का त्योहार मनाते हुए नजर आए. साथ ही दूसरों के घरों पर जाकर उनकी दहलिजों पर फूल डालकर उनकी सुख सम्रद्धि की कामना करते दिखे.

phool dei
चमोली में फूलदेई मनाते बच्चे.

उत्तरकाशी

मां यमुना जी के शीतकालीन प्रवास खरसाली गांव में भारी बर्फबारी के बीच फूलदेई त्योहार को लेकर अलग ही उत्साह देखने को मिला. जहां करीब 1 से 2 फीट बर्फ के बीच ग्रामीण महिलाएं ढोल दमाऊं की थाप पर लोकनृत्य रासो, तांदी पर जमकर थिरके. साथ ही ग्रामीण महिलाओं और बच्चों ने सोमेश्वर देवता को बसंत ऋतु के फूल चढ़ाकर मनोकामनाएं मांगी.

उधर, जिला मुख्यालय में बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर में भक्त मंडली समेत बच्चों ने फूलदेई त्योहार मनाया. बच्चों ने फूल एकत्रित कर बाबा काशी विश्वनाथ को चढ़ाए तो वहीं, भक्त मंडली ने महंत अजय पुरी के नेतृत्व में फूलदेई त्योहार के गीत गाकर एक दूसरे को बसंत ऋतु की शुभकामनाएं दी.

phool dei
खरसाली गांव में बर्फबारी के बीच रासो तांदी का नृत्य.

ये भी पढ़ेंः देवभूमि में फूलदेई पर्व की धूम, त्योहार मनाने के पीछे की ये है रोचक कहानी

लोकपर्व फूलदेई

चैत महीने की संक्रांति में जब पहाड़ियों से बर्फ पिघलती है और पहाड़ पर बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़ने लगते हैं, तब पूरे इलाके की खुशहाली के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है. ये त्योहार आमतौर पर किशोरी लड़कियों और छोटे बच्चों का पर्व है. फूलदेई के दिन छोटे-छोटे बच्चे अपनी बड़ी उम्मीदों के साथ सुबह उठकर फ्यूंली, बुरांश, बासिंग और कचनार के जंगली फूलों इकट्ठा करते हैं. इन फूलों को रिंगाल (बांस जैसी दिखने वाली लकड़ी) की टोकरी में सजाया जाता है.

टोकरी में फूलों-पत्तों के साथ गुड़, चावल और नारियल रखकर बच्चे अपने गांव और मुहल्ले की ओर निकल जाते हैं. इन फूलों और चावलों को बच्चे सबसे पहले अपने देवी देवताओं को अर्पित करते हैं. फिर घरों की देहरी यानी मुख्यद्वार पर डालते हैं और उस घर की खुशहाली की दुआ मांगते हैं. इस दौरान एक लोक गीत भी गाया जाता है. 'फूल देई…छम्मा देई, देणी द्वार..भर भकार, फूल देई.. छम्मा देई...'

इस दौरान बच्चे गांव के हर दरवाजे का पूजन करते हैं और उपहार पाते हैं. यह पर्व प्रकृति और इंसानों के बीच मधुर संबंध को दर्शाता है. जहां प्रकृति बिना कुछ कहे इंसान को अनेक उपहारों से नवाज देती है और बदले में प्रकृति का धन्यवाद करते हुए रंग बिरंगी फूलों को देहरी में सजाकर किया जाता है.

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फूलदई के मौके पर बच्चों को दक्षिणा देती महिला.

श्रीनगर

फूलदेई के मौके पर श्रीनगर में छोटे-छोटे बच्चो ने घोंगा माता की शोभा यात्रा निकाली. साथ ही घरों की देहरी में फूल डाले. सस्कृति प्रेमियों की मानें तो जब बच्चे छोटे होते हैं तो उन्हें भगवान का रूप माना जाता है. जब बच्चे अबोध होते है तो उनके हंसने को घोंगा माता का आशिर्वाद माना जाता है. साथ ही कहा कि जब छोटे बच्चों को छोटी माता या बड़ी माता का रोग भी होता है तो उससे ठीक करने को लेकर मा घोंगा की पूजा करते हैं.

अल्मोड़ा

अल्मोड़ा में भी फूलदेई पर्व की धूम रही. नन्हें-नन्हें हाथों में कई तरहों के फूल, चावल और गुड़ से सजी थाली व टोकरियां को थामे बच्चों की टोलियां एक-एक कर सभी के घरों में पहुंची. जहां पर बच्चों ने घरों में फूल और चावल डाल कर देहरी का पूजन किया. जिसके बदले घर के मुखिया ने आशीष के तौर पर चावल, आटा, अनाज और देकर विदा किया.

ये भी पढ़ेंः CM त्रिवेंद्र ने प्रदेशवासियों को दी फूलदेई पर्व की बधाई, बच्चों को बांटे उपहार

सोमेश्वर

सोमेश्वर क्षेत्र के सैकड़ों गांवों में बच्चों ने बरसात के बावजूद फूलदेई का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया. फूलदेई के दिन लड़कियां और बच्चे सुबह-सुबह उठकर बुरांश, फ्यूंली, बासिंग और कचनार जैसे जंगली फूलों को इकट्ठा किया और घरों में फूल चढ़ाए.

पहाड़ के परंपरागत पर्वों के स्वरूप में बदलाव के चलते अब प्राचीन पहचान की वस्तुएं भी लुप्त होती जा रही है. पहले बाल पर्व कहे जाने वाले फूलदेई में बच्चों के हाथों में रिंगाल की शानदार टोकरियां होती थी, जिन्हें लाल मिट्टी से लीपकर शानदार ऐपण देकर सजाया जाता था, लेकिन आज प्लास्टिक की थैलियों और झोलों ने टोकरी की पहचान लगभग खत्म कर दी है.

बेरीनाग

लोकपर्व फूलदेई को लेकर प्रदेशभर में उत्साह का माहौल है. मौसम खराब होने के बावजूद बच्चे फूलदेई को काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं. फूलदेई के मौके पर छोटे बच्चे घर-घर जाकर बुरांश, सरसों समेत कई फूलों को डालते हुए नजर आए. जहां पर उन्हें उपहार में चावल, गुड़, रुपये दिए गए.

वक्त के साथ तरीके बदले, लेकिन अब भी जिंदा है परंपरा

पहाडों की संस्कृति धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर है, लेकिन फूलदेई का त्योहार का आज भी हर घर-घर में मनाया जा रहा है. कई जगहों पर इसे एक महोत्सव के रूप में भी मनाया जा रहा है. वहीं, इस त्योहार को लेकर सोशल मीडिया में भी धूम मची हुई है.

थराली

फूलदेई त्योहार को फूल संक्रांति भी कहा जाता है. फूलदेई को चैत्र मास का पहला दिन भी माना जाता है. हिंदू परंपरा के अनुसार इस दिन से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है. यह त्योहार नववर्ष के स्वागत के लिए ही मनाया जाता है. थराली में भी छोटे–छोटे बच्चे जंगलों और खेतों से फूल तोड़कर लाते हुए नजर आए. जिसके बाद बच्चों ने गांव में घूम-घूम कर गांव की दरवाजों (देहलीज) का पूजन किया.

Last Updated : Mar 14, 2020, 10:18 PM IST
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