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चमोली के द्रोणागिरि गांव के लोग नहीं करते हैं हनुमान की पूजा, जानिए कारण

उत्तराखंड देवताओं की भूमि कही जाती है. लेकिन यहां एक ऐसा गांव भी है जहां हनुमान जी की पूजा नहीं की जाती है. भोटिया जनजाति के लोगों का यह गांव मानता है कि जब भगवान लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे तब हनुमान जी संजीवनी के लिए द्रोणागिरि पर्वत आए थे और संजीवनी बूटी की पहचान ना होने के कारण वे द्रोणागिरि पर्वत के एक बड़े हिस्से को ही उठा कर ले गए थे. तब से ग्रामीण हनुमान जी से नाराज हैं.

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Published : Apr 16, 2022, 1:44 PM IST

Updated : Apr 16, 2022, 4:24 PM IST

hanuman jayanti 2022
द्रोणागिरी गांव

देहरादून: भारत ही नहीं पूरा विश्व जिस भगवान हनुमान को संकट को हरने वाला यानी संकटमोचक कहता हो, जिस हनुमान भगवान के बिना पूजा पद्धति पूरी नहीं होती. उसी हनुमान का जिक्र करना भारत के एक गांव में अपराध है. आप इस बात पर कितना यकीन करेंगे लेकिन यह बात सोलह आने सच है. उत्तराखंड में आज भी एक ऐसा गांव है. जहां पर ना तो हनुमान भगवान की पूजा होती है और ना ही उनका कोई मंदिर है. कहा जाता है कि यहां के लोग संकट मोचन भगवान हनुमान से बेहद नाराज हैं और यह नाराजगी भी कोई छोटी-मोटी नहीं बल्कि रामायण काल से चली आ रही है. क्या है यह पूरी कहानी चलिए हम आपको बताते हैं...

रामायणकाल से जुड़ा है गांव का जिक्र: उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है द्रोणागिरी गांव. द्रोणागिरी का नाम सुनते ही आपके मन में रामायण का वह दृश्य सामने आ गया होगा, जिसमें महाबली हनुमान लक्ष्मण के मूर्छित होने पर पर्वत उठा कर ले आए थे. जी हां, यह वही द्रोणागिरी गांव और पर्वत है, जहां पर वह जड़ी-बूटी संजीवनी मौजूद थी, जिससे भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण के प्राण बचे थे.

चमोली के द्रोणागिरि गांव के लोग नहीं करते हैं हनुमान की पूजा.

बताया जाता है कि उस वक्त सुषेण वैद्य ने जिस संजीवनी बूटी का जिक्र किया था. वह हिमालय के क्षेत्र में मिलती थी और हनुमान अपने भगवान राम की आज्ञा का पालन करते हुए जड़ी बूटी लेने के लिए इसी क्षेत्र में आए थे. जब उन्हें यह समझ नहीं आया कि पर्वत में दिख रही जड़ी बूटी कौन सी संजीवनी बूटी है ऐसे में हनुमान पूरा पर्वत ही उठाकर ले गए थे. तभी से इस गांव के लोगों के साथ भगवान हनुमान का झगड़ा चल रहा है. दरअसल, इस गांव के भुटिया जनजाति के लोग क्षेत्र के प्रबंध को अपना कुलदेवता मानते हैं.

हनुमान जी से खफा हैं ग्रामीण: इस गांव के बारे में अगर बात करें, तो यह गांव लगभग 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस गांव में फिलहाल 100 परिवार रहते हैं. उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में हर गांव में रामलीला होती है, लेकिन इस गांव में रामलीला का आयोजन भी नहीं होता. स्थानीय लोग बताते हैं कि सालों पहले यहां पर रामलीला का आयोजन किया गया था. जैसे ही रामलीला में हनुमान के पात्र का अभिनय किया गया, उसके तुरंत बाद इस क्षेत्र में आपदा आ गई थी. तब से लेकर आज तक इस गांव में रामलीला का आयोजन भी नहीं होता. बताया तो यह भी जाता है कि आस-पास के गांव में रामलीला तो होती है लेकिन उसमें हनुमान का अभिनय नहीं करवाया जाता. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां के लोग भगवान हनुमान से कितने खफा हैं.
पढ़ें- पढ़ें- Hanuman jayanti 2022: जिस Apple की दुनिया है फैन, उसका बाबा नीम करौली से है बड़ा कनेक्शन

क्या कहते हैं धर्म के जानकार: द्रोणागिरी पर्वत और उससे जुड़ी इस धार्मिक मान्यताओं के बारे में धर्म के जानकार प्रतीक मिश्रपुरी बताते हैं कि भगवान हनुमान ने जब यहां से पर्वत उठाया था. उससे पहले ऐसा नहीं है कि उसकी इजाजत नहीं ली थी. बाकायदा द्रोणागिरी पर्वत और संजीवनी बूटी ओं से उन्होंने इस बात की इजाजत मांगी थी. उसके बाद ही वह यहां से संजीवनी बूटी और पर्वत लेकर के गए थे.

प्रतीक मिश्रपुरी बताते हैं कि इस धार्मिक कहानी में कई जगह इस बात का भी जिक्र है कि संजीवनी बूटी शबरी के जूठे बेर की गुठलियों से बनाई गई थी. बहरहाल, यहां के लोगों का हनुमान से खफा होना इसलिए भी जायज है. क्योंकि अगर आज यहां पर द्रोणागिरी पर्वत पूरी तरह से होता तो शायद गांव में और संपन्नता रहती और वैसे भी यहां के लोग उस पर्वत को अपना देवता मानते हैं.

गांव को विकसित कर रही सरकार: राज्य सरकार भी बीते दिनों इस पर्वत को टूरिस्ट के आकर्षण के लिहाज से डेवलप कर रही है. तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस गांव में मुख्य सड़क मार्ग से गांव तक जाने वाली सड़क का निर्माण करने की घोषणा की थी, जिसका काम अभी भी चल रहा है. इतना ही नहीं जो लोग बदरीनाथ आते हैं. ह इस पर्वत के दर्शन करने के लिए भी अब पहुंचने लगे हैं. ऐसे में हो सकता है आने वाले दिनों में द्रोणागिरी पर्वत और क्षेत्र की सूरत बदल जाए.

भोटिया जनजाति का गांव है द्रोणागिरि: द्रोणागिरि गांव में भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं. समुद्र तल से करीब 12 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे इस गांव में करीब 100 परिवार रहते हैं. सर्दियों में द्रोणागिरि पर इतनी बर्फबारी होती है कि यहां रुकना काफी मुश्किल भरा होता है. ऐसे में यहां लोग अक्टूबर के दूसरे-तीसरे हफ्ते तक चमोली शहर के आस-पास बसे अपने अन्य गांवों में आ जाते हैं. इसके बाद मई में जब बर्फ पिघल जाती है, तब एक बार फिर से द्रोणागिरि आबाद होता है. तब गांव के लोग यहां वापस लौट आते हैं.

ऐसे पहुंचें द्रोणागिरि पर्वत: जोशीमठ से मलारी की तरफ करीब 50 किमी आगे एक जगह मिलती है, जिसका नाम है जुम्मा. यहीं से द्रोणागिरि गांव के लिए पैदल मार्ग शुरू हो जाता है. धौली गंगा नदी पर बने पुल के दूसरी ओर पहाड़ों की श्रृंखला दिखाई देती है. उसे पार करने के बाद द्रोणागिरि पर्वत पर आप पहुंच सकते हैं. यहां से संकरी पहाड़ी पगडंडियों पर करीब 10 किलोमीटर ट्रेकिंग कर लोग यहां पहुंच सकते हैं. हर साल जून के महीने में द्रोणागिरि पर्वत की विशेष पूजा की जाती है.

देहरादून: भारत ही नहीं पूरा विश्व जिस भगवान हनुमान को संकट को हरने वाला यानी संकटमोचक कहता हो, जिस हनुमान भगवान के बिना पूजा पद्धति पूरी नहीं होती. उसी हनुमान का जिक्र करना भारत के एक गांव में अपराध है. आप इस बात पर कितना यकीन करेंगे लेकिन यह बात सोलह आने सच है. उत्तराखंड में आज भी एक ऐसा गांव है. जहां पर ना तो हनुमान भगवान की पूजा होती है और ना ही उनका कोई मंदिर है. कहा जाता है कि यहां के लोग संकट मोचन भगवान हनुमान से बेहद नाराज हैं और यह नाराजगी भी कोई छोटी-मोटी नहीं बल्कि रामायण काल से चली आ रही है. क्या है यह पूरी कहानी चलिए हम आपको बताते हैं...

रामायणकाल से जुड़ा है गांव का जिक्र: उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है द्रोणागिरी गांव. द्रोणागिरी का नाम सुनते ही आपके मन में रामायण का वह दृश्य सामने आ गया होगा, जिसमें महाबली हनुमान लक्ष्मण के मूर्छित होने पर पर्वत उठा कर ले आए थे. जी हां, यह वही द्रोणागिरी गांव और पर्वत है, जहां पर वह जड़ी-बूटी संजीवनी मौजूद थी, जिससे भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण के प्राण बचे थे.

चमोली के द्रोणागिरि गांव के लोग नहीं करते हैं हनुमान की पूजा.

बताया जाता है कि उस वक्त सुषेण वैद्य ने जिस संजीवनी बूटी का जिक्र किया था. वह हिमालय के क्षेत्र में मिलती थी और हनुमान अपने भगवान राम की आज्ञा का पालन करते हुए जड़ी बूटी लेने के लिए इसी क्षेत्र में आए थे. जब उन्हें यह समझ नहीं आया कि पर्वत में दिख रही जड़ी बूटी कौन सी संजीवनी बूटी है ऐसे में हनुमान पूरा पर्वत ही उठाकर ले गए थे. तभी से इस गांव के लोगों के साथ भगवान हनुमान का झगड़ा चल रहा है. दरअसल, इस गांव के भुटिया जनजाति के लोग क्षेत्र के प्रबंध को अपना कुलदेवता मानते हैं.

हनुमान जी से खफा हैं ग्रामीण: इस गांव के बारे में अगर बात करें, तो यह गांव लगभग 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस गांव में फिलहाल 100 परिवार रहते हैं. उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में हर गांव में रामलीला होती है, लेकिन इस गांव में रामलीला का आयोजन भी नहीं होता. स्थानीय लोग बताते हैं कि सालों पहले यहां पर रामलीला का आयोजन किया गया था. जैसे ही रामलीला में हनुमान के पात्र का अभिनय किया गया, उसके तुरंत बाद इस क्षेत्र में आपदा आ गई थी. तब से लेकर आज तक इस गांव में रामलीला का आयोजन भी नहीं होता. बताया तो यह भी जाता है कि आस-पास के गांव में रामलीला तो होती है लेकिन उसमें हनुमान का अभिनय नहीं करवाया जाता. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां के लोग भगवान हनुमान से कितने खफा हैं.
पढ़ें- पढ़ें- Hanuman jayanti 2022: जिस Apple की दुनिया है फैन, उसका बाबा नीम करौली से है बड़ा कनेक्शन

क्या कहते हैं धर्म के जानकार: द्रोणागिरी पर्वत और उससे जुड़ी इस धार्मिक मान्यताओं के बारे में धर्म के जानकार प्रतीक मिश्रपुरी बताते हैं कि भगवान हनुमान ने जब यहां से पर्वत उठाया था. उससे पहले ऐसा नहीं है कि उसकी इजाजत नहीं ली थी. बाकायदा द्रोणागिरी पर्वत और संजीवनी बूटी ओं से उन्होंने इस बात की इजाजत मांगी थी. उसके बाद ही वह यहां से संजीवनी बूटी और पर्वत लेकर के गए थे.

प्रतीक मिश्रपुरी बताते हैं कि इस धार्मिक कहानी में कई जगह इस बात का भी जिक्र है कि संजीवनी बूटी शबरी के जूठे बेर की गुठलियों से बनाई गई थी. बहरहाल, यहां के लोगों का हनुमान से खफा होना इसलिए भी जायज है. क्योंकि अगर आज यहां पर द्रोणागिरी पर्वत पूरी तरह से होता तो शायद गांव में और संपन्नता रहती और वैसे भी यहां के लोग उस पर्वत को अपना देवता मानते हैं.

गांव को विकसित कर रही सरकार: राज्य सरकार भी बीते दिनों इस पर्वत को टूरिस्ट के आकर्षण के लिहाज से डेवलप कर रही है. तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस गांव में मुख्य सड़क मार्ग से गांव तक जाने वाली सड़क का निर्माण करने की घोषणा की थी, जिसका काम अभी भी चल रहा है. इतना ही नहीं जो लोग बदरीनाथ आते हैं. ह इस पर्वत के दर्शन करने के लिए भी अब पहुंचने लगे हैं. ऐसे में हो सकता है आने वाले दिनों में द्रोणागिरी पर्वत और क्षेत्र की सूरत बदल जाए.

भोटिया जनजाति का गांव है द्रोणागिरि: द्रोणागिरि गांव में भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं. समुद्र तल से करीब 12 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे इस गांव में करीब 100 परिवार रहते हैं. सर्दियों में द्रोणागिरि पर इतनी बर्फबारी होती है कि यहां रुकना काफी मुश्किल भरा होता है. ऐसे में यहां लोग अक्टूबर के दूसरे-तीसरे हफ्ते तक चमोली शहर के आस-पास बसे अपने अन्य गांवों में आ जाते हैं. इसके बाद मई में जब बर्फ पिघल जाती है, तब एक बार फिर से द्रोणागिरि आबाद होता है. तब गांव के लोग यहां वापस लौट आते हैं.

ऐसे पहुंचें द्रोणागिरि पर्वत: जोशीमठ से मलारी की तरफ करीब 50 किमी आगे एक जगह मिलती है, जिसका नाम है जुम्मा. यहीं से द्रोणागिरि गांव के लिए पैदल मार्ग शुरू हो जाता है. धौली गंगा नदी पर बने पुल के दूसरी ओर पहाड़ों की श्रृंखला दिखाई देती है. उसे पार करने के बाद द्रोणागिरि पर्वत पर आप पहुंच सकते हैं. यहां से संकरी पहाड़ी पगडंडियों पर करीब 10 किलोमीटर ट्रेकिंग कर लोग यहां पहुंच सकते हैं. हर साल जून के महीने में द्रोणागिरि पर्वत की विशेष पूजा की जाती है.

Last Updated : Apr 16, 2022, 4:24 PM IST
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