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चार दशक बाद भी सड़क को तरस रहे लोग, नहीं बन पाया मोहनखाल-चोपता मोटरमार्ग

चमोली जिले की मोहनखाल-चोपता सड़क चार दशक बाद भी नहीं बन पाई है. सड़क नहीं होने से स्थानीय निवासी तो दिक्कत झेल ही रहे हैं पर्यटक भी सुरम्य स्थलों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं.

Mohankhal-Chopta motorway
मोहनखाल-चोपता मोटरमार्ग
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Published : Jul 8, 2020, 1:00 PM IST

Updated : Jul 8, 2020, 5:04 PM IST

चमोली: पर्यटन स्थल चोपता को भारत का मिनी स्विट्जरलैंड कहा जाता है. चोपता की सुंदर पहाड़ियों और बुग्यालों में बर्फबारी को देखने के लिए पर्यटक दीवाने रहते हैं. चोपता से 5 किलोमीटर आगे तृतीय केदार तुंगनाथ विराजमान हैं. लेकिन चोपता जाने वाले मोटर मार्ग का काम पूरा न होने के कारण पर्यटकों को चोपता और मोहनखाल की दूरी तय करने में काफी समय लग जाता है. इसके कारण कई बार पर्यटक समय कम होने के कारण यहां की सुंदर वादियों को देखने से वंचित रह जाते हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि अगर सरकारी महकमों में तालमेल होता तो आज तक पोखरी के मोहनखाल से चोपता जाने वाले मोटर मार्ग का काम पूरा हो चुका होता.

चार दशक बाद भी सड़क को तरस रहे लोग.

इस मोटर मार्ग के बनने से चोपता और मोहनखाल की दूरी कम होने के साथ ही कार्तिक स्वामी और तृतीय केदार तुंगनाथ मंदिर की दूरी भी कम हो जाती. पर्यटन तो बढ़ता ही साथ ही यहां के लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलते. लेकिन सड़क में जनप्रतिनिधियों के द्वारा आगे पहल न होने के कारण चार दशक बीत जाने के बाद भी मोहनखाल-चोपता, तुंगनाथ मोटर मार्ग आधी-अधूरी कटिंग के बाद वन अधिनियम के चलते 17 किलोमीटर निर्माण के बाद रुका हुआ है.

स्थानीय निवासी ललित मोहन बताते हैं कि विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल चोपता को जाने के लिए रुद्रप्रयाग, उखीमठ, चमोली और गोपेश्वर होते हुए सड़क की सुविधा है. चोपता से तृतीय केदार तुंगनाथ जाने के लिए 5 किलोमीटर पैदल दूरी तय करनी पड़ती है. अगर ये सड़क चमोली और रुद्रप्रयाग की सीमा पर स्थित मोहनखाल से बन जाती तो महज 27 किलोमीटर की दूरी में ही चोपता पहुंच सकते थे. इससे तुंगनाथ जाने वाले लोगों का समय बच जाता और एक ही दिन में यात्री दोनों मंदिरों के दर्शन कर सकते थे.

पढ़ें- चीन सीमा को जोड़ने वाला टनकपुर-तवाघाट राष्ट्रीय राजमार्ग भूस्खलन से हुआ बंद

बदरीनाथ विधायक महेंद्र प्रसाद ने बताया कि विकासखंड पोखरी में स्थित मोहनखाल से चोपता तक वन विभाग ने आज से 40 साल पहले गश्त के लिए 27 किलोमीटर सड़क स्वीकृत की थी. इसमें वन विभाग ने करीब 17 किलोमीटर तक सड़क की कटिंग भी की. लेकिन 1980 में वन अधिनियम अस्तित्व में आने के कारण करीब 10 किलोमीटर के क्षेत्र में सेंक्चुरी वाइल्ड एरिया और कस्तूरी मृग अभ्यारण्य होने से इस महत्वकांक्षी सड़क का निर्माण नहीं हो पाया और इस पर रोक लग गई. आज स्थिति ये है कि करोड़ों खर्च होने के बाद भी मोटर मार्ग पैदल मार्ग में तब्दील है. उन्होंने दावा किया है कि सड़क को सुचारु करने के लिए उन्होंने वन विभाग शासन-प्रशासन को प्रस्ताव भेजा है.

विधायक के दावों के विपरीत केदारनाथ वन प्रभाग के डीएफओ अमित कंवर का कहना है कि उनके पास फिलहाल सड़क को लेकर किसी के द्वारा कोई भी प्रस्ताव नहीं आया है. अगर प्रस्ताव आता है तो वह इसे तत्काल व्यापक, जनहित, पर्यटन, तीर्थाटन को देखते हुए स्वीकृत कराने का प्रयास करते. इस सड़क के बनने से तुंगनाथ और कार्तिक स्वामी मंदिर भी आपस में जुड़ जाएंगे, जो कि दोनों केदारनाथ वन प्रभाग के अंतर्गत हैं

चमोली: पर्यटन स्थल चोपता को भारत का मिनी स्विट्जरलैंड कहा जाता है. चोपता की सुंदर पहाड़ियों और बुग्यालों में बर्फबारी को देखने के लिए पर्यटक दीवाने रहते हैं. चोपता से 5 किलोमीटर आगे तृतीय केदार तुंगनाथ विराजमान हैं. लेकिन चोपता जाने वाले मोटर मार्ग का काम पूरा न होने के कारण पर्यटकों को चोपता और मोहनखाल की दूरी तय करने में काफी समय लग जाता है. इसके कारण कई बार पर्यटक समय कम होने के कारण यहां की सुंदर वादियों को देखने से वंचित रह जाते हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि अगर सरकारी महकमों में तालमेल होता तो आज तक पोखरी के मोहनखाल से चोपता जाने वाले मोटर मार्ग का काम पूरा हो चुका होता.

चार दशक बाद भी सड़क को तरस रहे लोग.

इस मोटर मार्ग के बनने से चोपता और मोहनखाल की दूरी कम होने के साथ ही कार्तिक स्वामी और तृतीय केदार तुंगनाथ मंदिर की दूरी भी कम हो जाती. पर्यटन तो बढ़ता ही साथ ही यहां के लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलते. लेकिन सड़क में जनप्रतिनिधियों के द्वारा आगे पहल न होने के कारण चार दशक बीत जाने के बाद भी मोहनखाल-चोपता, तुंगनाथ मोटर मार्ग आधी-अधूरी कटिंग के बाद वन अधिनियम के चलते 17 किलोमीटर निर्माण के बाद रुका हुआ है.

स्थानीय निवासी ललित मोहन बताते हैं कि विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल चोपता को जाने के लिए रुद्रप्रयाग, उखीमठ, चमोली और गोपेश्वर होते हुए सड़क की सुविधा है. चोपता से तृतीय केदार तुंगनाथ जाने के लिए 5 किलोमीटर पैदल दूरी तय करनी पड़ती है. अगर ये सड़क चमोली और रुद्रप्रयाग की सीमा पर स्थित मोहनखाल से बन जाती तो महज 27 किलोमीटर की दूरी में ही चोपता पहुंच सकते थे. इससे तुंगनाथ जाने वाले लोगों का समय बच जाता और एक ही दिन में यात्री दोनों मंदिरों के दर्शन कर सकते थे.

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बदरीनाथ विधायक महेंद्र प्रसाद ने बताया कि विकासखंड पोखरी में स्थित मोहनखाल से चोपता तक वन विभाग ने आज से 40 साल पहले गश्त के लिए 27 किलोमीटर सड़क स्वीकृत की थी. इसमें वन विभाग ने करीब 17 किलोमीटर तक सड़क की कटिंग भी की. लेकिन 1980 में वन अधिनियम अस्तित्व में आने के कारण करीब 10 किलोमीटर के क्षेत्र में सेंक्चुरी वाइल्ड एरिया और कस्तूरी मृग अभ्यारण्य होने से इस महत्वकांक्षी सड़क का निर्माण नहीं हो पाया और इस पर रोक लग गई. आज स्थिति ये है कि करोड़ों खर्च होने के बाद भी मोटर मार्ग पैदल मार्ग में तब्दील है. उन्होंने दावा किया है कि सड़क को सुचारु करने के लिए उन्होंने वन विभाग शासन-प्रशासन को प्रस्ताव भेजा है.

विधायक के दावों के विपरीत केदारनाथ वन प्रभाग के डीएफओ अमित कंवर का कहना है कि उनके पास फिलहाल सड़क को लेकर किसी के द्वारा कोई भी प्रस्ताव नहीं आया है. अगर प्रस्ताव आता है तो वह इसे तत्काल व्यापक, जनहित, पर्यटन, तीर्थाटन को देखते हुए स्वीकृत कराने का प्रयास करते. इस सड़क के बनने से तुंगनाथ और कार्तिक स्वामी मंदिर भी आपस में जुड़ जाएंगे, जो कि दोनों केदारनाथ वन प्रभाग के अंतर्गत हैं

Last Updated : Jul 8, 2020, 5:04 PM IST
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