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कलयुग के अंत में नहीं हो पाएंगे 'धरती के बैकुंठ' के दर्शन, नृसिंह मंदिर से जुड़ी है मान्यता

भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा चारों धाम में से एक के रूप में स्थापित किया गया था. मंदिर तीन भागों में विभाजित है- गर्भगृह, दर्शनमंडप और सभामंडप.

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Published : May 10, 2019, 6:00 AM IST

Photo of Badri nath Dham place

देहरादून: उत्तराखंड के साथ ही साथ देश के चार धामों में से एक है बदरीनाथ धाम. मान्यता है कि जीवन-मृत्यु के फेर से मुक्ति पाने के लिये जीवनकाल में एक बार ज़रूर बदरीधाम के दर्शन करने चाहियें. भगवान विष्णु को समर्पित इस धाम में पितरों का तर्पण करने से उन्हें मुक्ति तो मिलती ही है साथ ही श्रद्धालुओं के मन को भी तृप्ति मिलती है. आइये हम आपको बतातें हैं कुछ ऐसी बातें जो विष्णु भक्त होते हुये सभी को जाननी चाहियें.

बदरीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं, जिन्हें रावल कहा जाता है. जबतक पुजारी रावल के पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. स्त्रियों का स्पर्श भी इनके लिये पाप माना जाता है.

Photo of Badri nath Dham place
देश के चार धामों में से एक है बदरीनाथ धाम

एक बैकुण्ठ क्षीर सागर है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं और विष्णु का दूसरा निवास बदरीनाथ है जो धरती पर मौजूद है. इसलिये बदरीनाथ को शास्त्रों में दूसरा बैकुण्ठ कहा गया है. मान्यता ये भी है कि यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था लेकिन विष्णु ने इसे शिव से मांग लिया था.

पढ़ें- चारधाम के तप्त कुंडों में स्नान से मिलता है मोक्ष, हर कुंड का है विशेष महत्व

भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा चारों धाम में से एक के रूप में स्थापित किया गया था. मंदिर तीन भागों में विभाजित है- गर्भगृह, दर्शनमंडप और सभामंडप.

पुराणों में बताया गया है कि बदरीनाथ में हर युग में बड़ा परिवर्तन हुआ है. सतयुग तक यहां पर हर व्यक्ति को भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुआ करते थे. त्रेता युग में यहां देवताओं और साधुओं को भगवान के साक्षात दर्शन मिलते थे. द्वापर में जब भगवान विष्णु श्रीकृष्ण रूप में अवतार लेने वाले थे उस समय भगवान ने यह तय किया गया कि अब से यहां मनुष्यों को उनके विग्रह के दर्शन होंगे.

Photo of Badri nath Dham place
बदरीनाथ को शास्त्रों में दूसरा बैकुण्ठ कहा गया है
चार धाम यात्रा में सबसे अंत में बदरीनाथ धाम के दर्शन किये जाते हैं. धाम दो पर्वतों के बीच बसा है. इन्हें नर और नारायण पर्वत कहा जाता है. कहते हैं ब्रह्मा, धर्मराज व त्रिमूर्ति के दोनों पुत्र नर और नारायण ने यहां वन में तपस्या की, जिससे इन्द्र का घमंड चकनाचूर हो गया. बाद में यही नर और नारायण द्वापर युग में कृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतरित हुए, जिन्हें हम विशाल बदरी के नाम से जानते हैं.

मान्यता है कि जब केदारनाथ और बदरीनाथ के कपाट खुलते हैं उस समय मंदिर एक दीपक जलता रहता है. इस दीपक के दर्शन का बड़ा महत्व है. मान्यता है कि 6 महीने तक बंद दरवाजे के अंदर इस दीप को देवता जलाए रखते हैं.

पढ़ें- 400 सालों तक बर्फ से ढका था केदारनाथ धाम, आज भी ताजा हैं निशान

यहां सरस्वती नदी के उद्गम पर स्थित सरस्वती मंदिर की भी बड़ी मान्यता है. ये मंदिर बदरीनाथ से तीन किलोमीटर की दूरी पर माणा गांव में स्थित है. सरस्वती नदी अपने उद्गम से महज कुछ किलोमीटर बाद ही अलकनंदा में विलीन हो जाती है.

Photo of Badri nath Dham place
यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था लेकिन विष्णु ने इसे शिव से मांग लिया था

जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर का संबंध भी बदरीनाथ से माना जाता है. मान्यता है इस मंदिर में भगवान नृसिंह की एक बाजू काफी पतली है, कलयुग के अंत में जिस दिन ये भुजा टूटकर गिर जाएगा उस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बदरीनाथ के दर्शन वर्तमान स्थान पर नहीं हो पाएंगे. कहते हैं कि बदरीनाथ के दर्शन नए स्थान पर होंगे जिसे भविष्य बदरी के नाम से जाना जाता है.

कहा जाता है कि 'जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी' यानी जो व्यक्ति बदरीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे पुनः माता के उदर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता है. इसलिए शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य को जीवन में कम से कम एक बार बदरीनाथ के दर्शन जरूर करने चाहिएं.

देहरादून: उत्तराखंड के साथ ही साथ देश के चार धामों में से एक है बदरीनाथ धाम. मान्यता है कि जीवन-मृत्यु के फेर से मुक्ति पाने के लिये जीवनकाल में एक बार ज़रूर बदरीधाम के दर्शन करने चाहियें. भगवान विष्णु को समर्पित इस धाम में पितरों का तर्पण करने से उन्हें मुक्ति तो मिलती ही है साथ ही श्रद्धालुओं के मन को भी तृप्ति मिलती है. आइये हम आपको बतातें हैं कुछ ऐसी बातें जो विष्णु भक्त होते हुये सभी को जाननी चाहियें.

बदरीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं, जिन्हें रावल कहा जाता है. जबतक पुजारी रावल के पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. स्त्रियों का स्पर्श भी इनके लिये पाप माना जाता है.

Photo of Badri nath Dham place
देश के चार धामों में से एक है बदरीनाथ धाम

एक बैकुण्ठ क्षीर सागर है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं और विष्णु का दूसरा निवास बदरीनाथ है जो धरती पर मौजूद है. इसलिये बदरीनाथ को शास्त्रों में दूसरा बैकुण्ठ कहा गया है. मान्यता ये भी है कि यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था लेकिन विष्णु ने इसे शिव से मांग लिया था.

पढ़ें- चारधाम के तप्त कुंडों में स्नान से मिलता है मोक्ष, हर कुंड का है विशेष महत्व

भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा चारों धाम में से एक के रूप में स्थापित किया गया था. मंदिर तीन भागों में विभाजित है- गर्भगृह, दर्शनमंडप और सभामंडप.

पुराणों में बताया गया है कि बदरीनाथ में हर युग में बड़ा परिवर्तन हुआ है. सतयुग तक यहां पर हर व्यक्ति को भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुआ करते थे. त्रेता युग में यहां देवताओं और साधुओं को भगवान के साक्षात दर्शन मिलते थे. द्वापर में जब भगवान विष्णु श्रीकृष्ण रूप में अवतार लेने वाले थे उस समय भगवान ने यह तय किया गया कि अब से यहां मनुष्यों को उनके विग्रह के दर्शन होंगे.

Photo of Badri nath Dham place
बदरीनाथ को शास्त्रों में दूसरा बैकुण्ठ कहा गया है
चार धाम यात्रा में सबसे अंत में बदरीनाथ धाम के दर्शन किये जाते हैं. धाम दो पर्वतों के बीच बसा है. इन्हें नर और नारायण पर्वत कहा जाता है. कहते हैं ब्रह्मा, धर्मराज व त्रिमूर्ति के दोनों पुत्र नर और नारायण ने यहां वन में तपस्या की, जिससे इन्द्र का घमंड चकनाचूर हो गया. बाद में यही नर और नारायण द्वापर युग में कृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतरित हुए, जिन्हें हम विशाल बदरी के नाम से जानते हैं.

मान्यता है कि जब केदारनाथ और बदरीनाथ के कपाट खुलते हैं उस समय मंदिर एक दीपक जलता रहता है. इस दीपक के दर्शन का बड़ा महत्व है. मान्यता है कि 6 महीने तक बंद दरवाजे के अंदर इस दीप को देवता जलाए रखते हैं.

पढ़ें- 400 सालों तक बर्फ से ढका था केदारनाथ धाम, आज भी ताजा हैं निशान

यहां सरस्वती नदी के उद्गम पर स्थित सरस्वती मंदिर की भी बड़ी मान्यता है. ये मंदिर बदरीनाथ से तीन किलोमीटर की दूरी पर माणा गांव में स्थित है. सरस्वती नदी अपने उद्गम से महज कुछ किलोमीटर बाद ही अलकनंदा में विलीन हो जाती है.

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यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था लेकिन विष्णु ने इसे शिव से मांग लिया था

जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर का संबंध भी बदरीनाथ से माना जाता है. मान्यता है इस मंदिर में भगवान नृसिंह की एक बाजू काफी पतली है, कलयुग के अंत में जिस दिन ये भुजा टूटकर गिर जाएगा उस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बदरीनाथ के दर्शन वर्तमान स्थान पर नहीं हो पाएंगे. कहते हैं कि बदरीनाथ के दर्शन नए स्थान पर होंगे जिसे भविष्य बदरी के नाम से जाना जाता है.

कहा जाता है कि 'जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी' यानी जो व्यक्ति बदरीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे पुनः माता के उदर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता है. इसलिए शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य को जीवन में कम से कम एक बार बदरीनाथ के दर्शन जरूर करने चाहिएं.

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कलयुग के अंत में नहीं हो पाएंगे 'धरती के बैकुंठ' के दर्शन, नृसिंह मंदिर से जुड़ी है मान्यता



देहरादून: उत्तराखंड के साथ ही साथ देश के चार धामों में से एक है बदरीनाथ धाम. मान्यता है कि जीवन-मृत्यु के फेर से मुक्ति पाने के लिये जीवनकाल में एक बार ज़रूर बदरीधाम के दर्शन करने चाहियें. भगवान विष्णु को समर्पित इस धाम में पितरों का तर्पण करने से उन्हें मुक्ति तो मिलती ही है साथ ही श्रद्धालुओं के मन को भी तृप्ति मिलती है. आइये हम आपको बतातें हैं कुछ ऐसी बातें जो विष्णु भक्त होते हुये सभी को जाननी चाहियें. 



बदरीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं, जिन्हें रावल कहा जाता है. जबतक पुजारी रावल के पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. स्त्रियों का स्पर्श भी इनके लिये पाप माना जाता है.



एक बैकुण्ठ क्षीर सागर है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं और विष्णु का दूसरा निवास बदरीनाथ है जो धरती पर मौजूद है. इसलिये बदरीनाथ को शास्त्रों में दूसरा बैकुण्ठ कहा गया है. मान्यता ये भी है कि यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था लेकिन विष्णु ने इसे शिव से मांग लिया था.



भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा चारों धाम में से एक के रूप में स्थापित किया गया था. मंदिर तीन भागों में विभाजित है- गर्भगृह, दर्शनमंडप और सभामंडप.



पुराणों में बताया गया है कि बदरीनाथ में हर युग में बड़ा परिवर्तन हुआ है. सतयुग तक यहां पर हर व्यक्ति को भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुआ करते थे. त्रेता युग में यहां देवताओं और साधुओं को भगवान के साक्षात दर्शन मिलते थे. द्वापर में जब भगवान विष्णु श्रीकृष्ण रूप में अवतार लेने वाले थे उस समय भगवान ने यह तय किया गया कि अब से यहां मनुष्यों को उनके विग्रह के दर्शन होंगे. 

 

चार धाम यात्रा में सबसे अंत में बदरीनाथ धाम के दर्शन किये जाते हैं. धाम दो पर्वतों के बीच बसा है. इन्हें नर और नारायण पर्वत कहा जाता है. कहते हैं ब्रह्मा, धर्मराज व त्रिमूर्ति के दोनों पुत्र नर और नारायण ने यहां वन में तपस्या की, जिससे इन्द्र का घमंड चकनाचूर हो गया. बाद में यही नर और नारायण द्वापर युग में कृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतरित हुए, जिन्हें हम विशाल बदरी के नाम से जानते हैं.



मान्यता है कि जब केदारनाथ और बदरीनाथ के कपाट खुलते हैं उस समय मंदिर एक दीपक जलता रहता है. इस दीपक के दर्शन का बड़ा महत्व है. मान्यता है कि 6 महीने तक बंद दरवाजे के अंदर इस दीप को देवता जलाए रखते हैं.



यहां सरस्वती नदी के उद्गम पर स्थित सरस्वती मंदिर की भी बड़ी मान्यता है. ये मंदिर बदरीनाथ से तीन किलोमीटर की दूरी पर माणा गांव में स्थित है. सरस्वती नदी अपने उद्गम से महज कुछ किलोमीटर बाद ही अलकनंदा में विलीन हो जाती है. 



जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर का संबंध भी बदरीनाथ से माना जाता है. मान्यता है इस मंदिर में भगवान नृसिंह की एक बाजू काफी पतली है, कलयुग के अंत में जिस दिन ये भुजा टूटकर गिर जाएगा उस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बदरीनाथ के दर्शन वर्तमान स्थान पर नहीं हो पाएंगे. कहते हैं कि बदरीनाथ के दर्शन नए स्थान पर होंगे जिसे भविष्य बदरी के नाम से जाना जाता है.



कहा जाता है कि 'जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी' यानी जो व्यक्ति बदरीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे पुनः माता के उदर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता है. इसलिए शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य को जीवन में कम से कम एक बार बदरीनाथ के दर्शन जरूर करने चाहिएं.

 


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