चमोलीः विश्व प्रसिद्ध बदरीनाथ धाम में माता मूर्ति का एक दिवसीय मेला हर्षोल्लास के साथ संपन्न हो गया है. इस मौके पर स्थानीय लोगों और यात्रियों ने माता मूर्ति की पूजा अर्चना कर मनौतियां मांगी. इससे पहले भगवान बदरी विशाल माणा गांव स्थित अपने माता मूर्ति से मिलने पहुंचे. जहां अद्भुत मिलन हुआ.
गौर हो कि हर साल वामन द्वादशी पर भगवान बदरी विशाल अपनी माता मूर्ति के दर्शन के लिए सीमांत गांव माणा के ठीक सामने माता मूर्ति नामक स्थान पर पहुंचते हैं. इस बार भी सुबह 10 बजे बदरीनाथ मंदिर परिसर से भगवान बदरी विशाल की उत्सव मूर्ति को रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी के संरक्षण में तीन किलोमीटर पैदल ही माता मूर्ति पहुंचाई गई. जहां रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी ने विधि विधान के साथ वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मां मूर्ति की पूजा अर्चना की.
इस दौरान सेना और आईटीबीपी के बैंड की धुन के साथ बदरी विशाल के जयकारे लगाए गए. वहीं, बदरी केदार मंदिर समिति की ओर से मां मूर्ति के लिए राजभोग लगाया गया. जिसे प्रसाद के रूप में माणा गांव के ग्रामीणों को विशेष रूप से दिया गया. माणा गांव की महिलाओं ने पौंणा नृत्य किया. पूजा अर्चना के बाद दोपहर 3 बजे माता मूर्ति का मेला संपन्न हुआ. इस मौके पर आइटीबीपी और सेना की ओर से माता मूर्ति में भंडारे भी लगाए गए.
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वहीं, माता मूर्ति मेले के चलते शनिवार को बदरीनाथ मंदिर में सभी पूजा अर्चना सुबह 9:30 बजे से बंद कर दी गई. ठीक दस बजे मंदिर के कपाट बंद कर यहां से डोली माता मूर्ति से मिलने के लिए रवाना हुई. दोपहर 3 बजे माता माता मूर्ति मेला संपन्न होने के बाद बदरीनाथ मंदिर के कपाट खोल दिए गए.
बता दें कि भगवान बदरी विशाल की माता मूर्ति का मंदिर नारायण पर्वत की तलहटी में स्थित है. ऐसे में हर साल वामन द्वादशी के दिन माता के आमंत्रण पर स्वयं भू बैकुंठ बदरी विशाल 3 किलोमीटर की दूरी तय कर अपनी माता मूर्ति से मिलने पहुंचते हैं.
ये है मान्यताः ये भी मान्यता है कि जिस तिथि में भगवान बदरी विशाल जी के कपाट खुलते हैं, उस दिन से आज तक यानी वामन द्वादशी तक बदरीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी रावल पंचशीला क्षेत्र में ही रहते हैं. यहां तक कि वो धाम में किसी भी नदी को पार भी नहीं कर सकते. यानी रावल मंदिर परिसर से बाहर ही नहीं जा सकते हैं, लेकिन आज भाद्रपद यानी वामन द्वादशी की तिथि के बाद अब रावल किसी भी स्थान पर आवागमन कर सकते हैं.