थरालीः सूबे में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की बदहाल स्थिति किसी से छिपी नहीं है. आलम ये है कि सरकारी अस्पतालों में न तो पर्याप्त डॉक्टर हैं और न ही संसाधन, जिसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है. लाख कोशिश के बावजूद भी सरकार डॉक्टरों की तैनाती पर्वतीय अंचलों में नहीं कर पा रही है. जिससे लोगों को उचित स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पा रही है. ऐसा ही एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र थराली भी है. जो महज एक रेफर सेंटर बनकर रह गया है.
दरअसल, थराली में स्थानीय लोगों की सहूलियत और बेहतर इलाज के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बनाया गया है, लेकिन यह स्वास्थ्य केंद्र अपनी बदहाली के आंसू रो रहा है. यहां न तो अस्पताल में पर्याप्त संसाधन हैं, न ही पूरा स्टाफ. बीते तीन सालों से जहां स्वास्थ्य केंद्र में बिना टेक्नीशियन के एक्सरे मशीन धूल फांक रही है तो वहीं, अल्ट्रासाउंड की सुविधा न होने के चलते प्रसूता महिलाओं को बागेश्वर, कर्णप्रयाग या फिर रुद्रप्रयाग का रुख करना पड़ रहा है.
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सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र थराली में डॉक्टरों के 9 पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में महज 3 डॉक्टर ही यहां पर तैनात हैं. उनमें से भी 2 स्थायी नियुक्ति पर है और एक संविदा पर है. तैनात तीनों डॉक्टरों में से एक भी विशेषज्ञ नहीं है. हालांकि, यहां डॉक्टर मरीज के इलाज में अपना पूरा योगदान तो देते हैं, लेकिन संसाधनों के अभाव और स्टाफ की अनियमितता के चलते बेहतर इलाज के लिए मरीज को रेफर करने की ही नौबत आन पड़ती है.
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चिकित्साप्रभारी डॉ. नवनीत चौधरी के मुताबिक यहां स्टाफ नर्स के 6 पद स्वीकृत हैं, लेकिन सीएचसी थराली में महज एक पुरुष नर्स के भरोसे स्वास्थ्य सेवाएं चल रही है. ऐसे में भला डॉक्टर बिना संसाधनों के किसी का इलाज करे भी तो कैसे करें. सूबे की सरकार को अस्पतालों की ये बदहाली नजर नहीं आती है. विपक्षी कांग्रेस के नेता इस बदहाली को बीजेपी सरकार को जिम्मेदार तो बताते हैं, लेकिन इन मुद्दों को लेकर जनता की आवाज नहीं बन पाते हैं. जिसका खामियाजा महज जनता को ही भुगतना पड़ रहा है.